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Sunday, 14 March 2021

इतिहास या इति का हास .

जब जब 
मैंने इतिहास के 
पन्ने पढ़े हैं ,
तब तब 
हर खंडहर की नींव में 
मुझे गड़े  मुर्दे मिले हैं ,
नींव पर पड़ते ही 
किसी कुदाल का प्रहार ,
बिलबिला जाते हैं 
अक्सर इतिहासकार ।
असल में 
होता है जितना 
पुराना इतिहास ,
बढ़ती जाती है  
मुर्दों की संख्या , 
क्यों कि जान चुके है 
वो कि 
वो मौन हैं तो 
ज़िंदा हैं , 
ज़िंदा रहने के लिए 
मुर्दा होना ज़रूरी है 
लम्बे इतिहासों में 
अपने  हिसाब से ,
बदल दिया जाता है 
अक्सर इतिहास ,
नई पीढ़ी से इस तरह 
किया जाता है परिहास ।
फिर भले ही चाहे वो 
चार हज़ार दिन का हो ,
या हो चार हज़ार साल का
किसी को नहीं होता 
मलाल इस बात का ,
चकित सी जनता 
समझ नहीं पाती 
इतिहास का सच ,
मान लेती है उसे सही 
दिखता है  सामने जो बस  ।
तो फिर क्यों भला 
उखाड़े जाएँ मुर्दे 
जो गड़े हुए हैं 
हम ज़िंदा भी तो 
मुर्दों जैसे पड़े हुए हैं ।




50 comments:

  1. हर खंडहर की नींव में
    मुझे गड़े मुर्दे मिले हैं ,

    -हर खंडहर का अपना अतीत है जो साथ नहीं छोड़ता

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    1. @ समीर जी ,
      बस अतीत पीछा ही तो नहीं छोड़ता ।
      आभार , बहुत अरसे बाद आज ब्लॉग पर उड़नतश्तरी आयी है ।

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  2. व्वाहहहह..
    जो गड़े हुए हैं
    हम ज़िंदा भी तो
    मुर्दों जैसे पड़े हुए हैं ।
    सादर नमन...

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    1. @ दिव्या ,
      पसंद करने के लिए शुक्रिया ।

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  3. जिंदा रहने के लिए मुर्दा होना जरूरी है...क्या बात है👌👌

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    1. आज का वक्त यही कहता है । जो भी कुछ बोलने का प्रयास करता है उसे चुप रहने पर मजबूर कर दिया जाता है ।

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  5. बहुत सही कहा आपने आदरणीय संगीता दीदी, आपकी रचना बहुत कुछ कह गई ।

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    1. @ जिज्ञासा,
      जो बहुत कुछ कहने का प्रयास किया उसकी तह तक पहुँच पायीं , अच्छा लगा ।

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  6. जी दी,
    आपकी इस यथार्थवादी रचना ने झकझोर दिया।
    और विशेषकर इन पंक्तियों ने उद्वेलित किया-
    वो मौन हैं तो
    ज़िंदा हैं ,
    ज़िंदा रहने के लिए
    मुर्दा होना ज़रूरी है
    ------
    बदले गये
    इतिहास की दरारों से रिसती
    सत्य की गंध
    खोल पायें कभी
    बंद,सीली हृदय की
    जंग लगी खिड़कियां
    और झकोरे उजास के
    मिटा दे मिथ्या इतिहास
    इसी आस में
    चलता रहता है
    जीवन
    ----
    प्रणाम दी।


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    1. @ श्वेता ,
      यथार्थ अक्सर झकझोर ही देता है ।
      *****
      @@
      इतिहास की दरारों से
      सत्य गंधाता हुआ
      अपने होने का
      देता है अक्सर प्रमाण
      लेकिन - नहीं सह पाता
      कोई भी उस गंध को
      जो पड़ा होता है आवरण
      उसे ही ढोते हुए
      बस चलता रहता है जीवन ।

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  7. तो फिर क्यों भला
    उखाड़े जाएँ मुर्दे
    जो गड़े हुए हैं
    हम ज़िंदा भी तो
    मुर्दों जैसे पड़े हुए हैं
    बहुत ही कड़वी सच्चाई व्यक्त करती रचना, संगीता दी।

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    1. @ ज्योति ,
      कभी कभी यथार्थ को सामने लाना ज़रूरी हो जाता है भले ही व्व कड़वा ही क्यों न हो ?

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  8. सुंदर एवं सारगर्भित कविता

    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

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  9. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-3-21) को "धर्म क्या है मेरी दृष्टि में "(चर्चा अंक-4007) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  10. सच को सच ही कहा है आपने ।

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  11. लाजवाब अभिव्यक्ति।

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  12. @ सुशील जी ,

    बहुत बहुत शुक्रिया .

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  13. हम ज़िंदा भी तो
    मुर्दों जैसे पड़े हुए हैं

    बहुत ही सटीक रचना

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  14. तो फिर क्यों भला
    उखाड़े जाएँ मुर्दे
    जो गड़े हुए हैं
    हम ज़िंदा भी तो
    मुर्दों जैसे पड़े हुए हैं
    लाजवाब, अति सुंदर , सच्ची बात, सादर नमन

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    1. प्रिय ज्योति ,

      बहुत बहुत शुक्रिया ।

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  15. इतिहास पूरा सच नहीं होता, उसे सच बनाया जाता है अपनी अपनी सुविधा और सहूलियत के अनुसार। वाकई गड़े मुर्दे उखाड़ने से कुछ हासिल नहीं होता। चिंतनीय पोस्ट !

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    1. अनिता जी ,
      सही कहा कि इतिहास पूरा सच नहीं होता , बस बार बार दोहरा कर सच बनाया जाता है ।
      आभार ।

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  16. चिंतनपरक भावाभिव्यक्ति ।

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  17. वाह!
    धारदार तंज कठोर व्यंग्य दोनों का समन्वय रचना को नई ऊंचाई तक लेकर जा रहा है।
    इतिहास !पर करारा प्रहार करती एक अभिनव अभिव्यक्ति
    खड़े मुर्दों न उखाड़ो यूं ही चारों ओर मुर्दे घूम रहें हैं।
    सस्नेह।

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    1. @ कुसुम जी ,
      आपने रचना की नब्ज पकड़ ली ।इतिहास कैसे तोड़ा मरोड़ा जाता है जानते होते हुए भी मुर्दों के समान ही खामोश रहते हैं ।
      आपकी प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार ।

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  18. खड़े गड़े पढ़ें।
    कृपया।

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  19. बदल दिया जाता है
    अक्सर इतिहास ,
    नई पीढ़ी से इस तरह
    किया जाता है परिहास ।

    सच कहा आपने दी,नई पीढ़ी इतिहास के असली रूप से अनभिज्ञ ही है,लाज़बाब सृजन सादर नमन दी

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    1. @ प्रिय कामिनी,

      असली इतिहास से सच ही हम लोग अनभिज्ञ ही हैं ।बहुत सी बातें पढ़ने और जानने को मिलती हैं तो लगता है कि किस तरह हमें अनजान रखा गया ।
      शुक्रिया

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  20. इतिहास का इतिहास दर्शाती सुंदर रचना।
    सादर

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    1. @ अनिता जी ,
      वाकई इतिहास का इतिहास ही है ये ।
      आभार ।

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  21. बहुत सुंदर रचना

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  22. बहुत सुन्दर रचना

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  23. इतिहासकारों की खबर लेती रचना। युवा पीढ़ी की विडंबना कि उन्हें सही इतिहास की जानकारी नहीं मिलती। सार्थक सृजन के लिए आपको बधाई। सादर।

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    1. वीरेंद्र जी ,
      स्वागत आपका । सच में विडंबना तो है कि सही जानकारी नहीं मिलती । इतिहास को अपने हिसाब से बदल देते हैं ।शुक्रिया

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  24. खाल उधेड़ दिया है इतिहास का । बहुत ही सटीक और प्रभावी अंदाज ।

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  25. अमृता जी ,
    आप आयीं तो देर से लेकिन कम्माल की टिप्पणी कर दी है ... कमाल ज़रा खींच कर लिखा है :):)

    बहुत सा शुक्रिया .

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  26. इतिहास के साथ छेड़छाड़ तो आम बात हो गयी है आजकल...ज्यूँ टाइम मशीन के जरिये वापस जाकर सब कुछ बदलने की तैयारी हो...जगहों का नाम बदलकर उसका पूरा आगे-पीछे बदल देने का निरर्थक प्रयास किया जा रहा है
    प्रभावी टिप्पणी!

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    1. शीलव्रत मिश्र जी ,

      आभार आपका ।यूँ ये भी हो सकता है कि जगहों के नामों से कुछ सत्य का एहसास हो ।।

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  27. तो फिर क्यों भला
    उखाड़े जाएँ मुर्दे
    जो गड़े हुए हैं
    हम ज़िंदा भी तो
    मुर्दों जैसे पड़े हुए हैं
    सही बात है जब कुछ बोल नहीं सकते कुछ कर नहीं सकते सामने वाला जो दिखाये सच जानकर भी एक झूठ को सच होते देखते रहते हैं और हमारी आँखों के सामने वही झूठ आने वाली पीढ़ी के लिए इतिहास बनता है सच हमारे मौन के कारण हमारे साथ ही दफन हो जाता है...तो हम जीते जी मुर्दे ही हुए न...
    लाजवाब सृजन।

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    1. सुधा जी ,
      आप कितनी गहराई से रचना पढ़ कर उसका सत निचोड़ देती हैं । हार्दिक आभार ।

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