Pages

Sunday, 4 December 2011

तपिश





मैं 
समंदर के साहिल पर 
भीगी रेत सी 
ज़रा सी कोशिश से  
बन जाती हूँ 
एक घरौंदा 
और फिर 
न जाने कौन सी  
तपिश से 
यूँ ही 
बिखर जाती हूँ 


80 comments:

  1. खूबसूरत एहसास.

    सादर.

    ReplyDelete
  2. 'भीगी रेत सी
    ज़रा सी कोशिश'
    प्यारे शब्द विम्ब!

    ReplyDelete
  3. सुन्दर प्रविष्टि के लिए बधाई.

    ReplyDelete
  4. यही तो बात है, कि नमी लेकर कुछ सृजन कर तो लो, पर तपिश लगाने वालों की कमी नहीं है।

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सुंदर ..

    जीवन में गढ़ने का नमी ही करती है बिखेरती तपिश ही है....

    ReplyDelete
  6. यथार्थपूर्ण अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर...बधाई|

    ReplyDelete
  7. विचारों की लहरें सशक्त होती हैं।

    ReplyDelete
  8. यही बनना बिगड़ना ही तो जिंदगी है ।
    सुन्दर पंक्तियाँ ।

    ReplyDelete
  9. तपिश और नमी तो जीवन के अभिन्न अंग है , हा तपिश बिखेरने वाले बहुतायत में पाए जाते है.

    ReplyDelete
  10. कुछ तपिश भी जरुरी है. सुंदर प्रस्तुति और गज़ब अहसास.

    ReplyDelete
  11. कम शब्दों में पूरा जीवन संसार रच देती हैं आप...बहुत सुन्दर...

    ReplyDelete
  12. मैं
    समंदर के साहिल पर
    भीगी रेत सी
    ज़रा सी कोशिश से
    बन जाती हूँ
    एक घरौंदा
    और फिर
    न जाने कौन सी
    तपिश से
    यूँ ही
    बिखर जाती हूँ

    यही तो विडम्बना है…………आज शब्द खामोश हैं।

    ReplyDelete
  13. आपके इन घनीभूत भावों में उलझ रहा हूँ... यदि मैं इस भाव को जीता तो क्या लिखता ...

    मैं
    समंदर की भीगी रेत में
    कुछ देर चल लेना चाहता था...
    और जब चला तो भीगी रेत में
    खुद-ब-खुद बन गये पाँव के गहरे निशान
    और जब उन निशानों को
    मेरा सुखद एहसास
    'घरौंदा' मानकर प्रविष्ट हो गया.
    तो मुझे भी लगने लगा
    'मैं अब गृहस्थी हो गया.'

    ReplyDelete
  14. jab apnepan ki nami milti hain to man fir harabhara gharonda ban jaata hain...aur fir jahan rukhe vyavhaar ki tapish mile to yahi gharonda tut kar bikhar jaata hain.
    dil ko chune vaali prashtuti.

    ReplyDelete
  15. बेहतरीन और आज के परिपेक्ष में सार्थक कविता के लिये मुबारकबाद व आभार्।

    ReplyDelete
  16. Banana aur bikharna...sundar bhav

    badhiya prastuti

    www.poeticprakash.com

    ReplyDelete
  17. बहुत खूब आंटी।

    सादर

    ReplyDelete
  18. सुंदर पंक्तियाँ दी..
    सादर...

    ReplyDelete
  19. यही तो जिंदगी है...बहुत सुन्दर...

    ReplyDelete
  20. निर्मिति और विसर्जन की अद्भुत अभिव्यक्ति है संगीता जी ! बहुत सुन्दर भाव हैं और बहुत करीने आपने उन्हें शब्दों में पिरोया है ! अति सुन्दर !

    --

    ReplyDelete
  21. Rekha Srivastava to me
    show details 1:32 PM (1 hour ago)
    बहुत दिन बाद पहुँच पाई हूँ और फिर एक सुंदर सी गीतिका मिली जो अंतर तक छू गयी. इस सुंदर गीतिका के लिए बधाई. (कुछ नेट प्रॉब्लम है इसलिए आपके कमेन्ट बॉक्स में नहीं जा रहा है. )

    ReplyDelete
  22. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति |

    ReplyDelete
  23. कोमल एहसास......

    ReplyDelete
  24. यही जीवन का सार है ...जल्दी बनता है ...
    संभाल लो ,नही तो उतनी जल्दी ही बिगड जायेगा |शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  25. आदरणीया संगीता जी बहुत सुन्दर . छविओं ने सब कुछ जता दिया ..यही तो है हमारी जिंदगानी ..कभी धूप कभी छाँव ...
    भ्रमर ५

    ReplyDelete
  26. हलचल मचाती सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
    भावपूर्ण और हृदयस्पर्शी.

    आभार.

    ReplyDelete
  27. क्या बोलूं...जाने कितनी बार जिए हैं आपके ये शब्द ..परन्तु अभिव्यक्त करना कभी इतना सहज न था..इतना सहज आपने कर दिखाया.

    ReplyDelete
  28. सुंदर पंक्तिया..बधाई....
    नई पोस्ट में आपका स्वागत है

    ReplyDelete
  29. चंद पंक्तिया और बहुत खुबसूरत भाव अभिवयक्ति.....

    ReplyDelete
  30. यही जीवन का सार है .... बहुत सुन्दर...बधाई|मेरी नई पोस्ट में आपका स्वागत है

    ReplyDelete
  31. घरौंदे शायद बिखरने के लिए ही बनते है मैम|

    ReplyDelete
  32. वाह! संगीता जी! बहुत खूब लिखा है आपने! ख़ूबसूरत एहसास के साथ सच्चाई बयान किया है आपने !

    ReplyDelete
  33. वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ...आभार ।

    ReplyDelete
  34. ahsas jitna khubsurat....utna hi apne bhitar dard samete huye .....aabhar

    ReplyDelete
  35. आपके ये छोटे मगर गहरे शब्द अक्सर मुझे यहाँ खींच ले आते हैं ....

    ReplyDelete
  36. रेत चाहे जैसे भी हो बिखत ही जाती है ... कमाल के भाव लिखे हैं ...

    ReplyDelete
  37. संगीता दी,
    शब्दों के जाल से परे..कम शब्दों में अथाह संवेदनाएं समेटे!! इसे कहते हैं आपके मूड की कविता ..

    ReplyDelete
  38. शब्दों और चित्रों के माध्यम से गहरी बात को आसानी से कह दिया है - बहुत खूब

    ReplyDelete
  39. यही प्रकृति का नियम है।

    ReplyDelete
  40. रेत के घरौंदे जो ठहरे...टूटना ही इनकी नियति है.

    ReplyDelete
  41. बहुत सुन्दर....रेत के घरोंदे...और मानव मन..एक से तो होते हैं..ज़रा सी ठेस लगी और टूट जाते हैं..

    ReplyDelete
  42. मन और रेत के घरोंदे में थोड़ी सी भी चोट लगे तो टूट ही जातें है,.....सुंदर पोस्ट ...

    ReplyDelete
  43. बहुत खूबसूरत एहसास...हम सब अपने एहसास को ले कर कितने नाज़ुक है ...ज़रा सी चोट से टूट कर बिखर जाते है..

    अति सुन्दर रचना..

    ReplyDelete
  44. chnad pantiyon men hee jivan ki sacchai ke ghare bhav kitni saralata se kah jaati hain aap :-)ki tariif ke liye shabd bhi nahi milte ...

    ReplyDelete
  45. सृजन और विसर्जन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं यही तो कह रही है यह सुंदर क्षणिका ।

    ReplyDelete
  46. जीवन रेत सरीखा ही है. भीगता है तो कुछ बन जाता है. सूखता है तो झुर जाता है.

    ReplyDelete
  47. Gahan prastuti...khubsurat eahsaas..

    ReplyDelete
  48. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।
    मेरा शौक
    मेरे पोस्ट में आपका इंतजार है,
    आज रिश्ता सब का पैसे से

    ReplyDelete
  49. बनाती हूँ घरोंदा बहुत मैं बहुत जतन से ...पर न जाने आँधियों को खबर कैसे है हो जाती |
    बहुत सुन्दर भाव |

    ReplyDelete
  50. बहुत गहन और सुंदर अभिव्यक्ति...आभार

    ReplyDelete
  51. bhut pyari kavita hae .
    nirman or srajan ki aadat hae tumhe
    aansuon ko sahejna khushkiyo men bikhar jana,
    yahi vo andaj hae jisse tera kayal
    rkha hae mujhe.......

    ReplyDelete
  52. बहुत खूब कहा है.

    ReplyDelete
  53. कल 14/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, मसीहा बनने का संस्‍कार लिए ....

    ReplyDelete
  54. छोटी किन्तु अर्थपूर्ण....

    ReplyDelete
  55. नये भावो का एहसास करा देती हैं आप... बहुत सुन्दर...

    ReplyDelete
  56. सुंदर रचना।
    बेहतरीन प्रस्तुति!

    ReplyDelete
  57. kuch sulah sa gaya dil mein,sunder.

    ReplyDelete
  58. कम शब्दों में बड़ी सोच ......

    ReplyDelete
  59. आपकी इस माला का हर मोती 'एक से बढ़ के एक' है.
    हर बार कुछ अलग सी फितरत .... वाह..

    ReplyDelete
  60. छोटा सा प्यारा सा गीत..बहुत अच्छा लगा..बधाई.

    ReplyDelete
  61. कविता मे सार है |

    ReplyDelete
  62. bahut khub.
    ज़रा सी कोशिश से
    बन जाती हूँ
    एक घरौंदा
    और फिर
    न जाने कौन सी
    तपिश से
    यूँ ही
    बिखर जाती हूँ

    ReplyDelete
  63. इतने कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह दी आपने..

    आभार.

    ReplyDelete
  64. एक सुन्दर परिकल्पना!...बधाई!

    ReplyDelete
  65. jo baar baar toot kar phir ban jaae, uski khoobsurati aur takat ke kya kehne… vo kuch aap jaisa hi ho sakta hai… bahut hi sunder panktiyan :-)

    ReplyDelete
  66. घरौंदे बिखर गए ... उफ़! फिर बनेंगे

    ReplyDelete
  67. ▬● अच्छा लगा आपकी पोस्ट को देखकर...
    यह पेज देखकर और भी अच्छा लगा... काफी मेहनत की गयी है इसमें...
    नव वर्ष की पूर्व संध्या पर आपके लिए सपरिवार शुभकामनायें...

    मेरे ब्लॉग्स की तरफ भी आयें तो मुझे बेहद खुशी होगी...
    [1] Gaane Anjaane | A Music Library (Bhoole Din, Bisri Yaaden..)
    [2] Meri Lekhani, Mere Vichar..
    .

    ReplyDelete
  68. Sangeeta ji....bahut hi gehri najm hai. Aisa laga jo mere jeevan mei chal raha hai vahi aapne likh daala kuch panktiyon mei.

    Ishwar se aapki khushiyon ki prarthna ke saath,
    Shaifali

    http://guptashaifali.blogspot.com

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणियां नयी उर्जा देती हैं....धन्यवाद