वाह क्या खूब कहा है…………अपनेपन मे तो इंसान कुछ भी सह जाता है फिर चाहे कोई गर्दन भी उतार ले मगर जहां अपनापन खत्म हो जाता है वहाँ कुछ नही बचता सिवाय अजनबियत के…………चंद शब्दो मे गहरी बात कह दी।
अपनों की कही बात की तल्खी ही चोट भी पहुँचाती है और उसकी कड़वाहट कुनैन की तरह इलाज भी करती है ! अजनबियों की बात तो बेअसर होती है चाहे चाशनी में पगी हो या ज़हर में डूबी क्योंकि उसके साथ हित अहित की सच्ची चिंता नहीं जुडी होती ! सुन्दर क्षणिका !
bat bahut sahi hi kahi hai kyonki apanepan ka adhikar alag hota hai aur usamen sab chalta hai. ajnabi bankar jo dooriyan hoti hain ve alag dikhai deti hain.
बिलकुल सही कहा संगीता दी! दिल पे लगने वाले ज़्यादातर ज़ख्म अपनों के दिए होते हैं और तल्ख़ भी अपनों की ही जुबां लगती है!! गैरों से मोहब्बत भी नहीं और तल्खी भी नहीं!!
बहुत सुंदर ,तल्खी जुबां की हो या अपनेपन की ,आहत तो मन ही होता है .... बात " चटख धूप "की हो या "हरसिंगार" की "केसरिया चावल" मन की हांडी में पकाने की चाहत हो या "चवनियाँ ख्यालों की" के खोने की .. बस एक ही तो वजह है इन सबके पीछे .....मन ......अपनापन......लगाव ... कविता छोटी कहने को है, पर प्रभाव छोटे कदापि नहीं .. अच्छा लगता है ऐसी रचनाओ को पढना
yahi fark hai apne aur begaane ka... aap itane kam shabdon mei itne bhaav samet leti hai ki tareef ke liye bahut saare shabd bhi kam lagne lagte hain...
Didi namaste kaisi hain aap? ye baat aapne sahi kahi ki apno ki boli hui baat dil main teer ki tarah chubhti hain, aur yahi baat koi bahar wala kahe to koi farakh nahi padta hain. is jeevan ki haqiqat ko khubsurat aur saral sabdho main aapne baya kiya hain. didi kya aap mujhe kabhi khat likhna chahengi to main apna email id de rahi hun. sheetal.maheshwari1@gmail.com. intezaar rahega aapke khat ka.
गहरे भाव के साथ कम शब्दों में बहुत सुन्दरता से आपने लिखा है ! शानदार प्रस्तुती! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है- http://seawave-babli.blogspot.com/ http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
तल्ख़ जुबां करती है असर जब होता है अपनापन swar ki talkhee asahniya hoti hai jab ho apnaapan , satya ! aparichit man kee talkhee kaa na kabhi kartaa maapan . hraday tantra ko jhankrit karti vichaaraniya bhaavaabhivyakti .
वाह क्या खूब कहा है…………अपनेपन मे तो इंसान कुछ भी सह जाता है फिर चाहे कोई गर्दन भी उतार ले मगर जहां अपनापन खत्म हो जाता है वहाँ कुछ नही बचता सिवाय अजनबियत के…………चंद शब्दो मे गहरी बात कह दी।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत सच है दुःख तो अपनों से ही मिलता है......अजनबी क्या दे सकता है|
ReplyDeleteसही कहा है .....!
ReplyDeleteबहुत सही लिखा आपने .....बेहतरीन
ReplyDeleteअपनों की कही बात की तल्खी ही चोट भी पहुँचाती है और उसकी कड़वाहट कुनैन की तरह इलाज भी करती है ! अजनबियों की बात तो बेअसर होती है चाहे चाशनी में पगी हो या ज़हर में डूबी क्योंकि उसके साथ हित अहित की सच्ची चिंता नहीं जुडी होती ! सुन्दर क्षणिका !
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब कहा है आपने ..।
ReplyDeleteचंद शब्द तीर की भांति भेद गए ह्रदय को
ReplyDeleteअजनबी और अपनेपन का क्या चित्रण किया है आपने वाह
कई जिस्म और एक आह!!!
बहुत सही।
ReplyDeleteसादर
कितने कम शब्दों में किस खूबसूरती से सब कुछ कह गईं आप !
ReplyDeleteतल्ख़ का मतलब बताएं तो समझ आए । खामख्वाह वाह वाह कैसे करें जी ।
ReplyDeleteवाह !!
ReplyDeleteआदमी और कुछ नहीं दे सकता कम से कम बोली तो अच्छी और मीठी दे।
ReplyDeletebahut sunder alfaaj.very nice.
ReplyDeletebat bahut sahi hi kahi hai kyonki apanepan ka adhikar alag hota hai aur usamen sab chalta hai. ajnabi bankar jo dooriyan hoti hain ve alag dikhai deti hain.
ReplyDeleteसभी पाठकों का आभार ..
ReplyDeleteडॉक्टर दराल साहब ,
तल्ख़ का मतलब है कडुवा .. कडवी जुबां
बिलकुल सही कहा संगीता दी!
ReplyDeleteदिल पे लगने वाले ज़्यादातर ज़ख्म अपनों के दिए होते हैं और तल्ख़ भी अपनों की ही जुबां लगती है!! गैरों से मोहब्बत भी नहीं और तल्खी भी नहीं!!
सच कहा...बहुत खूब!
ReplyDeleteसंगीता जी,
ReplyDeleteतल्ख जुबा से बने अपने भी अजनबी
होती न जुबां तल्ख तो अपने सभी होते
भोला-कृष्णा
vah kya khoob kahi.
ReplyDeleteतल्खी में भी अपनापन देख लिया . गैरों की तल्खी से क्या वास्ता . बहूत खूब .
ReplyDeletesahi kaha aapne...aabhar...
ReplyDeleteजब हो गए
ReplyDeleteअजनबी
तो सच ही
तल्खी जाती रही ......
ek kadvi sachchyee to yahi hai.....theek kahtin hain.
कोई शिकवा भी नहीं...कोई शिकायत भी नहीं...अब तुम्हें पहले सी मोहब्बत भी नहीं...
ReplyDeletebahut umdaa....
ReplyDeleteजब हो गए
ReplyDeleteअजनबी
तो सच ही
तल्खी जाती रही .
बहुत बढ़िया..... कम शब्द पर गहरी बात
बहुत कम शब्दों मे बड़ी बात, बेहतरीन।
ReplyDeleteअक्सर यह भी नही हो पता. हमेशा ऐसा ही हो, तो अच्छा हो.
ReplyDeleteबिल्कुल सतसैया के दोहे जैसी सटीक बात. बहुत लाजवाब, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुंदर ,तल्खी जुबां की हो या अपनेपन की ,आहत तो मन ही होता है ....
ReplyDeleteबात " चटख धूप "की हो या "हरसिंगार" की
"केसरिया चावल" मन की हांडी में पकाने की चाहत हो या
"चवनियाँ ख्यालों की" के खोने की ..
बस एक ही तो वजह है इन सबके पीछे .....मन ......अपनापन......लगाव ...
कविता छोटी कहने को है, पर प्रभाव छोटे कदापि नहीं ..
अच्छा लगता है ऐसी रचनाओ को पढना
अपनेपन की सटीक परिभाषा ,बधाई.
ReplyDeletebahut badhiya ,aapka intjaar hai blog par ,kai din ho gaye
ReplyDeleteतल्ख़ जबान सिर्फ अपनों की ही चोट पहुंचती है , जब अजनबी हो गए तो फिर क्या तल्खी ...
ReplyDeleteशानदार !
बहुत ही खूब....
ReplyDeletebahut sahi kaha ...
ReplyDeleteअद्भुत भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसच है, तल्खी अपनेपन से भी उपजती है. जहाँ अपनापन नहीं वहाँ क्रोध भी तो नहीं ही आता.
ReplyDeleteसुंदर रचना.
बेहद खूबसूरत कविता.....और भावपूर्ण भी !
ReplyDeletebehtreen prstuti....
ReplyDeleteकम शब्दों मे गहन भाव ..सुन्दर ....
ReplyDeleteyahi fark hai apne aur begaane ka...
ReplyDeleteaap itane kam shabdon mei itne bhaav samet leti hai ki tareef ke liye bahut saare shabd bhi kam lagne lagte hain...
तल्खी पर खूबसूरत बयान...
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी...
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteजब हो गए अजनवी, तो सच ही तल्खी जाती रही।
क्या कहने
बहुत सुन्दर रचना , बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteजब हो गए
ReplyDeleteअजनबी
तो सच ही
तल्खी जाती रही ..
सही लिखा आपने .....
Didi
ReplyDeletenamaste kaisi hain aap?
ye baat aapne sahi kahi ki apno ki boli hui baat dil main teer ki tarah chubhti hain, aur yahi baat koi bahar wala kahe to koi farakh nahi padta hain.
is jeevan ki haqiqat ko khubsurat aur saral sabdho main aapne baya kiya hain.
didi kya aap mujhe kabhi khat likhna chahengi to main apna email id de rahi hun.
sheetal.maheshwari1@gmail.com.
intezaar rahega aapke khat ka.
संगीता जी अभिवादन सच कहा प्यार रहे मन से तो थोडा सा रूठना थोडा सा तेवर थोडा सा गिला बहुत बड़ा हो जाता है और अपनापन गया तो ...
ReplyDeleteसुन्दर
भ्रमर ५
आपकी इस कविता में तल्खी भी मिठास है....
ReplyDeletesahi baat hai sangeeta ji ,
ReplyDeleteतल्ख़ जुबां ka asar badi mushkil se jaata hai..
ReplyDeleteLagu rachna ke madhyam se badiya prastuti..
बात तो सही है...
ReplyDeleteगहरे भाव के साथ कम शब्दों में बहुत सुन्दरता से आपने लिखा है ! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
कम शब्द, गहरे भाव... आपकी पहचान बन गई है..
ReplyDeleteRespected sister Sangita ji
ReplyDeleteरक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस के पावन पर्वों की हार्दिक मंगल कामनाएं.
Ek haqiqat ko alfaz de diye aapne.
ReplyDeleteदेखिये
हुमायूं और रानी कर्मावती का क़िस्सा और राखी का मर्म
How beautifully you have defined The bitterness in tone.
ReplyDeleteआदरणीया संगीता जी आप सब को ढेर सारी शुभकामनाएं इस पावन पर्व रक्षाबंधन पर -
ReplyDeleteआभार प्रोत्साहन हेतु
भ्रमर५
सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
ReplyDeleteस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
क्षणिकाओं में महारथ हासिल है आपको संगीता जी. बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteआज़ादी की सालगिरह मुबारक़ हो.
bahut sundar...
ReplyDeletegahre bhav dukh to apno se hi milta hai
ReplyDeleterachana
तल्ख़ जुबां
ReplyDeleteकरती है असर
जब होता है
अपनापन
कहीं न कहीं
जब हो गए
अजनबी
तो सच ही
तल्खी जाती रही ..
dil ko choo lene wali rachana......aapka abhar.
तल्ख़ जुबां
ReplyDeleteकरती है असर
जब होता है
अपनापन
कहीं न कहीं
जब हो गए
अजनबी
तो सच ही
तल्खी जाती रही ..
dil ko choo lene wali rachana......aapka abhar.
अपने पण में सब कुछ जायज है ... दूरी मिट जाती है
ReplyDeleteसच कहा...बहुत खूब! सुन्दर क्षणिका !
ReplyDeleteसच है कड़वी बातें अपनों से ही कही जातीं हैं .....
ReplyDeleteबहुत खूब कहा दी आपने |
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें आपके लिए !
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteमेरा शौक
http://www.vpsrajput.in
क्या बात है. सच भी है ये. ऐसा ही होता है.
ReplyDeleteतल्ख़ जुबां
ReplyDeleteकरती है असर
जब होता है
अपनापन
swar ki talkhee asahniya hoti hai jab ho apnaapan ,
satya ! aparichit man kee talkhee kaa na kabhi kartaa maapan .
hraday tantra ko jhankrit karti vichaaraniya bhaavaabhivyakti .
vandniy Sangita ji
ReplyDeletevrindaavan men virendra aapka vandan karta hai.
यही सच है, अच्छी प्रस्तुति.....
ReplyDeleteजन लोकपाल के पहले चरण की सफलता पर बधाई.
ReplyDeletebahut khoobsurat abhivyakti....i'm happy to follow your blog.
ReplyDeleteअजनबी बनकर फिर से
ReplyDeleteनयी शुरूआत भी कर सकते हैं
मेरी कविता पुनः में इसे पढें
बहुत अच्छा भाव संप्रेषण है।
जब हो गए
ReplyDeleteअजनबी
तो सच ही
तल्खी जाती रही ..
So true !. Beautifully defined Sangeeta ji.
.
शब्दों का जाल बनाना खूब जानती हैं आप.
ReplyDeleteसत्य कथन..!!
ReplyDeletesirf aaj tak is hakikat ko mahsoos kiya tha ..aapke shabdon ne ise juwan de di..sadar pranam ke sath
ReplyDeletewahh...
ReplyDeleteapki choti si kavita me kitani gahraiya chupi hai
bahut hi sundar likhati hai aap