आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 31 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह क्या बात है दी समुंदर से गहरे भाव गूँथ दिये चंद शब्दों में... मेरी भी कुछ पंक्तियाँ अपनी भीगी पलकों पे सजा लूँ तुमको दर्द कम हो गर थोड़ा सा पा लूँ तुमको
तू चाँद मख़मली तन्हा अंधेरी रातों का चाँदनी सा ओढ़ ख़ुद पे बिछा लूँ तुमको
खो जाते हो अक्सर ज़माने की भीड़ में आ आँखों में काजल सा छुपा लूँ तुमको।
प्रिय श्वेता , मैंने तो चंद अल्फ़ाज़ लिखे थे , यूँ ही एक ख्याल आया जो ख्वाहिश बन गयी , यूँ चाहत नहीं किसी की भी आँख से कोई कतरा बहे , मासूम सा ख्याल था जो शब्दों में उतर आया । और यहाँ इतने प्यारे प्यारे ख्याल मिल रहे कि क्या कहूँ ----
काजल सा बना जो तुमने मुझे छिपाया है चांदनी ओढ़ जो खुद पर मुझे बिछाया है हर दर्द की दवा जैसे पा ली है अब मैंने भीगी पलकों को तेरी, मेरे लब ने सहलाया है ।
देवेंद्र जी , यहां आने का शुक्रिया । वाकई दर्द का यूँ छलकना अच्छा तो नहीं लगता लेकिन --- छलके नहीं दर्द तो नासूर हो जाता है न चाहते हुए भी आँखों का नूर हो जाता है ।
क्या बात शिखा । हमारा ही वार हम पर 😄😄 अपनी आंखों में जो तस्वीर बना कर बिठाया कसम है जो तुमने एक कतरा भी गर बहाया अगर टपका एक भी आँसू तुम्हारी आँखों से टप से टपक पड़ूँगी जो अब तक था तुमने बचाया ।
किसी ने इस खूबसूरत दरिया में गोता लगाया किसी ने छलांग । मैं तो डूब गई इस दौरान, कसम से मजा आ गया आपकी सुंदर रचना को मन में उतारकर, साथ ही शानदार प्रतिक्रियाओं का नजराना पढ़कर ।। आपको आभार और आपके साथ साथ सभी को नमन ।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 31 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया दिग्विजय जी ।
Deleteतेरे डूबने के डर से
ReplyDeleteपी लिए आँसू मैंने
आ हाथ पकड़ जानाँ
डूबते हैं मिल के
इश्क के समन्दर में
चल डूबके ही अबके
हम पार उतरते हैं😊
तेरे आँसुओं का
Deleteयूँ पी लेना ही
दर्द बन गया
मेरे सीने का ,जानाँ
चल हाथ पकड़
बारिश में खड़े हो लें
इश्क के समंदर में
डूब के रो लें ।
उषाजी ,
Deleteआपकी लिखे पर मेरे चंद अल्फ़ाज़ । जो ऊपर लिखे । 😍😍
वाह वाह ...क्या बात❤️
Deleteतिरे-मिरे इश्क के
Deleteताने- बाने से
आ, बुन लें
रेशा- रेशा
रंग देना फिर चाहें
अपने ही रंग में
अपने जैसा...!!😊
उषा जी , कमाल है 👌👌.
Deleteआपके लिए ---
इश्क का ताना बाना हो
या हो चाहत का रेशा रेशा
हमने तो रंगा है रूहों को
बनाना है क्या मेरे जैसा ? 😍😍
बहुत रंगरेज चढ़ा हुआ है न तो मैंने भी लिख दिया ।
चलिए बात खत्म करते हैं-
Deleteइश्क में दो कहाँ
आ पिघल कर
हो जाएं एक
रंग जाएं
इश्क के
आठवें रंग में
आज!!!😊
ख्वाहिशें इतनी गहरी थीं कि खुद की आंखें बहते बहते शुष्क हो गईं
ReplyDeleteशुक्रिया , रश्मि जी
Deleteशुष्क थीं आंखें
तो बड़ी बेचैनी थी
तभी आंखों में मैंने
समंदर भर लिए ।
वाह क्या बात है दी समुंदर से गहरे भाव गूँथ दिये चंद शब्दों में...
ReplyDeleteमेरी भी कुछ पंक्तियाँ
अपनी भीगी पलकों पे सजा लूँ तुमको
दर्द कम हो गर थोड़ा सा पा लूँ तुमको
तू चाँद मख़मली तन्हा अंधेरी रातों का
चाँदनी सा ओढ़ ख़ुद पे बिछा लूँ तुमको
खो जाते हो अक्सर ज़माने की भीड़ में
आ आँखों में काजल सा छुपा लूँ तुमको।
----
सस्नेह
सादर।
प्रिय श्वेता ,
Deleteमैंने तो चंद अल्फ़ाज़ लिखे थे , यूँ ही एक ख्याल आया जो ख्वाहिश बन गयी , यूँ चाहत नहीं किसी की भी आँख से कोई कतरा बहे , मासूम सा ख्याल था जो शब्दों में उतर आया । और यहाँ इतने प्यारे प्यारे ख्याल मिल रहे कि क्या कहूँ ----
काजल सा बना जो तुमने मुझे छिपाया है
चांदनी ओढ़ जो खुद पर मुझे बिछाया है
हर दर्द की दवा जैसे पा ली है अब मैंने
भीगी पलकों को तेरी, मेरे लब ने सहलाया है ।
ReplyDeleteमुझे अच्छा नहीं लगता दर्द का यूँ छलक हो जाना।
देवेंद्र जी ,
Deleteयहां आने का शुक्रिया । वाकई दर्द का यूँ छलकना अच्छा तो नहीं लगता लेकिन ---
छलके नहीं दर्द तो नासूर हो जाता है
न चाहते हुए भी आँखों का नूर हो जाता है ।
इस डर से हम अपनी आंखें नहीं भरते, कहीं तेरी तस्वीर जो उसमें है, वह बह न जाये।
ReplyDeleteक्या बात शिखा । हमारा ही वार हम पर 😄😄
Deleteअपनी आंखों में जो तस्वीर बना कर बिठाया
कसम है जो तुमने एक कतरा भी गर बहाया
अगर टपका एक भी आँसू तुम्हारी आँखों से
टप से टपक पड़ूँगी जो अब तक था तुमने बचाया ।
गागर में सागर समान भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया मीना जी ।
Deleteभीग जाऊँ मैं
ReplyDeleteयही वे तीन शब्द
प्राण हर लेते हैं
सादर नमन
बस इस एहसास ने मन खुश कर दिया । शुक्रिया यशोदा
Deleteआँसू तेरे रहे
ReplyDeleteमन मेरा सीला...
पलकें यहाँ कुछ नम सी हैं
कोई अश्क तूने पलकों पर उतारा है वहाँ.
जुड़ती जाती भावनाएं शब्दों के सहारनपुर.
खूब रही यह भी!
अहा वाणी ,कितना सुंदर लिखा तुमने ।
Deleteमन मेरा सीला पर मुझे अपनी ही लिखी एक छोटी नज़्म याद आयी ----
सहेज लिए
मैंने
तेरे आंसू
सारे के सारे
अपनी कमीज़ की
जेब में
अब
हर पल
मेरा दिल
सीला - सीला सा
रहता है ...
बहुत बहुत शुक्रिया
*शब्दों के सहारे...
ReplyDeleteउपर सहारनपुर हो गया 😂
🤣🤣 यूँ ये सहारनपुर भी बुरा नहीं
Deleteरचना के साथ साथ कंमेंट भी कमाल के है, होड़ लगी हुई है यहाँ तो रचनाकारों के बीच , लाजवाब शानदार पोस्ट, आनंद ही आनंद हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबस यही आनंद होना चाहिए । पसंद करने के लिए दिल से शुक्रिया
Deleteवाह क्या बात
ReplyDeleteशुक्रिया अनिता जी
Deleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteअन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस की बधाई हो।
वाह ! सभी समंदर में उब-डुब कर गोता लगा रहे हैं । मेरी भी छलांग है ...
ReplyDeleteबस जी सब गोता मार रहे ,तुम्हारी छलाँग की ही तो कमी थी .. पूरी कर दी तुमने । शुक्रिया
Deleteरचना और प्रतिक्रियाएं कमाल की बन पड़ी हैं सबकी....
ReplyDeleteवाह!!!
मजा आ गया.. बहुत ही लाजवाब।
सुधा जी ,
Deleteरचना से ज्यादा तो प्रतिक्रिया आ गयी ....
शुक्रिया पसंद करने का ।
ओह...
ReplyDeleteमरुथल से उम्मीदें करतीं, भरती रहतीं आहें !
झड़े हुए सूखे पत्तों से, क्यों इतनी आशाएं !
Satish Saxena जी शुक्रिया
Deleteमरुस्थल में भी कभी नखलिस्तान दिखाई देते हैं ,
सूखे पत्ते भी कभी किसलय का सबब बनते हैं
तो फिर से शुरू हो गई ब्लॉगिंग । लिखा बहुत गहराई से । अंदर तक छू गया ।
ReplyDeleteरेखा जी ,
Deleteफिर से एक कोशिश । आप आईं , अच्छा लगा ।
शुक्रिया
बहुत ख़ूब... शब्द-शब्द हृदयग्राही
ReplyDeleteआभार वर्षा जी
Deleteप्रिय दीदी, निशब्द हूँ। एक तो रचना मन को छू गयी उपर से प्रतिक्रियाओं की कतार एक से बढ़कर एक। वाह वाह और सिर्फ वाह। सभी को नमन सभी को आभार 🙏🙏🌹🌹💐💐
ReplyDeleteप्रिय रेणु ,
Deleteमुझे तो इंतज़ार था कि तुम भी कुछ अपने भाव जोड़ोगी । कुछ तो नमी होती 😄😄 ।
पसंद करने के लिए शुक्रिया
किसी ने इस खूबसूरत दरिया में गोता लगाया किसी ने छलांग ।
ReplyDeleteमैं तो डूब गई इस दौरान,
कसम से मजा आ गया आपकी सुंदर रचना को मन में उतारकर,
साथ ही शानदार प्रतिक्रियाओं का नजराना पढ़कर ।।
आपको आभार और आपके साथ साथ सभी को नमन ।
जिज्ञासा ,
ReplyDeleteआपने भी प्रतिक्रिया में इजाफा कर दिया कुछ तुकबंदी तो आपकी भी मज़ा दे रही ... बहुत बहुत शुक्रिया .
मन को छूती रचना
ReplyDeleteसहजता से गहरी बात कह दी
वाह
दिल को छूती बहुत सुंदर रचना, संगिता दी।
ReplyDelete
ReplyDeleteख्वाहिश थी मिरि ,
कभी मेरे लिए
तेरी आँख से
एक कतरा क़तरा निकले
भीग जाऊँ मैं
इस क़दर उसमें
कि समंदर भी
उथला निकले ।
छोटी नज़्म कहें या क्षणिका बेहद खूबसूरत ख्याल है।
क्षेपक :
ख्वाइश थी मिरि ,
मौत बन तू आये ,
बादे मर्ग ,
तेरे साथ रहूं।
विशेष :बादे मर्ग= मौत के बाद।
छोटी बैर की अतिथि नज़्म :संगीता स्वरूप गीत
ReplyDeleteख्वाहिश थी मिरि ,
कभी मेरे लिए
तेरी आँख से
एक कतरा क़तरा निकले
भीग जाऊँ मैं
इस क़दर उसमें
कि समंदर भी
उथला निकले ।
छोटी नज़्म कहें या क्षणिका बेहद खूबसूरत ख्याल है।
क्षेपक :
ख्वाइश थी मिरि ,
मौत बन तू आये ,
बादे मर्ग ,
तेरे साथ रहूं।
विशेष :बादे मर्ग= मौत के बाद।
छोटी बैर की अतिथि नज़्म :संगीता स्वरूप गीत
@@ ज्योति खरे जी ,
ReplyDeleteहार्दिक आभार .
@@ ज्योति देहलीवाल ,
बहुत बहुत शुक्रिया .
वीरेंद्र शर्मा जी ,
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी का हार्दिक स्वागत ...
छोटे बहर की बहुत शानदार नज़्म कही है ...
तहेदिल से शुक्रिया .
बहुत ही गहनतम ...
ReplyDelete@
ReplyDeleteसदा ,
बहुत शुक्रिया .
वाह!गज़ब दी 👌
ReplyDelete