ख्यालों के समंदर से
निकली एक लहर
भिगो देती है
मेरे ज़िंदगी के साहिल को
और मैं
नम हुयी रेत से
बनाती हूँ
ख़्वाबों के घरौंदे
जिन्हें
हकीकती आफताब
सुखा देता है आकर
और वो फिर
बिखर जाते हैं
सूखी रेत से ....
ख़्वाब देखना अधिक ज़रूरी है. वे बिखरते हैं तो क्या और बन जाते हैं न.
ReplyDeleteउफ़ …………यही फ़र्क होता है ख्वाब मे और हकीकत मे …………हकीकत की मिट्टी नम नही होती।
ReplyDeleteनम हुयी रेत से
ReplyDeleteबनाती हूँ
ख़्वाबों के घरौंदे
यह ख्वाबों के घरौंदे और हम .... बहुत ही अच्छी रचना ।
यानी ख्वाब रात के और समंदर के पास के कभी भी सच नहीं होते हैं..
ReplyDeleteपर उन्हें देखना तो किसी ने छोड़ा नहीं है.. देखेंगे और पूरी करने की कोशिश भी रहेगी...
आभार
तेरे-मेरे बीच पर आपके विचारों का इंतज़ार है
ख्यालों के समंदर से
ReplyDeleteनिकली एक लहर
भिगो देती है
मेरे ज़िंदगी के साहिल को
Kitna pyara,khoobsoorat khayal hai!
शायद यही नियति है इन ख़्वाबों की कि हकीकत का आफताब आकर इन्हें सुखा जाये फिर से बिखर जाने के लिये ! बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति संगीता जी ! मन को गहराई तक मथ गयी ! आभार एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteलहरों का खेल है, घरौदों को समझना होगा।
ReplyDeleteयही तो ख्वाबों की जिंदगी है।
ReplyDeleteसादर
लहरें तो आएगी जाएगी , हम रेत के घरोदे बनाते जायेंगे. हम प्यार में जीते प्यार में मरते जायेंगे .
ReplyDeleteउठ कर गिरना , गिर कर उठाना जीवन की रीत पुरानी है.
ReplyDeleteइन सच्चाइयों को समझना होगा
बहुत भावपूर्ण लिखा है दी.!हम सपने देखना कैसे छोड़ें :)
नम हुई रेत और ख्वाब ...माशाल्लाह , यह हर कोई नहीं बना सकता . और हकीकती आफताब भले ही सूखा डालें उनको , ख्वाब मरते नहीं
ReplyDeleteख़्वाबों के घरौंदे, हकीकती आफताब से हमेशा ढह ही जाते हैं ।
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति ।
ख़्वाबों के घरौंदे
ReplyDeleteजिन्हें
हकीकती आफताब
सुखा देता है आकर
और वो फिर
बिखर जाते हैं
सूखी रेत से ....
Wah !
ख्वाब देखना तो व्यक्ति की फितरत है, देखेगा तभी तो दुनिया में कुछ नया कर पायेगा।
ReplyDeleteयही तो जिन्दगी की सच्चाई है।
ReplyDeletearey to kya aaftab pakka na kare aapke ghronde ko.
ReplyDeletevo use yatharth ki tapish me pakana chaahta hai....jis se kuchh kacchhe khaabo ki rait bikhar jhad jati hai.
gehen soch .
वाह, सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteरामराम.
यह कणिका ... सॉरी क्षणिका जीवन के द्वन्द्वात्मक स्थिति का बहुत ही सूक्षमता से अभिव्यक्त करती है। इसमें जो बिम्ब उकेरे गये हैं हैं वो दीर्घावधि तक मन पर आसर करेंगे।
ReplyDeleteकोई बात नहीं...
ReplyDeleteख्वाब फिर से बुने जा सकते हैं और
रेत पर घरौंदे बार-बार बनाए जा सकते हैं.....
khoobsoorat.....
संगीता दी!
ReplyDeleteऐसा ही होता है जब कोई रिश्तों की लहर प्रेम और दोस्ती के घरौंदे बनाकर चली जाती है हमारे जीवन में.. मगर इन रिश्तों की वास्तविक परीक्षा तो धूप में ही होती है... जो बिखर गया वो नकली था, जो ठहर गया वही सच्चा और मज़बूत रिश्ता है!!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!!
पूरी ज़िन्दगी का सार है...रेत का किला...
ReplyDeletekhwaab sajaate rahiye...........zindagii ka falsafaa
ReplyDeleteख्वाबों के घरौंदे और हकीकी आफताब ...
ReplyDeleteखूबसूरत नज़्म!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
बेहतरीन अभिव्यक्ति ,हर शब्द और हर पंक्ति एक ऊंचाई का अहसास करा रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव भर दिए हैं पोस्ट में........शानदार|
ReplyDeletewaah !
ReplyDeletegazab ki upmaayen hain......wah.
ReplyDeletesundar abhivyakti
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने..
अति सुन्दर.
ReplyDeletewaah... hamesha ki hi tarah ati-sundar...
ReplyDeletekhwaab to hote hi banane aur bigadne ke liye... jab tak ek khwaab tiitega nahi to doosre ke nirmaan kee or kam badhenge hi nahi...
ख्वाब तो ख्वाब होते है....खूबसूरत अभिव्यक्ति ,
ReplyDeletebehtreen prstuti....
ReplyDeleteभिगो देती है
ReplyDeleteमेरे ज़िंदगी के साहिल को
और मैं
नम हुयी रेत से
बनाती हूँ
ख़्वाबों के घरौंदे
ये ख्वाबों के घरोंदे ही हमारे जीने का संबल है चाहे हकीकत के सूरज इन्हें बार बार सुखाते रहें । बहुत ही सुंदर ।
भावनाओं के घरौदें एवं मन की अभिव्यक्ति का स्वरूप बहुत ही अच्छा लगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteख्यालों के समंदर से
ReplyDeleteनिकली एक लहर
भिगो देती है.
ख्वाबों को ख्वाब ही रहने दो. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!!
बहुत ख़ूबसूरत रचना! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गई!
ReplyDeleteलगभग हम सब इन परिस्थितियों से गुज़रे हैं. अनुभव कारगर होते हैं ख्वाब के टूटने और हकीक़त को स्वीकारने में .
ReplyDeleteमैं
ReplyDeleteनम हुयी रेत से
बनाती हूँ
ख़्वाबों के घरौंदे
जिन्हें
हकीकती आफताब
सुखा देता है आकर
और वो फिर
बिखर जाते हैं
सूखी रेत से ....
खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति....
भग्न स्वप्नांच्या तुकड्यांना कवटाळुन बसण्यासाठी मनुष्य जन्माला आलेला नाही. मानवाचं मन केवळ भूतकाळाच्या साखळदंडांनी करकचुन बांधुन ठेवता येत नाही. त्याला भविष्याच्या गरुडपंखांच वरदानही लाभलं आहे. एखादं स्वप्न पहाणं, ते फुलविणं, ते सत्यसृष्टीत उतरावं म्हणुन धडपडणं, त्या धडपडीतला आनंद लुटणं आणि दुर्दैवानं ते स्वप्न भंग पावलं तरी त्याच्या तुकड्यावरुन रक्ताळलेल्या पायांनी दुस-या स्वप्नामागनं धावणं हा मानवी मनाचा धर्म आहे. मनुष्याच्या जीवनाला अर्थ येतो तो यामुळं!! "
ReplyDelete- दादा
वि.स. खांडेकर (अमृतवेल)
और मैं
ReplyDeleteनम हुयी रेत से
बनाती हूँ
ख़्वाबों के घरौंदे
दिल से निकली दिल को छूने वाली बहुत सुन्दर रचना...
ख्यालों के समंदर से
ReplyDeleteनिकली एक लहर
भिगो देती है.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
khoobsurat kashamkash!
ReplyDeletebahut sundar..kuchh ankahe alfajon ko shabd de diye aapne...
ReplyDelete♥
ReplyDeleteआपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
कविता हमेशा की तरह बहुत ख़ूबसूरत है !
ReplyDeleteसाधुवाद और बधाई !
हकीकती आफताब
ReplyDeleteसुखा देता है आकर
और वो फिर
बिखर जाते हैं
सूखी रेत से ..
अक्सर ऐसा ही होता है संगीता जी।
.
सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteआपको नवरात्रि की ढेरों शुभकामनायें.
शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.
ReplyDeleteनवरात्रि पर्व की शुभकामनाएं.
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteख्यालों के समंदर से
ReplyDeleteनिकली एक लहर
भिगो देती है
मेरे ज़िंदगी के साहिल को ......
सुन्दर अभिव्यक्ति...
आजकल कुछ निजी व्यस्तताओं के कारन ब्लॉग जगत में पर्याप्त समय नहीं दे पा रहा हूँ जिसका मुझे खेद है, बावजूद इसके आपको स:परिवार नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ ,
जय माता दी ...........
आपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
ReplyDeletebahut khoobsurat kavita achchi bhaavon ki abhivyakti.
ReplyDeleteसोचता बहुत हूँ लिखने की पर आपको क्या लिखू
ReplyDeleteमै इस काबिल नहीं की आपको कमेन्ट कर सकूं
आमंत्रण है ब्लॉग में आपको टिप्पणियों के लिए,
शायद फिर आपको लिखने की हिम्मत कर सकू
नवरात्री की शुभकामनाये,बधाई
sangeeta di
ReplyDeleteaapki koi bhi post padh kar main ye sochne par majbuur ho jaati hun ki aapko kya comments dun?
aapki rachna me mai kho si jaati hun.bas yahi likhungi ki aap yun hi gahnta ke saath likhti rahen
aapse bahut kuchh seekhna hai mujhe.
kripya apna sneh yun hi banaaye rahen.
hardik naman
poonam
आदरणीय संगीता जी ...खुबसूरत क्षणिका ...लाजबाब ..होता है अक्सर लेकिन काश ये ख्वाबों का घरोंदा ...असलियत में उतर आये खुबसूरत बन जाए ...सुन्दर भाव प्यारी रचना गजब का रंग दिया मन को छू गयी ...ये ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं .....जय माता दी आप सपरिवार को ढेर सारी शुभ कामनाएं नवरात्रि पर -माँ दुर्गा असीम सुख शांति प्रदान करें
ReplyDeleteथोडा व्यस्तता वश कम मिल पा रहे है सबसे क्षमा करना
भ्रमर ५
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteइस ब्लॉग में पोस्ट होनेवाली आपकी हर रचना एक सूक्ति की तरह होती है ....
ReplyDeleteकुछ शब्दों पूरे जीवन का दर्शन समेटे हुए ...
बहुत सुन्दर कविता !
ReplyDeleteबिखर जाते हैं
ReplyDeleteसूखी रेत से ...
ji shayad sapne vstikta se takra kar aese hi tutte hain
bahut hi sunder
rachana
jab tak saanse hain gharonda to banaya hi jaayega...aisa na ho to jindagi ke khel me kya maja rah jayega...lajabab rachna..sadar pranam ke sath
ReplyDeleteख्वाब हकीकत होकर भी रेत में ही तब्दील हो जाता है.
ReplyDeleteसंगीता जी,
ReplyDeleteअभी यूँ ही ब्लॉग अपडेट्स देख रही थी कि यह खबर मिली. बस आप सब जल्दी से ठीक हो जाईये, यही दुआ करुँगी. बुरा स्वप्न जैसा ही ये मुश्किल पल बस यूँ गायब हो जाये कि फिर कभी याद भी न रहे, यही कामना करती हूँ. बस आप जल्द से जल्द स्वस्थ हो जाईये.
ख़्वाब और हकीकत में फर्क होता ही है!...अति सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteप्रिय संगीता स्वरूप जी,
ReplyDeleteनयी पुरानी हलचल में आज आपके एवं भाई साहव जी के दुर्घटना मे घायल होने का समाचार मिला.....जान कर अत्यंत दुख हुआ...आप दोनों सहित आपके वाहन चालक के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना है।
संगीता स्वरूप जी,
ReplyDeleteनयी पुरानी हलचल .....दुर्घटना में घायल होने का समाचार पा कर स्तब्ध रह गई....
आपके, भाई साहब के तथा वाहन चालक के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की ईश्वर से प्रार्थना है !
wah re sach!!
ReplyDeleteघरौन्दे तो टूटते ही रहते हैं .. पर बनाने वाले भला कब मानते हैं फिर से बनाने में जुट जाते हैं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteये भी कहा जा सकता है ..
दो घरोंदे
दोनों बालू के ....
एक बह गया
तेज़ बरसात में....
एक
बिखर गया
धूप की
तपिश से.....
बेहद सुंदर भावपूर्ण रचना ... सपने ही तो आपने होते है।
ReplyDeleteसुन्दर!
ReplyDeleteकुछ भी स्थायी नहीं...
बिखर ही तो जाता है सब.. रेत की तरह!
bahut khoobsurati se vyakh ahsas...aabhar
ReplyDeleteप्रभावशाली प्रस्तुति
ReplyDeletewah..wah..wah..kya gajab kalpnasheelta hai...aakarshak prastuti....
ReplyDeleteकाफी दिन से हो गए नए पोस्ट के इन्जार में....
ReplyDeleteबेहद सुंदर भावपूर्ण रचना ..
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteऔर वो फिर बिखर जाते है
ReplyDeleteसुखी रेत से ...बहत सम्वेदनशील रचना