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मन समंदर

>> Thursday, 24 May 2012



लहरें तो आती जाती हैं 
दुख सुख का भी हाल यही 
फिर हम इतना क्यों सोचें  
बस मन समंदर करना है , 

मोती सीपों में मिल जाते 
पर गोता खुद लगाना है 
श्रम से फिर क्यों भागें हम 
बस तन अर्पण  करना है 

 पैसा तो आना जाना है 
 इसके पीछे हैं पागल लोग 
क्यों हम पागल हो जाएँ 
बस मन मंदिर करना है । 


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माँ की याद .... कुछ हाइकु रचनाएँ ...

>> Sunday, 13 May 2012



माँ का आँचल 
आज भी लहराता 
सुखद यादें ।

******************
मीठी निबौरी 
माँ  की  फटकार 
गुणी औषध ।

**************
माँ का लगाया 
काजल का दिठौना
याद है मुझे 

*****************
राह तकते
करती  इंतज़ार 
माँ की नज़र ।

***************
माँ का  आशीष 
महसूस करूँ मैं 
यही चाहना ।
*******************




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.ना बोले तुम ना मैंने कुछ कहा.. ( तांका )

>> Monday, 7 May 2012





घना सन्नाटा 
मौन की चादर  में 
दोनों लिपटे 
न तुम कुछ  बोले 
न ही मैं कुछ  बोली 

लब खुलते 
गिरह ढीली होती 
मन मिलते 
कुछ मोती झरते 
कुछ दंश हरते ।

गहन घन 
छंट जाते पल में 
उजली रेखा 
भर देती  मन में 
अनुपम उल्लास ।

 

तांका  में  पाँच पंक्तियाँ होती हैं ..... जिनमें वर्णो  की संख्या ..... 5-7-5-7-7  होती है । 

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बर्फ ......

>> Thursday, 26 April 2012



एक
उदास शाम को
मन की झील में
डूबते - उतरते
नज़रें गीली
हो गयीं थीं
और
झील पर
जमी बर्फ 
पिघलने 
लगी थी .....


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निजत्व से विश्वत्व की ओर

>> Friday, 13 April 2012


मानव 
मन के उच्छ्वास को
शब्दों में पिरो 
विचारों को साध कर 
अनुभव के हलाहल को पी 
अश्रु की स्याही से 
उकेर देता है 
अपनी भावनाओं को 
और हो जाता है 
सृजन कविता का 
फिर भावनाएं 
निजत्व से निकल 
विश्वत्व की ओर 
कर जाती हैं प्रस्थान .

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संवेदनाएं / हाइकु

>> Friday, 23 March 2012


 

रिश्ते हैं यहाँ 
अपेक्षाओं से भरे 
दम तोड़ते

*************
 

भावुक मन 
संवेदना से भरा 
बरस गया ।

****************
 

रेत ही रेत 
पलकों  में समाई 
खुश्क हैं आँखें 
................

 

मौन उवाच 
है ज्यादा कष्टकारी 
कुछ कहो ना ! 

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तिरसठ की चाह में छतीस साल ( हाईकू )

>> Sunday, 5 February 2012

 

छत्तीस साल 
किया समायोजन 
बीत ही गए |


सोचती हूँ मैं 
छत्तीस का आंकड़ा 
फिराए पीठ |


बीता समय 
तिरसठ की चाह 
मुक्कमल हो |


आगे का वक्त 
समन्वय करते 
गुजारें हम |

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