घना सन्नाटा
मौन की चादर में
दोनों लिपटे
न तुम कुछ बोले
न ही मैं कुछ बोली
लब खुलते
गिरह ढीली होती
मन मिलते
कुछ मोती झरते
कुछ दंश हरते ।
गहन घन
छंट जाते पल में
उजली रेखा
भर देती मन में
अनुपम उल्लास ।
तांका में पाँच पंक्तियाँ होती हैं ..... जिनमें वर्णो की संख्या ..... 5-7-5-7-7 होती है ।
गहन घन
ReplyDeleteछंट जाते पल में
उजली रेखा
भर देती मन में
अनुपम उल्लास ।
भाव पुर्ण सुंदर प्रस्तुति,..
my recent post....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
बहुत सुंदर दी..............
ReplyDeleteमात्राओं की बंदिशों के बावजूद भावों को इतनी सुंदरता से व्यक्त करना ..लाजवाब.....
सादर.
बहुत सुंदर लिखा है...ये विधा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है...बधाई !!!
ReplyDeleteवाह बहुत खूबसूरत तांका हैं भावो को खूब पिरोया है
ReplyDeleteदी.......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.....
सब मौन में ही कह डाला
प्रस्तुत है सोनल चौधरी की चार लाईने....
'सुने गौर से कोई कभी तो
औरत की खामोशी को
वो कितना कुछ है कह जाती
बिन कुछ कहे भी'
सादर
यशोदा
टीचर जी :) ... आपके कमाल में और क्या क्या है ? बहुत बढ़िया यह भी ...
ReplyDeleteनपे तुले...लेकिन सुन्दर शब्दों में...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!...बधाई!
ReplyDeleteकम से कम शब्दों में सब कुछ कह देना आपकी खासियत है.
ReplyDeleteइस रचना में भी भाव पूरी तरह परिलक्षित हो रहे हैं.
सुन्दर .
didi aapse jana kya hota hai tanka
ReplyDeletepar jo bhi hota hai... badhiya hai:)
Expression ne sach kaha, bandison ke baad bhi bhaw pyare ubhar ke aaye:)
as always... very nice....
ReplyDeletewww.rahulpoems.blogspot.com
or
http://www.youtube.com/watch?v=z4wd0WzzC_k
आपके सभी ताँका भावपूर्ण हैं संगीता जी । मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ताँका हैं संगीता जी ! गहन भावाभिव्यक्ति है इन चंद पंक्तियों में ! अति उत्तम !
ReplyDeleteबिना बोले ही , मौन सब कुछ कह देता है .
ReplyDeleteसुन्दर भाव .
कविता मुझे अच्छी लगी। अच्छी इसलिए भी लगी कि इसमें समस्या है और समाधान भी।
ReplyDeleteसंवाद बना रहे तो हर समस्या हल हो सकती है, वरना तो गांठ के ऊपर गांठ पड़ने की नौबत आ जाती है।
मौन की भी अपनी एक खासियत और खूबसूरती हुआ करती है गहन भाव आभिव्यक्ति
ReplyDeleteमेरा भी अन्य काव्य-प्रेमियों की तरह मन प्रफुल्लित हुआ.
ReplyDeleteमेरे लिये यह खाँचा नवीन है. भाव को ढालने में इसका प्रयोग आनंद देगा.
आप तो अभ्यस्त हैं इसके.... नौसिखुओं के लिये अभी तो बस 'खिलौना' है.
ऐसे प्रयोग होते रहे तो हम इस ब्लॉग के इर्द-गिर्द मंडराते रहेंगे. :)
एक प्रश्न है :
इन पंक्तियों में तुक तो कहीं नहीं भीड़ रही, फिर इसे 'तांका' क्यों कहते हैं? :)
क्या कवि इस स्टाइल में कहकर कोई 'टांका' तो नहीं भिड़ाता? :)
सोचता हूँ शायद, भावों की सिलाई करते हुए एक समान दूरी पर [५-७, ५-७,७] अल्पविरामों को टांकने के कारण ही इसका नाम 'तांका' पड़ा है.
कुछ भी हो सकता है... मैं तो केवल अनुमान लगा-लगाकर खुश हो रहा हूँ... यही तो है नौसिखुओं का खेल. :)
bahut hi gahan abhiwayakti....
ReplyDeleteप्रतुल जी ,
ReplyDeleteअब ये टांका भिड़ रहा है या नहीं मुझे नहीं पता ...इस विधा में यह मेरा प्रथम प्रयास ही है ....अब अब जापानी विधा को अपनाएँगे तो कुछ तो भिड़ाएंगे ही न .... कम से कम इसी बहाने से आप ब्लॉग पर आए तो .... शुक्रिया
छन्द व्यक्त शब्दों का रंग..
ReplyDeleteये तांका -झाँका तो बहुत अच्छा लगा . हमने तो पहली बार सुना तांका के बारे में . ये जापानी लोग की कविता हमेशा छुटकी सी क्यू होती है उनकी कद की तरह . वैसे भाव तो उत्तम है .
ReplyDeleteघना सन्नाटा
ReplyDeleteमौन की चादर में
दोनों लिपटे
न तुम कुछ बोले
न ही मैं कुछ बोली..... सब कुछ कह गयी ये पंक्तिया....... बहुत ही खूबसूरती स वयक्त किया है मन के भावो को.......
लब खुलते
ReplyDeleteगिरह ढीली होती
मन मिलते
कुछ मोती झरते
कुछ दंश हरते bahut sunder kavita.....
गहन घन
ReplyDeleteछंट जाते पल में
उजली रेखा
भर देती मन में
अनुपम उल्लास ।
Kitni sukhdayak baat kahee hai aapne!
उजली रेखा
ReplyDeleteभर देती मन में
अनुपम उल्लास ।
अनुपम अनुभूति ...अनुपम कृति ....
बहुत सफल है आपका प्रयास .....
शुभकामनायें .....!
अति सुंदर ....बेहद भावपूर्ण पंक्तियाँ
ReplyDeleteशब्द और मौन दोनों ही कितनी बार व्यक्ति को विषम से विषम परिस्थतियों से सफलतापूर्वक बाहर खींच लाते हैं, यदि विवेकपूर्ण unse kaam liya जाए तो ।
ReplyDeleteमम्मा, is nayi विधा से परिचय कराने के लिए ढेर सारा स्नेह :):)
charan sparsh !! :)
बंदिशों में रह कर लिखना आसान नहीं होता - पर आपने फिर भीबहुत अच्छा लिखा !
ReplyDeleteतांका के साथ ताका झांकी में भावों ने बाजी मारी ...
ReplyDeleteमौन में प्रेम झरता है मगर कभी बहुत अखरता है:)
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteजातिवादी के दंश ने डसा एक लाचार गरीब परिवार को : फेसबुक मुहीम बनी मददगार
नयी विधा से परिचय कराने के लिए शुक्रिया!!कह देने से कई मुश्किलें हल हो जाती हैं
ReplyDeleteगहन घन
ReplyDeleteछंट जाते पल में
उजली रेखा
भर देती मन में
अनुपम उल्लास ।
सुन्दर भाव, मानो कुछ देर पहले गुल हुई बिजली अचानक लौट आई हो !
भाव पुर्ण सुंदर प्रस्तुति,..
ReplyDeleteआपसे अपेक्षा के अनुसार बहुत सधे हुए गेयता में उत्तम अपनी बात पूर्णतः कहने में सक्षम ताँके बहुत बधाई संगीता जी
ReplyDeleteगहन घन
ReplyDeleteछंट जाते पल में
उजली रेखा
भर देती मन में
अनुपम उल्लास ।
.............
भाव -पूर्ण विचलित करती प्रस्तुति गहरी संवेदना से संसिक्त .
लेकिन न कुछ तुम बोले ,
न
मैं ...शानदार तांका...नया अनुभव ,पढने का ,महसूस करने का 'तांका '
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/f/f9/Sati_ceremony.jpg
.कृपया यहाँ भी पधारें -
बुधवार, 9 मई 2012
शरीर की कैद में छटपटाता मनो -भौतिक शरीर
जीवन में बड़ा मकसद रखना दिमाग में होने वाले कुछ ऐसे नुकसान दायक बदलावों को मुल्तवी रख सकता है जिनका अल्जाइमर्स से सम्बन्ध है .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
बुधवार, 9 मई 2012
http://veerubhai1947.blogspot.in/
बुधवार, 9 मई 2012
.
http://veerubhai1947.blogspot.in/
भाव -पूर्ण विचलित करती प्रस्तुति गहरी संवेदना से संसिक्त .
ReplyDeleteलेकिन न कुछ तुम बोले ,
न
मैं ...शानदार तांका...नया अनुभव ,पढने का ,महसूस करने का 'तांका '
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/f/f9/Sati_ceremony.jpg
.कृपया यहाँ भी पधारें -
बुधवार, 9 मई 2012
शरीर की कैद में छटपटाता मनो -भौतिक शरीर
जीवन में बड़ा मकसद रखना दिमाग में होने वाले कुछ ऐसे नुकसान दायक बदलावों को मुल्तवी रख सकता है जिनका अल्जाइमर्स से सम्बन्ध है .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
बुधवार, 9 मई 2012
http://veerubhai1947.blogspot.in/
बुधवार, 9 मई 2012
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http://veerubhai1947.blogspot.in/
तांका...प्रयोग पसंद आया...बातों को कहने की नयी-नयी विधाएं...इजाद हो रहीं हैं...और इसे सबके समक्ष लाने के लिए...शुक्रिया...
ReplyDeleteनई विधा ताँका में प्रथम प्रयास सार्थक.बधाई.
ReplyDeleteदोनों इस कश्मकश में,पहले बोले कौन
सन्नाटा बढ़ता गया, दोनों प्राणी मौन
दोनों प्राणी मौन,अगर लब खुलते थोड़े
ढीली होती गाँठ , झरते मोती निगोड़े
छँटते बादल गहन,विचरते नील गगन में
मन अनुपम उल्लास समा जाता जीवन में
तांका में झाँका ही नहीं ..ठहर भी लिए...
ReplyDeleteन तुम कुछ बोले
ReplyDeleteन ही मैं कुछ बोली
अनबोले फिर भी गुंजायमान रहे होगे
Maafi chaahti hun aap ki post tak pahunchne me deri ho gayi...aajkal garmi aur power-cut ne behal kar rakha hai.
ReplyDeletepratham prayas hi bahut khoobsurat hai aur bhavo ko kahne me saksham.
गहन घन
ReplyDeleteछंट जाते पल में
उजली रेखा
भर देती मन में
अनुपम उल्लास ।
नई विधा ताँका में सार्थक प्रयास .बधाई.
MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
बहुत ग़हन और कोमल अहसास...बहुत सुन्दर प्रस्तुती...
ReplyDeletegahan arth samete hue paktiyan...bahut hi khub....
ReplyDeleteकम शब्दों में बहुत कुछ कहने की क्षमता रखती हैं आपकी रचनाएँ...बहुत सुन्दर और सफल प्रयास रहा ...हमें भी आपसे सीखने मिला...शुभकामनायें ....
ReplyDeleteलब खुलते
ReplyDeleteगिरह ढीली होती
मन मिलते
कुछ मोती झरते
कुछ दंश हरते ।
आदरणीया संगीता जी ..काश ये लव सही समय पर खुल जाएँ सब कुछ स्पष्ट जैसे कारी बदरी के जाने पर ..सुन्दर ..जय श्री राधे
भ्रमर ५
वाह ...बहुत बढिया।
ReplyDeleteबहुत सुंदर तांका हैं संगीता जी... हाइकू और तांका तो आपके बस अद्भुत ही होते हैं...
ReplyDeleteसादर
मंजु
अरे वाह एक और विधा ....आप तो परफेक्ट ....लब खुलते
ReplyDeleteगिरह ढीली होती
मन मिलते
कुछ मोती झरते
कुछ दंश हरते ।
तीनों तांके ....अनुपम ....