चाँद ने आज कोई
साजिश की है
चाँदनी भी आज
कहीं दिखती नहीं है
मन की झील पर
जो अक्स बना था
उसकी रंगत भी
अब खिलती नहीं है ,
कर रही हूँ इंतज़ार
नन्ही सी किरण का
ये भोर भला अब
क्यों होती नहीं है
आसमां की रंगत कुछ
धूमिल सी है
बादलों की स्याही
कुछ कहती नहीं है
कहाँ से लाऊं मैं
वो इंद्र्धनुष
रंगों की सुर्खी भी
मन रंगती नहीं है ॥
सुंदर नज़्म...थोड़े निराशा के रंग हैं:(?
ReplyDeleteथक कर छाँव न मिले तो विरक्ति बढ़ती जाती है ... कोयल की कूक भी कर्कश लगती है
ReplyDeleteकभी-कभी ऐसा उचाट हो जाता है मन कि कुछ अपने अनुसार लगता ही नहीं !
ReplyDeleteचांद जब अपनी नेह की चांदनी बरसाना छोड़ दे, वह भी किसी साजिश के तहत तो मन के इन्द्रधनुष का रंग उतर जाना स्वाभाविक है।
ReplyDeleteसब कुछ विपरीत सा है...कुछ और रंगो की तलाश करनी होगी..
ReplyDeleteआपकी मनचाही रंगत वापस आए ......
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
हताशा साफ झलक रही है . फिजाओं में रंग फिर वापस हो ऐसी दुआ है .
ReplyDeleteचांदनी शायद उतर कर आपकी खिड़की पर बैठी है......
ReplyDeleteइन्द्रधनुष आपके आँगन के झूले में झूल रहा है....
सूरज छिपा बैठा है तुलसी के चौरे के पीछे....
देखिये तो सही ज़रा मुस्कुरा कर...............
:-)
उम्र के एक मोड पर आकर हर रंग फ़ीका पडने लगता है…………शायद तभी यही निकलता है।
ReplyDeleteइन्द्रधनुष हमारी नजरों पर निर्भर करता है.यह मनोदशा कुछ समय की है.जल्दी ही सारे रंग दिखेंगे :)
ReplyDeleteअभिव्यक्ति जानदार है हमेशा की तरह.
कुछ रंग दुआओं का असर लाएगा ... मन का हर कोना रोशन हो जाएगा ... तब ये इंतजार भी खत्म हो जाएगा ... आभार बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए ।
ReplyDeleteचाँद की साजिश है
ReplyDeleteआपको शीतल चांदनी देने की...
झरने भी कल- कल करते
बहने लगे है....
आपको मधुर
आवाज सुनाने को....
खिल रहा है सूरज भी...
सुनहरी सुबह देने को....
अम्बर भी बहका - बहका है..
आपको बहकाने को..
मधुर- मधुर चिडियों की बोली..
सतरंगी मयूरों की टोली..
आई रंग फ़ैलाने को...
:-) :-)
"वो भी एक दौर था,
ReplyDeleteयह भी एक दौर है"
जैसे से वो वक्त गुज़र गया वैसे ही यह वक्त भी गुज़र ही जाएगा। क्यूंकि,
"जिस तरह अच्छे वक्त की एक बुरी आदत होती है, की वो गुज़र जाता है
ठीक उसी तरह बुरे वक्त की भी एक अच्छी आदत होती है कि वो भी गुज़र ही जाता है"जानदार अभिव्यक्ति ...
कहाँ से लाऊं मैं
ReplyDeleteवो इंद्र्धनुष
रंगों की सुर्खी भी
मन रंगती नहीं है ॥
बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,बेहतरीन अभिव्यक्ति की खूबशूरत रचना ,,,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,
मन की व्यथा का सुन्दर वर्णन .
ReplyDeleteपर ये उदासी क्यों ?
चाँद की साज़िश भी खत्म होगी, भोर भी होगी और इन्द्रधनुष के सतरंगी रंगों से मन भी खिल उठेगा आप हौसला तो रखिये ! बहुत कोमल सी रचना है ! मन को कहीं गहराई तक छू गयी ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया आंटी
ReplyDeleteसादर
सुन्दर नज्म दी...
ReplyDeleteसादर.
मन के भावों के अनुसार ही प्रकृति के रंग भी बदल जाते हैं. प्रसन्नचित्त होने पर जो कोयल की कूक सुमधुर लगती है अपने मन के ग़मगीन होने पर वही कर्कश लगाने लगती है लेकिन ये स्थिति भी एक सी नहीं रहती . मन के भावों के अनुरुप रचना के लिए आभार !
ReplyDeleteचाँद की साजिश या फिर मन की ही कोई साजिश है..सुन्दर रचना..
ReplyDeleteमनोदशा और एहसास विरक्त क्यूं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावप्रणव अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteLaga jaise aapne mere man kee baat kahee hai!
ReplyDeleteजब सुबह होगी, लाल रंग स्वागत करेगा..
ReplyDeletebhaavo ki sunder abhivyakti.
ReplyDeleteinsaan chaahe to sab kuchh badal sakta hai.....jahan chaah...vahaan...raah.
कहाँ से लाऊं मैं
ReplyDeleteवो इंद्र्धनुष
रंगों की सुर्खी भी
मन रंगती नहीं है ॥....bhawon ka utkarsh hai ye....
कहाँ से लाऊं मैं
ReplyDeleteवो इंद्र्धनुष
रंगों की सुर्खी भी
मन रंगती नहीं है ॥
क्या हुआ .... ?? अवसाद में रँगी अभिव्यक्ति क्यों .... ??
भावपूर्ण रचना.... अपुन तो नि:शब्द
ReplyDeleteजीवन में अक्सर ऐसा भी समय आता है लेकिन इसका दूसरा हिस्सा भी नजदीक ही है, बहुत खूबसूरत अल्फ़ाज से सजी रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
प्रणाम जीजी
ReplyDeleteक्यों दीदी क्या हुआ
कुछ तो बात है
जो ये दर्द उभरा है...
वो इंद्र्धनुष
रंगों की सुर्खी भी
मन रंगती नहीं है ॥
कहाँ से लाऊं मैं
ReplyDeleteवो इंद्र्धनुष
रंगों की सुर्खी भी
मन रंगती नहीं है ॥
....बहुत मर्मस्पर्शी सुन्दर अभिव्यक्ति...
बेहतरीन रचना,शुभकामनाएं
ReplyDeleteमिलिए सुतनुका देवदासी और देवदीन रुपदक्ष से रामगढ में
जहाँ रचा कालिदास ने महाकाव्य मेघदूत।
रंग तो मन के समंदर में ही छुपे हैं ...
ReplyDeleteबस लगाओ डुबकी और भर लो दोनों मुठ्ठियाँ
.......फिर उछाल दो हवाओं में ताकि सराबोर हो जाए फिजा इन रंगों से ...............
गहरे भाव , संवेदनशील अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजीवन का एक रंग यह भी सही ...वह नहीं रहा तो यह भी हमेशा नहीं रहेगा !
ReplyDeleteचाँद ने आज कोई
ReplyDeleteसाजिश की है
चाँदनी भी आज
कहीं दिखती नहीं है
मन की झील पर
जो अक्स बना था
उसकी रंगत भी
अब खिलती नहीं है ,...
जीवन की परिवर्तन शीलता के साथ मन के भावों को अभिव्यक्त करती अत्यंत भाव पूर्ण रचना !!!
साजिशें कभी कामयाब होती लगती पर अंततः नहीं. जीवन के ऐसे क्षणों में मन के भावों पर नियंत्रण महत्वपूर्ण हो जाता है...
ReplyDeleteमन न लगे तो आसमान,चांद,बादल,रंग- सब फीके!
ReplyDeletefir se satrangi dhoop niklegeee......
ReplyDeleteआसमां की रंगत कुछ
ReplyDeleteधूमिल सी है
बादलों की स्याही
कुछ कहती नहीं है sunder prayog bhavon me bahne se lage ham
badhai
rachana
कहाँ से लाऊं मैं
ReplyDeleteवो इंद्र्धनुष
रंगों की सुर्खी भी
मन रंगती नहीं है....sahi bat jivan ke vividh rangon ko darshati lekhani.....
कहाँ से लाऊं मैं
ReplyDeleteवो इंद्र्धनुष
रंगों की सुर्खी भी
मन रंगती नहीं है..
मन कोई और रंग चाहका है न !...गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ...
चाँद ने आज कोई
ReplyDeleteसाजिश की है
चाँदनी भी आज
कहीं दिखती नहीं है
क्या कहने
सुंदर भाव
यहां तो ब्लागिंग के बिना भी इन्द्रधनुष नहीं थे।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना..
ReplyDelete:-)
बहुत ही सुन्दर रचना.
ReplyDeleteकहाँ से लाऊं मैं
ReplyDeleteवो इंद्र्धनुष
रंगों की सुर्खी भी
मन रंगती नहीं है ...bahut hee acchi rachna..indradhanush ke rang..prkrti ke sath chedchad se lupt ho gaye hain..sadar pranaam ke sath
बादलों की स्याही
ReplyDeleteकुछ कहती नहीं है ....अह्ह्ह !!!!इंतज़ार का ये रंग ....ओर मायूसी ...दर्द सनी रचना .....
Jeevan Toh Man Ka Pravah Hai, Kabhi Is Karvat Toh Kabhi Is Karvat.
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