पीत वसन
उल्लसित है मन
बसंत आया
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श्रीहीन मुख
गरीब का बसंत
रोटी की चाह .
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फूली सरसों
खेतों में हरियाली
खिला बसंत
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भूखे किसान
करते आत्महत्या
बसंत कहाँ ?
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आम आदमी
रोज़ी-रोटी की फ़िक्र
भूला बसंत .
संगीता दी,
ReplyDeleteवसंत का यह रूप आपने ही दिखाया
हमने तो इस रूप से सदा जी चुराया!
आपकी इन हाइकू में अद्भुत कंट्रास्ट है
कहीं वसंत की खुनक है
कहीं आम आदमी का त्रास है!
सुन्दर, आपको वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये !
ReplyDeleteभेद है इसमें गहरा अनंत,
बलशाली,निर्बल का बसंत !
bahut sundar sashakt haiku.
ReplyDeleteअमीरों का कैसा हो बसंत
ReplyDeleteगरीबों का कैसा है बसंत
हाइकु में इसपर सार्थक प्रकाश डाला है|
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
वाह ..बहुत बढिय़ा
ReplyDeleteबसंत की खट्टी -मिट्ठी बाते ,आपके ही बस की बात हैं दी.ऐसा सामंज्यस आपकी लेखनी ही दिखा सकती हैं ..बसंत-उत्सव की हार्दिक शुभकामनाए....
ReplyDeleteAah!
ReplyDeleteबसंत के कई रूप ...
ReplyDeleteश्रीहीन मुख
गरीब का बसंत
रोटी की चाह .
बसंती पर्व की शुभकामनायें| सारगर्भित पोस्ट है इस पर क्या कहूँ , इतनी विभिन्नता और हमारी सोच ये हम कहाँ जा रहे हैं|मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है |
ReplyDeleteसुन्दर हाइकू, बसन्त की ताजगी वाले..
ReplyDeleteसभी हाइकु बहुत अच्छे लगे आंटी।
ReplyDeleteबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
बंसतोत्सव की अनंत शुभकामनाऍं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteआज सरस्वती पूजा निराला जयन्ती
और नज़ीर अकबारबादी का भी जन्मदिवस है।
बसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सुन्दर सच कहूँ या आज का विद्रूप सच...?
ReplyDeleteकही बसंत कही दर्द.. सच दर्शाती रचना...
ReplyDeleteकहीं बसंत बहार , कहीं रोटी की गुहार ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर हाइकु पेश किये हैं ।
बेहतरीन हाइकु... बसंत का स्वागत!
ReplyDeleteकुछ भी पूर्ण नहीं है यहाँ -वसंत भी !
ReplyDeleteबहुत बहुत बढ़िया संगीता जी..
ReplyDeleteसच है कहीं वसंत है तो कही पतझड़ ही है..
आप पर और आपकी लेखनी पर सदा माँ सरस्वती की कृपा बनी रहे.
सादर.
अट्टालिकाओं से लेकर झोपड़ी तक व्याप्त है वसंत।
ReplyDeleteबस चाह अलग है दोनों की।
सुंदर भाव
क्या कहूँ ………गज़ब के हाइकू हैं निशब्द करते और मन को आन्दोलित भी करते।बसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत अच्छी रचना,..
ReplyDeleteवाह!!!!सुंदर कंट्रास्ट ...बसंत का,..बहुत खूब
--26 जनवरी आया है....
आग्रहों से दूर वास्तविक जमीन और अंतर्विरोधों के कई नमूने प्रस्तुत करता है।
ReplyDeleteसमाज की विसंगतियों पर बिलकुल सही एंगिल से प्रकाश डाला है संगीता जी ! बहुत ही प्रभावशाली हाइकू हैं ! वसन्त पंचमी की शुभकामनायें स्वीकार करें !
ReplyDeleteबसंत कहाँ ?
ReplyDeleteसच! ये वेदना कौन समझे!
सुन्दर.....!!बहुत खूब!!
ReplyDeletebasant par haiku achhe lage
ReplyDeleteबहुत मार्मिक ...आम आदमी
ReplyDeleteरोज़ी-रोटी की फ़िक्र
भूला बसंत .
आजकल हाइकू पर मेहरबान हैं दी !..जाहिर है लाजबाब होंगे.
ReplyDeleteवंसत है
ReplyDeleteया कोई संत
रहेगा यह अनंत
मुबारक हो
ReplyDeleteबसंत पंचमी का
शुभ दिवस.
हर हाइकू
पूनम सा सुंदर
मावस भी है.
श्रीहीन मुख
ReplyDeleteरोटी की चाह
गरीब का कैसा वसंत !
सबकी अपनी अपनी पीडाएं ...
बेहतरीन अभिव्यक्ति !
प्यारे हाइकु
ReplyDeleteबधाई वसंत की
खूब लिखा है
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteआज चर्चा मंच पर देखी |
बहुत बहुत बधाई ||
भूखे किसान
ReplyDeleteकरते आत्महत्या
बसंत कहाँ ?
हृदयस्पर्शी हाइकु.....सच उनके लिए कैसा बसंत ..?
वसंत के के दोरंग.... कहीं खिला तो कहीं मुरझाया...
ReplyDeleteसत्य वचन |
ReplyDeleteगरीबो के लिए कैसा वसंत ?
दो रूप स्पस्ट कर दिए है आपने
वसंत के..
बेहतरीन
अच्छे हाइकू। बधाई।
ReplyDeleteखूबसूरत बसंती हाइकू ... आम आदमी के लिए क्या बसंत क्या सूखा ...
ReplyDeleteमन को छू जाने वाली रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
हर तरफ
ReplyDeleteहर व्यक्ति उमगे
ऐसा हो अब की बसंत...
alag-alag roop men vasant......bahot khoobsurat.
ReplyDeleteबहोत अच्छे ।
ReplyDeleteनया ब्लॉग
http://hindidunia.wordpress.com/
vasant ke kitne rang....sab kisi na kisi rang me range hai...sochniy prastuti....
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteअब इसके बाद कुछ रहा नहीं बसंत के बारे में कहने को।
ReplyDeleteश्रीहीन मुख
ReplyDeleteगरीब का बसंत
रोटी की चाह .
bahut khub ....
गहन अर्थ संजोये बहुत सुन्दर हाइकु...
ReplyDeletebasant aapke jeevan me barah mahine chaya rahe aisee hee mangal kamna hai .
ReplyDeleteKya baat hai Sangeetaji!
ReplyDeletezindgi ke kaee rup ek sath dikhaye aap ne, aabhaar....
ReplyDeletenaye blog par aap saadar aamntrit hai,aaiyega....
ReplyDeleteगौ वंश रक्षा मंच
gauvanshrakshamanch.blogspot.com
हर मोसुम सबके लिए एक सा नहीं होता ... इस बात को बहुत ही खूबसूरती से सजाया है आपने
ReplyDeleteइस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें.
ReplyDeletedono roopon ki sateek abhivyakti.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर हाइकु लिखा है आपने ! चित्र भी बढ़िया लगा ! आज के हालत पर सटीक चित्रण !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर हाईकू....
ReplyDeleteदेर से ही सही...
वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये !
फूली सरसों
ReplyDeleteखेतों में हरियाली
खिला बसंत
बहुत खूब ...संगीता जी ....
bahut badhiya....
ReplyDeleteआम आदमी
ReplyDeleteरोज़ी-रोटी की फ़िक्र
भूला बसंत .shi bat.
बहुत ही सुन्दर विचारों की..सुन्दर प्रस्तुति!....
ReplyDeleteमेरा एक मनोरंजक पोस्ट देखिए....
http://arunakapoor.blogspot.in/
वसंत का यह विरोधी स्वर आह !
ReplyDeleteसन् 2012 हाइकु से मेरी भेंट हुई थी..
ReplyDeleteसुन्दर काव्य
१० साल पहले लिखे हाइकु आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, दिखने वाला और महसूस करने वाला । सच दो बसंत तो होता ही है । बहुत सुंदर हाइकु यथार्थ का दृश्य दिखा गए ।
ReplyDeleteवास्तविकता को दर्शाती बहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबेहतरीन हायकू !!
ReplyDeleteवाह !!अंदाज ए बयाँ बेहद खूबसूरत । मेरी जानिब से बेशुमार दाद आओके लिए आदरणीय👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌