सफर के दौरान
खिड़की से सिर टिकाये
ठिठकी सी निगाहें
लगता है कि
देख रही हैं
फुटपाथ और झाड़ियाँ
पर निगाहें
होती हैं स्थिर
चलता रहता है
संवाद मन ही मन
उतर आता है
पानी खारा
खुद से बतियाते हुये
खिड़की से झाँकती आंखे
लगता है कि ठिठक गयी हैं ।
सही कहा दी...सफर जारी रहता है...पर मन स्थिर|
ReplyDeleteठिठकी आँखों में मन सदा ही गतिमय रहता है, न जाने क्या क्या सोचता रहता है।
ReplyDeleteएकान्त मिलते ही अन्तर्मन के दृश्य प्रारम्भ हो जाते हैं।
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक रचना.
ReplyDeleteमन के भीतर के भाव कब ठहरते हैं ....गहरी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना लिखी, आखिर मन को आराम कहां, भूत भविष्य को लेकर बस निरंतर गतिशील रहता है, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
जिन्दगी के तमाम सफ़र एक अलग नजरिये से बयां करते शब्द !
ReplyDeleteहर सफ़र के साथ मन का सफ़र भी शुरू हो जाता है कभी अतीत के जाने पहचाने स्टेशनों पर गाड़ी रुक जाती है तो कभी भविष्य के अनचीन्हे मुकाम मन को अस्थिर कर आशंकित कर जाते हैं ! निगाहें सब कुछ अपने में समेटती कल्पना और दृश्य की सेतु बनी रहती हैं ! सारगर्भित सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteयही नियति है सफ़र ज़ारी रहता है फिर चाहे पा्नी खारा हो या निगाह ठिठकी
ReplyDeleteसंवाद - निरंतर ....
ReplyDeleteकभी प्रश्न कभी उत्तर
कहीं ठिठका मन कहीं आँखें
आँखें खुली होने का मतलब यह नहीं कि उनसे देखा जा रहा हैं,वे ठिठकी रह जायेंगी जब तक असली देखनेवाला मन अंतर्यात्रा यात्रा में व्यस्त है!
ReplyDeleteमेरे साथ भी अक्सर ऐसा होता है.बहुत स्वाभाविक वर्णन किया है आपने, अक्सर ट्रेन या बस से बाहर झांकती आँखों में खारा पानी उतरा होता है.
ReplyDeleteचलता रहता है
ReplyDeleteसंवाद मन ही मन
उतर आता है
पानी खारा
खुद से बतियाते हुये
खिड़की से झाँकती आंखे
लगता है कि ठिठक गयी हैं ।
अद्भुत...
बहुत ही मर्मस्पर्शी एवं यथार्थपरक रचना ....
पर निगाहें
ReplyDeleteहोती हैं स्थिर
चलता रहता है
संवाद मन ही मन
बिल्कुल सच ... शब्दश:
सादर
खुद से बतियाते हुये
ReplyDeleteखिड़की से झाँकती आंखे
लगता है कि ठिठक गयी हैं ।
ठहर ही जाती हैं आंखें जब मन मेंकुच खलबली मचाने वाला उठता है ।
खुद से बतियाते हुये
ReplyDeleteखिड़की से झाँकती आंखे
लगता है कि ठिठक गयी हैं ।
ठहर ही जाती हैं आंखें जब मन मेंकुच खलबली मचाने वाला उठता है ।
संवाद...
ReplyDeleteखुद से..
खुद का...!
खूबसूरत...
हर पल नया दृश्य देखती आँखें....
ReplyDeleteपानी क्यूँ धुंधला देता है दृष्टि...
सुन्दर रचना..
सादर
अनु
फुरसत के पल खुद से बतियाने का अवसर देते हैं, ठिठकी आँखे लिए मन कितना शोर करता है...बहुत सुन्दर भाव... आभार
ReplyDeleteमन रे तू काहे न धीर धरे. सच कहा है.निगाहें बेशक ठिठकी रहें पर मन गतिशील रहता है और भर जाता है आँखों में खारा पानी.
ReplyDeleteठिठकी आँखों में आगत-विगत कितने ही सपने चलते हैं..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteकभी कभी ही ऐसी रचनाएं पढने को मिलती हैं।
आभार.
आँखें कुछ और देखती हैं , मन कुछ और।
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
अक्सर ऐसा होता है...
ReplyDeleteहम सफ़र में आगे बढ़ते जाते हैं... मगर मन कहीं और पहुँचकर आँखें भिगोता रहता है....
~सादर!!!
सार्थक रचना
ReplyDeleteसादर !
मन हमेशा चंचल होता है,हम देखते कुछ है मन सोचता कुछ और है,,,
ReplyDeleteRecent post: गरीबी रेखा की खोज
जाने क्या चलता रहता है दिमाग में , खिड़की से सर टिकाये !
ReplyDeleteयही की जीवन भी बस एक सफर ही है !
एक दर्द का अद्भुत बयान।
ReplyDeleteek istri ki kashomokash darshari sunder abhivyakti.
ReplyDeleteman kee gati aur disha to hamesha hi adrishya hoti hai aur usase hi judi hoti hain aankhen aur chehre ke bhav.
ReplyDeletebadhiya...
ReplyDeletebadhiya...
ReplyDeleteसफर के अंदर भी एक सफर चलता रहता है.
ReplyDeleteसुंदर सशक्त प्रस्तुति.
होती हैं नज़रें कहीं ,और कहीं पर ध्यान
ReplyDeleteवह पल बस अपने लिये,होता है वरदान
होता है वरदान , जगत की आपाधापी
खुद से रखती दूर,बड़ी जुल्मी अति पापी
सागर बड़ा अथाह,एक दो चुन लो मोती
ठिठकी हुई निगाह ,बहुत सुखदायी होती ||
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहाँ सही कहा सफ़र के दौरान ऐसा बहुत बार होता है
ReplyDeleteमन भुत,भविष्य, के ताने बाने बुनने में व्यस्त रहता है वर्तमान में कभी नहीं ठहरता मन को रोकने का ध्यान एक तरीका है जब ध्यान होता है तो मन नहीं होता है मन होता है तो ध्यान नहीं होता ....
मन में चलता संवाद और झाड़ियों पर स्थिर निगाहें ......मन में उठे बवंडर की सुंदर परिकल्पना ....वाह
ReplyDeleteमेरा ब्लॉग आपके स्वागत की प्रतीक्षा में
स्याही के बूटे
मन कभी ठहरता कहाँ है ....भीड़ में हो या अकेला ....संवाद रहता है बरकरार .....भावपूर्ण ...
ReplyDeleteफुटपाथ और झाड़ियाँ
ReplyDeleteपर निगाहें
होती हैं स्थिर
चलता रहता है
संवाद मन ही मन
उतर आता है
पानी खारा
हृदयस्पर्शी पंक्तियां......
बहुत खूब ...!!
ReplyDeleteमन कहाँ कभी स्थिर होता है... चाहे सफ़र हो या थारा जीवन. भाव पूर्ण रचना, बधाई.
ReplyDeleteसंग्रहनीय
ReplyDeleteबिलकुल नैसर्गिक चित्रण ...शब्दों से बनाया गया अच्छा भाव चित्र
ReplyDeleteये जो सवाल हैं अनसुलझे से
ReplyDeleteकभी थिर,अस्थिर कभी
हो तलाश पूरी,कोई
मन की आंखों से देखे तो सही
नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteलगता है कि
ReplyDeleteदेख रही हैं
फुटपाथ और झाड़ियाँ
पर निगाहें
होती हैं स्थिर
चलता रहता है
संवाद मन ही मन
Sach kaha ... aksar aisa hota hai ... aankhon ke samne kuch aur hota hai ... lekin aankhen dekhti kuch aur hi hain ....
Manju
www.manukavya.wordpress.com
बहुत भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति ..
ReplyDeleteउतर आता है
ReplyDeleteपानी खारा sacchi bat ....
ab to thithki si nigahon mei manzar aise tairte dikhte hai, jaise ashant sagar mei ufnati lahre...
ReplyDeleteउतर आता है
ReplyDeleteपानी खारा
खुद से बतियाते हुये
खिड़की से झाँकती आंखे
लगता है कि ठिठक गयी हैं । .. वाह , क्या सुन्दर चित्रण किया है इन्तेज़ार में खुद से ही बतियाती विह्वल आँखों का .. बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteअति सत्य कथन !सुंदर चित्रण !====
चौदह वर्ष की अवस्था से [जब अकेले ही पहली रेल यात्रा की थी] आज [८४ वर्ष] की हवाई यात्राओं में इस आत्मा नें भी कुछ ऐसा ही अनुभव किया है !==
खिड़की से झाँकती आंखे
ReplyDeleteलगता है कि ठिठक गयी हैं । ..... bahut sundar !