आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है कल (28-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! आँखों के रेगिस्तान पसर कर मन मस्तिष्क तक छा जाते हैं ! शुष्कता की दरारें ऐसी भयावह स्थिति पैदा कर दें इससे पहले ही इनकी तराई कर लीजिये ! कल्पना के विस्तार के नये आयाम खोलती एक बहुत खूबसूरत रचना ! बधाई स्वीकार करें !
हसरते कहाँ होती है पूरी..समय के साथ सब कुछ बदल जाता है..वो कल का सवेरा और ये आज की अँधेरी जिंदगी...सत्य का परिचय कराती और जीवन के गुढ़ रहस्यों को बताती सु्ंदर अभिव्यक्ति....धन्यवाद।
कि छाये रहते थे मेघ नेह के इन आँखों में , आज पसर गया है एक रेगिस्तान और तरस गयीं हैं ये आँखें एक बूँद नमी के लिए . दोनों ही प्रतिकूल वक्त ! सुन्दर अभिव्यक्ति !
ख़ुशी से तरबतर हसीन एक पल था वो मगर वो आज नही है जनाब कल था वो ! बहुत खूब संगीता जी......निवेदन है कि मेरी ये ग़ज़ल जरूर पढ़ें आप एक बार ! http://anandkdwivedi.blogspot.com/2010/12/blog-post_1598.html
...एक एक शब्द गूढार्थ लिए हुए है संगीता जी, ...धन्यवाद!....!..और 'उजला आसमां 'सही में नीले आसमां की खुबसूरती बयां कर रहा है...जल्दी ही मै समीक्षा पेश करने जा रही हूं!
smy ke privrtn ko sheje sundr rchna ke liye bdhai aap ne antr mn puetk ko neh diya hardik aabhar vykt krta hoon kripya swikar kren aap se smvad kr ke prsnnta hogi ved vyathit 09868842688
मैं तो बहुत डरते-डरते ब्लाग पर आया हूं। वो दरअसल क्या है कि मैं कई दिनों से बीमार था...लिखना-पढ़ना तो बंद था ही बात करना भी। कुछ सेहत सुधरी तो सोचा फिर से संबंध बहाल किए जाएं...अभी तो सिर्फ आपके बिखरे मोती पर "एक बूंद नमी के लिए" आया ूं...अगर सब ठीक रहा तो धाराप्रवाह शुरू हो जाएंगे....फिर से "सृज्याम्यहम्" को लेकर
Behad Khoobsoorat nazm Sangeeta ji...AAnkhein jab sookh jaati hain to fir baadlon ka umarna yaad aata hai...rone ka jab man karta to toot ke bikharna yaad aata hai...
Behad Khoobsoorat nazm Sangeeta ji...AAnkhein jab sookh jaati hain to fir baadlon ka umarna yaad aata hai...rone ka jab man karta to toot ke bikharna yaad aata hai...
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रेत का समंदर और रेगिस्तान के जज्बात और एक छुपे हुए समाज के दर्द को रस में भीगा बहुत अच्छी तरह से उकेरा है आपने रचनाओं में -बधाई हो
आप के हिंदी और कविता के रुझान को देख मन खुश हुआ , चूंकि इस बाल जगत में मै नया हूँ कोशिश करूँगा छोटी रचना छोटे नन्हे मुन्नों के लिए , मेरी तो आदत पड़ गयी है भ्रमर के दर्द और दर्पण में लम्बे दर्द ले चलने की न इसलिए बात पूरी होती ही नहीं अपना सुझाव व् समर्थन भी दीजिये न ! शब्द जांच में हटा ले रहा हूँ धन्यवाद सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
सच अमृता जी आत्मा में निहित न्याय ही सब कुछ का सही नियंत्रण कर भी सकता है वह नियंता तो है ही -बाकी तो सब उपरी दिखावा है हम अपने मन की मानें जायज करें तो क्या संभव नहीं -सुन्दर रचना बधाई हो
हसरतों को मुकाम कब मिले हैं वक्त सब चुरा ले जाता है………बहुत सुन्दर गहरे भाव भरे हैं।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
एक वक्त था
ReplyDeleteकि
छाये रहते थे
मेघ नेह के
इन आँखों में ,
आज
पसर गया है
एक रेगिस्तान
ये वक़्त है, न जाने कल कैसा हो...
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति...
तरस गयीं हैं
ReplyDeleteये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए .
sach baat hai ! kabhi aisa bhi ho jaata hai..! Touching !
dil chahta hai ek tukda baadal aankhon me utar aaye
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ! आँखों के रेगिस्तान पसर कर मन मस्तिष्क तक छा जाते हैं ! शुष्कता की दरारें ऐसी भयावह स्थिति पैदा कर दें इससे पहले ही इनकी तराई कर लीजिये ! कल्पना के विस्तार के नये आयाम खोलती एक बहुत खूबसूरत रचना ! बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteपसरा रेगिस्तान,
ReplyDeleteजीवन का व्यवधान।
हसरते कहाँ होती है पूरी..समय के साथ सब कुछ बदल जाता है..वो कल का सवेरा और ये आज की अँधेरी जिंदगी...सत्य का परिचय कराती और जीवन के गुढ़ रहस्यों को बताती सु्ंदर अभिव्यक्ति....धन्यवाद।
ReplyDeleteरेगिस्तान में नखलिस्तान जल्दी ही नजर आये , रेत का हर कण नेह जल में भीगा हो . हम तो घोर आशावादी है और इस रचना में भी हमने ढूंढ़ ली आशा की किरन .
ReplyDeleteजीवन कुछ ऎसे ही चलता हे..
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक प्रस्तुति...
प्रत्येक का अपना नजरिया है
ReplyDeleteआधा गिलास खाली या आधा भरा है।
तरस गयीं हैं
ReplyDeleteये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए ....
बहुत भावुक एवं मार्मिक कविता...
marmik rachna
ReplyDeleteaalekh
सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteवक्त वक्त की बात है ।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ।
वाह!...क्या बात है!
ReplyDeletehasrat-e-dil
ReplyDeletewaah ji waah ..kya baat hai...photo to kmaal kar gaye
ReplyDeleteअच्छा लिखा है.
ReplyDeleteसलाम
एक बेहतरीन काव्य , संगीताजी . आपकी रचनाएँ सही रूप मैं कविताये होती है, बेहद संवेदनशील, ह्रदय से निकल कर सीधे हृदय मैं घर करती रचनाये , बधाई
ReplyDeleteसंक्षिप्त और सुन्दर ,वाह !!
ReplyDeleteतरस गयीं हैं
ReplyDeleteये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए .
और यह नमी हर किसी के नसीब में नहीं होती ...व्यक्ति की संवेदना उभर कर सामने आई है ...आपका आभार
संवेदनशील रचना।
ReplyDeleteएक वक्त था
ReplyDeleteकि
छाये रहते थे
मेघ नेह के
इन आँखों में ,
आज
पसर गया है
एक रेगिस्तान
उम्दा संवेदनशील रचना
आँखों की नमी बरक़रार रहे यही कामना है.
ReplyDeleteसुंदर पंक्तियाँ दिल को छू लेने वाली.
दी ३ बार आकर पढ़ गई हूँ ये पंक्तियाँ ..और अभी तक शब्द नहीं ढूंढ पाई कि क्या कहूँ.
ReplyDeleteगागर में सागर भर दिया है आपने.
ReplyDeletezindagi jab mausam badalti hai to yahi hota hai....amazing
ReplyDeletebhut hi khubsurat panktiya hai..very nice..
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeletekitna dard he is kavita me, sagar si gehrai,,,..liye hue aapki ye panktiyaan..\
ReplyDelete\
एक वक्त था
ReplyDeleteकि
छाये रहते थे
मेघ नेह के
इन आँखों में ,
आज
पसर गया है
एक रेगिस्तान
और
तरस गयीं हैं
ये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए .
दोनों ही प्रतिकूल वक्त ! सुन्दर अभिव्यक्ति !
हसरतें ..वाकई बहुत सुन्दर ...बहुत पसंद आई यह रचना
ReplyDeleteसुभानाल्लाह.....वाह.....आपकी इस खूबी को सलाम है जो इतने कम शब्दों में इतनी गहराई उंडेल देती है .....बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteतरस गयीं हैं
ReplyDeleteये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए ....
भावमय करते शब्द ।
एक और अनोखी अभिव्यक्ति... आपकी कविता में दुख और वेदना भी सुंदरता से निखर जाती है!!
ReplyDeletenice
ReplyDeleteजीवन का हर उतर चढ़ाव आँखों से झांकता है !
ReplyDeleteऔर कविता जिंदगी की आँखें ही तो है !
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !
Sundar rchana !
ReplyDeleteवर्तमान जीवन का चित्र खींचती ये रचना बेहद संवेदनशील है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteशुभकामनायें !
उफ्फ्फ.....!!
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत...
ReplyDeleteएक वक्त था
ReplyDeleteकि
छाये रहते थे
मेघ नेह के
इन आँखों में ,
आज
पसर गया है
एक रेगिस्तान
kabhi kabhi aesa bhi hota hai ,sundar .
एक बार फिर बेहद मर्मस्पर्शी प्रस्तुति दी .....कमाल है
ReplyDeletekavita ke maadhyam se ehsaas hota hai ki aankho me nami ka hona bhi kitna jaruri aur nami ki anupasthiti me registaan ka hona kitna dardnaak.
ReplyDeletesashakt lekhan.
वक्त कब एक सा रहता है। आज सूका है तो कल बारिस भी होगी । बहुत कोमल प्रस्तुति ।
ReplyDeleteतरस गयीं हैं
ReplyDeleteये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए .
Bahut sundar najm..badhai.
कुछ ही शब्दों में गहरी बात .... आशा की नमी ज़रूर नज़र आएगी ...
ReplyDeleteबदलते वक्त के साथ बदलते एहसास -
ReplyDeleteकैसे मानू के तुम वही हो .....वही ... ?
बहुत सुंदर उदगार -
ख़ुशी से तरबतर हसीन एक पल था वो
ReplyDeleteमगर वो आज नही है जनाब कल था वो !
बहुत खूब संगीता जी......निवेदन है कि मेरी ये ग़ज़ल जरूर पढ़ें आप एक बार !
http://anandkdwivedi.blogspot.com/2010/12/blog-post_1598.html
सच में ऐसा ही तो होता है!......
ReplyDeleteतरस गयीं हैं
ReplyDeleteये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए .
...एक एक शब्द गूढार्थ लिए हुए है संगीता जी, ...धन्यवाद!....!..और 'उजला आसमां 'सही में नीले आसमां की खुबसूरती बयां कर रहा है...जल्दी ही मै समीक्षा पेश करने जा रही हूं!
तरस गयीं हैं
ReplyDeleteये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए .
..बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति... धन्यवाद
smy ke privrtn ko sheje sundr rchna ke liye bdhai
ReplyDeleteaap ne antr mn puetk ko neh diya hardik aabhar vykt krta hoon kripya swikar kren
aap se smvad kr ke prsnnta hogi
ved vyathit
09868842688
तरस गयीं हैं
ReplyDeleteये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए.
वाह....
बिल्कुल अलग
बेहतरीन अंदाज़.
bahut achcha likha hai.....wah..
ReplyDeleteदिन मैं सूरज गायब हो सकता है
ReplyDeleteरोशनी नही
दिल टू सटकता है
दोस्ती नही
आप टिप्पणी करना भूल सकते हो
हम नही
हम से टॉस कोई भी जीत सकता है
पर मैच नही
चक दे इंडिया हम ही जीत गए
भारत के विश्व चैम्पियन बनने पर आप सबको ढेरों बधाइयाँ और आपको एवं आपके परिवार को हिंदी नया साल(नवसंवत्सर२०६८ )की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!
आपका स्वागत है
"गौ ह्त्या के चंद कारण और हमारे जीवन में भूमिका!"
और
121 करोड़ हिंदुस्तानियों का सपना पूरा हो गया
आपके सुझाव और संदेश जरुर दे!
मैं तो बहुत डरते-डरते ब्लाग पर आया हूं। वो दरअसल क्या है कि मैं कई दिनों से बीमार था...लिखना-पढ़ना तो बंद था ही बात करना भी। कुछ सेहत सुधरी तो सोचा फिर से संबंध बहाल किए जाएं...अभी तो सिर्फ आपके बिखरे मोती पर "एक बूंद नमी के लिए" आया ूं...अगर सब ठीक रहा तो धाराप्रवाह शुरू हो जाएंगे....फिर से "सृज्याम्यहम्" को लेकर
ReplyDeleteBehad Khoobsoorat nazm Sangeeta ji...AAnkhein jab sookh jaati hain to fir baadlon ka umarna yaad aata hai...rone ka jab man karta to toot ke bikharna yaad aata hai...
ReplyDeleteBahut khoob...
Behad Khoobsoorat nazm Sangeeta ji...AAnkhein jab sookh jaati hain to fir baadlon ka umarna yaad aata hai...rone ka jab man karta to toot ke bikharna yaad aata hai...
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ReplyDeleteBahut khoob...
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ReplyDeleteBahut khoob...
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ReplyDeleteBahut khoob...
भली कही आपने इन आँखों कि बाते ..हमरे देश में खून की आंसू रो रही हैं !marmik !!!
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति... मर्मस्पर्शी!. बधाई
ReplyDeleteआदरणीय संगीता जी
ReplyDeleteरेत का समंदर और रेगिस्तान के जज्बात और एक छुपे हुए समाज के दर्द को रस में भीगा बहुत अच्छी तरह से उकेरा है आपने रचनाओं में -बधाई हो
आप के हिंदी और कविता के रुझान को देख मन खुश हुआ , चूंकि इस बाल जगत में मै नया हूँ कोशिश करूँगा छोटी रचना छोटे नन्हे मुन्नों के लिए , मेरी तो आदत पड़ गयी है भ्रमर के दर्द और दर्पण में लम्बे दर्द ले चलने की न इसलिए बात पूरी होती ही नहीं अपना सुझाव व् समर्थन भी दीजिये न ! शब्द जांच में हटा ले रहा हूँ
धन्यवाद
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
एक बूँद
ReplyDeleteनमी के लिए.
वाह....
बिल्कुल अलग
.........बेहतरीन अंदाज़.
सच अमृता जी आत्मा में निहित न्याय ही सब कुछ का सही नियंत्रण कर भी सकता है वह नियंता तो है ही -बाकी तो सब उपरी दिखावा है हम अपने मन की मानें जायज करें तो क्या संभव नहीं -सुन्दर रचना बधाई हो
ReplyDeleteसुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
यही तो है रेगिस्तान की महत्ता
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