आपके इन घनीभूत भावों में उलझ रहा हूँ... यदि मैं इस भाव को जीता तो क्या लिखता ...
मैं समंदर की भीगी रेत में कुछ देर चल लेना चाहता था... और जब चला तो भीगी रेत में खुद-ब-खुद बन गये पाँव के गहरे निशान और जब उन निशानों को मेरा सुखद एहसास 'घरौंदा' मानकर प्रविष्ट हो गया. तो मुझे भी लगने लगा 'मैं अब गृहस्थी हो गया.'
jab apnepan ki nami milti hain to man fir harabhara gharonda ban jaata hain...aur fir jahan rukhe vyavhaar ki tapish mile to yahi gharonda tut kar bikhar jaata hain. dil ko chune vaali prashtuti.
Rekha Srivastava to me show details 1:32 PM (1 hour ago) बहुत दिन बाद पहुँच पाई हूँ और फिर एक सुंदर सी गीतिका मिली जो अंतर तक छू गयी. इस सुंदर गीतिका के लिए बधाई. (कुछ नेट प्रॉब्लम है इसलिए आपके कमेन्ट बॉक्स में नहीं जा रहा है. )
bhut pyari kavita hae . nirman or srajan ki aadat hae tumhe aansuon ko sahejna khushkiyo men bikhar jana, yahi vo andaj hae jisse tera kayal rkha hae mujhe.......
▬● अच्छा लगा आपकी पोस्ट को देखकर... यह पेज देखकर और भी अच्छा लगा... काफी मेहनत की गयी है इसमें... नव वर्ष की पूर्व संध्या पर आपके लिए सपरिवार शुभकामनायें...
खूबसूरत एहसास.
ReplyDeleteसादर.
'भीगी रेत सी
ReplyDeleteज़रा सी कोशिश'
प्यारे शब्द विम्ब!
सुन्दर प्रविष्टि के लिए बधाई.
ReplyDeleteयही तो बात है, कि नमी लेकर कुछ सृजन कर तो लो, पर तपिश लगाने वालों की कमी नहीं है।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ..
ReplyDeleteजीवन में गढ़ने का नमी ही करती है बिखेरती तपिश ही है....
यथार्थपूर्ण अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर...बधाई|
ReplyDeletephir se ek chaah liye nami ki talaash hai...
ReplyDeleteविचारों की लहरें सशक्त होती हैं।
ReplyDeleteयही बनना बिगड़ना ही तो जिंदगी है ।
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ ।
तपिश और नमी तो जीवन के अभिन्न अंग है , हा तपिश बिखेरने वाले बहुतायत में पाए जाते है.
ReplyDeleteकुछ तपिश भी जरुरी है. सुंदर प्रस्तुति और गज़ब अहसास.
ReplyDeleteकम शब्दों में पूरा जीवन संसार रच देती हैं आप...बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteBehad sundar!
ReplyDeleteमैं
ReplyDeleteसमंदर के साहिल पर
भीगी रेत सी
ज़रा सी कोशिश से
बन जाती हूँ
एक घरौंदा
और फिर
न जाने कौन सी
तपिश से
यूँ ही
बिखर जाती हूँ
यही तो विडम्बना है…………आज शब्द खामोश हैं।
आपके इन घनीभूत भावों में उलझ रहा हूँ... यदि मैं इस भाव को जीता तो क्या लिखता ...
ReplyDeleteमैं
समंदर की भीगी रेत में
कुछ देर चल लेना चाहता था...
और जब चला तो भीगी रेत में
खुद-ब-खुद बन गये पाँव के गहरे निशान
और जब उन निशानों को
मेरा सुखद एहसास
'घरौंदा' मानकर प्रविष्ट हो गया.
तो मुझे भी लगने लगा
'मैं अब गृहस्थी हो गया.'
jab apnepan ki nami milti hain to man fir harabhara gharonda ban jaata hain...aur fir jahan rukhe vyavhaar ki tapish mile to yahi gharonda tut kar bikhar jaata hain.
ReplyDeletedil ko chune vaali prashtuti.
बेहतरीन और आज के परिपेक्ष में सार्थक कविता के लिये मुबारकबाद व आभार्।
ReplyDeletewaah !!
ReplyDeletekya baat hai !!
Banana aur bikharna...sundar bhav
ReplyDeletebadhiya prastuti
www.poeticprakash.com
बहुत खूब आंटी।
ReplyDeleteसादर
सुंदर पंक्तियाँ दी..
ReplyDeleteसादर...
यही तो जिंदगी है...बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteनिर्मिति और विसर्जन की अद्भुत अभिव्यक्ति है संगीता जी ! बहुत सुन्दर भाव हैं और बहुत करीने आपने उन्हें शब्दों में पिरोया है ! अति सुन्दर !
ReplyDelete--
Rekha Srivastava to me
ReplyDeleteshow details 1:32 PM (1 hour ago)
बहुत दिन बाद पहुँच पाई हूँ और फिर एक सुंदर सी गीतिका मिली जो अंतर तक छू गयी. इस सुंदर गीतिका के लिए बधाई. (कुछ नेट प्रॉब्लम है इसलिए आपके कमेन्ट बॉक्स में नहीं जा रहा है. )
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteकोमल एहसास......
ReplyDeleteyahi to ek nazuk se man ki pahchan hai.
ReplyDeleteअदृभुत बिम्ब।
ReplyDeleteयही जीवन का सार है ...जल्दी बनता है ...
ReplyDeleteसंभाल लो ,नही तो उतनी जल्दी ही बिगड जायेगा |शुभकामनाएँ!
आदरणीया संगीता जी बहुत सुन्दर . छविओं ने सब कुछ जता दिया ..यही तो है हमारी जिंदगानी ..कभी धूप कभी छाँव ...
ReplyDeleteभ्रमर ५
हलचल मचाती सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteभावपूर्ण और हृदयस्पर्शी.
आभार.
Khoobsoorat rachana!
ReplyDeleteक्या बोलूं...जाने कितनी बार जिए हैं आपके ये शब्द ..परन्तु अभिव्यक्त करना कभी इतना सहज न था..इतना सहज आपने कर दिखाया.
ReplyDeleteसुंदर पंक्तिया..बधाई....
ReplyDeleteनई पोस्ट में आपका स्वागत है
चंद पंक्तिया और बहुत खुबसूरत भाव अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteयही जीवन का सार है .... बहुत सुन्दर...बधाई|मेरी नई पोस्ट में आपका स्वागत है
ReplyDeleteघरौंदे शायद बिखरने के लिए ही बनते है मैम|
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeletebahot bhawnatmak pangtiyan......
ReplyDeleteवाह! संगीता जी! बहुत खूब लिखा है आपने! ख़ूबसूरत एहसास के साथ सच्चाई बयान किया है आपने !
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब कहा है आपने ...आभार ।
ReplyDeleteahsas jitna khubsurat....utna hi apne bhitar dard samete huye .....aabhar
ReplyDeletebahut gahan jajbaat.
ReplyDeleteआपके ये छोटे मगर गहरे शब्द अक्सर मुझे यहाँ खींच ले आते हैं ....
ReplyDeleteरेत चाहे जैसे भी हो बिखत ही जाती है ... कमाल के भाव लिखे हैं ...
ReplyDeleteसंगीता दी,
ReplyDeleteशब्दों के जाल से परे..कम शब्दों में अथाह संवेदनाएं समेटे!! इसे कहते हैं आपके मूड की कविता ..
शब्दों और चित्रों के माध्यम से गहरी बात को आसानी से कह दिया है - बहुत खूब
ReplyDeleteयही प्रकृति का नियम है।
ReplyDeleteरेत के घरौंदे जो ठहरे...टूटना ही इनकी नियति है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....रेत के घरोंदे...और मानव मन..एक से तो होते हैं..ज़रा सी ठेस लगी और टूट जाते हैं..
ReplyDeleteमन और रेत के घरोंदे में थोड़ी सी भी चोट लगे तो टूट ही जातें है,.....सुंदर पोस्ट ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत एहसास...हम सब अपने एहसास को ले कर कितने नाज़ुक है ...ज़रा सी चोट से टूट कर बिखर जाते है..
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना..
chnad pantiyon men hee jivan ki sacchai ke ghare bhav kitni saralata se kah jaati hain aap :-)ki tariif ke liye shabd bhi nahi milte ...
ReplyDeleteसृजन और विसर्जन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं यही तो कह रही है यह सुंदर क्षणिका ।
ReplyDeleteजीवन रेत सरीखा ही है. भीगता है तो कुछ बन जाता है. सूखता है तो झुर जाता है.
ReplyDeleteGahan prastuti...khubsurat eahsaas..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमेरा शौक
मेरे पोस्ट में आपका इंतजार है,
आज रिश्ता सब का पैसे से
बनाती हूँ घरोंदा बहुत मैं बहुत जतन से ...पर न जाने आँधियों को खबर कैसे है हो जाती |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव |
Bahut Sundar Rachna :)
ReplyDeleteबहुत गहन और सुंदर अभिव्यक्ति...आभार
ReplyDeletebhut pyari kavita hae .
ReplyDeletenirman or srajan ki aadat hae tumhe
aansuon ko sahejna khushkiyo men bikhar jana,
yahi vo andaj hae jisse tera kayal
rkha hae mujhe.......
बहुत खूब कहा है.
ReplyDeleteकल 14/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, मसीहा बनने का संस्कार लिए ....
ReplyDeleteछोटी किन्तु अर्थपूर्ण....
ReplyDeleteनये भावो का एहसास करा देती हैं आप... बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति!
kuch sulah sa gaya dil mein,sunder.
ReplyDeleteकम शब्दों में बड़ी सोच ......
ReplyDeleteआपकी इस माला का हर मोती 'एक से बढ़ के एक' है.
ReplyDeleteहर बार कुछ अलग सी फितरत .... वाह..
छोटा सा प्यारा सा गीत..बहुत अच्छा लगा..बधाई.
ReplyDeleteकविता मे सार है |
ReplyDeletebahut khub.
ReplyDeleteज़रा सी कोशिश से
बन जाती हूँ
एक घरौंदा
और फिर
न जाने कौन सी
तपिश से
यूँ ही
बिखर जाती हूँ
इतने कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह दी आपने..
ReplyDeleteआभार.
एक सुन्दर परिकल्पना!...बधाई!
ReplyDeletejo baar baar toot kar phir ban jaae, uski khoobsurati aur takat ke kya kehne… vo kuch aap jaisa hi ho sakta hai… bahut hi sunder panktiyan :-)
ReplyDeletesundar ahsas,,,sundar prastuti.....
ReplyDeleteघरौंदे बिखर गए ... उफ़! फिर बनेंगे
ReplyDelete▬● अच्छा लगा आपकी पोस्ट को देखकर...
ReplyDeleteयह पेज देखकर और भी अच्छा लगा... काफी मेहनत की गयी है इसमें...
नव वर्ष की पूर्व संध्या पर आपके लिए सपरिवार शुभकामनायें...
मेरे ब्लॉग्स की तरफ भी आयें तो मुझे बेहद खुशी होगी...
[1] Gaane Anjaane | A Music Library (Bhoole Din, Bisri Yaaden..)
[2] Meri Lekhani, Mere Vichar..
.
Bahut sundar kavita
ReplyDeleteSangeeta ji....bahut hi gehri najm hai. Aisa laga jo mere jeevan mei chal raha hai vahi aapne likh daala kuch panktiyon mei.
ReplyDeleteIshwar se aapki khushiyon ki prarthna ke saath,
Shaifali
http://guptashaifali.blogspot.com