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Friday, 13 April 2012

निजत्व से विश्वत्व की ओर


मानव 
मन के उच्छ्वास को
शब्दों में पिरो 
विचारों को साध कर 
अनुभव के हलाहल को पी 
अश्रु की स्याही से 
उकेर देता है 
अपनी भावनाओं को 
और हो जाता है 
सृजन कविता का 
फिर भावनाएं 
निजत्व से निकल 
विश्वत्व की ओर 
कर जाती हैं प्रस्थान .

60 comments:

  1. मानव जब विचारों इस तरह साधकर रचता है तो कविता विश्वत्व की और प्रस्थान कर जाती है ..गहन अभिव्यक्ति..

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  2. निजत्व से विश्वत्व की ओर जाना ....ही कविता के सृजन की कसौटी बन जाता है.सुन्दर बात!!

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  3. निजत्व से विश्वत्व की ओर जाना ही सृजन की सार्थकता है..........गहन अभिव्यक्ति...........

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  4. व्यक्ति से विश्व तक।

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  5. सशक्त और प्रभावशाली रचना.....

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  6. अनुभव के हलाहल को पी
    अश्रु की स्याही से
    उकेर देता है
    अपनी भावनाओं को ..sahi nd satik abhiwaykti sangeeta jee....

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  7. निजत्व से निकल
    विश्वत्व की ओर
    कर जाती हैं प्रस्थान........वाह: संगीता जी बहुत सुन्दर भाव उकेरा है....बहुत सुन्दर...

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  8. jo jitnaa chaahe aachman kar le uskaa

    sundar bhaav

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  9. निजत्व से विश्वत्व की तरफ जाते बधुत्व का आधार मिलता है ...

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  10. व्यष्टि से समष्टि की ओर की यात्रा और सृजन की प्रक्रिया का सीधा चित्रण. सुंदर.

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  11. मन के उच्छ्वास को
    शब्दों में पिरो
    विचारों को साध कर
    अनुभव के हलाहल को पी
    अश्रु की स्याही से
    उकेर देता है

    सुन्दर भाव चित्रण !

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  12. फिर भावनाएं
    निजत्व से निकल
    विश्वत्व की ओर
    कर जाती हैं प्रस्थान .…………काश ये बात ये दुनिया समझ पाती ………कौन चाहता है सबका कल्याण आज सब अपने लिये ही सोचते या कहते हैं ये सिर्फ़ ढोंग है कि हम चंद शब्द पर वाह वाही कर देते हैं मगर समग्रता से स्वीकार कब कर पाते हैं जिस दिन सच मे निज से निकल समाज के लिये कुछ करेगा या कहेगा और स्वीकारेगा तभी बदलाव वास्तविक होगा

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  13. baat niklegi to door talak jaayegi
    nijatv se vishvatv ki aur ...bahut umda bhaav ati sundar.

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  14. आज कविता और पाठक के बीच दूरी बढ़ गई है । संवादहीनता के इस माहौल में आपकी यह कविता इस दूरी को पाटने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
    कविता का काम जुड़ना और जोड़ना है यानी निजत्व से विश्वत्व की ओर।

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  15. फिर भावनाएं
    निजत्व से निकल
    विश्वत्व की ओर
    कर जाती हैं प्रस्थान
    अनुपम भाव लिए सार्थक सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट .
    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

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  16. और हो जाता है
    सृजन कविता का
    फिर भावनाएं
    निजत्व से निकल
    विश्वत्व की ओर
    कर जाती हैं प्रस्थान .

    व्यापक दृष्टिमय इस सुन्दर कविता के लिए हार्दिक शुभकामनायें एवं साधुवाद !

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  17. वाह वाह ..भावनाओं का निजता से सार्वजानिक होने तक..
    क्या बात है.गहन अभिव्यक्ति .

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  18. कविता तो भावनाओ का वैश्वीकरण ही है ..सुँदर प्रकटन . आभार .

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  19. स्व से स्वजन होता चिंतन ....
    या हम अर्थशास्त्र वाले कहेंगे ...From Micro to Macro ....छोटी सी कविता गहन बात कह रही है ....!!बहुत अच्छी लगी ये कविता ....!!
    शुभकामनाएं...

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  20. nijta se sarvjanikta tak aate aate kitne dard se guzarna padta hai yeh ek likhne wala hi jaan sakta hai.

    sunder prastuti.

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  21. अनामिका जी की बातों से सहमत हूँ.

    गहन भाव लिए सशक्त रचना.

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  22. फिर भावनाएं
    निजत्व से निकल
    विश्वत्व की ओर
    कर जाती हैं प्रस्थान .
    sundar bat kahi...

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  23. लेखक विश्वत्व की भावना रख कर ही सार्थक रचना कर सकता है , वरना सिर्फ आत्म मुग्धता की स्थिति ही बनी रहे !

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  24. फिर भावनाएं
    निजत्व से निकल
    विश्वत्व की ओर
    कर जाती हैं प्रस्थान .
    बहुत ही बढिया।

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  25. कविता का सर्जन वाकई ऐसे ही होता है.... रचना में अथाह गहराई है....

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  26. सर्वप्रथम बैशाखी की शुभकामनाएँ और जलियाँवाला बाग के शहीदों को नमन!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
    सूचनार्थ!

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  27. Kya gazab likhtee hain aap!

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  28. थोड़ी सी पंक्तियों में आपने कविता की सम्पूर्ण जीवन यात्रा की कहानी कह दी संगीता जी ! बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक रचना ! बहुत खूब !

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  29. संगीता दी,
    कवि के मस्तिष्क की कोख से जन्मी, पाठक के ह्रदय तक की यात्रा का सहज वर्णन इस छोटी सी कविता में.. आप ही कर सकती हैं!!
    प्रणाम!!

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  30. सीमित आत्म से विश्वात्म तक की मनो-यात्रा -
    सुन्दर !

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  31. बहुत बढ़िया प्रस्तुति |
    बधाईयाँ ||

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  32. फिर भावनाएं
    निजत्व से निकल
    विश्वत्व की ओर
    कर जाती हैं प्रस्थान
    शायद विश्वत्व ही तो कविता का लक्ष्य है

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  33. फिर भावनाएं
    निजत्व से निकल
    विश्वत्व की ओर
    कर जाती हैं प्रस्थान

    bahut khoob .... aabhar

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  34. व्‍यष्टि से समष्टि की ओर जाना ही सामाजिकता है।

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  35. कविता की यही विडम्बना है कि उसे अश्रु की स्याही से लिखा जाता है। इसी के चलते,उसका वैश्विक स्वर खोया है।

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  36. कागज़ पर उतरने के बाद न तो भावनाएँ अपनी रहती हैं न शब्द। वे सब के हो जाते हैं। बिल्कुल सही लेकिन जब भावनाएँ उमड़ती हैं तो हाथ स्वत: कागज़-कलम की ओर बढ जाते हैं।
    सुंदर कविता

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  37. एक कलमकार की कलम की सार्थकता इसी में होती है कि वह निजत्व को तज कर विश्वत्व में ही लगा रहे. वह एक समर्थ सन्देश वाहक और प्रभावशाली सन्देश समाज को देता है.

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  38. और हो जाता है
    सृजन कविता का
    फिर भावनाएं
    निजत्व से निकल
    विश्वत्व की ओर
    कर जाती हैं प्रस्थान
    bahut khoob sunder bhavon se saji anubhutiyan
    rachana

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  39. "फिर भावनाएं
    निजत्व से निकल
    विश्वत्व की ओर
    कर जाती हैं प्रस्थान."

    वाह संगीता दी कविता की सार्थकता का प्रमाण प्रस्तुत कर दिया.

    बहुत सुंदर

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  40. शाश्वत सत्य...व्यष्टि से समष्टि ..अति सुन्दर लिखा है आपने..

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  41. हो जाता है
    सृजन कविता का
    फिर भावनाएं
    निजत्व से निकल
    विश्वत्व की ओर
    कर जाती हैं प्रस्थान…



    व्यष्टि से समष्टि ही तो है श्रेष्ठ पथ !
    सुंदर रचना के लिए आभार !


    मंगलकामनाओं सहित…
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  42. फिर भावनाएं
    निजत्व से निकल
    विश्वत्व की ओर
    कर जाती हैं प्रस्थान .
    ...कितने कम शब्दों में अपनी एक रचना के सर्जन से लेकर अमर होने तक की गाथा लिख दी ....सच कविता मुखरित होते ही कवि की अपनी धरोहर नहीं रह जाती ......!!!

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  43. निजत्व से विश्वत्व की ओर... रचना की सार्थकता भी इसी से है . गहरी अभ्व्यक्ति . आभार .

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  44. आपकी कविता की हर एक पंक्ति अपने आप में एक गहन भाव चौपाये होती है इसलिए किसी एक पंक्ति को चुनकर उस अपर कुछ पाना मेरे लिए तो संभव नहींअतः बस इतना ही कह सकती हूँ कि भूषण अंकल कि बात से पूर्णतः सहमत हूँ। :)प्रभावशाली गहन भावव्यक्ति....

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  45. व्यापक सन्देश देती कविता..

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  46. फिर भावनाएं
    निजत्व से निकल
    विश्वत्व की ओर
    कर जाती हैं प्रस्थान .
    ati sundar

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  47. सच है निज से बाहर आ के ही तो विश्वत्व कों पाया जा सकता है ... गहरी अभुभूति ...

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  48. फिर भावनाएं
    निजत्व से निकल
    विश्वत्व की ओर
    कर जाती हैं प्रस्थान .
    कृपया अवलोकन करे ,मेरी नई पोस्ट ''अरे तू भी बोल्ड हो गई,और मै भी'

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  49. बहुत बारीक-सी कहन...मन को छूने वाली...

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  50. भावना रूपी नदी जब उफान पर होती है...तब कुछ कुछ ऐसा ही दृश्य निर्मित होता है!...बहुत सुन्दर कृति!...आभार!

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  51. वाह ....बहुत खूब कितना सुन्दर शब्द समायोजन है

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  52. मंजिल सबकी एक ही है....
    रास्ते अलग अलग हो सकते हैं...!
    सुंदर अभिव्यक्ति...!!

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  53. सुन्दर कविता... छोटी और सारगर्भित...

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  54. गहरी अभुभूति .

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  55. आपकी यह सुन्दर प्रस्तुति इस बार चिरंतन के सृजन/ Creation विशेषांक में ली गयी है . आभार .
    url - sachswapna.blogspot.com

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  56. शब्दों में पिरो
    विचारों को साध कर
    अनुभव के हलाहल को पी
    अश्रु की स्याही से
    उकेर देता है
    अपनी भावनाओं को
    और हो जाता है
    सृजन कविता का

    कविता के सृजन की प्रक्रिया का बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुतीकरण...
    सादर
    मंजु

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