आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-02-2021) को "शीतल झरना झरे प्रीत का" (चर्चा अंक- 3985) पर भी होगी। -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' --
...और मन पलाश हो गया ...बहुत सुन्दर रचना👌👌
ReplyDeleteशुक्रिया उषा जी ।
Deleteऔर अब तक दहक रहा - प्रेम,इंतज़ार,ख्वाबों के संग
ReplyDeleteआपके शब्द और रंग भर देते । आभार ।
ReplyDeleteसस्ते में मिल गया पलाश। भर लो अंजुरी। गहरी क्षणिका
ReplyDeleteयहाँ तो अंजुरी भर निकालने में लगे न जाने क्या क्या 😆😆 ।यहाँ तक आने का शुक्रिया ।
ReplyDeleteकम शब्दों में गहरे भाव।
ReplyDeleteआभार शास्त्री जी ।
Deleteसुंदर रचना 🌹🙏🌹
ReplyDeleteआभार शरद जी ।
Deleteआदरणीय/ प्रिय,
ReplyDeleteकृपया निम्नलिखित लिंक का अवलोकन करने का कष्ट करें। मेरे आलेख में आपका संदर्भ भी शामिल है-
मेरी पुस्तक ‘‘औरत तीन तस्वीरें’’ में मेरे ब्लाॅगर साथी | डाॅ शरद सिंह
सादर,
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
और मन पलाश हो गया ।
ReplyDeleteवाह !! सुन्दर अभिव्यक्ति ।
👌👌👌👌👌👌👌
बहुत बहुत शुक्रिया पसंद करने के लिए ।
Deleteमन पलाश होने के लिए बस यही तो करना होता है फिर हर मन का हर मौसम वासंती - वासंती ...
ReplyDeleteशुक्रिया संध्या , मन वासंती करने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़ते ।
Deleteवाह। सुन्दरम।
ReplyDeleteगिरीश जी आपका मेरे ब्लॉग तक आना पुरस्कार से कम नहीं ।आभार ।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-02-2021) को "शीतल झरना झरे प्रीत का" (चर्चा अंक- 3985) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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शुक्रिया शास्त्री जी ।
Deleteगागर में सागर।
ReplyDeleteआभार , देवेंद्र जी
Deleteगागर में सागर।
ReplyDeleteसीखने की बात है ..कसैलापन गया और वसन्त आया , बहुत सुंदर
ReplyDeleteऐसा करना भी कभी कभी ज़रूरी हो जाता है । बहुत शुक्रिया मोनिका ।
Deleteअति उत्तम , लाजवाब रचना, इसके भाव शब्द मन को छू रहे है, नमन संगीता जी बधाई हो
ReplyDeleteज्योति , तहेदिल से शुक्रिया ।
Deleteवाह ! हृदय को खोल देने भर से ही तो प्रेम छलक जाता है
ReplyDeleteकितने ,अच्छे से आपने बात कह दी । आभार अनिता जी ।
Deleteबहुत सुंदर हृदयग्राही कविता
ReplyDeleteआभार , वर्षा जी ।
Deleteयही तो प्रत्यक्ष चमत्कार है । अति सुन्दर भाव ।
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया से हौसलाफजाई हुई ।आभार ।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया अनुराधा जी
Deleteबस मैंने
ReplyDeleteभरे घट से
उलीच दिए थे
दो अंजुर भर
कसैले शब्द ,
और मन
पलाश हो गया ।
मन का पलाश हो जाना ... अहा अप्रतिम ...
सीमा , तुम्हारी ये अहा बहुत कुछ कह गयी । शुक्रिया ।
Deleteभटकते हुए भावों को इन्हीं शब्दों की तलाश थी ..और आपकी अनुपम कृति से मेरा मन भी पलाश हो गया..
ReplyDeleteभावों को ठौर मिले, इससे बढ़िया क्या बात । शुक्रिया जिज्ञासा ।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआभार आलोक जी ।
Deleteशुजरिया ज्योति
ReplyDeleteशुक्रिया ज्योति
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