"नज़रें गीली हो गयीं थीं और झील पर जमी बर्फ पिघलने लगी थी ....." वाह ! आँसुओं की गर्मी से यह बर्फ़ पिघली और भाव शब्द रुप में बह पड़े! बहुत सुंदर ! बधाई !
'बर्फ' और 'निजत्व से विश्व्त्व की' और दोनों रचनाये उच्च स्तरीय रहीं . मन तो अब झील क्या ग्लेशियर हो चला है जो अश्रु जल की गुनगुनाहट से लगातार पिघल रहा है .
ऊपर से सख्त हो कर भी बर्फ तो पानी ही है...बहुत खूब...
ReplyDeleteयादों का समंदर मन की भावनाओं में उथल पुथल मचाने में सक्षम है और उसकी गर्मी जमी बर्फ भी.
ReplyDeleteभावना प्रधान क्षणिका. आभार संगीता दी.
जिसमें सबकुछ बह सा जाता है..हम भी...
ReplyDeleteकम शब्दों में बड़ी बात! बहुत खूब!
ReplyDeleteस्नेह का ताप ..सब कुछ पिघलाने की सामर्थ्य रखता है...यह तो केवल बर्फ थी.
ReplyDeleteमन को भारीपन ऐसे ही बह जाता है, सुन्दर कविता।
ReplyDeleteनज़रें गीली
ReplyDeleteहो गयीं थीं
और
झील पर
जमी बर्फ
पिघलने
लगी थी ...
वाह !.. नज़रों का गीला होना और झील पर जमी बर्फ़ का पिघलना... भावोँ का बहुत सुंदर समन्वय ...
बहते हुए खोये रास्ते मिल जाते हैं ...
ReplyDeleteयह उदास शाम जब पिघलकर मन में समा जाती है तो सुनामी उठ जाती है।
ReplyDeleteप्यार की गर्मी पत्थर पिघला देती है फिर ये तो बर्फ है...............
ReplyDeleteसुंदर भाव दी...
सादर.
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
bhavpradhan sundar abhivayati....
ReplyDeleteझील पर जमी बर्फ स्थायी नहीं होती .
ReplyDeleteसंयम रखें तो एक दिन सब ठीक हो जाता है .
अनुपम भाव संयोजित करती हुई अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteDidi namaste
ReplyDeleteman ki udaas jhil ko pighal
jaane dijiye.
sundar abhivyakti.
और
ReplyDeleteझील पर
जमी बर्फ
पिघलने
लगी थी .....बस बर्फ़ का पिघलना जरूरी है …………बेहद उम्दा भावाव्यक्ति।
और
ReplyDeleteझील पर
जमी बर्फ
पिघलने
लगी थी .....बस बर्फ़ का पिघलना जरूरी है …………बेहद उम्दा भावाव्यक्ति।
नजरों के पानी से मन पर जमी बर्फ पिघल ही जाता करती है.
ReplyDeleteगहरे भाव
सुन्दर शब्द
खूबसूरत रचना.
वाह!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,..कम शब्दों अपना प्रभाव छोडती खुबशुरत रचना,..
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
बर्फ है तो पिघलनी ही है.....बस उसके अनुरूप ताप मिले और कोई प्यार से मुट्ठी में बंद कर ले तो भी पिघल जाती है ये बर्फ......!!
ReplyDeleteबहुत खूब आंटी!
ReplyDeleteसादर
कल 27/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
bahut sundar bhav aur abhivyakti.
ReplyDeleteभावों की ऊष्मा किसी भी कठोर-मन बर्फ को पिघलाने में सक्षम है । सुंदर ।
ReplyDeletegeeli nazre to kitna kuchh pighla deti hain...ye to sirf apki hi jami barf thi.
ReplyDeletesunder prastuti.
बर्फ इतना बर्फीला भी तो नहीं होता ... पिघलेगा ही भावनाओं की गर्मी से
ReplyDeleteआदरणीया संगीता जी सुन्दर भाव ..भावनाएं और जज्बात पिघला ही देते हैं पत्थर से कठोर को भी ...
ReplyDeleteजय श्री राधे
भ्रमर ५
जितनी छोटी, उतनी पैनी !
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteवाह ...प्रभावित करते भाव
ReplyDeleteबहुत गहरे भावों में अनुभव की भाप
ReplyDeleteबर्फ को पिघला रहा, शायद संताप
वाह !! क्या बात है ... बहुत खूब !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर संवेदनशील रचना...आभार
ReplyDeleteभावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण . ...बधाई.
ReplyDeleteतुम्हारा प्यार मेरे भीतर है जमी बर्फ- सा !
ReplyDeleteपिघल गया तुम्हारा एहसास पाकर ही नदी- सा !
सर्द -गर्म से ये एहसास ही जीवन की धरोहर है !
बर्फ का पिघलना ही बेहतर है।
ReplyDeleteअब जब पिघल गई बर्फ तो कविता तो बहनी ही थी . हम देर से आये मगर दुरुस्त और सुँदर पढने को मिला .
ReplyDelete"नज़रें गीली
ReplyDeleteहो गयीं थीं
और
झील पर
जमी बर्फ
पिघलने
लगी थी ....."
वाह ! आँसुओं की गर्मी से यह बर्फ़ पिघली और भाव शब्द रुप में बह पड़े!
बहुत सुंदर ! बधाई !
वाह वाह.... अद्भुत
ReplyDelete'बर्फ' और 'निजत्व से विश्व्त्व की' और दोनों रचनाये उच्च स्तरीय रहीं . मन तो अब झील क्या ग्लेशियर हो चला है जो अश्रु जल की गुनगुनाहट से लगातार पिघल रहा है .
ReplyDeletekam shabdon men gaharee baat....
ReplyDeleteबर्फ आँसू की गर्मी से पिघलनी ही थी
ReplyDeleteमन की उदासी कर दी शाम के नाम ,हो गया जीने का कुछ इंतजाम .शाम का मानवीकरण है आपकी इस रचना में .बधाई .
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -
डिमैन्शा : राष्ट्रीय परिदृश्य ,एक विहंगावलोकन
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
सोमवार, 30 अप्रैल 2012
जल्दी तैयार हो सकती मोटापे और एनेरेक्सिया के इलाज़ में सहायक दवा
behtareen rachna ...aapki har rachna mujhe naye chintan kee ed disha deti hai..aapka protsahan bhee mujeh satat prerit karta hai..sadar pranam ke sath
ReplyDeletebehtarin rachna
ReplyDeleteगर्मी के मौसम में बर्फ पर कविता कुछ राहत दे गई.
ReplyDeleteShayad dono me pani hone k karan nigahon ki nami barf pe asar kar gayi........sundar rachna didi.....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमानो,प्रकृति ने भी विस्तार दिया आपकी करूणा को।
ReplyDeleteबेहतरीन भाव संयोजन
ReplyDeleteगहन अर्थ लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति...
निःशब्द ... कुश शब्दों में गहरी बात ...
ReplyDeletedi
ReplyDeletekam shabdon me apni baatoon ko vitaar dena aapki lekhni ka hi kamaal ho sakta hai .
sadar naman ke saath
poonam
कम शब्दों में सुन्दर भाव लेकर अपनी बात बयाँ करती खूबसूरत रचना |
ReplyDeleteगागर में सागर .....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
झील पर जमी बर्फ पिघलने लगी ....अह्हह्ह !!!!!!!!
ReplyDeleteनज़रें गीली
ReplyDeleteहो गयीं थीं
और
झील पर
जमी बर्फ
पिघलने
लगी थी .....
अह्हह्ह ....!!!!