बिम्ब अच्छा है लेकिन मरूस्थल में केक्टस में फूल उसकी जीजीविषा के कारण खिलते हैं। महिलाओं में भी यही जीजीविषा होती है। वे रेत से भी नमी लेते हैं और खिले रहते हैं। उन्हें बादलों के पानी की आवश्यकता नहीं होती।
Aaj main kafi dinon baad upasthit hua hain..aapki bhavpurn kavitaon ka rasaswadan karne ke liye.. Koshish rahegi ab se aapki har kavita par apni anubhuti ko yathasambhav shabdon main dhal kar unhen tippani ka prarup de sakun..
Jindgi marubhumi sabki, rahti tab tak hai sada.. Khushiyon ki barish agar na, dekhi hoti hai vahan. Ek kshaan ki bhi khushi ke, phool murjhate nahi.. Gam ke tufaan gar na aakar, joor dikhlate nahi..
वक्त की आँधी उड़ा ले चली उन बादलों को और अब फ़ूल मुरझा गए हैं नमी की कमी से.बहुत अच्छी प्रस्तुति।धन्यवाद संगीता जी ।आपके गीत हमेशा ही सदाबहार होते हैं।
hamesha ki tarah suner choti nazm
ReplyDeletebhn ji bhtrin rchna ke liyen bdhaai .akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteसावन आकर फिर बरसेगा...
ReplyDeleteमरुस्थल सी ज़िंदगी
ReplyDeleteसुंदर शब्द चुने ..... उम्दा रचना
बिम्ब अच्छा है लेकिन मरूस्थल में केक्टस में फूल उसकी जीजीविषा के कारण खिलते हैं। महिलाओं में भी यही जीजीविषा होती है। वे रेत से भी नमी लेते हैं और खिले रहते हैं। उन्हें बादलों के पानी की आवश्यकता नहीं होती।
ReplyDeleteसुभानाल्लाह............बहुत खूबसूरत.....नमी की कमी से........वाह |
ReplyDeletebahut sundar bhaav chipe hain in shabdon me ,bahut achcha likha.
ReplyDeleteवे फिर खिलेंगे।
ReplyDeletebahut sundar kavita... har shabd chun chun kar rakhe gaye hain...
ReplyDeleteehsaason kee nami chahiye inhen ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति बधाई...
ReplyDeleteनई पोस्ट में आपका स्वागत है
रेगिस्तान में स्थित नखलिस्तान उसकी जीवन्तता के प्रमाण हैं - फूल फिर-फिर खिलेंगे !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन!
ReplyDeleteमुरझाए फूलों को फिर से खिलना ही होगा।
ReplyDelete----
कल 18/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति,,शब्द योजना लाजवाब..
ReplyDeletejeevan kee yahee
ReplyDeletegatee
kabhee hansaate kabhee rulaatee
sundar prastuti,man kee peedaa darshaatee
उसी प्रकार
ReplyDeleteजीवन म्रत्यु का इंतज़ार ही तो है
जीना है तो लड़ना है
जज्बातों की नमी की अपेक्षा है........
ReplyDeleteChhoti-si nazm kitnee badee baat kah rahee hai!
ReplyDeleteकेक्ट्स तो रेगिस्तान का ही रहवासी हैं ..फिर भी उसे नमी की जरूरत तो पड़ती ही हैं .. अद्भुत !समाजस्य !
ReplyDeleteHi di..
ReplyDeleteAaj main kafi dinon baad upasthit hua hain..aapki bhavpurn kavitaon ka rasaswadan karne ke liye.. Koshish rahegi ab se aapki har kavita par apni anubhuti ko yathasambhav shabdon main dhal kar unhen tippani ka prarup de sakun..
Jindgi marubhumi sabki, rahti tab tak hai sada..
Khushiyon ki barish agar na, dekhi hoti hai vahan.
Ek kshaan ki bhi khushi ke, phool murjhate nahi..
Gam ke tufaan gar na aakar, joor dikhlate nahi..
Shubhkamnaon sahit..
Deepak Shukla..
पर आँखों में आंसुओं की कमी तो नहीं नमी के लिए .
ReplyDeleteघटाओं का तो काम ही आना जाना है...बिना बरसे रह भी नहीं सकतीं .
ReplyDeleteफिर से आएँगी.
चंद पंक्तियों में गहरे भाव ..हमेशा की तरह.
इस बिम्ब-कविता पर अजित गुप्ता जी की टिप्पणी पर ... वाह-वाह कर उठा.
ReplyDeleteकभी-कभी रचना से अधिक टिप्पणी दमदार हो जाती है. कुछ ऐसा ही लगा.
बहुत सुन्दर दी....
ReplyDeleteवक़्त की आँधियों में कुछ पराग भी होंगे...
ये जमी और नमी पाते ही फिर महकने लगेंगे....
सादर...
ना जाने वो नमी कहाँ चली जाती है………………सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteघटा फिर छाएगी मुरझाये फूल फिर से नमी पाकर खिल उठेंगे... सुन्दर रचना
ReplyDeleteबादल बरसेंगे फिर से और नमी भी आएगी , बस जरुरत है मेघ गीत गाते रहने की .
ReplyDeleteबूँद में सागर भरने की अद्भुत क्षमता है आपमें संगीता जी ! बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना है ! मन में सीधे उतरती हुई ! बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
ReplyDeleteये घटा फिर वापस आयगी और बरस बरस के तृप्त करेगी ... ये रीत है जीवन की ... अच्छी रचना है ...
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteमरुथल में फूल मुरझाने का दोष बादल की ओट से, समय को देने का चातुर्य हर किसी के बस का नहीं.
ReplyDeleteगागर में सागर की तरह मुट्ठी में मरुथल समा गया है.अद्भुत.
जब नीर भरी दु:ख की बदली
ही नमी कमी की बात करे.
तब नागफनी गाये मल्हार औ'
अँसुवन जल बरसात करे.
इस कविता को पढ़ने का सही तरीका है बस आँखें बंदकर कापना करना और गुनगुनाना... संगीता दी, बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteवक़्त की आंधी ही उड़ा भी लाएगी बादलों को और मरुस्थल तर हो जाएगा!
ReplyDeleteइस हेतु प्रार्थना के लिए स्वतः ही हाथ जुड़ जाते हैं आपकी कविता पढ़ कर...
चाहत की नमी...और चाहत की कमी...
ReplyDeleteवाह संगीता जी.
behtreen khubusrat rachna abhivaykti.....
ReplyDeleteबिल्कुल नए बिम्ब के साथ मन की अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमरुस्थल में नमी की कमी से पौधों को मुरझाना ही होता है !
ReplyDeleteसुन्दर नवीन बिम्ब !
Bahut sundar....
ReplyDeleteवक्त की आँधी
ReplyDeleteउड़ा ले चली
उन बादलों को
और अब फ़ूल
मुरझा गए हैं
नमी की कमी से.बहुत अच्छी प्रस्तुति।धन्यवाद संगीता जी ।आपके गीत हमेशा ही सदाबहार होते हैं।
Bahut sundar....
ReplyDeleteBahut sundar....
ReplyDeleteवक्त की आंधी वापस उड़ा लाये बादलों को और मरुस्थल तर हो जाए...! इस हेतु प्रार्थना में हाथ स्वतः जुड़ जाते हैं आपकी कविता पढ़ कर!
ReplyDeleteमरुस्थल की बहार और जीवन के उतार चढाव का खूबसूरत वर्णन करती सुन्दर लघु रचना .
ReplyDeleteयही तो कुदरत का नियम है एक फूल गिरता है, तो तब ही चार नए फूल खिलते हैं। कम शब्दों में गहरे भाव लिए खूबसूरत रचना ...आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बिखरे मोतियों में से एक ...!
ReplyDeleteक्या बात है.. इधर वक्त की आँधी
और मेरे तरफ " बेबसी की आँधी "
आकर पढ़े आपका हार्दिक स्वागत है !
very beautiful...
ReplyDeleteमन कभी एक सा नहीं रहता. कभी मरूस्थल बन जाता है कभी नमी बन जाता है. सुंदर रचना.
ReplyDeletedua hai fir se ghatayen chha jayen.
ReplyDeletesunder abhivyakti.
फिर भी नमीं बाकी है कहीं...जो इस रचना की रचना में काम आ गयी...!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कहन शैली और कविता
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत और शानदार रचना ! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ!
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
मेरे नए पोस्ट पर स्वागत है ....
ReplyDeleteछोटी परंतु सारगर्भित नाज़्म
ReplyDeleteबधाई
ghata fir aayengi.....
ReplyDeleteमरुथल ही न हो तो हम प्यास महसूस न कर पाएंगे
ReplyDeleteमरुथल नहो तो हम प्यास महसूस न कर पाएंगे ...............
ReplyDeleteजीवन में नमी की कितनी अहमियत है पर,
ReplyDeleteबहारें फिर भी आती हैं बहारें फिर भी आयेंगी ।
आदरणीय संगीता जी ...बहुत ही सुन्दर प्यारी अभिव्यक्ति ..काश फिर से वक्त की आंधी उन बादलों को इधर का रुख दिखाए
ReplyDeleteभ्रमर ५
bahut sundar...
ReplyDeleteप्यारी रचना है भावों से ओतप्रोत |
ReplyDeleteआशा
Behatreen Bhaav.. :)
ReplyDelete……सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteshakuntala diushyant ki kahani yaad aa gayi...behtarin prastuti..sadar pranam aaur apne blog per aapke ashirwad bristi ki aakancha ke sath
ReplyDeleteवाह,बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ..रिमझिम फिर आएगी बरसात रे मनवा मत हो तू उदास रे मनवा ...
ReplyDeleteमुरझाने नहीं दीजिये....
ReplyDeleteऔर अब फ़ूल
ReplyDeleteमुरझा गए हैं
नमी की कमी से
हाँ दीदी सच में अब वो फूल मुरझा गये हैं सारे के सारे ..कहाँ से लाऊं अब इतनी नमी मैं
प्रभु कृपा बरसे....घाएँ छायें , खोई नमी फिर से बहाल हो...बहुत सुन्दर.
ReplyDeletewww.belovedlife-santosh.blogspot.com
वक़्त की आँधी का क्या भरोसा.
ReplyDeletekam shabdo mei puar abhivyakti...
ReplyDeleteGaharaai se baat kahana to koi aapse seekhe..
ReplyDeleteघटा फिर छायेगी
ReplyDelete