उफ़ उफ़ ...ये तस्वीर वाली रोटी पतिदेव देखते तो कहते - एक काम ठीक से नहीं कर सकतीं रोटी भी जला दी .. अब उन्हें कौन बताये कि उन्हीं कि वजह से जलती है :) मजाक के अलावा दी! क्या गज़ब पंक्तियाँ लिखीं है. मन के छाले जैसे रोटी पर उभर आये हैं. .
दंश,तंज के अंगारे कलेजा जला डालते हैं...ख़्वाबों कि रोटी तो अदना सी चीज़ है..............आपने बहुत अच्छा लिखा है........गज़ब कि बात समेत ली है ७-८ पंक्तियों में..........साधुवाद
तेरे दंश भरे अंगारों ने उसे जला डाला ... वाह! संगीता जी बहुत खूब लिखा है आपने! मन की गहराई को बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! आपकी लेखनी को सलाम!
ख़्वाबों का यह हश्र मन को भी जला देता है ! चंद शब्दों में मन की गहनतम अनुभूतियों को इतनी सशक्त अभिव्यक्ति देने में आपको महारत हासिल है संगीता जी ! रचना की जितनी सराहना की जाये कम ही होगी ! बहुत ही सुन्दर ! बधाई एवं आभार !
ये रोटी भी न कहाँ कहाँ पहुच जाती है ? पेट की ज्वाला बुझाने के लिए तो है ही पक भी जाती कहाँ कहाँ की आग पर. ये मजाक कि बात है लेकिन बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया हैं अपने अंतर के भावों को.
ये रोटी भी न कहाँ कहाँ पहुच जाती है ? पेट की ज्वाला बुझाने के लिए तो है ही पक भी जाती कहाँ कहाँ की आग पर. ये मजाक कि बात है लेकिन बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया हैं अपने अंतर के भावों को.
कम शब्दों में बहुत कुछ कहना ....आपकी छोटी छोटी नज़्मों की खासियत बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचनायें दंश ,हरसिंगार ,हसरत या पलाश ... समंदर रेत का,बाढ़ का कहर ,या फिर तेरे होने का अहसास..... मन को कहीं गहरे तक छू जायें ,पर प्रत्युतर में कुछ कह न पाएं .. ....??????????.......बस इतना ही "जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ " शुभकामनाएं ...
sangeeta di soch rahi hun ki kya comments dun -- likhne ko shabd nahi mil rahe hain. in chohti-chhoti si panktiyon ne apne andar sab kuchh samet liya hai . bahut behtareen xhanika bahut bahut bdahi poonam
उफ़ उफ़ ...ये तस्वीर वाली रोटी पतिदेव देखते तो कहते - एक काम ठीक से नहीं कर सकतीं रोटी भी जला दी ..
ReplyDeleteअब उन्हें कौन बताये कि उन्हीं कि वजह से जलती है :)
मजाक के अलावा दी! क्या गज़ब पंक्तियाँ लिखीं है. मन के छाले जैसे रोटी पर उभर आये हैं. .
दंश,तंज के अंगारे कलेजा जला डालते हैं...ख़्वाबों कि रोटी तो अदना सी चीज़ है..............आपने बहुत अच्छा लिखा है........गज़ब कि बात समेत ली है ७-८ पंक्तियों में..........साधुवाद
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिका ... मन की रोटी सेंकी भी अंगारों के सहारे जाती है !
ReplyDeleteबहुत सुंदर और गहन अभिव्यक्ति लिए हैं पंक्तियाँ.....
ReplyDeletebhut hi saargarbhit abhivakti..
ReplyDeletebahut gahan bhaav liye hua hai aapka yeh sher...really..nice...umda.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव लिए मन की आवाज़ , आपने मोती समेत लिए बिखरे जो पड़े थे बधाई
ReplyDeleteबड़ा गहरा।
ReplyDeleteतेरे
ReplyDeleteदंश भरे
अंगारों ने
उसे जला डाला ...
वाह! संगीता जी बहुत खूब लिखा है आपने! मन की गहराई को बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! आपकी लेखनी को सलाम!
dekhan me chhotan ghaw gambheer
ReplyDeletewaah!....kuchh hi shabdo me itni badi baat...
ReplyDeletekunwar ji,
वाह ! वाह ! वाह ! रोटी पर उभरे काले दाग मानो सच मुंच के छाले हो... क्या बात कही है संगीता दी..
ReplyDeleteबहुत सही ,एकदम सटीक !
ReplyDeleteइन दंशों के कारण ही कुछ कर गुजरने का जज्बा भी आता है। इसलिए दंश अच्छे भी है। जैसे दाग अच्छे हैं।
ReplyDeleteख़्वाबों का यह हश्र मन को भी जला देता है ! चंद शब्दों में मन की गहनतम अनुभूतियों को इतनी सशक्त अभिव्यक्ति देने में आपको महारत हासिल है संगीता जी ! रचना की जितनी सराहना की जाये कम ही होगी ! बहुत ही सुन्दर ! बधाई एवं आभार !
ReplyDeleteजब भी
ReplyDeleteमन के
चूल्हे पर
मैंने
ख़्वाबों क़ी
रोटी सेकी
तेरे
दंश भरे
अंगारों ने
उसे जला डाला ..
दर्द का चित्रण इससे बेहतर कैसे हो सकता है।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...बेहतरीन रचना है यह आपकी
ReplyDeleteतेरे
ReplyDeleteदंश भरे
अंगारों ने
उसे जला डाला ...
वाह...बहुत भावपूर्ण...बहुत सुन्दर...
ख्वाबों की रोटी और अंगारों के दंश ने सब कुछ बयां कर दिया है...
हार्दिक बधाई.
:)
ReplyDeletejab baat dil par lagti hai to esaa hi mehsoos hota hai
ReplyDeletekyaa baat hai!...roti par bhi bahut kuchh likha jaa sakta hai....behtareen!
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है। वधाई
ReplyDeleteये रोटी भी न कहाँ कहाँ पहुच जाती है ? पेट की ज्वाला बुझाने के लिए तो है ही पक भी जाती कहाँ कहाँ की आग पर.
ReplyDeleteये मजाक कि बात है लेकिन बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया हैं अपने अंतर के भावों को.
ये रोटी भी न कहाँ कहाँ पहुच जाती है ? पेट की ज्वाला बुझाने के लिए तो है ही पक भी जाती कहाँ कहाँ की आग पर.
ReplyDeleteये मजाक कि बात है लेकिन बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया हैं अपने अंतर के भावों को.
तेरे
ReplyDeleteदंश भरे
अंगारों ने
उसे जला डाला ..
गहन भावों को समेटे यह पंक्तियां ।
कुछ शब्दों में गहन चिंतन समाहित कर देना आपकी रचनाओं की विशेषता है...यह प्रस्तुति भी इसका अपवाद नहीं..आभार
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव ....गहन अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteआभार
sara dard ubhar aya panktiyon me,isse acchi abhivyakti dard ki ho nahi sakti
ReplyDeleteman ko dikhane ka is se achchha doosra koi tareeka nahin hai...!
ReplyDeletebahut sundar...!!
सच दंश में आग से भी ज्यादा दहन करने की क्षमता होती है...
ReplyDeleteकितनी गहरी बात आपने इस क्षणिका के माध्यम से कह दी. सीधे दिल पर असर हुआ...आभार
In chand alfaazon me kitna kuchh kah daalaa!
ReplyDeleteशिखा की बातें मैं भी कोट करना चाहता हूं ...“ मन के छाले जैसे रोटी पर उभर आये हैं”!
ReplyDeleteकम शब्दों में बहुत गहरी बात कह दी आपने तो!
ReplyDeleteरोटी सेंकना...अच्छी बात नहीं है...नेता भी तो रोटियां सेंकते है...पर जलते तो नहीं जलाते हैं...काश कोई दिल से आपकी तरह रोटियां सेंके...
ReplyDeleteमन का चूल्हा और खावों की रोटी. काफी स्वादिष्ट और रोचक सृजन. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
is baar tasvir bhi takkar ki hai ,bahut hi sundar dono cheeze
ReplyDeleteअगर आच तेज हो तो सपने जल ही जाते है , सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteबहुत खूब .. कुछ ही शब्दों में गहरी बात ....
ReplyDeleteसुभानाल्लाह....बहुत खूब....रोटी और मन....वाह
ReplyDeleteमै जरा देर से आया लेकिन दुरुस्त आया . जली रोटी के फफोले ह्रदय की बात कह गए ., देखन में छोटन लगे------.
ReplyDeleteShort but effective !!!
ReplyDeleteदी,कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह दी ....सादर !
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति... उस पर शिखा जी कि पहली टिप्पणी भी जबरदस्त रही.....
ReplyDeleteवाह वाह वाह
ReplyDeleteसंगीता जी,
गागर में सागर इसे ही कहा जाता है.
bahut khub...kahan to log kalam ghiste jate hain...par guni to wahi hai jo gagar me sagar bhar de....aapki tarah..
ReplyDeleteछोटी सी कविता में चौंका देने वाली बहुत बड़ी बात कह दी आपने.आभार .बहुत-बहुत शुभकामनाएं .
ReplyDeleteबहुत गहरे भाव छिपे हैं इस क्षणिका में |बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteगागर में सागर.
ReplyDeleteदंश भरे
ReplyDeleteअंगारों ने
उसे जला डाला ..
गहन भावों को समेटे यह पंक्तियां ।
:)
ReplyDeleteसुन्दर...
ReplyDeleteशब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी मार्मिक रचना ....
ReplyDeleteगहन मनोभाव हैं आपकी इस रचना में...
गहन विचारों के साथ सार्थक प्रस्तुति ।
ReplyDeletelovely lines !
ReplyDeleteदंश तो बहुत कुछ जला डालते हैं...
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
चंद शब्दों में काफी गहरी बात...
ReplyDeleteसुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
आभार
'दंश ' की तीव्रता का अहसास कराती सारपूर्ण पंक्तियाँ !
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है आपने,
ReplyDeleteहर शब्द एहसासों का समंदर समेटे है !!
बारह शब्दों में बारह महीनों की व्यथा.ह्रदय स्पर्शी रचना.
ReplyDeleteकम शब्दों में बहुत कुछ कहना ....आपकी छोटी छोटी नज़्मों की खासियत
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचनायें
दंश ,हरसिंगार ,हसरत या पलाश ...
समंदर रेत का,बाढ़ का कहर ,या फिर
तेरे होने का अहसास.....
मन को कहीं गहरे तक छू जायें ,पर प्रत्युतर में कुछ कह न पाएं ..
....??????????.......बस इतना ही
"जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ "
शुभकामनाएं ...
तेरे
ReplyDeleteदंश भरे
अंगारों ने
उसे जला डाला
bahut tees bhari hai in panktiyon mein....
yah dansh pet puja ke liye bhari na pare...laghu kavya mein anant vyatha ki katha...
ReplyDeleteनिशब्द !
ReplyDeleteजो दिल ने कहा ,लिखा वहाँ
पढिये, आप के लिये;मैंने यहाँ:-
http://ashokakela.blogspot.com/2011/05/blog-post_1808.html
बहुत सुन्दर पंक्तिया
ReplyDeleteHappy Environmental Day !
वाह संगीता जी ..क्या बात है... जली रोटी और ख्वाबों का चूल्हा .. वाह
ReplyDeletemain to smiley banane ke liye bhi late ho gayi mumma...:(
ReplyDeleteanyways.....mail account kharab tha yahi kaaran tha.....:)
अंगारों का साहचर्य
ReplyDeleteजलना तो तय है
निशब्द इतने कम शब्दों मे गहरी बात और अद्भुत बिम्ब। शुभकामनायें।
ReplyDeleteMan ke chulhe parkwabon kee rotee kyq bqt hai ? Jalne kee bat se jaise man ka dard ubhar aaya. Bahut sunder,\.
ReplyDeleteman ki vyatha ka chitran behtarin dhang se kiya.....taarif ke liye shabd nahi..........
ReplyDeletegagar men sagar bhara hai......aapane. Bhavsampann racana..
ReplyDeletebadhyee.
bahut hi khubsurti se dil ki baat btai rachna .
ReplyDeleteसुन्दरता से लिखा है आपने..शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteअक्सर ऐसे दंश मन को उदास कर जाते हैं , लेकिन शायद यही ज़िन्दगी है।
ReplyDeleteare wah.......bhav pranav...sadhuwaad
ReplyDeletesangeeta di
ReplyDeletesoch rahi hun ki kya comments dun --
likhne ko shabd nahi mil rahe hain.
in chohti-chhoti si panktiyon ne apne andar sab kuchh samet liya hai .
bahut behtareen xhanika
bahut bahut bdahi
poonam
वाह.बहुत दिन से दिख नहीं रहीं.
ReplyDeleteघुघूती बासूती
Lajwab !
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति लिए हैं पंक्तियाँ.....
ReplyDeleteमन के चूल्हे पर पकते ख़्वाब वाक्यदंश से जलते रहते हैं.
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है.
तेरे दंश भरे अंगारों ने उसे जला डाला ...
ReplyDeleteथोड़े से शब्द सब कुछ कह गये...
एक दर्द न जाने कहाँ छुपा है उभर ही आता है लेखनी में -सुन्दर छवि और बहुत कुछ कह सुना गयी ये जली रोटी --
ReplyDeleteशुक्ल भ्रमर ५
behtareen :)
ReplyDelete_____________________________
मैं , मेरा बचपन और मेरी माँ || (^_^) ||
thoughtful poem
ReplyDeleteख़्वाबों की रोटी अभिनव प्रयोग ,नियति के आगे सब कुछ ढेर .
ReplyDeletedekhan me chhote lage, ghaw kare gambhir .. :)
ReplyDeleteजब भी
ReplyDeleteमन के
चूल्हे पर
मैंने
ख़्वाबों क़ी
रोटी सेकी
मनमोहन तेरे
दंश भरे महंगाई के
अंगारों ने
उसे जला डाला ...
kya baat...bdhayi...
ReplyDeleteno words to appreciate
ReplyDeleteexcellent
bahut hi gahre bhav hai is rachna men...
ReplyDeleteमेरे ब्लाग पर आने के लिये बहुत-बहुत आभार।
ReplyDeleteदंश हमेशा दु;ख नही देता बल्कि हमारे लिये
प्रेरक का भी काम करता है।अच्छा लगा पढकर।