मेरे मन के समंदर में
तुमने उछाल दिये
बस यूं ही
कुछ शब्दों के पत्थर
और देखते रहे
उनसे बने घेरे
जो भावनाओं की लहरों पर
बन औ बिगड़ रहे थे
शायद तुम्हारा तो मात्र
यह शगल रहा था
पर वो पत्थर
समंदर में कहीं
गहरा गड़ा था ।
भावनाओं का गोताखोर ही जान सकता है तुम्हारे शगल का नुकीलापन .......... तुम्हारे पास तो सिर्फ पत्थर है
ReplyDeleteबहुत सुंदर दीदी !
ReplyDeleteमन के समंदर में फेंके गये ऐसे पत्थर ... हमेशा ही चुभते रहते हैं....! गुज़रते वक़्त के साथ....पत्थर और भी गहरे धंसते जाते हैं...
~सादर!!!
हमारी जान पर बन आयी...और उनकी अदा ठहरी....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना दी..
सादर
अनु
बतौर शगल ये जो पत्थर समंदर में फेंक दिए जाते हैं सागर के सीने को कितना छलनी कर जाते हैं यह सागर की सतह पर उठने वाली तरंगों को देख आनंदित होने वाले कभी समझ ही नहीं सकते ! बहुत ही सुन्दर रचना !
ReplyDeleteभावनात्मक अभिव्यक्ति नसीब सभ्रवाल से प्रेरणा लें भारत से पलायन करने वाले
ReplyDeleteआप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?
बहुत सुन्दर , किसी का शौक किसी के लिए गहरे अर्थ समेटे होता है।
ReplyDeleteशब्द के पत्थर मन के समंदर में गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति।
शायद तुम्हारा तो मात्र
ReplyDeleteयह शगल रहा था
पर वो पत्थर
समंदर में कहीं
गहरा गड़ा था ।
सच्चाई बहुत आसानी से बयाँ हो गई .... !!
Atti uttam ..Badhai
ReplyDeletemeri nayi rachna .. "Ye fitrat nhi humari" pe swagat hai apka
जल के अन्दर पत्थर भी हल्का हो जाता है, गति भी बदल जाती है..
ReplyDeleteउन्होंने तो कर लिया अपना शौक पूरा, अब आगे क्या हो रहा है उससे उन्हें क्या :)
ReplyDeleteफिर से कम शब्दों में गहरी बात, बहुत सुन्दर.
बहुत बढ़िया आंटी
ReplyDeleteसादर
बहुत आसन है पत्थर उठाना और उठा कर फ़ेंक देना ,
ReplyDeleteकिस जगह लगा और घाव कैसे हुए इसकी फिक्र किसे ?
बहुत सुन्दर बात कही और जो दिल को छू गयी।
बढिया रचना।
ReplyDeleteआज आपकी यह रचना पढ़कर यह गीत याद आया "दिल के टूटके टुकड़े कर के मुस्कुराकर चल दिये" :)
ReplyDeleteलेकिन मन पर शब्दों का आघात शरीर पर पत्थरों से लगे हुए जख्मों की तुलना में कहीं ज्यादा गहरा होता है। बहुत ही उम्दा एवं भावनात्मक प्रस्तुति....
शायद तुम्हारा तो मात्र
ReplyDeleteयह शगल रहा था
पर वो पत्थर
समंदर में कहीं
गहरा गड़ा था ।
कहीं गहरे उतरते ये शब्द भी ...
सादर
मन के समंदर में फेंके गये पत्थर हमेशा दिल में चुभते रहते हैं....
ReplyDeleteमन के समंदर में फेंके गये पत्थर हमेशा दिल में चुभते रहते हैं....
ReplyDeleteRECENT POST शहीदों की याद में,
शब्दों के पत्थर मन पर गहरी चोट करते है..
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण रचना...
किसी का शगल दूसरों के लिये कितना परेशानी भरा हो सकता है यह सचमुच सोचने का विषय है.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.
बहुत गहन लिखा है आज आपने .....गहरे ही उतर गया ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर ....
बहुत सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteमहसूस करने वालों की उम्र गुज़र जाती है ....
ReplyDeleteशब्दों के घाव से ???
मन के समंदर में गहरे उतरते शब्द... गहन अभिव्यक्ति के लिए आपका आभार
ReplyDeleteशब्द,कोई शगल नहीं उन का प्रभाव गहरा असर करता है !
ReplyDeleteविचारणीय..... सच ही है शब्द बस कहने भर को नहीं ना होते
ReplyDeleteअभिनव रूपकात्मक तत्व है यह रचना .आभार आपकी टिपण्णी का .
ReplyDeleteये पत्थर फेंकने वाले सोचते कहाँ हैं ? दर्द की लहरों से खेलते हैं बस...
ReplyDeleteबहद भावपूर्ण सुन्दर रचना...आभार
ReplyDeleteभावों से नाजुक शब्द...
ReplyDeleteऐसे पत्थर अक्सर गधे रहते हैं अंदर तक ... भावनाएं हिलोरे लेती रहती हैं पर अंत नहीं नज़र आता ... गहरे भाव लिए पंक्तियाँ ...
ReplyDeleteबहुत गहरी और अर्थपूर्ण रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
वह पत्थर समन्दर में कही गहरा गडा था ...
ReplyDeleteयह पत्थर फेंकने वाले कहाँ जाने !
सुन्दर भाव !
ReplyDeleteआभार !
निर्मम दुनियाँ से सदा , चाहा था वैराग्य
ReplyDeleteपत्थर सहराने लगा, हँसकर अपना भाग्य
हँसकर अपना भाग्य , समुंदर की गहराई
नीरव बिल्कुल शांत, अहा कितनी सुखदाई
दिन में है आराम ,रात हर इक है पूनम
सागर कितना शांत,और दुनियाँ है निर्मम ||
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteदिखता है पत्थर,या कि
ReplyDeleteकंकड़ से बनता घेरा
समुद्र की यात्रा
कब किसने देखी!
lajwaab....!!
ReplyDeletewaah bahut badhiya ...
ReplyDeleteकष्ट होता है ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
antas ko chhoote ehsas.
ReplyDelete
ReplyDeleteहाँ वह पथ्थर समुन्दर में कहीं गहरे गढ़ा था .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .
आदरणीया संगीता जी बहुत सुन्दर ..मन का समुन्दर सब वापस ही नहीं कर देता बहुत कुछ सहेजे रहता है ....यादें रह जाती हैं ..सुन्दर ..जय श्री राधे
ReplyDeleteभ्रमर 5
प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी मंच
bahut hi gahri abhiwayakti ......
ReplyDeleteसंगीता जी ,
ReplyDeleteअति सार्थक अभिव्यक्ति ! जिंदगी के समन्दर में --------
गहरी गडी शिला की पीर
असहबीय, अतिशय गंभीर
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केवल भुक्त भोगी ही आँक सकता है उसकी गहनता !
स्नेहिल आशीर्वाद स्वीकारें
सार्थक सुन्दर रचना....
ReplyDeleteआह!!! छोटी किन्तु बहुत गहरी रचना ....मन में वो पथ्हर कही गहरे गड गया ...बहुत प्रभावकारी अभ्व्यक्ति।।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है
मेरा लिखा एवं गाया हुआ पहला भजन ..आपकी प्रतिक्रिया चाहती हूँ ब्लॉग पर आपका स्वागत है
Os ki boond: गिरधर से पयोधर...
बहुत गहरी ......उतनी जितना गहरा गड़ा था पत्थर समंदर में .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteतुम्हारा तो मात्र
ReplyDeleteयह शगल रहा था
पर वो पत्थर
समंदर में कहीं
गहरा गड़ा था..... kaun sochta hai itna .....