Pages

Sunday, 25 December 2011

कुनकुनी धूप


 



धूप जो निकली है 
कुनकुनी सी 
मन होता है कि  
घूंट घूंट पी लूँ  
तृप्त हो जाऊं 
तो फिर मैं 
झंझावातों की 
आंधियां भी जी लूँ .


76 comments:

  1. घूँट घूँट धुप को पीना....
    बहुत खूब दी.... सुन्दर ख़याल...
    सादर...

    मेरी क्रिसमस.

    ReplyDelete
  2. सूरज की गर्मी आत्मसात करके ज़िन्दगी से जूझने का मनोबल हमेशा रहे

    ReplyDelete
  3. once the soul is rejuvenated... hardships can be dealt with heroically:)
    घूँट घूँट धूप से तृप्त होने की कोमल सी यह तमन्ना...
    और घूँट घूँट भीतर समाती हुई कविता!
    बहुत सुन्दर!

    ReplyDelete
  4. बहुत खूब ! घूँट-घूँट धूप के पान के साथ सूर्य की ऊर्जा को आत्मसात कर जीवन के झंझावातों से जूझने की सामर्थ्य बटोर लेने का आपका यह जज़्बा बहुत पसंद आया ! अत्युत्तम !

    ReplyDelete
  5. बूँद बूँद घूँट पीना कितनी गर्माहट दे जाता है इस बर्फीले माहौल में।

    ReplyDelete
  6. धूप को पीने का विम्ब अच्छा बना है.. बहुत सुन्दर...

    ReplyDelete
  7. कुनकुनाया मन मानो आँधी को ललकार रहा हो..

    ReplyDelete
  8. तो फिर मैं
    झंझावातों की
    आंधियां भी जी लूँ .

    वाह !!
    हमेशा की तरह नवीन विचारों को पढ़ पाने का ख़ूबसूरत एहसास मिला इस ब्लॉग पर आ कर !!

    ReplyDelete
  9. man ki tripti sfurti deti hai...bahut sundar..aabhaar...

    ReplyDelete
  10. धूप को घूँट- घूँट पीना बिल्कुल ही अछूती कल्पना है, बहुत सुंदर....

    ReplyDelete
  11. बेहतरीन।


    सादर

    ReplyDelete
  12. dhoop sii gungunii..........

    ReplyDelete
  13. आँधियों को जीना कला है जीने की... बिरले ही समझ पाते हैं इसे... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति... आभार

    ReplyDelete
  14. @ मैंने भी आपकी पंक्तियों से ही अभ्यास किया है, जो मेरा सच है...
    ______

    धूप जो निकली है
    बारह बजे
    छत पर...
    मुझे पिछड़ेपन का एहसास कराने को.
    ठण्ड से सिकुड़ रहे थे हाथ-पाँव
    मेरा दुमंजिला मकान भी
    अपने चारों ओर बने
    चार और पाँच मंजिले मकानों को देख
    जड़ियाये खड़ा है.

    जब भी आंधी-झंझावात आते हैं.
    मुझे और मेरे मकान को छोड़ जाते हैं.
    सारे थपेड़े सारा क्रोध
    लम्बे-लम्बे बहुमंजलीय मकानों पर निकाल
    चले जाते हैं.

    ReplyDelete
  15. दोनो ही प्रयोग सुन्दर और सार्थक है !

    ReplyDelete
  16. दिन की धूप ही रात की सर्दी से बचाव करती है ।
    न पियो तो रिकेट्स हो सकती है ।

    ReplyDelete
  17. sundar panktiyaan

    zazbaa ,sabr aur saahas ho to bhee
    jhanjhaavton se paar paayaa paa jaa saktaa hai

    ReplyDelete
  18. आभार ...

    @ प्रतुल जी ,
    आपका अभ्यास गजब कर रहा है .. शुक्रिया

    ReplyDelete
  19. कुनकुनी धूप की प्यास कभी नहीं बुझती।

    ReplyDelete
  20. जिसके जीवन में धूप भर गया
    वह हर मुसीबत पार कर गया।

    ReplyDelete
  21. तृप्त हो जाऊं
    तो फिर मैं
    झंझावातों की
    आंधियां भी जी लूँ .
    सुन्दर !

    ReplyDelete
  22. ये घूँट घूँट पी हुई धूप ही जीवन का संबल है.
    ४ पंक्तियों में पूरा जीवन समेट दिया.

    ReplyDelete
  23. वाह वाह!...सर्दियों का मौसम और कुनकुनी धुप...मजा आ गया!...बहुत बढ़िया अहसास करवाया आपने संगीता जी!

    ReplyDelete
  24. is kunkuni doop ka sunder ehsas. ....badiya prastuti.

    ReplyDelete
  25. कबिता छोटी परन्तु भावपूर्ण बहुत सुन्दर प्रभावित किया आपने.

    ReplyDelete
  26. तो फिर मैं
    झंझावातों की
    आंधियां भी जी लूँ ............बेहतरीन ....

    ReplyDelete
  27. तृप्त हो जाऊं
    तो फिर मैं
    झंझावातों की
    आंधियां भी जी लूँ .very nice expression.

    ReplyDelete
  28. मन होता है कि
    घूंट घूंट पी लूँ
    तृप्त हो जाऊं
    तो फिर मैं
    झंझावातों की
    आंधियां भी जी लूँ .
    बेहद गहन विचारो का समावेश्……………सुन्दर भावाव्यक्ति।

    ReplyDelete
  29. वाह...
    चंद पंक्तियाँ मानों पूरी कथा कह गयीं..
    सादर..

    ReplyDelete
  30. कल 27/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  31. तृप्त हो जाऊं
    तो फिर मैं
    झंझावातों की
    आंधियां भी जी लूँ .
    सुन्दर !

    वाह ...बहुत खूब।

    ReplyDelete
  32. घूंट घूंट पी लूँ
    तृप्त हो जाऊं
    तो फिर मैं
    झंझावातों की
    आंधियां भी जी लूँ .वाह ...बहुत खूब।

    ReplyDelete
  33. कम शब्दों में बहुत कह जाने की की परंपरा में एक और कड़ी .

    ReplyDelete
  34. गहन तथा भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  35. ठण्ड से जिंदगी के दर्द और कुनकुनी धूप सा हौसला ...
    बेहतरीन !

    ReplyDelete
  36. बहुत सुंदर शायद सूर्य की किरणें ही देती हें नए दिन के साथ धूप लेकर ऊर्जा लेने के लिए और उस बात को सुंदर भावों में ढाला है.
    बधाई इस सन्देश के लिए.

    ReplyDelete
  37. वाह! कुनकुनी धूप से उर्जा ग्रहण करना अच्छा लगा।

    ReplyDelete
  38. सूर्य की उर्जा से जीवन को जीतने की निराली बात कही है आपने सुन्दर रचना ||

    ReplyDelete
  39. सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  40. यही तो हैं दो बूँद ज़िंदगी के... एक कतरा धूप और कितनी बड़ी ताकत मिल जाती है!!
    बहुत सुन्दर, संगीता दी!!

    ReplyDelete
  41. "घूंट घूंट पी लूँ
    तृप्त हो जाऊं "

    और नए साल की शुभ कामनाएं....

    ReplyDelete
  42. har din prerana ban udit hota hai suraj apni rashmiyan bikher kar..
    jiwan jhanjhawaton ko dradta se samna karati sundar rachna..aabhar!

    ReplyDelete
  43. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-741:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

    ReplyDelete
  44. 'वाह' इस से न तो कम और न अधिक
    हतप्रभ हूँ इस सादगी भरे बयान पर

    ReplyDelete
  45. आदरणीय संगीता जी.
    आपका बहुत आभार मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और मेरी कविताएं पसंद करने लिए....
    धन्य हुआ मेरा ब्लॉग..
    स्नेह बनाये रखिये
    सादर नमन.

    ReplyDelete
  46. धुप की घूंट की दरकार है !
    बहुत सुन्दर !

    ReplyDelete
  47. हमेशा की तरह शानदार गहन अभिव्यक्ति चंद पंक्तियों में ही जीवन का सार लिख दिया आपने आभार...

    ReplyDelete
  48. कम शब्दों में बहुत कुछ कहना आपकी खासियत है ...

    ReplyDelete
  49. कम शब्द संपूर्ण भाव.

    ReplyDelete
  50. धुप की घूँट .. क्या कहने

    ReplyDelete
  51. आपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  52. आपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
    आभार !

    ReplyDelete
  53. आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को नये साल की ढेर सारी शुभकामनायें !
    उम्दा रचना!

    ReplyDelete
  54. भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
    शुभकामनाएं।
    नव वर्ष मंगलमय हो।

    ReplyDelete
  55. क्या बात है!!
    नव वर्ष पर आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  56. नव वर्ष मंगलमय हो।

    ReplyDelete
  57. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  58. धूप को घूंट घूंट पीना वाह क्या नवीनतम कल्पना है मन करता है सचमुच धूप पी लें ।
    अति सुंदर ।

    ReplyDelete
  59. bahut khoob suraj ko ghunt ghunt pina kamal ki soch
    badhai
    rachana

    ReplyDelete
  60. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

    ReplyDelete
  61. बहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया अभिव्यक्ति रचना अच्छी लगी.....
    new post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....

    ReplyDelete
  62. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति !...

    ReplyDelete
  63. एक अहसास को ख़ूब कहा है आपने.

    ReplyDelete
  64. sundadr bhavabhiyakti.....ak chhoti kintu prabhavshali rachana ...sadar abhar Sangeeta ji.

    ReplyDelete
  65. thode se shabdon men bahut kuchh, saadar.

    ReplyDelete
  66. सुंदर! धूप पीना! वाह!
    घुघूतीबासूती

    ReplyDelete
  67. बहुत सुंदर रचना संगीता जी... इस ब्लॉग पर तो कमाल की रचनाएँ हैं.. पहले ये रचनाएँ न पढ़ पाने का अफ़सोस हो रहा है... तिरसठ की चाह हो या बसंत या वक़्त की आंधी हो या फ़िर आँसू और बारिश...सारी क्षणिकाएं और हाइकू बस बेमिसाल हैं...

    और कुनकुनी धूप का तो कोई जवाब ही नहीं.... कहीं गहरे तक मन को छू गयी..

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणियां नयी उर्जा देती हैं....धन्यवाद