खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
इश्क़ तो
खुद है रंगरेज़
रंग देता
मन को
जैसे हो केसर ,
रे मन !
कभी तो
इस रंग के
समंदर में उतर ।
उतर तो जाएँ ... फिर कहीं गहरे उतर गए तो बचाएगा कौन? डूबने का खतरा है रे ...
एक बार डूब जाओ तो बचने की कौन सोचता है 😄😄😄 । और जो पहले बचने की सोचे वो तो शायद उतर ही नहीं सकता । 😆😆
जे बात 😊😊👌👌👌👌
This comment has been removed by a blog administrator.
मुदिता ,ये ... जे बात ... भी जबरदस्त बात है 😄😄😄
ये तो केसरिया रंग में रंग गयी भई ....😍😍😍 कम शब्दों में पूरा फ़लसफ़ा उतार दिया समर्पण का
फलसफा उतारना हो तो पूरा उतारो । खाली हाथ पैर मारने से क्या फायदा । डूबो तो ऐसे कि खुद का पता न रहे । 😆😆😆
समुंदर की गहराई नापने की उत्सुकता मेंएक बार छू लियामचलते लहरों के सीने कोतब से हूँ लापताविस्तृत समुंदर केपाश में आबद्ध :)----बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ दी।सादर।
प्रिय श्वेता ,गहराईयों को ,नापने की ख्वाहिश लापता कर देती है और बाँध देती है मन न जाने किस पाश में । पसंद करने के लिए शुक्रिया । सस्नेह
जो उतरा इस समंदर में वो पार हुआ !
केसरिया रंग यूं चढ़ा जो तेरामन खिलखिला यूं बोला मेराडूबती जा इश्क ए समन्दर मेंआखिर यही तो है जहां तेरा
उषा जी ,या तो पर हुआ या डूब गया 😄😄 .शुक्रिया ,प्यारी टिप्पणी का ।
प्रिय संध्या,ओहो , क्या बात 👌👌मुझे तो लगता जैसे बिना डुबाये मानोगी नहीं 😆😆😆. प्यारी टिप्पणी के लिए शुक्रिया ।
बेहतरीन और लाजवाब भावाभिव्यक्ति । आपके ब्लॉग पर आ कर अभिभूत हो जाता है मन ।
मीना जी ,आप लोगों का स्नेह है । बहुत बहुत शुक्रिया ।
बहुत सुंदर पंक्तियां,इस समय अगर मन इस समंदर में उतर जाय तो क्या कहने ? और चाहिए क्या जीवन के लिए ।
शुक्रिया जिज्ञासा , बस उतरता ही तो नहीं इस रंग में 😄😄
मन इश्क के केसरी रंग के समन्दर में उतरे न उतरेहम आपके भावपूर्ण लेखन में उतरते जा रहे हैंवाह!!!लाजवाब।
शुक्रिया सुधा जी , इश्क़ लेखन से भी हो सकता है । 😄😄😄
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, संगिता दी।
शुक्रिया ज्योति
गजब का रंगरेज़....👌
शुक्रिया पुरुषोत्तम जी ।
बहुत ही सुंदर सृजन।सादर
अति सुगंधित ....
आपकी टिप्पणियां नयी उर्जा देती हैं....धन्यवाद
उतर तो जाएँ ... फिर कहीं गहरे उतर गए तो बचाएगा कौन? डूबने का खतरा है रे ...
ReplyDeleteएक बार डूब जाओ तो बचने की कौन सोचता है 😄😄😄 ।
Deleteऔर जो पहले बचने की सोचे वो तो शायद उतर ही नहीं सकता । 😆😆
जे बात 😊😊👌👌👌👌
DeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
DeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
Deleteमुदिता ,
Deleteये ... जे बात ... भी जबरदस्त बात है 😄😄😄
ये तो केसरिया रंग में रंग गयी भई ....😍😍😍 कम शब्दों में पूरा फ़लसफ़ा उतार दिया समर्पण का
ReplyDeleteफलसफा उतारना हो तो पूरा उतारो । खाली हाथ पैर मारने से क्या फायदा । डूबो तो ऐसे कि खुद का पता न रहे । 😆😆😆
Deleteसमुंदर की
ReplyDeleteगहराई नापने की
उत्सुकता में
एक बार छू लिया
मचलते लहरों के सीने को
तब से हूँ लापता
विस्तृत समुंदर के
पाश में आबद्ध :)
----
बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ दी।
सादर।
प्रिय श्वेता ,
Deleteगहराईयों को ,
नापने की ख्वाहिश
लापता कर देती है
और
बाँध देती है मन
न जाने
किस पाश में ।
पसंद करने के लिए शुक्रिया । सस्नेह
जो उतरा इस समंदर में वो पार हुआ !
ReplyDeleteकेसरिया रंग यूं चढ़ा जो तेरा
Deleteमन खिलखिला यूं बोला मेरा
डूबती जा इश्क ए समन्दर में
आखिर यही तो है जहां तेरा
उषा जी ,
Deleteया तो पर हुआ या डूब गया 😄😄 .
शुक्रिया ,प्यारी टिप्पणी का ।
प्रिय संध्या,
ReplyDeleteओहो , क्या बात 👌👌
मुझे तो लगता जैसे बिना डुबाये मानोगी नहीं 😆😆😆.
प्यारी टिप्पणी के लिए शुक्रिया ।
बेहतरीन और लाजवाब भावाभिव्यक्ति । आपके ब्लॉग पर आ कर अभिभूत हो जाता है मन ।
ReplyDeleteमीना जी ,
Deleteआप लोगों का स्नेह है । बहुत बहुत शुक्रिया ।
बहुत सुंदर पंक्तियां,इस समय अगर मन इस समंदर में उतर जाय तो क्या कहने ? और चाहिए क्या जीवन के लिए ।
ReplyDeleteशुक्रिया जिज्ञासा , बस उतरता ही तो नहीं इस रंग में 😄😄
ReplyDeleteमन इश्क के केसरी रंग के समन्दर में उतरे न उतरे
ReplyDeleteहम आपके भावपूर्ण लेखन में उतरते जा रहे हैं
वाह!!!
लाजवाब।
शुक्रिया सुधा जी ,
Deleteइश्क़ लेखन से भी हो सकता है । 😄😄😄
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, संगिता दी।
ReplyDeleteशुक्रिया ज्योति
Deleteगजब का रंगरेज़....👌
ReplyDeleteशुक्रिया पुरुषोत्तम जी ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
अति सुगंधित ....
ReplyDelete