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Friday, 1 February 2013

शगल ....




मेरे मन के समंदर में
तुमने उछाल दिये 
बस यूं ही 
कुछ शब्दों के पत्थर 
और देखते रहे 
उनसे बने घेरे 
जो भावनाओं की लहरों पर 
बन औ  बिगड़ रहे थे 
शायद  तुम्हारा तो मात्र 
यह शगल रहा था 
पर वो पत्थर 
समंदर में कहीं 
गहरा गड़ा  था ।


 

50 comments:

  1. भावनाओं का गोताखोर ही जान सकता है तुम्हारे शगल का नुकीलापन .......... तुम्हारे पास तो सिर्फ पत्थर है

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  2. बहुत सुंदर दीदी !
    मन के समंदर में फेंके गये ऐसे पत्थर ... हमेशा ही चुभते रहते हैं....! गुज़रते वक़्त के साथ....पत्थर और भी गहरे धंसते जाते हैं...
    ~सादर!!!

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  3. हमारी जान पर बन आयी...और उनकी अदा ठहरी....

    बहुत सुन्दर रचना दी..

    सादर
    अनु

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  4. बतौर शगल ये जो पत्थर समंदर में फेंक दिए जाते हैं सागर के सीने को कितना छलनी कर जाते हैं यह सागर की सतह पर उठने वाली तरंगों को देख आनंदित होने वाले कभी समझ ही नहीं सकते ! बहुत ही सुन्दर रचना !

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  5. बहुत सुन्दर , किसी का शौक किसी के लिए गहरे अर्थ समेटे होता है।

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  6. शब्द के पत्थर मन के समंदर में गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।
    सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  7. शायद तुम्हारा तो मात्र
    यह शगल रहा था
    पर वो पत्थर
    समंदर में कहीं
    गहरा गड़ा था ।
    सच्चाई बहुत आसानी से बयाँ हो गई .... !!

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  8. Atti uttam ..Badhai
    meri nayi rachna .. "Ye fitrat nhi humari" pe swagat hai apka

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  9. जल के अन्दर पत्थर भी हल्का हो जाता है, गति भी बदल जाती है..

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  10. उन्होंने तो कर लिया अपना शौक पूरा, अब आगे क्या हो रहा है उससे उन्हें क्या :)
    फिर से कम शब्दों में गहरी बात, बहुत सुन्दर.

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  11. बहुत बढ़िया आंटी


    सादर

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  12. बहुत आसन है पत्थर उठाना और उठा कर फ़ेंक देना ,
    किस जगह लगा और घाव कैसे हुए इसकी फिक्र किसे ?

    बहुत सुन्दर बात कही और जो दिल को छू गयी।

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  13. आज आपकी यह रचना पढ़कर यह गीत याद आया "दिल के टूटके टुकड़े कर के मुस्कुराकर चल दिये" :)
    लेकिन मन पर शब्दों का आघात शरीर पर पत्थरों से लगे हुए जख्मों की तुलना में कहीं ज्यादा गहरा होता है। बहुत ही उम्दा एवं भावनात्मक प्रस्तुति....

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  14. शायद तुम्हारा तो मात्र
    यह शगल रहा था
    पर वो पत्थर
    समंदर में कहीं
    गहरा गड़ा था ।
    कहीं गहरे उतरते ये शब्‍द भी ...
    सादर

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  15. मन के समंदर में फेंके गये पत्थर हमेशा दिल में चुभते रहते हैं....

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  16. मन के समंदर में फेंके गये पत्थर हमेशा दिल में चुभते रहते हैं....

    RECENT POST शहीदों की याद में,

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  17. शब्दों के पत्थर मन पर गहरी चोट करते है..
    बेहद भावपूर्ण रचना...

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  18. किसी का शगल दूसरों के लिये कितना परेशानी भरा हो सकता है यह सचमुच सोचने का विषय है.

    सुंदर प्रस्तुति.

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  19. बहुत गहन लिखा है आज आपने .....गहरे ही उतर गया ....

    बहुत सुंदर ....

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  20. बहुत सुन्दर रचना ...

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  21. महसूस करने वालों की उम्र गुज़र जाती है ....
    शब्दों के घाव से ???

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  22. मन के समंदर में गहरे उतरते शब्द... गहन अभिव्यक्ति के लिए आपका आभार

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  23. शब्द,कोई शगल नहीं उन का प्रभाव गहरा असर करता है !

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  24. विचारणीय..... सच ही है शब्द बस कहने भर को नहीं ना होते

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  25. अभिनव रूपकात्मक तत्व है यह रचना .आभार आपकी टिपण्णी का .

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  26. ये पत्थर फेंकने वाले सोचते कहाँ हैं ? दर्द की लहरों से खेलते हैं बस...

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  27. बहद भावपूर्ण सुन्दर रचना...आभार

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  28. भावों से नाजुक शब्‍द...

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  29. ऐसे पत्थर अक्सर गधे रहते हैं अंदर तक ... भावनाएं हिलोरे लेती रहती हैं पर अंत नहीं नज़र आता ... गहरे भाव लिए पंक्तियाँ ...

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  30. बहुत गहरी और अर्थपूर्ण रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  31. वह पत्थर समन्दर में कही गहरा गडा था ...
    यह पत्थर फेंकने वाले कहाँ जाने !

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  32. सुन्दर भाव !
    आभार !

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  33. निर्मम दुनियाँ से सदा , चाहा था वैराग्य
    पत्थर सहराने लगा, हँसकर अपना भाग्य
    हँसकर अपना भाग्य , समुंदर की गहराई
    नीरव बिल्कुल शांत, अहा कितनी सुखदाई
    दिन में है आराम ,रात हर इक है पूनम
    सागर कितना शांत,और दुनियाँ है निर्मम ||


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  34. दिखता है पत्थर,या कि
    कंकड़ से बनता घेरा
    समुद्र की यात्रा
    कब किसने देखी!

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  35. कष्ट होता है ...
    शुभकामनायें आपको !

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  36. हाँ वह पथ्थर समुन्दर में कहीं गहरे गढ़ा था .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .

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  37. आदरणीया संगीता जी बहुत सुन्दर ..मन का समुन्दर सब वापस ही नहीं कर देता बहुत कुछ सहेजे रहता है ....यादें रह जाती हैं ..सुन्दर ..जय श्री राधे

    भ्रमर 5
    प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी मंच

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  38. संगीता जी ,
    अति सार्थक अभिव्यक्ति ! जिंदगी के समन्दर में --------

    गहरी गडी शिला की पीर
    असहबीय, अतिशय गंभीर
    -----------------
    केवल भुक्त भोगी ही आँक सकता है उसकी गहनता !
    स्नेहिल आशीर्वाद स्वीकारें

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  39. सार्थक सुन्दर रचना....

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  40. आह!!! छोटी किन्तु बहुत गहरी रचना ....मन में वो पथ्हर कही गहरे गड गया ...बहुत प्रभावकारी अभ्व्यक्ति।।
    मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है

    मेरा लिखा एवं गाया हुआ पहला भजन ..आपकी प्रतिक्रिया चाहती हूँ ब्लॉग पर आपका स्वागत है

    Os ki boond: गिरधर से पयोधर...


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  41. बहुत गहरी ......उतनी जितना गहरा गड़ा था पत्थर समंदर में .....

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  42. बहुत सुन्दर रचना

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  43. तुम्हारा तो मात्र
    यह शगल रहा था
    पर वो पत्थर
    समंदर में कहीं
    गहरा गड़ा था..... kaun sochta hai itna .....

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