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इतिहास या इति का हास .

>> Sunday, 14 March 2021

जब जब 
मैंने इतिहास के 
पन्ने पढ़े हैं ,
तब तब 
हर खंडहर की नींव में 
मुझे गड़े  मुर्दे मिले हैं ,
नींव पर पड़ते ही 
किसी कुदाल का प्रहार ,
बिलबिला जाते हैं 
अक्सर इतिहासकार ।
असल में 
होता है जितना 
पुराना इतिहास ,
बढ़ती जाती है  
मुर्दों की संख्या , 
क्यों कि जान चुके है 
वो कि 
वो मौन हैं तो 
ज़िंदा हैं , 
ज़िंदा रहने के लिए 
मुर्दा होना ज़रूरी है 
लम्बे इतिहासों में 
अपने  हिसाब से ,
बदल दिया जाता है 
अक्सर इतिहास ,
नई पीढ़ी से इस तरह 
किया जाता है परिहास ।
फिर भले ही चाहे वो 
चार हज़ार दिन का हो ,
या हो चार हज़ार साल का
किसी को नहीं होता 
मलाल इस बात का ,
चकित सी जनता 
समझ नहीं पाती 
इतिहास का सच ,
मान लेती है उसे सही 
दिखता है  सामने जो बस  ।
तो फिर क्यों भला 
उखाड़े जाएँ मुर्दे 
जो गड़े हुए हैं 
हम ज़िंदा भी तो 
मुर्दों जैसे पड़े हुए हैं ।




50 comments:

Udan Tashtari Mon Mar 15, 06:36:00 am  

हर खंडहर की नींव में
मुझे गड़े मुर्दे मिले हैं ,

-हर खंडहर का अपना अतीत है जो साथ नहीं छोड़ता

दिव्या अग्रवाल Mon Mar 15, 07:08:00 am  

व्वाहहहह..
जो गड़े हुए हैं
हम ज़िंदा भी तो
मुर्दों जैसे पड़े हुए हैं ।
सादर नमन...

संगीता स्वरुप ( गीत ) Mon Mar 15, 07:54:00 am  

@ समीर जी ,
बस अतीत पीछा ही तो नहीं छोड़ता ।
आभार , बहुत अरसे बाद आज ब्लॉग पर उड़नतश्तरी आयी है ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Mon Mar 15, 07:55:00 am  

@ दिव्या ,
पसंद करने के लिए शुक्रिया ।

उषा किरण Mon Mar 15, 08:09:00 am  

जिंदा रहने के लिए मुर्दा होना जरूरी है...क्या बात है👌👌

उषा किरण Mon Mar 15, 08:09:00 am  
This comment has been removed by a blog administrator.
संगीता स्वरुप ( गीत ) Mon Mar 15, 08:32:00 am  

आज का वक्त यही कहता है । जो भी कुछ बोलने का प्रयास करता है उसे चुप रहने पर मजबूर कर दिया जाता है ।

जिज्ञासा सिंह Mon Mar 15, 08:37:00 am  

बहुत सही कहा आपने आदरणीय संगीता दीदी, आपकी रचना बहुत कुछ कह गई ।

Sweta sinha Mon Mar 15, 11:13:00 am  

जी दी,
आपकी इस यथार्थवादी रचना ने झकझोर दिया।
और विशेषकर इन पंक्तियों ने उद्वेलित किया-
वो मौन हैं तो
ज़िंदा हैं ,
ज़िंदा रहने के लिए
मुर्दा होना ज़रूरी है
------
बदले गये
इतिहास की दरारों से रिसती
सत्य की गंध
खोल पायें कभी
बंद,सीली हृदय की
जंग लगी खिड़कियां
और झकोरे उजास के
मिटा दे मिथ्या इतिहास
इसी आस में
चलता रहता है
जीवन
----
प्रणाम दी।


Jyoti Dehliwal Mon Mar 15, 12:26:00 pm  

तो फिर क्यों भला
उखाड़े जाएँ मुर्दे
जो गड़े हुए हैं
हम ज़िंदा भी तो
मुर्दों जैसे पड़े हुए हैं
बहुत ही कड़वी सच्चाई व्यक्त करती रचना, संगीता दी।

Dr Varsha Singh Mon Mar 15, 12:30:00 pm  

सुंदर एवं सारगर्भित कविता

सादर,
डॉ. वर्षा सिंह

Kamini Sinha Mon Mar 15, 01:44:00 pm  

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-3-21) को "धर्म क्या है मेरी दृष्टि में "(चर्चा अंक-4007) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा

जितेन्द्र माथुर Mon Mar 15, 02:09:00 pm  

सच को सच ही कहा है आपने ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Mon Mar 15, 02:50:00 pm  

@ जिज्ञासा,
जो बहुत कुछ कहने का प्रयास किया उसकी तह तक पहुँच पायीं , अच्छा लगा ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Mon Mar 15, 02:54:00 pm  

@ श्वेता ,
यथार्थ अक्सर झकझोर ही देता है ।
*****
@@
इतिहास की दरारों से
सत्य गंधाता हुआ
अपने होने का
देता है अक्सर प्रमाण
लेकिन - नहीं सह पाता
कोई भी उस गंध को
जो पड़ा होता है आवरण
उसे ही ढोते हुए
बस चलता रहता है जीवन ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Mon Mar 15, 02:57:00 pm  

@ ज्योति ,
कभी कभी यथार्थ को सामने लाना ज़रूरी हो जाता है भले ही व्व कड़वा ही क्यों न हो ?

संगीता स्वरुप ( गीत ) Mon Mar 15, 02:59:00 pm  

शुक्रिया जितेंद्र जी ।।

सुशील कुमार जोशी Mon Mar 15, 09:58:00 pm  

लाजवाब अभिव्यक्ति।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Mon Mar 15, 10:37:00 pm  

@ सुशील जी ,

बहुत बहुत शुक्रिया .

Sawai Singh Rajpurohit Tue Mar 16, 01:52:00 am  

हम ज़िंदा भी तो
मुर्दों जैसे पड़े हुए हैं

बहुत ही सटीक रचना

ज्योति सिंह Tue Mar 16, 08:03:00 am  

तो फिर क्यों भला
उखाड़े जाएँ मुर्दे
जो गड़े हुए हैं
हम ज़िंदा भी तो
मुर्दों जैसे पड़े हुए हैं
लाजवाब, अति सुंदर , सच्ची बात, सादर नमन

संगीता स्वरुप ( गीत ) Tue Mar 16, 08:45:00 am  

@@ सवाई सिंह जी ,
आभार ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Tue Mar 16, 08:46:00 am  

प्रिय ज्योति ,

बहुत बहुत शुक्रिया ।

Anita Tue Mar 16, 10:43:00 am  

इतिहास पूरा सच नहीं होता, उसे सच बनाया जाता है अपनी अपनी सुविधा और सहूलियत के अनुसार। वाकई गड़े मुर्दे उखाड़ने से कुछ हासिल नहीं होता। चिंतनीय पोस्ट !

संगीता स्वरुप ( गीत ) Tue Mar 16, 11:13:00 am  

अनिता जी ,
सही कहा कि इतिहास पूरा सच नहीं होता , बस बार बार दोहरा कर सच बनाया जाता है ।
आभार ।

Meena Bhardwaj Tue Mar 16, 11:52:00 am  

चिंतनपरक भावाभिव्यक्ति ।

मन की वीणा Tue Mar 16, 05:01:00 pm  

वाह!
धारदार तंज कठोर व्यंग्य दोनों का समन्वय रचना को नई ऊंचाई तक लेकर जा रहा है।
इतिहास !पर करारा प्रहार करती एक अभिनव अभिव्यक्ति
खड़े मुर्दों न उखाड़ो यूं ही चारों ओर मुर्दे घूम रहें हैं।
सस्नेह।

मन की वीणा Tue Mar 16, 05:02:00 pm  

खड़े गड़े पढ़ें।
कृपया।

Kamini Sinha Tue Mar 16, 06:39:00 pm  

बदल दिया जाता है
अक्सर इतिहास ,
नई पीढ़ी से इस तरह
किया जाता है परिहास ।

सच कहा आपने दी,नई पीढ़ी इतिहास के असली रूप से अनभिज्ञ ही है,लाज़बाब सृजन सादर नमन दी

अनीता सैनी Tue Mar 16, 07:00:00 pm  

इतिहास का इतिहास दर्शाती सुंदर रचना।
सादर

संगीता स्वरुप ( गीत ) Tue Mar 16, 07:04:00 pm  

@ मीना जी ,
बहुत शुक्रिया ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Tue Mar 16, 07:07:00 pm  

@ कुसुम जी ,
आपने रचना की नब्ज पकड़ ली ।इतिहास कैसे तोड़ा मरोड़ा जाता है जानते होते हुए भी मुर्दों के समान ही खामोश रहते हैं ।
आपकी प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Tue Mar 16, 07:10:00 pm  

@ प्रिय कामिनी,

असली इतिहास से सच ही हम लोग अनभिज्ञ ही हैं ।बहुत सी बातें पढ़ने और जानने को मिलती हैं तो लगता है कि किस तरह हमें अनजान रखा गया ।
शुक्रिया

संगीता स्वरुप ( गीत ) Tue Mar 16, 07:11:00 pm  

@ अनिता जी ,
वाकई इतिहास का इतिहास ही है ये ।
आभार ।

Anuradha chauhan Tue Mar 16, 10:24:00 pm  

बहुत सुंदर रचना

संगीता स्वरुप ( गीत ) Wed Mar 17, 01:45:00 pm  

शुक्रिया अनुराधा ।।

Preeti Mishra Mon Mar 22, 05:56:00 pm  

बहुत सुन्दर रचना

Vocal Baba Fri Mar 26, 07:40:00 am  

इतिहासकारों की खबर लेती रचना। युवा पीढ़ी की विडंबना कि उन्हें सही इतिहास की जानकारी नहीं मिलती। सार्थक सृजन के लिए आपको बधाई। सादर।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Sat Mar 27, 01:24:00 pm  

वीरेंद्र जी ,
स्वागत आपका । सच में विडंबना तो है कि सही जानकारी नहीं मिलती । इतिहास को अपने हिसाब से बदल देते हैं ।शुक्रिया

Amrita Tanmay Thu Apr 01, 01:42:00 pm  

खाल उधेड़ दिया है इतिहास का । बहुत ही सटीक और प्रभावी अंदाज ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Tue Apr 06, 10:20:00 pm  

अमृता जी ,
आप आयीं तो देर से लेकिन कम्माल की टिप्पणी कर दी है ... कमाल ज़रा खींच कर लिखा है :):)

बहुत सा शुक्रिया .

Sheelvrat Mishra Thu Apr 08, 09:55:00 pm  

इतिहास के साथ छेड़छाड़ तो आम बात हो गयी है आजकल...ज्यूँ टाइम मशीन के जरिये वापस जाकर सब कुछ बदलने की तैयारी हो...जगहों का नाम बदलकर उसका पूरा आगे-पीछे बदल देने का निरर्थक प्रयास किया जा रहा है
प्रभावी टिप्पणी!

Sudha Devrani Sun Apr 18, 02:12:00 pm  

तो फिर क्यों भला
उखाड़े जाएँ मुर्दे
जो गड़े हुए हैं
हम ज़िंदा भी तो
मुर्दों जैसे पड़े हुए हैं
सही बात है जब कुछ बोल नहीं सकते कुछ कर नहीं सकते सामने वाला जो दिखाये सच जानकर भी एक झूठ को सच होते देखते रहते हैं और हमारी आँखों के सामने वही झूठ आने वाली पीढ़ी के लिए इतिहास बनता है सच हमारे मौन के कारण हमारे साथ ही दफन हो जाता है...तो हम जीते जी मुर्दे ही हुए न...
लाजवाब सृजन।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Thu Jun 17, 12:26:00 am  

शीलव्रत मिश्र जी ,

आभार आपका ।यूँ ये भी हो सकता है कि जगहों के नामों से कुछ सत्य का एहसास हो ।।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Thu Jun 17, 12:27:00 am  

सुधा जी ,
आप कितनी गहराई से रचना पढ़ कर उसका सत निचोड़ देती हैं । हार्दिक आभार ।

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