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Thursday, 24 May 2012

मन समंदर



लहरें तो आती जाती हैं 
दुख सुख का भी हाल यही 
फिर हम इतना क्यों सोचें  
बस मन समंदर करना है , 

मोती सीपों में मिल जाते 
पर गोता खुद लगाना है 
श्रम से फिर क्यों भागें हम 
बस तन अर्पण  करना है 

 पैसा तो आना जाना है 
 इसके पीछे हैं पागल लोग 
क्यों हम पागल हो जाएँ 
बस मन मंदिर करना है । 


59 comments:

  1. मोती सीपों में मिल जाते
    पर गोता खुद लगाना है

    सच कहा……… खुद ही गोता लगाना होता है

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  2. मोती सीपों में मिल जाते
    पर गोता खुद लगाना है
    श्रम से फिर क्यों भागें हम
    बस तन अर्पण करना है ..

    सच कहा है ... कर्म के इस महत्त्व कों हम आज भूलते जा रहे हैं ... बस तन के कष्ट कों देख रहे हैं .. सिर आनन्द की नहीं सोचते ...

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  3. मोती सीपों में मिल जाते
    पर गोता खुद लगाना है
    बहुत श्रेष्ठ बात कही है ...बहुत सुन्दर रचना संदेशपरक

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  4. दुःख के आते हम अव्यवस्थित हो जाते हैं , क्योंकि सुख आने पर हमें लगता है , अब जो बहार आई है वह जाएगी नहीं ... जबकि सबकुछ क्रमिक है , पर स्वीकार्य नहीं ...
    और किनारे से सबकुछ पाना चाहते हैं

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  5. साथी तो दोनों हैं ........
    सुख भी और दुख भी
    पर कोई माने तब न

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  6. पैसा तो आना जाना है
    इसके पीछे हैं पागल लोग
    क्यों हम पागल हो जाएँ
    बस मन मंदिर करना है ।

    पूर्णतया सहमत । बस यही लोगों की समझ में नहीं आता ।
    सुन्दर रचना ।

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  7. सुख-दु:ख, धन-धान्य आनी जानी चीज है। बस मनुष्य अपनी मनुष्यता पर कायम रहे, यह बड़ी बात है।

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  8. मोती सीपों में मिल जाते
    पर गोता खुद लगाना है
    श्रम से फिर क्यों भागें हम
    बस तन अर्पण करना है

    बिना श्रम किए सब कुछ पा लेने की ख्वाहिश ही
    असंतुष्टि पैदा करती है...बेहतरीन रचना !!

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  9. प्रेरित करती रचना... बहुत सुन्दर...

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  10. कर्म ही धर्म है .....
    बिल्कुल ठीक !
    शुभकामनाएँ !

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  11. पैसा तो आना जाना है
    इसके पीछे हैं पागल लोग
    क्यों हम पागल हो जाएँ
    बस मन मंदिर करना है ।

    बहुत खरी बातें कही हैं आज संगीता जी ! बस ज़रा सा दृष्टिकोण ही तो बदलना है राहें खुद ब खुद आसान हो जायेंगी ! बहुत खूब !

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  12. बिलकुल किनारे बैठ कर मछली नहीं पकड़ी जा सकती.प्रयत्न तो स्वंम ही करने पड़ते हैं.
    सुन्दर प्रेरणादायी रचना.

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  13. सब कुछ आना जाना है, कर्म महत्वपूर्ण है. सुन्दर सन्देश देती रचना... आभार

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  14. मोती सीपों में मिल जाते
    पर गोता खुद लगाना है
    श्रम से फिर क्यों भागें हम
    बस तन अर्पण करना है
    ......बहुत अच्छी लगीं यह पंक्तियाँ।

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  15. मोती सीपों में मिल जाते
    पर गोता खुद लगाना है
    श्रम से फिर क्यों भागें हम
    बस तन अर्पण करना है
    सार्थक सन्देश देते रचना , सीप तक पहुंचने कि लिए डुबकी तो लगानी ही पड़ेगी अगर मोती चाहिए !

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  16. बहुत सही लिखा आपने सुन्दर ..

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  17. समय और समुद्र की लहरें किसी का इंतजार नहीं करतीं इसलिए कर्म में मन को रत रखना चाहिए। कविता के सार्थक भाव मन को आह्लादित करते हैं।

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  18. मोती सीपों में मिल जाते
    पर गोता खुद लगाना है
    श्रम से फिर क्यों भागें हम
    बस तन अर्पण करना है ..
    प्रेरणात्‍मक विचारों का संगम ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति .. आभार ।

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  19. प्रसन्नता बिखेरने के पहले प्रसन्न होना आवश्यक है।

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  20. दीदी,
    माटी के जीवन को कंचन बनाने का सूत्र आपकी इस कविता में सन्निहित है!! अत्यंत प्रेरक!!

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  21. बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति!

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  22. मोती सीपों में मिल जाते
    पर गोता खुद लगाना है
    श्रम से फिर क्यों भागें हम
    बस तन अर्पण करना है ......वाह: संगीता जी बहुत सार्थकऔर सुन्दर रचना.....

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  23. पैसा तो आना जाना है
    इसके पीछे हैं पागल लोग
    क्यों हम पागल हो जाएँ
    बस मन मंदिर करना है । बस इतना ही करलें सभी लोग इस एक जीवन के लिए वही बहुत है....बहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना....

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  24. बढ़िया सन्देश देती रचना...
    बेहतरीन सार्थक प्रस्तुति...

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  25. श्रम से फिर क्यों भागें हम
    संदेश्युक्त और सार्थक रचना

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  26. पैसा तो आना जाना है
    इसके पीछे हैं पागल लोग
    क्यों हम पागल हो जाएँ
    बस मन मंदिर करना है ।

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन पंक्तियाँ,,,,,,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

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  27. सकल पदारथ येही जगमाही ,कर्म हीन नर पावत नहीं . बहुत कुछ सिखाती पंक्तियाँ . सुँदर .

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  28. सच कहा आपने....
    मगर-
    मन मंदिर कर लिया है लोगों ने दी............
    और इन्तेज़ार करते रहते हैं चढावे का!!!!

    अनु

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  29. पैसा तो आना जाना है
    इसके पीछे हैं पागल लोग
    क्यों हम पागल हो जाएँ
    बस मन मंदिर करना है ।
    jivan ko tatolti sundar kavita !

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  30. पैसा तो आना जाना है
    इसके पीछे हैं पागल लोग
    क्यों हम पागल हो जाएँ
    बस मन मंदिर करना है ।

    आजकल सब पैसों के लिए ही पागल हैं ? पर क्या करे हर चीज पैसे से ही आती हैं ..सिर्फ मन का चैन ही हैं जिसे कोई पैसो से नहीं खरीद सकता ....सुंदर मन को छू लेने वाली संवेदनाए हैं

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  31. तन कर्म हेतु और मन मंदिर सा - आपने तो जीवन का रहस्य ही उद्घाटित कर दिया ,अब आगे कहने को बचा ही क्या !

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  32. पैसा आएगा तभी तो जाएगा। इस आने जाने की कसरत ने ही पागल बना रखा है।

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  33. सुन्दर, सार्थक पंक्तियाँ .....

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  34. लहरें तो आती जाती हैं
    दुख सुख का भी हाल यही
    फिर हम इतना क्यों सोचें
    बस मन समंदर करना है ,
    बहुत ख़ूब दी.... :) उम्दा सोच की ,
    उत्तम अभिव्यक्ति.... !! मन समंदर हो जाए .... !!

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  35. di
    bahut hi prerak v sashkt prastuti
    bahut bahut hi achhi lagi
    sadar naman
    poonam

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  36. बस मन ही मंदिर हो जाए तो सब कुछ गौण ही ! समंदर की सीप में मोती मिलना ही है!
    श्रेष्ठ विचार !

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  37. मोती सीपों में मिल जाते
    पर गोता खुद लगाना है .............

    सत्य वचन......

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  38. बस मन मंदिर करना है ............

    श्रेष्ठ विचार.

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  39. वाह!!! बहुत खूब लिखा है आपने....

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  40. बस मन समुन्दर हो जाए सब कुछ को छिपाए रहे समुन्दर की तरह कितना असंघर्ष आलोडन है वहां परस्पर जीवों का हर स्तर पर -
    और यहाँ भी दखल देंवें -

    सोमवार, 28 मई 2012
    क्रोनिक फटीग सिंड्रोम का नतीजा है ये ब्रेन फोगीनेस

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  41. मन तो मंदिर है ही पर हम माया नगरी में उलझ कर भूल जाते हैं .. कितनी सुन्दर बात कहा है आपने..

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  42. निर्लिप्त मन से कर्म करें ...!!
    सार्थक संदेश देती रचना ...!!

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  43. मन मंदिर हो जाये फिर क्या कहने...गहन अनुभूति लिए भावाव्यक्ति....बहुत सुन्दर...

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  44. मन समंदर करना है बहुत ही प्रेरक और अ्रथपूर्ण रचना ।

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  45. मन मंदिर हो जाए ,मानव समदर्शी हो जाए ,समुन्दर सा सब समो जाए ...अपने अन्दर बढ़िया प्रस्तुति है .
    कृपया यहाँ भी पधारें -



    ram ram bhai

    बुधवार, 30 मई 2012
    HIV-AIDS का इलाज़ नहीं शादी कर लो कमसिन से

    http://veerubhai1947.blogspot.in/

    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

    कब खिलेंगे फूल कैसे जान लेते हैं पादप ?

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  46. पैसा तो आना जाना है
    इसके पीछे हैं पागल लोग
    क्यों हम पागल हो जाएँ
    बस मन मंदिर करना है ।
    ..bas yahi baat man mein thaan le to phir kitna achha hota ..
    bahut sundar rachna!

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  47. पैसा तो आना जाना है
    इसके पीछे हैं पागल लोग
    क्यों हम पागल हो जाएँ
    बस मन मंदिर करना है ।

    यदि सभी लोगों का मन मंदिर और समंदर की तरह विशाल हो जाए तो हर किसी की जिंदगी खुशनुमा हो जाए |
    सुंदर रचना .... साभार !!

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  48. पैसा तो आना जाना है
    इसके पीछे हैं पागल लोग
    क्यों हम पागल हो जाएँ
    बस मन मंदिर करना है ।

    ....बिलकुल सच कहा है....बहुत प्रेरक अभिव्यक्ति...

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  49. आपका भी मेरे ब्लॉग मेरा मन आने के लिए बहुत आभार
    आपकी बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना...
    आपका मैं फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,......
    मेरा एक ब्लॉग है

    http://dineshpareek19.blogspot.in/

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  50. लहरें तो आती जाती हैं
    दुख सुख का भी हाल यही
    फिर हम इतना क्यों सोचें
    बस मन समंदर करना है
    बहुत प्रेरक अभिव्यक्ति...

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  51. मोती सीपों में मिल जाते
    पर गोता खुद लगाना है

    बहुत सुन्दर श्रम किये किये बिना श्रम के मोल कहा ?

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  52. हां,मन मंदिर हो जाए,तो तन की समस्या सुलझे और धन की चिंता भी न रहे!

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  53. मोती सीपों में मिल जाते
    पर गोता खुद लगाना है
    श्रम से फिर क्यों भागें हम
    बस तन अर्पण करना है ..

    कर्तव्यों के प्रति सचेत करती पंक्तियाँ......बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक रचना....

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  54. सारा खेल मन का ही है।

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  55. पैसा तो आना जाना है
    इसके पीछे हैं पागल लोग .......sach kaha aapne ...

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  56. par gota khud lagana hai...swakarm ki prerana:)

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  57. सच ही तो है ....गोता खुद लगाना है ...तभी तो सीप में मोती मिल पाएंगे ....सुंदर रचना ...

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