बहुत खूब लिखा है संगीता जी, प्रेम भरोसे पर निर्भर होता है , भरोसा टूटता है तो दिल भी टूट जाता है, फिर प्यार के लिए सोचना ही पड़ता है, बड़ी सहजता के साथ मन की बात कह गई आपकी ये खूबसूरत रचना , बधाई हो संगीता जी
गुम है मन मेरा तो भला बता कि मैं कैसे तुझसे प्यार करूँ ? ..सच प्यार करना इतना सरल नहीं होता..वो भी जिंदगी से , जो चौबीस घंटे आपके साथ रहती है .. बड़ा मुश्किल है..जिंदगी और प्यार का अफसाना ..
कितना अजीब है न ये दिल और जिन्दगी का रिश्ता...क्यूँ है ऐसा कि दिल के शीशे के दरकते ही जिंदगी में भी उदासीनता आ जाती है ...भावुक मन की कितनी मुश्किलें हैं...बहुत सुन्दर रचना 🌹
बहुत खूब लिखा है संगीता जी,
ReplyDeleteप्रेम भरोसे पर निर्भर होता है , भरोसा टूटता है तो दिल भी टूट जाता है, फिर प्यार के लिए सोचना ही पड़ता है, बड़ी सहजता के साथ मन की बात कह गई आपकी ये खूबसूरत रचना , बधाई हो संगीता जी
कम शब्दों को भी कितनी खूबसूरती से समझ लिया । आभार ज्योति ।
Deleteगुम है मन मेरा
ReplyDeleteतो भला बता कि
मैं कैसे तुझसे
प्यार करूँ ? ..सच प्यार करना इतना सरल नहीं होता..वो भी जिंदगी से , जो चौबीस घंटे आपके साथ रहती है .. बड़ा मुश्किल है..जिंदगी और प्यार का अफसाना ..
सहजता से मन को पढ़ लिया । शुक्रिया जिज्ञासा
Deleteआभार , यशोदा ।
ReplyDeleteछोटी किन्तु समुद्र सी गहरी कविता...
ReplyDeleteबहुत बधाई आदरणीया 🙏
वर्षा जी आभार ।
Deleteकम शब्दों में बहुत कुछ व्यक्त करती सुंदर रचना।
ReplyDeleteज्योति बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteशुक्रिया
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआभार , शास्त्री जी ।
Deletebhavpoorna abhivyakti
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया
Deleteसुन्दर रचना। अन्तर्मन के शब्द।
ReplyDeleteआभार , गोदियाल जी
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteकम शब्दों में बड़ी बात ।
ReplyDeleteआभार जितेंद्र जी
Deleteटुटा दिल तो किसी से प्यार नहीं कर सकता,गहरी अभिव्यक्ति संगीता जी,सादर नमन आपको
ReplyDeleteशुक्रिया कामिनी ।
ReplyDeleteवाह!संगीता जी ,चंद शब्दों में बहुत गहरी बात कह दी आपनेंं ।
ReplyDeleteशुक्रिया शुभा ।
Deleteवाह!बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसृजन
शुक्रिया अनिता ।
Deleteबहुत ही ख़ूबसूरत पंक्तियां 🌹🙏🌹
ReplyDeleteशरद जी , बहुत बहुत आभार
Deleteजिंदगी कों प्यार करने के लिए दिल नहीं आदत चाहिए आजकल
ReplyDeleteआभार गगन जी
ReplyDeleteअब ऐसी आदत कहाँ से लाऊँ जिसमें दिल शामिल न हो ।
ReplyDeleteशुक्रिया सलाह के लिए 😄😄
कितना अजीब है न ये दिल और जिन्दगी का रिश्ता...क्यूँ है ऐसा कि दिल के शीशे के दरकते ही जिंदगी में भी उदासीनता आ जाती है ...भावुक मन की कितनी मुश्किलें हैं...बहुत सुन्दर रचना 🌹
ReplyDeleteशुक्रिया ,उषा जी ,
ReplyDeleteआप न आई होतीं तो हमारा दिल तो यूँ ही दरक जाता ।
सुन्दर ।
ReplyDeleteआभार अमृता जी .
ReplyDeleteजब प्यार और एतबार करने वाला दिल ही दरक गया तो मन भी गुमनामियों के पास सरक गया...
ReplyDeleteगहन भाव लिए सार्थक सृजन।
अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
ReplyDeletegreetings from malaysia
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