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Wednesday, 31 March 2021

ख्वाहिश ....

 


ख्वाहिश थी मेरी कि


कभी मेरे लिए 

तेरी आँख से 

एक कतरा निकले 

भीग जाऊँ मैं 

इस कदर उसमें 

कि  समंदर भी 

कम गहरा निकले ।




53 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 31 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. तेरे डूबने के डर से
    पी लिए आँसू मैंने
    आ हाथ पकड़ जानाँ
    डूबते हैं मिल के
    इश्क के समन्दर में
    चल डूबके ही अबके
    हम पार उतरते हैं😊

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    1. तेरे आँसुओं का
      यूँ पी लेना ही
      दर्द बन गया
      मेरे सीने का ,जानाँ
      चल हाथ पकड़
      बारिश में खड़े हो लें
      इश्क के समंदर में
      डूब के रो लें ।

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    2. उषाजी ,
      आपकी लिखे पर मेरे चंद अल्फ़ाज़ । जो ऊपर लिखे । 😍😍

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    3. वाह वाह ...क्या बात❤️

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    4. तिरे-मिरे इश्क के
      ताने- बाने से
      आ, बुन लें
      रेशा- रेशा
      रंग देना फिर चाहें
      अपने ही रंग में
      अपने जैसा...!!😊

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    5. उषा जी , कमाल है 👌👌.
      आपके लिए ---
      इश्क का ताना बाना हो
      या हो चाहत का रेशा रेशा
      हमने तो रंगा है रूहों को
      बनाना है क्या मेरे जैसा ? 😍😍

      बहुत रंगरेज चढ़ा हुआ है न तो मैंने भी लिख दिया ।

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    6. चलिए बात खत्म करते हैं-
      इश्क में दो कहाँ
      आ पिघल कर
      हो जाएं एक
      रंग जाएं
      इश्क के
      आठवें रंग में
      आज!!!😊

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  3. ख्वाहिशें इतनी गहरी थीं कि खुद की आंखें बहते बहते शुष्क हो गईं

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    1. शुक्रिया , रश्मि जी
      शुष्क थीं आंखें
      तो बड़ी बेचैनी थी
      तभी आंखों में मैंने
      समंदर भर लिए ।

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  4. वाह क्या बात है दी समुंदर से गहरे भाव गूँथ दिये चंद शब्दों में...
    मेरी भी कुछ पंक्तियाँ
    अपनी भीगी पलकों पे सजा लूँ तुमको
    दर्द कम हो गर थोड़ा सा पा लूँ तुमको

    तू चाँद मख़मली तन्हा अंधेरी रातों का
    चाँदनी सा ओढ़ ख़ुद पे बिछा लूँ तुमको

    खो जाते हो अक्सर ज़माने की भीड़ में
    आ आँखों में काजल सा छुपा लूँ तुमको।

    ----
    सस्नेह
    सादर।

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    1. प्रिय श्वेता ,
      मैंने तो चंद अल्फ़ाज़ लिखे थे , यूँ ही एक ख्याल आया जो ख्वाहिश बन गयी , यूँ चाहत नहीं किसी की भी आँख से कोई कतरा बहे , मासूम सा ख्याल था जो शब्दों में उतर आया । और यहाँ इतने प्यारे प्यारे ख्याल मिल रहे कि क्या कहूँ ----

      काजल सा बना जो तुमने मुझे छिपाया है
      चांदनी ओढ़ जो खुद पर मुझे बिछाया है
      हर दर्द की दवा जैसे पा ली है अब मैंने
      भीगी पलकों को तेरी, मेरे लब ने सहलाया है ।

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  5. मुझे अच्छा नहीं लगता दर्द का यूँ छलक हो जाना।

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    1. देवेंद्र जी ,
      यहां आने का शुक्रिया । वाकई दर्द का यूँ छलकना अच्छा तो नहीं लगता लेकिन ---
      छलके नहीं दर्द तो नासूर हो जाता है
      न चाहते हुए भी आँखों का नूर हो जाता है ।

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  6. इस डर से हम अपनी आंखें नहीं भरते, कहीं तेरी तस्वीर जो उसमें है, वह बह न जाये।

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    1. क्या बात शिखा । हमारा ही वार हम पर 😄😄
      अपनी आंखों में जो तस्वीर बना कर बिठाया
      कसम है जो तुमने एक कतरा भी गर बहाया
      अगर टपका एक भी आँसू तुम्हारी आँखों से
      टप से टपक पड़ूँगी जो अब तक था तुमने बचाया ।

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  7. गागर में सागर समान भावाभिव्यक्ति ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया मीना जी ।

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  8. भीग जाऊँ मैं
    यही वे तीन शब्द
    प्राण हर लेते हैं
    सादर नमन

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    1. बस इस एहसास ने मन खुश कर दिया । शुक्रिया यशोदा

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  9. आँसू तेरे रहे
    मन मेरा सीला...

    पलकें यहाँ कुछ नम सी हैं
    कोई अश्क तूने पलकों पर उतारा है वहाँ.

    जुड़ती जाती भावनाएं शब्दों के सहारनपुर.
    खूब रही यह भी!

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    1. अहा वाणी ,कितना सुंदर लिखा तुमने ।
      मन मेरा सीला पर मुझे अपनी ही लिखी एक छोटी नज़्म याद आयी ----

      सहेज लिए
      मैंने
      तेरे आंसू
      सारे के सारे
      अपनी कमीज़ की
      जेब में
      अब
      हर पल
      मेरा दिल
      सीला - सीला सा
      रहता है ...

      बहुत बहुत शुक्रिया

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  10. *शब्दों के सहारे...
    उपर सहारनपुर हो गया 😂

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    1. 🤣🤣 यूँ ये सहारनपुर भी बुरा नहीं

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  11. रचना के साथ साथ कंमेंट भी कमाल के है, होड़ लगी हुई है यहाँ तो रचनाकारों के बीच , लाजवाब शानदार पोस्ट, आनंद ही आनंद हार्दिक शुभकामनाएं

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    1. बस यही आनंद होना चाहिए । पसंद करने के लिए दिल से शुक्रिया

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  12. वाह क्या बात

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  13. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
    अन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस की बधाई हो।

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  14. वाह ! सभी समंदर में उब-डुब कर गोता लगा रहे हैं । मेरी भी छलांग है ...

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    1. बस जी सब गोता मार रहे ,तुम्हारी छलाँग की ही तो कमी थी .. पूरी कर दी तुमने । शुक्रिया

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  15. रचना और प्रतिक्रियाएं कमाल की बन पड़ी हैं सबकी....
    वाह!!!
    मजा आ गया.. बहुत ही लाजवाब।

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    1. सुधा जी ,
      रचना से ज्यादा तो प्रतिक्रिया आ गयी ....
      शुक्रिया पसंद करने का ।

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  16. ओह...
    मरुथल से उम्मीदें करतीं, भरती रहतीं आहें !
    झड़े हुए सूखे पत्तों से, क्यों इतनी आशाएं !

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    1. Satish Saxena जी शुक्रिया

      मरुस्थल में भी कभी नखलिस्तान दिखाई देते हैं ,
      सूखे पत्ते भी कभी किसलय का सबब बनते हैं

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  17. तो फिर से शुरू हो गई ब्लॉगिंग । लिखा बहुत गहराई से । अंदर तक छू गया ।

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    1. रेखा जी ,
      फिर से एक कोशिश । आप आईं , अच्छा लगा ।
      शुक्रिया

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  18. बहुत ख़ूब... शब्द-शब्द हृदयग्राही

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  19. प्रिय दीदी, निशब्द हूँ। एक तो रचना मन को छू गयी उपर से प्रतिक्रियाओं की कतार एक से बढ़कर एक। वाह वाह और सिर्फ वाह। सभी को नमन सभी को आभार 🙏🙏🌹🌹💐💐

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    1. प्रिय रेणु ,
      मुझे तो इंतज़ार था कि तुम भी कुछ अपने भाव जोड़ोगी । कुछ तो नमी होती 😄😄 ।
      पसंद करने के लिए शुक्रिया

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  20. किसी ने इस खूबसूरत दरिया में गोता लगाया किसी ने छलांग ।
    मैं तो डूब गई इस दौरान,
    कसम से मजा आ गया आपकी सुंदर रचना को मन में उतारकर,
    साथ ही शानदार प्रतिक्रियाओं का नजराना पढ़कर ।।
    आपको आभार और आपके साथ साथ सभी को नमन ।

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  21. जिज्ञासा ,
    आपने भी प्रतिक्रिया में इजाफा कर दिया कुछ तुकबंदी तो आपकी भी मज़ा दे रही ... बहुत बहुत शुक्रिया .

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  22. मन को छूती रचना
    सहजता से गहरी बात कह दी
    वाह

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  23. दिल को छूती बहुत सुंदर रचना, संगिता दी।

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  24. ख्वाहिश थी मिरि ,

    कभी मेरे लिए

    तेरी आँख से

    एक कतरा क़तरा निकले

    भीग जाऊँ मैं

    इस क़दर उसमें

    कि समंदर भी

    उथला निकले ।

    छोटी नज़्म कहें या क्षणिका बेहद खूबसूरत ख्याल है।
    क्षेपक :

    ख्वाइश थी मिरि ,
    मौत बन तू आये ,
    बादे मर्ग ,

    तेरे साथ रहूं।

    विशेष :बादे मर्ग= मौत के बाद।

    छोटी बैर की अतिथि नज़्म :संगीता स्वरूप गीत

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  25. ख्वाहिश थी मिरि ,

    कभी मेरे लिए

    तेरी आँख से

    एक कतरा क़तरा निकले

    भीग जाऊँ मैं

    इस क़दर उसमें

    कि समंदर भी

    उथला निकले ।

    छोटी नज़्म कहें या क्षणिका बेहद खूबसूरत ख्याल है।
    क्षेपक :

    ख्वाइश थी मिरि ,
    मौत बन तू आये ,
    बादे मर्ग ,

    तेरे साथ रहूं।

    विशेष :बादे मर्ग= मौत के बाद।

    छोटी बैर की अतिथि नज़्म :संगीता स्वरूप गीत

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  26. @@ ज्योति खरे जी ,

    हार्दिक आभार .

    @@ ज्योति देहलीवाल ,

    बहुत बहुत शुक्रिया .

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  27. वीरेंद्र शर्मा जी ,

    आपकी टिप्पणी का हार्दिक स्वागत ...

    छोटे बहर की बहुत शानदार नज़्म कही है ...

    तहेदिल से शुक्रिया .

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  28. बहुत ही गहनतम ...

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