once the soul is rejuvenated... hardships can be dealt with heroically:) घूँट घूँट धूप से तृप्त होने की कोमल सी यह तमन्ना... और घूँट घूँट भीतर समाती हुई कविता! बहुत सुन्दर!
बहुत खूब ! घूँट-घूँट धूप के पान के साथ सूर्य की ऊर्जा को आत्मसात कर जीवन के झंझावातों से जूझने की सामर्थ्य बटोर लेने का आपका यह जज़्बा बहुत पसंद आया ! अत्युत्तम !
@ मैंने भी आपकी पंक्तियों से ही अभ्यास किया है, जो मेरा सच है... ______
धूप जो निकली है बारह बजे छत पर... मुझे पिछड़ेपन का एहसास कराने को. ठण्ड से सिकुड़ रहे थे हाथ-पाँव मेरा दुमंजिला मकान भी अपने चारों ओर बने चार और पाँच मंजिले मकानों को देख जड़ियाये खड़ा है.
जब भी आंधी-झंझावात आते हैं. मुझे और मेरे मकान को छोड़ जाते हैं. सारे थपेड़े सारा क्रोध लम्बे-लम्बे बहुमंजलीय मकानों पर निकाल चले जाते हैं.
बहुत सुंदर रचना संगीता जी... इस ब्लॉग पर तो कमाल की रचनाएँ हैं.. पहले ये रचनाएँ न पढ़ पाने का अफ़सोस हो रहा है... तिरसठ की चाह हो या बसंत या वक़्त की आंधी हो या फ़िर आँसू और बारिश...सारी क्षणिकाएं और हाइकू बस बेमिसाल हैं...
और कुनकुनी धूप का तो कोई जवाब ही नहीं.... कहीं गहरे तक मन को छू गयी..
घूँट घूँट धुप को पीना....
ReplyDeleteबहुत खूब दी.... सुन्दर ख़याल...
सादर...
मेरी क्रिसमस.
सूरज की गर्मी आत्मसात करके ज़िन्दगी से जूझने का मनोबल हमेशा रहे
ReplyDeleteonce the soul is rejuvenated... hardships can be dealt with heroically:)
ReplyDeleteघूँट घूँट धूप से तृप्त होने की कोमल सी यह तमन्ना...
और घूँट घूँट भीतर समाती हुई कविता!
बहुत सुन्दर!
बहुत खूब ! घूँट-घूँट धूप के पान के साथ सूर्य की ऊर्जा को आत्मसात कर जीवन के झंझावातों से जूझने की सामर्थ्य बटोर लेने का आपका यह जज़्बा बहुत पसंद आया ! अत्युत्तम !
ReplyDeleteबूँद बूँद घूँट पीना कितनी गर्माहट दे जाता है इस बर्फीले माहौल में।
ReplyDeleteधूप को पीने का विम्ब अच्छा बना है.. बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteकुनकुनाया मन मानो आँधी को ललकार रहा हो..
ReplyDeleteतो फिर मैं
ReplyDeleteझंझावातों की
आंधियां भी जी लूँ .
वाह !!
हमेशा की तरह नवीन विचारों को पढ़ पाने का ख़ूबसूरत एहसास मिला इस ब्लॉग पर आ कर !!
man ki tripti sfurti deti hai...bahut sundar..aabhaar...
ReplyDeleteधूप को घूँट- घूँट पीना बिल्कुल ही अछूती कल्पना है, बहुत सुंदर....
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
dhoop sii gungunii..........
ReplyDeleteआँधियों को जीना कला है जीने की... बिरले ही समझ पाते हैं इसे... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति... आभार
ReplyDelete@ मैंने भी आपकी पंक्तियों से ही अभ्यास किया है, जो मेरा सच है...
ReplyDelete______
धूप जो निकली है
बारह बजे
छत पर...
मुझे पिछड़ेपन का एहसास कराने को.
ठण्ड से सिकुड़ रहे थे हाथ-पाँव
मेरा दुमंजिला मकान भी
अपने चारों ओर बने
चार और पाँच मंजिले मकानों को देख
जड़ियाये खड़ा है.
जब भी आंधी-झंझावात आते हैं.
मुझे और मेरे मकान को छोड़ जाते हैं.
सारे थपेड़े सारा क्रोध
लम्बे-लम्बे बहुमंजलीय मकानों पर निकाल
चले जाते हैं.
दोनो ही प्रयोग सुन्दर और सार्थक है !
ReplyDeleteदिन की धूप ही रात की सर्दी से बचाव करती है ।
ReplyDeleteन पियो तो रिकेट्स हो सकती है ।
sundar panktiyaan
ReplyDeletezazbaa ,sabr aur saahas ho to bhee
jhanjhaavton se paar paayaa paa jaa saktaa hai
आभार ...
ReplyDelete@ प्रतुल जी ,
आपका अभ्यास गजब कर रहा है .. शुक्रिया
कुनकुनी धूप की प्यास कभी नहीं बुझती।
ReplyDeleteजिसके जीवन में धूप भर गया
ReplyDeleteवह हर मुसीबत पार कर गया।
तृप्त हो जाऊं
ReplyDeleteतो फिर मैं
झंझावातों की
आंधियां भी जी लूँ .
सुन्दर !
sundar abhivykti...
ReplyDeleteये घूँट घूँट पी हुई धूप ही जीवन का संबल है.
ReplyDelete४ पंक्तियों में पूरा जीवन समेट दिया.
वाह वाह!...सर्दियों का मौसम और कुनकुनी धुप...मजा आ गया!...बहुत बढ़िया अहसास करवाया आपने संगीता जी!
ReplyDeleteis kunkuni doop ka sunder ehsas. ....badiya prastuti.
ReplyDeleteकबिता छोटी परन्तु भावपूर्ण बहुत सुन्दर प्रभावित किया आपने.
ReplyDeleteतो फिर मैं
ReplyDeleteझंझावातों की
आंधियां भी जी लूँ ............बेहतरीन ....
तृप्त हो जाऊं
ReplyDeleteतो फिर मैं
झंझावातों की
आंधियां भी जी लूँ .very nice expression.
मन होता है कि
ReplyDeleteघूंट घूंट पी लूँ
तृप्त हो जाऊं
तो फिर मैं
झंझावातों की
आंधियां भी जी लूँ .
बेहद गहन विचारो का समावेश्……………सुन्दर भावाव्यक्ति।
वाह...
ReplyDeleteचंद पंक्तियाँ मानों पूरी कथा कह गयीं..
सादर..
कल 27/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
तृप्त हो जाऊं
ReplyDeleteतो फिर मैं
झंझावातों की
आंधियां भी जी लूँ .
सुन्दर !
वाह ...बहुत खूब।
घूंट घूंट पी लूँ
ReplyDeleteतृप्त हो जाऊं
तो फिर मैं
झंझावातों की
आंधियां भी जी लूँ .वाह ...बहुत खूब।
कम शब्दों में बहुत कह जाने की की परंपरा में एक और कड़ी .
ReplyDeleteगहन तथा भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteठण्ड से जिंदगी के दर्द और कुनकुनी धूप सा हौसला ...
ReplyDeleteबेहतरीन !
बहुत सुंदर शायद सूर्य की किरणें ही देती हें नए दिन के साथ धूप लेकर ऊर्जा लेने के लिए और उस बात को सुंदर भावों में ढाला है.
ReplyDeleteबधाई इस सन्देश के लिए.
वाह! कुनकुनी धूप से उर्जा ग्रहण करना अच्छा लगा।
ReplyDeleteसूर्य की उर्जा से जीवन को जीतने की निराली बात कही है आपने सुन्दर रचना ||
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteसुंदर सार्थक रचना,....
ReplyDeleteनई पोस्ट--"काव्यान्जलि"--"बेटी और पेड़"--में click करे.
यही तो हैं दो बूँद ज़िंदगी के... एक कतरा धूप और कितनी बड़ी ताकत मिल जाती है!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, संगीता दी!!
"घूंट घूंट पी लूँ
ReplyDeleteतृप्त हो जाऊं "
और नए साल की शुभ कामनाएं....
गहन अभिव्यक्ति...
ReplyDeletejiwan ki raah saral karne ke liye ye bhi soch uttam hai.
ReplyDeletehar din prerana ban udit hota hai suraj apni rashmiyan bikher kar..
ReplyDeletejiwan jhanjhawaton ko dradta se samna karati sundar rachna..aabhar!
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-741:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
'वाह' इस से न तो कम और न अधिक
ReplyDeleteहतप्रभ हूँ इस सादगी भरे बयान पर
आदरणीय संगीता जी.
ReplyDeleteआपका बहुत आभार मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और मेरी कविताएं पसंद करने लिए....
धन्य हुआ मेरा ब्लॉग..
स्नेह बनाये रखिये
सादर नमन.
धुप की घूंट की दरकार है !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
हमेशा की तरह शानदार गहन अभिव्यक्ति चंद पंक्तियों में ही जीवन का सार लिख दिया आपने आभार...
ReplyDeleteकम शब्दों में बहुत कुछ कहना आपकी खासियत है ...
ReplyDeleteकम शब्द संपूर्ण भाव.
ReplyDeleteधुप की घूँट .. क्या कहने
ReplyDeleteआपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteनववर्ष 2012 की हार्दिक शुभकामनाए..
ReplyDelete--"नये साल की खुशी मनाएं"--
आपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteआभार !
आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को नये साल की ढेर सारी शुभकामनायें !
ReplyDeleteउम्दा रचना!
भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteशुभकामनाएं।
नव वर्ष मंगलमय हो।
क्या बात है!!
ReplyDeleteनव वर्ष पर आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें।
बेहतरीन!!!
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो।
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.
ReplyDeletebeshak......
ReplyDeleteधूप को घूंट घूंट पीना वाह क्या नवीनतम कल्पना है मन करता है सचमुच धूप पी लें ।
ReplyDeleteअति सुंदर ।
bahut khoob suraj ko ghunt ghunt pina kamal ki soch
ReplyDeletebadhai
rachana
Achhi Rachna.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया अभिव्यक्ति रचना अच्छी लगी.....
ReplyDeletenew post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति !...
ReplyDeletekhoobsurat
ReplyDeleteएक अहसास को ख़ूब कहा है आपने.
ReplyDeletesundadr bhavabhiyakti.....ak chhoti kintu prabhavshali rachana ...sadar abhar Sangeeta ji.
ReplyDeletethode se shabdon men bahut kuchh, saadar.
ReplyDeleteसुंदर! धूप पीना! वाह!
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
बहुत सुंदर रचना संगीता जी... इस ब्लॉग पर तो कमाल की रचनाएँ हैं.. पहले ये रचनाएँ न पढ़ पाने का अफ़सोस हो रहा है... तिरसठ की चाह हो या बसंत या वक़्त की आंधी हो या फ़िर आँसू और बारिश...सारी क्षणिकाएं और हाइकू बस बेमिसाल हैं...
ReplyDeleteऔर कुनकुनी धूप का तो कोई जवाब ही नहीं.... कहीं गहरे तक मन को छू गयी..