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Wednesday 10 February 2021

बासंती मन



बड़े जतन से 
छिपा रखी थी 
एक पोटली 
मन के किसी कोने में 
खोल दी आज 
गिरह लबों की 
खुलते ही गाँठ 
सारे शिकवे -  शिकायतें 
चाहे -  अनचाहे 
ख्वाब और ख्वाहिशें 
बिखर गए सामने ।
उठा कर नज़र से
एक एक को
समेट ही तो लिया 
तुमने बड़े करीने से ,
बस - 
मन  बासन्ती हो गया   ।

संगीता स्वरुप 
10 - 02- 21

 

32 comments:

  1. अरसे बाद खूबसूरत ब्लॉग पर बसंती छटा बिखेरती कविता। जारी रखियेगा। मन का बसंत भी और ब्लॉग लिखना भी ।

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    1. अब तो पूरा बसन्त ही छा गया ।

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    2. क्या बात,क्या बात👌👌
      बहुत ही खूबसूरत तरीके से वसंत पर मनोभावों का काव्य द्वारा भव्य चित्रण...💐💐👍👍💐💐

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    3. शुक्रिया अंजू , तुम्हारी टिप्पणी बहुत मायने रखती है ।

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  2. मन बासन्ती हो गया...बहुत खूब👌👌

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  3. वाह क्या कहने 👌👌
    बसंत आया, आप आये, बस अब तो हर तरफ़ रौनक हो गई
    स्नेहिल शुभकामनाएं 🙏🏼🙏🏼

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    1. सीमा , सच ही पुराने दिन याद तो आ रहे । इतनी प्यारी प्रतिक्रिया के लिए हृदय से शुक्रिया।

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  4. वाह , बहुत खूब

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  5. बहुत बसंती गीत लिखा !

    - रेखा श्रीवास्तव

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  6. बहुत सुंदर ..वासंती भाव

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  7. आनंद आ गया पढ़कर … ब्लाग पर लौटना पुरानी यादें ताज़ा कर रहा है।

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  8. बहुत शुक्रिया प्रतुल जी

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  9. बासमती मन को बसंतागमन की ढेर सारी बधाई । ख्वाहिशों , ख्वाबों के ये बिखरे मोती, किसी नज़र से सिमटकर , जब प्रेम सूत्र में बंध जाते हैं ,तो जीवन का श्रंगार बन जाते हैं ।

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  10. हर लफ्ज़ को आत्मसात कर इतनी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए दिल से शुक्रिया ।
    वाकई बहुत अच्छा लिखती हैं आप ।

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  11. Please read बासमती as बासंती 🙏

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  12. कितने दिन बीत गए ब्लॉग पर आपसे मुलाकात हुए....

    सुस्वागतम् आदरणीया 🙏

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  13. शुक्रिया , डॉ0 वर्षा सिंह जी

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    1. आदरणीया संगीता स्वरुप ( गीत ) जी,
      सुस्वागतम् 🙏
      एक लम्बी अवधि के बाद ब्लॉग जगत में आपके पुनरा्गमन करने और मेरे ब्लॉग पर पधारने के लिए हार्दिक धन्यवाद 🙏
      अपने ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी के ज़रिए आपकी उपस्थिति को महसूस करना वाकई शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकने वाला अहसास है।
      बस यही कहना चाहूंगी कि इसी तरह ब्लॉग जगत से सम्बद्ध रह कर हम सभी का मार्गदर्शन करती रहें।
      मेरे दोहों को पसन्द करने के लिए हृदयतल की गहराइयों से आपके प्रति हार्दिक धन्यवाद 🙏
      सादर,
      शुभकामनाओं सहित,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  14. मेरा भी मन बासंती हो उठा 

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  15. बस यही तो चाह रही थी रश्मि जी

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  16. वासंती रंग बिखर गया मन वासंती हो गया 
    स्वागत वसंत.... 

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  17. वाह , तुमको यहाँ देखा तो मन स्वयं वासंती हो गया । शुक्रिया संध्या ।

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  18. वाह..आपकी रचना से इतने मन बासंती हुए कि कोई बचा ही नहीं..सुन्दर मनमोहनी रचना.. बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें..

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  19. बहुत स्नेह जिज्ञासा । शुक्रिया यहाँ भी पहुँचने का ।

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  20. इसलिए तो सब खींचा चला आया ।

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