हसरत ...
>> Sunday 27 March 2011
एक वक्त था
कि
छाये रहते थे
मेघ नेह के
इन आँखों में ,
आज
पसर गया है
एक रेगिस्तान
और
तरस गयीं हैं
ये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए .
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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72 comments:
हसरतों को मुकाम कब मिले हैं वक्त सब चुरा ले जाता है………बहुत सुन्दर गहरे भाव भरे हैं।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
एक वक्त था
कि
छाये रहते थे
मेघ नेह के
इन आँखों में ,
आज
पसर गया है
एक रेगिस्तान
ये वक़्त है, न जाने कल कैसा हो...
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति...
तरस गयीं हैं
ये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए .
sach baat hai ! kabhi aisa bhi ho jaata hai..! Touching !
dil chahta hai ek tukda baadal aankhon me utar aaye
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! आँखों के रेगिस्तान पसर कर मन मस्तिष्क तक छा जाते हैं ! शुष्कता की दरारें ऐसी भयावह स्थिति पैदा कर दें इससे पहले ही इनकी तराई कर लीजिये ! कल्पना के विस्तार के नये आयाम खोलती एक बहुत खूबसूरत रचना ! बधाई स्वीकार करें !
पसरा रेगिस्तान,
जीवन का व्यवधान।
हसरते कहाँ होती है पूरी..समय के साथ सब कुछ बदल जाता है..वो कल का सवेरा और ये आज की अँधेरी जिंदगी...सत्य का परिचय कराती और जीवन के गुढ़ रहस्यों को बताती सु्ंदर अभिव्यक्ति....धन्यवाद।
रेगिस्तान में नखलिस्तान जल्दी ही नजर आये , रेत का हर कण नेह जल में भीगा हो . हम तो घोर आशावादी है और इस रचना में भी हमने ढूंढ़ ली आशा की किरन .
जीवन कुछ ऎसे ही चलता हे..
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति...
प्रत्येक का अपना नजरिया है
आधा गिलास खाली या आधा भरा है।
तरस गयीं हैं
ये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए ....
बहुत भावुक एवं मार्मिक कविता...
marmik rachna
aalekh
सुन्दर अभिव्यक्ति!
वक्त वक्त की बात है ।
सुन्दर अभिव्यक्ति ।
वाह!...क्या बात है!
hasrat-e-dil
waah ji waah ..kya baat hai...photo to kmaal kar gaye
अच्छा लिखा है.
सलाम
एक बेहतरीन काव्य , संगीताजी . आपकी रचनाएँ सही रूप मैं कविताये होती है, बेहद संवेदनशील, ह्रदय से निकल कर सीधे हृदय मैं घर करती रचनाये , बधाई
संक्षिप्त और सुन्दर ,वाह !!
तरस गयीं हैं
ये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए .
और यह नमी हर किसी के नसीब में नहीं होती ...व्यक्ति की संवेदना उभर कर सामने आई है ...आपका आभार
संवेदनशील रचना।
एक वक्त था
कि
छाये रहते थे
मेघ नेह के
इन आँखों में ,
आज
पसर गया है
एक रेगिस्तान
उम्दा संवेदनशील रचना
आँखों की नमी बरक़रार रहे यही कामना है.
सुंदर पंक्तियाँ दिल को छू लेने वाली.
दी ३ बार आकर पढ़ गई हूँ ये पंक्तियाँ ..और अभी तक शब्द नहीं ढूंढ पाई कि क्या कहूँ.
गागर में सागर भर दिया है आपने.
zindagi jab mausam badalti hai to yahi hota hai....amazing
bhut hi khubsurat panktiya hai..very nice..
सुन्दर अभिव्यक्ति ।
kitna dard he is kavita me, sagar si gehrai,,,..liye hue aapki ye panktiyaan..\
\
एक वक्त था
कि
छाये रहते थे
मेघ नेह के
इन आँखों में ,
आज
पसर गया है
एक रेगिस्तान
और
तरस गयीं हैं
ये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए .
दोनों ही प्रतिकूल वक्त ! सुन्दर अभिव्यक्ति !
हसरतें ..वाकई बहुत सुन्दर ...बहुत पसंद आई यह रचना
सुभानाल्लाह.....वाह.....आपकी इस खूबी को सलाम है जो इतने कम शब्दों में इतनी गहराई उंडेल देती है .....बहुत खूब
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
तरस गयीं हैं
ये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए ....
भावमय करते शब्द ।
एक और अनोखी अभिव्यक्ति... आपकी कविता में दुख और वेदना भी सुंदरता से निखर जाती है!!
nice
जीवन का हर उतर चढ़ाव आँखों से झांकता है !
और कविता जिंदगी की आँखें ही तो है !
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !
Sundar rchana !
वर्तमान जीवन का चित्र खींचती ये रचना बेहद संवेदनशील है...
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
शुभकामनायें !
उफ्फ्फ.....!!
बहुत ही खूबसूरत...
एक वक्त था
कि
छाये रहते थे
मेघ नेह के
इन आँखों में ,
आज
पसर गया है
एक रेगिस्तान
kabhi kabhi aesa bhi hota hai ,sundar .
एक बार फिर बेहद मर्मस्पर्शी प्रस्तुति दी .....कमाल है
kavita ke maadhyam se ehsaas hota hai ki aankho me nami ka hona bhi kitna jaruri aur nami ki anupasthiti me registaan ka hona kitna dardnaak.
sashakt lekhan.
वक्त कब एक सा रहता है। आज सूका है तो कल बारिस भी होगी । बहुत कोमल प्रस्तुति ।
तरस गयीं हैं
ये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए .
Bahut sundar najm..badhai.
कुछ ही शब्दों में गहरी बात .... आशा की नमी ज़रूर नज़र आएगी ...
बदलते वक्त के साथ बदलते एहसास -
कैसे मानू के तुम वही हो .....वही ... ?
बहुत सुंदर उदगार -
ख़ुशी से तरबतर हसीन एक पल था वो
मगर वो आज नही है जनाब कल था वो !
बहुत खूब संगीता जी......निवेदन है कि मेरी ये ग़ज़ल जरूर पढ़ें आप एक बार !
http://anandkdwivedi.blogspot.com/2010/12/blog-post_1598.html
सच में ऐसा ही तो होता है!......
तरस गयीं हैं
ये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए .
...एक एक शब्द गूढार्थ लिए हुए है संगीता जी, ...धन्यवाद!....!..और 'उजला आसमां 'सही में नीले आसमां की खुबसूरती बयां कर रहा है...जल्दी ही मै समीक्षा पेश करने जा रही हूं!
तरस गयीं हैं
ये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए .
..बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति... धन्यवाद
smy ke privrtn ko sheje sundr rchna ke liye bdhai
aap ne antr mn puetk ko neh diya hardik aabhar vykt krta hoon kripya swikar kren
aap se smvad kr ke prsnnta hogi
ved vyathit
09868842688
तरस गयीं हैं
ये आँखें
एक बूँद
नमी के लिए.
वाह....
बिल्कुल अलग
बेहतरीन अंदाज़.
bahut achcha likha hai.....wah..
दिन मैं सूरज गायब हो सकता है
रोशनी नही
दिल टू सटकता है
दोस्ती नही
आप टिप्पणी करना भूल सकते हो
हम नही
हम से टॉस कोई भी जीत सकता है
पर मैच नही
चक दे इंडिया हम ही जीत गए
भारत के विश्व चैम्पियन बनने पर आप सबको ढेरों बधाइयाँ और आपको एवं आपके परिवार को हिंदी नया साल(नवसंवत्सर२०६८ )की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!
आपका स्वागत है
"गौ ह्त्या के चंद कारण और हमारे जीवन में भूमिका!"
और
121 करोड़ हिंदुस्तानियों का सपना पूरा हो गया
आपके सुझाव और संदेश जरुर दे!
मैं तो बहुत डरते-डरते ब्लाग पर आया हूं। वो दरअसल क्या है कि मैं कई दिनों से बीमार था...लिखना-पढ़ना तो बंद था ही बात करना भी। कुछ सेहत सुधरी तो सोचा फिर से संबंध बहाल किए जाएं...अभी तो सिर्फ आपके बिखरे मोती पर "एक बूंद नमी के लिए" आया ूं...अगर सब ठीक रहा तो धाराप्रवाह शुरू हो जाएंगे....फिर से "सृज्याम्यहम्" को लेकर
Behad Khoobsoorat nazm Sangeeta ji...AAnkhein jab sookh jaati hain to fir baadlon ka umarna yaad aata hai...rone ka jab man karta to toot ke bikharna yaad aata hai...
Bahut khoob...
Behad Khoobsoorat nazm Sangeeta ji...AAnkhein jab sookh jaati hain to fir baadlon ka umarna yaad aata hai...rone ka jab man karta to toot ke bikharna yaad aata hai...
Bahut khoob...
Behad Khoobsoorat nazm Sangeeta ji...AAnkhein jab sookh jaati hain to fir baadlon ka umarna yaad aata hai...rone ka jab man karta to toot ke bikharna yaad aata hai...
Bahut khoob...
Behad Khoobsoorat nazm Sangeeta ji...AAnkhein jab sookh jaati hain to fir baadlon ka umarna yaad aata hai...rone ka jab man karta to toot ke bikharna yaad aata hai...
Bahut khoob...
Behad Khoobsoorat nazm Sangeeta ji...AAnkhein jab sookh jaati hain to fir baadlon ka umarna yaad aata hai...rone ka jab man karta to toot ke bikharna yaad aata hai...
Bahut khoob...
Behad Khoobsoorat nazm Sangeeta ji...AAnkhein jab sookh jaati hain to fir baadlon ka umarna yaad aata hai...rone ka jab man karta to toot ke bikharna yaad aata hai...
Bahut khoob...
भली कही आपने इन आँखों कि बाते ..हमरे देश में खून की आंसू रो रही हैं !marmik !!!
खूबसूरत प्रस्तुति... मर्मस्पर्शी!. बधाई
आदरणीय संगीता जी
रेत का समंदर और रेगिस्तान के जज्बात और एक छुपे हुए समाज के दर्द को रस में भीगा बहुत अच्छी तरह से उकेरा है आपने रचनाओं में -बधाई हो
आप के हिंदी और कविता के रुझान को देख मन खुश हुआ , चूंकि इस बाल जगत में मै नया हूँ कोशिश करूँगा छोटी रचना छोटे नन्हे मुन्नों के लिए , मेरी तो आदत पड़ गयी है भ्रमर के दर्द और दर्पण में लम्बे दर्द ले चलने की न इसलिए बात पूरी होती ही नहीं अपना सुझाव व् समर्थन भी दीजिये न ! शब्द जांच में हटा ले रहा हूँ
धन्यवाद
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
एक बूँद
नमी के लिए.
वाह....
बिल्कुल अलग
.........बेहतरीन अंदाज़.
सच अमृता जी आत्मा में निहित न्याय ही सब कुछ का सही नियंत्रण कर भी सकता है वह नियंता तो है ही -बाकी तो सब उपरी दिखावा है हम अपने मन की मानें जायज करें तो क्या संभव नहीं -सुन्दर रचना बधाई हो
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
यही तो है रेगिस्तान की महत्ता
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