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Friday, 26 February 2021

और - बसन्त मुरझा गया



सर ए राह 

मुड़ गए थे कदम 
पुराने गलियारों में 
अचानक ही 
मिल गयीं थीं 
पुरानी उदासियाँ 
पूछा उन्होंने 
कैसी हो ? क्या हाल है ? 
मुस्कुरा कर 
कहा मैंने 
मस्तम - मस्त 
बसन्त छाया है ।
सुनते ही इतना 
जमा लिया कब्ज़ा 
उन्होंने मेरे ऊपर 
और -
बसन्त मुरझा गया । 





21 comments:

  1. कहा मैंने
    मस्तम - मस्त
    बसन्त छाया है ।
    सुनते ही इतना
    जमा लिया कब्ज़ा
    उन्होंने मेरे ऊपर
    और -
    बसन्त मुरझा ..
    मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।

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  2. बहुत सुन्दर और सारगर्भित रचना।

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  3. इन उदासियों को मूंह लगाना ही नहीं चाहिए। झिटक दो जहाँ मिलें।

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    1. बस जी छिटक दीं, तुम कहो और न माने ये तो हो नहीं सकता न

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  4. ये उदासी किसी न किसी बहाने दस्तक दे ही देती है..बड़ी बेशर्म है..सुन्दर कृति के लिए हार्दिक शुभकामनाएं..

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    1. सच्ची , बड़ी बेशर्म हैं । सोच कर हँसी आ रही है । शुक्रिया जिज्ञासा । उदासी में भी हँसाने का ।

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  5. लाजवाब, बहुत ही सुंदर रचना संगीता जी, बधाई हो

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज शनिवार 27 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

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  7. वाह!मन को छूती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर

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  8. उफ ! ... उदासियों से मुलाक़ात की कितनी निराली बयानगी !

    साधुवाद आदरणीया 🙏

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  9. शुक्रिया वर्षा जी । आप महसूस कर सकीं ।

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  10. सारगर्भित, विचारणीय, जिंदगी के रंग में खुशियों के साथ उदासियां भी हैं ही, आइए खुशियों बरसाएं और पाएं जय हो

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  11. बहुत ही सुंदर रचना संगीता जी

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  12. बस एक बार ये उदासियाँ दूर से भी मन को को झाँक ले तो मन का हर बंसत मुरझा जाता है...
    गलती मन की है उसने सर आँखों जो बिठा दिया इन उदासियों को...।
    बहुत ही लाजवाब।

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