भले ही केसर कम पड़ गयी हो लेकिन जो कुछ भी आपने पकाया वह इतना सौंधा और स्वादिष्ट है कि उसकी सुगंध दूर तक फ़ैली हुई है और उसे ही ग्रहण करने के लिये सब लालायित हो रहे हैं ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !
संगीता दी! किसी और की बात होगी यह..आपकी तो हो ही नहीं सकती.. इतने सारे लोगों का प्रेम आपके साथ है और इतनी सद्भावनाएं आपके साथ जुडी हैं.. और हम सभी गुनगुना रहे हैं नीरज जी के गीत: खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की, खिड़की खुली हुई है किसी के मकान की!
महोदय/ महोदया जी, अब आपके लिये एक मोका है आप भेजिए अपनी कोई भी रचना जो जन्मदिन या दोस्ती पर लिखी गई हो! रचना आपकी स्वरचित होना अनिवार्य है! आपकी रचना मुझे 20 जुलाई तक मिल जानी चाहिए! इसके बाद आयी हुई रचना स्वीकार नहीं की जायेगी! आप अपनी रचना हमें "यूनिकोड" फांट में ही भेंजें! आप एक से अधिक रचना भी भेजें सकते हो! रचना के साथ आप चाहें तो अपनी फोटो, वेब लिंक(ब्लॉग लिंक), ई-मेल व नाम भी अपनी पोस्ट में लिख सकते है! प्रथम स्थान पर आने वाले रचनाकर को एक प्रमाण पत्र दिया जायेगा! रचना का चयन "स्मस हिन्दी ब्लॉग" द्वारा किया जायेगा! जो सभी को मान्य होगा! मेरे इस पते पर अपनी रचना भेजें sonuagra0009@gmail.com या आप मेरे ब्लॉग “स्मस हिन्दी” मे टिप्पणि के रूप में भी अपनी रचना भेज सकते हो. हमारी यह पेशकश आपको पसंद आई? नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
अद्भुत सुन्दर पंक्तियाँ! बहुत गहरी बात कह दिया आपने! शानदार प्रस्तुती! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है- http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
उफ़ चंद शब्दो मे गहरी बात कह दी।
ReplyDeleteक्या बात है...वैसे यह चावल पकते तो यह तो तय है कि खुशबू दूर तलक जाती
ReplyDeleteक्या बात है, बहुत सुंदर
ReplyDeleteaur bhukh mar gai...
ReplyDeleteबिरियानी ...
ReplyDeleteपकते-पकते पक गई
सुगंध भी फैली
कुछ इधर
कुछ उधर!!
क्या हुआ जो केसर कम पड़ गया
क्या हुआ जो छौंक नहीं दी
अपनी भावनाओं की आंच ही काफ़ी थी!
khubsurat jajbaat kahne ka andaaz nirala badhai
ReplyDeleteSangeeta ji,
ReplyDeleteaap jaisi vidushi ki rachana par yah comment karna dhrishta hai,kintu fir bhee man maan nahin rahaa hai.
socho to saade chawal men mil jaata keshar ka ujaas .
jyaada meetha nukasandeh, achchhee hoti thodi mithaas .
सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिए आभार
ReplyDeleteकम शब्दों में जीवन सार कह देना..... आपकी ही कलम हो सकती है....
ReplyDeleteजो मिला, सभी नत-शिर हो कर स्वीकार लिया ,
ReplyDeleteकिसलिये शिकायत, जब आगे चल देना है!
भले ही केसर कम पड़ गयी हो लेकिन जो कुछ भी आपने पकाया वह इतना सौंधा और स्वादिष्ट है कि उसकी सुगंध दूर तक फ़ैली हुई है और उसे ही ग्रहण करने के लिये सब लालायित हो रहे हैं ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeletejo bhi pakaya hai aapane svadisht hai...aapke shabdon ki mithas kafi hai...:)
ReplyDeleteकेसरिया चावल भले ना पके. मिटटीकी हांड़ी भले ना चढ़े , लेकिन आपका जीवन कस्तूरी जैसा सुगन्धित रहे , आमीन.
ReplyDeleteसंगीता दी!
ReplyDeleteकिसी और की बात होगी यह..आपकी तो हो ही नहीं सकती.. इतने सारे लोगों का प्रेम आपके साथ है और इतनी सद्भावनाएं आपके साथ जुडी हैं.. और हम सभी गुनगुना रहे हैं नीरज जी के गीत:
खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की,
खिड़की खुली हुई है किसी के मकान की!
संगीता जी कम शब्दों में जीवन का सार कह देती हैं आप.... केसरिया चावल बढ़िया विम्ब बन गया है.....
ReplyDeleteऔर मन की बात ज़ुबाँ
ReplyDeleteपर आ गई !
सुंदर भाव !!!
शुभकामनायें!
बहुत ही कम शब्दों ने कितनी गहरी बात कह दी.... बहुत खूब....
ReplyDeletelekin aapki kavita se keshariya chwal ke mithas ki khooshboo aa rahi hai......
ReplyDeleteमहोदय/ महोदया जी,
ReplyDeleteअब आपके लिये एक मोका है आप भेजिए अपनी कोई भी रचना जो जन्मदिन या दोस्ती पर लिखी गई हो! रचना आपकी स्वरचित होना अनिवार्य है! आपकी रचना मुझे 20 जुलाई तक मिल जानी चाहिए! इसके बाद आयी हुई रचना स्वीकार नहीं की जायेगी! आप अपनी रचना हमें "यूनिकोड" फांट में ही भेंजें! आप एक से अधिक रचना भी भेजें सकते हो! रचना के साथ आप चाहें तो अपनी फोटो, वेब लिंक(ब्लॉग लिंक), ई-मेल व नाम भी अपनी पोस्ट में लिख सकते है! प्रथम स्थान पर आने वाले रचनाकर को एक प्रमाण पत्र दिया जायेगा! रचना का चयन "स्मस हिन्दी ब्लॉग" द्वारा किया जायेगा! जो सभी को मान्य होगा! मेरे इस पते पर अपनी रचना भेजें sonuagra0009@gmail.com या आप मेरे ब्लॉग “स्मस हिन्दी” मे टिप्पणि के रूप में भी अपनी रचना भेज सकते हो.
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pyar ke bhav sunder hai
ReplyDeleteबाप रे बाप.. आप कितना जबरदस्त लिख देती है.. वाह
ReplyDeletekesariya colour aap ke paas bhi to tha.
ReplyDeleteक्या कहा है आंटी...बहुत सुंदर...अलग उपमानों को लेकर आप जीवनदर्शन की अद्भूत बात कह जाती है.....बहुत सुंदर।
ReplyDeleteकुछ शब्दों में पूरा जीवन दर्शन ...........
ReplyDeleteप्रणम्य है लेखनी ...
बहुत सुन्दर रचना....शुभकामनायें.....
ReplyDeleteसधे हुए ..प्रभावित करते शब्द ... कैसे बांध लेती हैं आप कम शब्दों ऐसी गहन बातें....
ReplyDeletedil ko chhoo gayee aapki prastuti.badhai sangeeta ji.
ReplyDeleteअरे आपको न केसर की जरुरत है न मिठास की.आप तो जिसे हाथ लगा दें अपने आप ही मीठा हो जाये.
ReplyDeleteकम शब्दों में सुन्दर ,गहरी बात.
समझने वाले उतने होशियार नही होते जितने की समझाने वाले. लेकिन जब बात समझ में आती है तो भावनाओं की मिठास वाली तलाश मन ही मन शुरू हो जाती है.
ReplyDeleteChaahat hi kyun ki ? sundar ...
ReplyDeleteप्रेम का रंग तो हमारी आंखों में होता है अगर वह है तो आप उसे किसी भी रंग में देख सकते हैं। इसलिए तो कहा गया है सावन के अंधे को सब हरा हरा ही दिखता है।
ReplyDeleteसुन्दर क्षणिका!
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति ,बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजीवन में कई बार बसंत ओड़ा नहीं जा पाता ...
ReplyDeleteबहुत गहरी अभिव्यक्ति है ...
गहरी बात है....
ReplyDeleteअति सुन्दर . लेकिन किस की बात कह दी जी .
ReplyDeleteज़ाहिर है यह बात खुद की नहीं , बात है ज़माने की .
kesariya prem aur bhavnaon ki mithas....ske intejar me jindagi hi beet jati hai...sunder bimb...
ReplyDeletekesariya prem aur bhavnaon ki mithas....ske intejar me jindagi hi beet jati hai...sunder bimb...
ReplyDeletekesariya prem aur bhavnaon ki mithas....ske intejar me jindagi hi beet jati hai...sunder bimb...
ReplyDeleteman ki handi
ReplyDeletebeautiful poem
संगीता जी
ReplyDeleteमन की हांडी की मिठास से रंग देतीं यदि सादा चावल !
केसरिया बन जाता ,निश्चय ही वह साधारण चावल !
"भोला"
पर न केसरिया
ReplyDeleteप्रेम मिला
और न ही
भावनाओं की मिठास ...यह भी जीवन की अजीब विडम्बना है...
_______________
शब्द-शिखर / विश्व जनसंख्या दिवस : बेटियों की टूटती 'आस्था'
kam shabdon men badi baat kahne ki adbhut kshamata hai aapmen !
ReplyDeleteabhaar
हैट्स ऑफ.....इतने कम शब्दों में इतनी गहराई तक जाने के लिए|
ReplyDeleteवह सुबह कभी तो आयेगी।
ReplyDeleteहमेशा की तरह एक शानदार रचना। कम शब्दों में कितनी गहरी बात कह दी आपने। आभार।
ReplyDeletepasand aaye kesariya chaawal, chawal km hain lakin swadisht hain..
ReplyDeleteabhaar......................
केसरिया चावल के बिम्ब को लेकर बहुत कुछ कह दिया आपने...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
संगीता जी इस खूबसूरती को मैं क्या कहूँ निःशब्द हूँ
ReplyDeleteबहुत खूब..हमेशा की तरह...कम शब्दों में गहरी बात....
ReplyDeleteअद्भुत सुन्दर पंक्तियाँ! बहुत गहरी बात कह दिया आपने! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
ओह! ये तो सुनकर अच्छा नहीं लगा...
ReplyDeleteकेसरिया चावल....
ReplyDeleteनए बिम्ब हमेशा आकर्षित करते हैं .......
वाकई आपकी रचनाओं को जितनी बार पढिए हर बार नई तो लगती ही है, भाव भी बदलते रहते है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर.. पहले भी पढ चुका हूं।
वाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteआप ने तो गागर में सागर भर दिया..
ReplyDeleteलाजवाब करती प्रस्तुति ।
ReplyDeleteक्या कहने...
ReplyDeleteआदरणीया संगीता जी सब कुछ मिलेगा देर है अंधेर नहीं -भावनाओं की मिठास तो भरी पड़ी है आप के पास
ReplyDeleteखूबसूरत रचना -बधाई
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
अछूते बिम्बों से गागर में सागर भर दिया है.
ReplyDeleteसंगीता जी, दुआ है कि ये भावनाओं की सुगंध हमेशा महकती रहे.
ReplyDeleteकाश.....
ReplyDeleteआपका चावल पाक जाए...!
फिर मैं भी अपना चावल पकाने की कोशिश करूँ ..!!!
चावल के दाने सी रचना..
पूरा मुंह मीठा कर गई !!
sirf kuch gine-gine shabdon na jaane kitane bhaav...
ReplyDeleteबहुत सुंदर तरीका है बात कहने का,
ReplyDeleteसादर,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
वाह! बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति ..........
ReplyDeletewaah kitni khubsurti se bayan ker diya apne apne jajbaton ko , accha hua jo nahi paki .pak jati to itni acchi rachna humekaha se milti.badhai.........
ReplyDeleteaaj pahli bar pada aapko...
ReplyDeleteachha laga....
har ek post naayaab hai...
naya naya sadasya hun blog jagat men
mere blog par aapka swaagat hai...
bas yahi kami to khal gayi ,bahut hi badhiya .
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति , आभार
ReplyDeleteक्या बात है । केसरिया चावल भा गये मन को ।
ReplyDeleteSoul stirring creation ! Quite often we live with unfulfilled desires !
ReplyDeleteबड़ी बेवकूफ थी, तुझसे प्यार कर बैठी,
ReplyDeleteतेरी बातों में आकर, इज़हार कर बैठी,
न पता था तेरा यूँ जाने का,
मुझे छोड़कर किसी और को अपनाने का,
bahut kam shabdo me bahut gehri baat keh di aapne ...
ReplyDeletedi aapki har baat kuchh apni si lagti hai.......:)
ReplyDeleteसुन्दर भाव, सार्थक रचना, आभार.
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत दीदी :)
ReplyDeleteSangeeta Ji, ye sundar rachna hai. Kya agli rachna aap ullas par likh sakti hain?
ReplyDeleteआपको हरियाली अमावस्या की ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं .
ReplyDeletelaghu rachna mein bahut badiya bimb prastut kiya hai aapne... bahut achhi lagi rachna..
ReplyDeleteक्या संगीता दी इतना कुछ तो मिला है अब और क्या चाहिए ....हा हा हा ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
"यहाँ तो दाना दाना खिल रहा है
शब्द दर शब्द सुगंध भर रहा है"
शायद अच्छे दिल वालों के साथ ऐसा ही होता है ...कष्ट मज़बूत लोगों को अधिक मिलते हैं ! शुभकामनायें !
ReplyDeletedar ko bhi aap bahut sunder bana deti hai .aapko sari kshanikayen bahut hi sunder hoti hai .ye bhi unhi uttam shreni me shamil hai
ReplyDeleterachana
Bahut sundar bimb , bahut pasnd aayi bahut-bahut badhai..
ReplyDeletebahut khoob........
ReplyDeletemain kai baar sochta hoon par aisa likh nahi paata...bus fir aapko pad leta hoon.... badhaiiiiiiii
Kya baat kah dee.....!
ReplyDeleteभावनाओं की मिठास.
ReplyDeleteआज कल सब इसी के लिए तरसते हैं।
सादर
sundar bhav
ReplyDeleteacchi rachana..