वाह ! बहुत सुन्दर ! इस समंदर में भावनाओं के कितने मोती सीपियों में बंद पड़े होंगे उन्हें और खोजना होगा तभी यह श्रमसाध्य कार्य पूर्ण होगा ! बहुत प्यारी क्षणिका ! बधाई एवं शुभकामनायें !
ankhen aksar man ka bhav bayan karti hai......dekhne wale ki kala hai ki koi toh samundar me moti dhund leta hai aur koi ret ke tile... sundar hai,,, bhav se paripurn....
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है कल (14-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
आखें ही तो हैं तो सब कुछ देख कर अपने में समां लेती हैं और फिर पता नहीं कब और कैसे उनको ही व्यक्त भी कर देती हैं. प्रेम, वियोग , वितृष्णा, ममता सब उनमें झांक कर ही तो समझा जा सकता है. फिर उसको प्रस्तुत करने वाले की काला है. सुंदर अभिव्यक्ति के लिएबधाई.
जाने क्या क्या हम अपनी आँखों में लिए फिरते हैं. कभी बारिश तो कभी रेत के समंदर भी दिखते हैं. sach hi to kaha hai aapne ,samya hi bharta inme sab ,sundar behad
"हम तो आँखों में लिए फिरते हैं हसरतें कभी होती हैं लहरें तो कभी रेत की सतहें ..."
खूबसूरत !! किसकी तारीफ करूँ समझ नहीं पा रही हूँ..??आँखों में ही रेत का समंदर है और हसरतों की लहरें भी..! गागर में सागर वाली कहावत चरितार्थ होती है यहाँ..!!
di itni chhoti si rachna me kitne gahre bhav .aapne to gar me sagar bhar diya .kammal ka likhti hain aap aapki adhhbhut lekhni ko naman avam aapko hardik badhai poonam
वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे आपका मित्र दिनेश पारीक
आदरणीया संगीता स्वरूप जी, महज चंद शब्दों में बड़ी ही खूबसूरती से कह जाती हैं आप पते की बात और सामान मुहैया करा देती हैं हम जैसे विद्यार्थियों को और कुछ नया सीखने के लिए| प्रणाम|
संगीता जी आप मेरे ब्लांग अभिव्यन्जना पर आई साथ ही अमूल्य सुझाव भी दिया, बहुत बहुत धन्यवाद । बिखरे मोती मे मैने आप की सुन्दर अभिव्यक्ति का रसास्वादन किया । समय –समय पर आकर मुझे सुझाव दे तो अच्छा लगेगा । धन्यवाद
संगीता जी , अपनी कुछ बेहतरीन क्षणिकाएं 'सरस्वाती-सुमन' पत्रिका के लिए भेजिए न ..... संक्षिप्त परिचय और छाया चित्र के साथ .... इस पते पर .... harkiratheer@yahoo.in
या
Harkirat 'heer' 18 east lane, sunderpur house no. 5 Guwaahaati-781005
nice short one!!does sand means , tears have been dried...
ReplyDeleteआँखों में क्या क्या आप देख लेती हो और सोच लेती हो ., कभी समंदर कभी रेगिस्तान . कभी नदिया कभी नखलिस्तान .
ReplyDeleteSUNDER !
ReplyDeleteभीगी पलकें गहरी आँखें
ReplyDeleteऔर उनमे तैरता रेत का समंदर...
संगीताजी इतनी गहराई तो आपकी ही रचना में मिलती है.. भावपूर्ण प्रस्तुति...
वाह ! बहुत सुन्दर ! इस समंदर में भावनाओं के कितने मोती सीपियों में बंद पड़े होंगे उन्हें और खोजना होगा तभी यह श्रमसाध्य कार्य पूर्ण होगा ! बहुत प्यारी क्षणिका ! बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteजाने क्या क्या हम अपनी
ReplyDeleteआँखों में लिए फिरते हैं.
कभी बारिश तो कभी
रेत के समंदर भी दिखते हैं.
क्या बात है दी! कम शब्दों में पूरा सागर भर दिया.
wow!...kyaa khoob!
ReplyDeleteसंगीता जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....आँखें और रेत का समंदर.......वाह....शानदार
वाह-वाह!
ReplyDeleteवाह-वाह!!
एक वाह-वाह आपकी क्षणिका के लिए।
और दूसरी शिखा की टिप्पणिका के लिए।
@ शिखा ,
ReplyDeleteहम तो आँखों में
लिए फिरते हैं
हसरतें
कभी होती हैं
लहरें तो कभी
रेत की सतहें ...
ret hi jivan ka satya hai
ReplyDeletestambh hai saagar ke andar baahar uska gahra wajood hai...
aankhon ke registaan kahte hain
lahren aane ko hain
ankhen aksar man ka bhav bayan karti hai......dekhne wale ki kala hai ki koi toh samundar me moti dhund leta hai aur koi ret ke tile... sundar hai,,, bhav se paripurn....
ReplyDeleteअच्छा लिखा है. बधाई
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आयें, स्वागत है
दुनाली
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
गहरा।
ReplyDeleteगहरे भाव लिये बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमेरी तरफ से प्रणाम स्वीकार करे ब्लॉग जगत में नया हूँ|
छोटी किन्तु प्रभावशाली कविता.
ReplyDeleteआखें ही तो हैं तो सब कुछ देख कर अपने में समां लेती हैं और फिर पता नहीं कब और कैसे उनको ही व्यक्त भी कर देती हैं. प्रेम, वियोग , वितृष्णा, ममता सब उनमें झांक कर ही तो समझा जा सकता है. फिर उसको प्रस्तुत करने वाले की काला है. सुंदर अभिव्यक्ति के लिएबधाई.
ReplyDeleteaankhon me samaya ret ka samnder..kya bat hai..
ReplyDeleteगहरे भाव लिये बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteकितना गहन लिखा है…………कहने को शब्द कम पड गये हैं………………चंद शब्दो मे ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा कह दिया।
ReplyDeleteइतने कम शब्दों में इतनी गहन अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteसंगीता जी,आपकी लेखनी को नमन !
कितने गहरे भाव छुपा रखे है आपने बस कुछ पंक्तियों में...बहुत सुंदर...धन्यवाद।
ReplyDeleteजाने क्या क्या हम अपनी
ReplyDeleteआँखों में लिए फिरते हैं.
कभी बारिश तो कभी
रेत के समंदर भी दिखते हैं.
sach hi to kaha hai aapne ,samya hi bharta inme sab ,sundar behad
bahut khoob...mitti ka sara pani nikal kar ret bana dala...
ReplyDeleteaa gayi yaad teri soch me dubi aakhe..
ReplyDeletejab bhi dekha teri aakho me samander dekha....
रेत के इस समन्दर के पीछे मरीचिका ही सही जल के आभास होते ही हैं
ReplyDeleteलाजवाब रचना
marmik
ReplyDeleteआँखों से बहती गंगा-जमुना
ReplyDeleteजब सूख जाती है,
दर्द की हदे
पार हो जाती है
तब रेत ही रेत
दिखाती है
हर जगह |
Mumma ..bahut pyaari nazm :)
ReplyDeletekhwaab ka samandar bana detin naa aap...:).....ret kyun bana diya.:/:/
बहुत ही कम शब्दों में बड़ी बात.
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ.
We have seen your BLOGs for the FIRST TIME to day.For each one we can say " Dekhan me chhote lage ghaav kare gambhiir .SUPERB . GOD BLESS U
ReplyDeleteDr.Smt Krishna & BHOLA S'-tav
We have seen your BLOGs for the FIRST TIME today.For each one we can say " Dekhan men chhote lage ghaav kare gambhiir .SUPERB . GOD BLESS U
ReplyDeleteDr.Smt Krishna & BHOLA S'-tav
waah sangeeta ji
ReplyDeleteकाम शब्दों में गंभीर अभिव्यक्ति आपका ट्रेड मार्क है ! अच्छी कविता !
ReplyDeleteरेत के समंदर में ही तो हम अपनी तृष्णा खोजते हैं।
ReplyDeleteकम शब्दों मे अथाह व्यथा। ---
ReplyDeleteBehad khubsurat nazm...Aankhon ke beech ret ka samandar ....bahut hi acchha bimb hai.
ReplyDeleteप्यास से
ReplyDeleteखुल गये जब दोनों होंठ
हलक पर खड़ी जीभ को
पानी का रेगिस्तान नज़र आया था.
बहुत गहरे भाव भर दिए आपने इन चंद शब्दों में ...आपका आभार
ReplyDeleteaur mujhe to us ret men bhi moti nazar aa raha hai......
ReplyDelete"हम तो आँखों में
ReplyDeleteलिए फिरते हैं
हसरतें
कभी होती हैं
लहरें तो कभी
रेत की सतहें ..."
खूबसूरत !!
किसकी तारीफ करूँ समझ नहीं पा रही हूँ..??आँखों में ही रेत का समंदर है और हसरतों की लहरें भी..!
गागर में सागर वाली कहावत चरितार्थ होती है यहाँ..!!
bahut sundar abhivyakti .. chhoti see KAvita ..kal charchamanch me aapki yah kavita hogi.....Aabhaar
ReplyDeleteसंगीता जी क्षणिका तो नहीं,
ReplyDeleteहाँ! कणिका बहुत बढ़िया प्रस्तुत की है आपने!
dono kshanikaye bahut sunder.
ReplyDeleteकम सब्दों में भव्नायों क समुन्द्र
ReplyDeleteसंवेदना से भरी मार्मिक रचना.....
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!
न जाने क्यों इन आँखों को
ReplyDeleteसभी झील सी गहरी कहते हैं.
जबकि इन्हीं आँखों में छिपे
कितने समंदर रहते हैं!!
संगीता दी! सीप से निकला मोती है यह!!
आंखों में रेत का समंदर मन की पीड़ा का आइना होता है और आपने इस आइने को बखूबी सहेजा है अपनी इस कविता में...
ReplyDeleteबधाई..
कविवर बिहारी जी की याद दिला दी आपने ।
ReplyDeleteगागर में सागर भर दिया ,नि:शब्द कर दिया !
khoob smeta he ye samandr in annkhon main!
ReplyDeletekammal ki prastuti
khuska ankho ka khoobsoorat chitran.. bahut sunder bhaav ....!!
ReplyDeletekam shbdon me bahut kuchh kah deti hain aap...
ReplyDeleteप्रभावशाली कविता गंभीर भाव लिए हुए.
ReplyDeleteAapne mook kar diya! Kamal likhtee hain aap!
ReplyDeleteaankhen ret ka sehra hi hai......
ReplyDeleteइतने कम शब्दों में इतना सारा भाव... वाह...
ReplyDeleteपलकों को निचोड़ना
ReplyDeleteरेत का समन्दर दिखना
ग़ज़ब है ग़ज़ब.
bahut bahut bahut khoob!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteवाह...बेहतरीन भावाभिव्यक्ति......आभार !!
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteबहुत गहरे भाव भर दिए आपने इन चंद शब्दों में ...आपका आभार
ReplyDeleteयथार्थ क्या इतना कठोर है । रेत का समंदर आँखो में !!
ReplyDeleteBeautiful imagination !
ReplyDeletedi itni chhoti si rachna me kitne gahre bhav .aapne to gar me sagar bhar diya .kammal ka likhti hain aap aapki adhhbhut lekhni ko naman
ReplyDeleteavam aapko hardik badhai
poonam
wah....behtreen bhavbodh....
ReplyDeleteसुन्दर रचना |
ReplyDeletekhoobsurat abhivyakti....aaj hi padhi
ReplyDeletesangeeta ji.
Chand shabdon men bahut hi gahre bhav. Sunder prastuti.
ReplyDeletebahut sundar ..
ReplyDeleteबहुत ही शानदार है आपकी यह पंक्तियां!
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत अच्छी क्षणिका ... बहुत दिन से अस्वस्थता के चलते ब्लॉग से दूर थी... अब ठीक हूँ .... आपकी याद आयी तो चली आये ब्लॉग पर ..
ReplyDeleteसादर
Kuch hi shabdon kein gahri baat ...
ReplyDeleteYe aadhunik Bhaarat ki shabdavali lag rahi hai ...
ReplyDeleteकेवल एक ही शब्द .... बेहतरीन !
ReplyDeletenamaskar ji
ReplyDeleteblog par kafi dino se nahi aa paya mafi chahata hoon
संगीता जी नमस्कार बहुत सुन्दर रचना-रेत का समंदर आज अपनी बाढ़ ले छाया हुआ है -गागर में सागर -बधाई हो
ReplyDeleteसुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
क्या बात है संगीता जी!!!
ReplyDeleteवहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
pahli bar aapke blog par aai hoon padh kar aanad aaya
ReplyDeleteपलकों को
निचोड़ कर
जब मैंने
खोलीं थीं
आँखें
रेत का
समंदर उनमें
नज़र आया था
sunder
saader
rachana
अति सुन्दर रचना.
ReplyDeleteदुनाली पर देखें
चलने की ख्वाहिश...
पलकों को
ReplyDeleteनिचोड़ कर
जब मैंने
खोलीं थीं
आँखें
रेत का
समंदर उनमें
नज़र आया था
bahut badhiya sangeeta ji .
आदरणीया संगीता स्वरूप जी, महज चंद शब्दों में बड़ी ही खूबसूरती से कह जाती हैं आप पते की बात और सामान मुहैया करा देती हैं हम जैसे विद्यार्थियों को और कुछ नया सीखने के लिए| प्रणाम|
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक रचना ....दिल को छू गयी
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक रचना ....दिल को छू गयी
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत....
ReplyDeleteवैसे भी छोटी-सी आंखों में समुंदर की गहराई होती है तभी तो न जाने क्या-क्या देख लेती हैं...
बहुत सुंदर...
संगीता जी आप मेरे ब्लांग अभिव्यन्जना पर आई साथ ही अमूल्य सुझाव भी दिया, बहुत बहुत धन्यवाद । बिखरे मोती मे मैने आप की सुन्दर अभिव्यक्ति का रसास्वादन किया । समय –समय पर आकर मुझे सुझाव दे तो अच्छा लगेगा । धन्यवाद
ReplyDeleteलक्ष्य छोटा था अथवा ओछा।
ReplyDeleteइतने कम शब्दों में भावो का संसार ....वाह!
ReplyDeleteसंगीता जी ,
ReplyDeleteअपनी कुछ बेहतरीन क्षणिकाएं 'सरस्वाती-सुमन' पत्रिका के लिए भेजिए न .....
संक्षिप्त परिचय और छाया चित्र के साथ ....
इस पते पर ....
harkiratheer@yahoo.in
या
Harkirat 'heer'
18 east lane, sunderpur
house no. 5
Guwaahaati-781005
बहुत खूब
ReplyDeleteमोहसिन रिक्शावाला
आज कल व्यस्त हू -- I'm so busy now a days-रिमझिम
वाह.... संगीता जी!!!
ReplyDeleteWah sangeeta jee.,.,
ReplyDeletebahut sundar... Ye panktiyan na jane kya kya nahi kah rahi...
kabhi humare blog bhi aayen..
avinash001.blogspot.com
aaj sirf bat hogi muskan kee jo saji rahe aapke hothhon par ''HAPPY BIRTHDAY''
ReplyDeleteजन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteआप को इतनी खुशियाँ मिले कि रेत से खुशियों के चश्मे झरने लगें।
आंखों में रेत का समंदर। क्या बात है। आंखों की अपनी सीमा होती है और समंदर असीमित। बहुत सुंदर रचना। कम शब्दों में बड़ी बात।
ReplyDeleteआप ने जो इतनी बड़ी बात कह दी है इतने कम शब्दों में उसके लिए शब्द नहीं हैं.....दिल में घर कर गयी आपकी ये रचना :)
ReplyDeleteगहन भावों को समाहित करती अति सुन्दर कब्यांजलि.....
ReplyDeleteret me aansoo milker sookh jay whi achha bahne se duniya ki najar padti hai
ReplyDelete