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Thursday, 14 June 2012

इंतज़ार रंगों का



चाँद ने आज कोई 
साजिश की है 
चाँदनी भी आज 
कहीं दिखती नहीं है 
मन की झील पर 
जो अक्स बना था
उसकी रंगत भी 
अब खिलती नहीं है ,
कर रही हूँ इंतज़ार 
नन्ही सी किरण का 
ये भोर भला अब 
क्यों होती नहीं है 
आसमां की रंगत कुछ 
धूमिल सी है 
बादलों की स्याही 
कुछ कहती नहीं है 
कहाँ से लाऊं  मैं 
वो इंद्र्धनुष 
रंगों की सुर्खी भी 
मन रंगती नहीं है ॥ 



49 comments:

  1. सुंदर नज़्म...थोड़े निराशा के रंग हैं:(?

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  2. थक कर छाँव न मिले तो विरक्ति बढ़ती जाती है ... कोयल की कूक भी कर्कश लगती है

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  3. कभी-कभी ऐसा उचाट हो जाता है मन कि कुछ अपने अनुसार लगता ही नहीं !

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  4. चांद जब अपनी नेह की चांदनी बरसाना छोड़ दे, वह भी किसी साजिश के तहत तो मन के इन्द्रधनुष का रंग उतर जाना स्वाभाविक है।

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  5. सब कुछ विपरीत सा है...कुछ और रंगो की तलाश करनी होगी..

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  6. आपकी मनचाही रंगत वापस आए ......
    शुभकामनाएँ!

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  7. हताशा साफ झलक रही है . फिजाओं में रंग फिर वापस हो ऐसी दुआ है .

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  8. चांदनी शायद उतर कर आपकी खिड़की पर बैठी है......
    इन्द्रधनुष आपके आँगन के झूले में झूल रहा है....
    सूरज छिपा बैठा है तुलसी के चौरे के पीछे....
    देखिये तो सही ज़रा मुस्कुरा कर...............
    :-)

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  9. उम्र के एक मोड पर आकर हर रंग फ़ीका पडने लगता है…………शायद तभी यही निकलता है।

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  10. इन्द्रधनुष हमारी नजरों पर निर्भर करता है.यह मनोदशा कुछ समय की है.जल्दी ही सारे रंग दिखेंगे :)
    अभिव्यक्ति जानदार है हमेशा की तरह.

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  11. कुछ रंग दुआओं का असर लाएगा ... मन का हर कोना रोशन हो जाएगा ... तब ये इंतजार भी खत्‍म हो जाएगा ... आभार बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिए ।

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  12. चाँद की साजिश है
    आपको शीतल चांदनी देने की...
    झरने भी कल- कल करते
    बहने लगे है....
    आपको मधुर
    आवाज सुनाने को....
    खिल रहा है सूरज भी...
    सुनहरी सुबह देने को....
    अम्बर भी बहका - बहका है..
    आपको बहकाने को..
    मधुर- मधुर चिडियों की बोली..
    सतरंगी मयूरों की टोली..
    आई रंग फ़ैलाने को...
    :-) :-)

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  13. "वो भी एक दौर था,
    यह भी एक दौर है"
    जैसे से वो वक्त गुज़र गया वैसे ही यह वक्त भी गुज़र ही जाएगा। क्यूंकि,
    "जिस तरह अच्छे वक्त की एक बुरी आदत होती है, की वो गुज़र जाता है
    ठीक उसी तरह बुरे वक्त की भी एक अच्छी आदत होती है कि वो भी गुज़र ही जाता है"जानदार अभिव्यक्ति ...

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  14. कहाँ से लाऊं मैं
    वो इंद्र्धनुष
    रंगों की सुर्खी भी
    मन रंगती नहीं है ॥

    बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,बेहतरीन अभिव्यक्ति की खूबशूरत रचना ,,,,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,

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  15. मन की व्यथा का सुन्दर वर्णन .
    पर ये उदासी क्यों ?

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  16. चाँद की साज़िश भी खत्म होगी, भोर भी होगी और इन्द्रधनुष के सतरंगी रंगों से मन भी खिल उठेगा आप हौसला तो रखिये ! बहुत कोमल सी रचना है ! मन को कहीं गहराई तक छू गयी ! बहुत सुन्दर !

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  17. बहुत ही बढ़िया आंटी


    सादर

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  18. सुन्दर नज्म दी...
    सादर.

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  19. मन के भावों के अनुसार ही प्रकृति के रंग भी बदल जाते हैं. प्रसन्नचित्त होने पर जो कोयल की कूक सुमधुर लगती है अपने मन के ग़मगीन होने पर वही कर्कश लगाने लगती है लेकिन ये स्थिति भी एक सी नहीं रहती . मन के भावों के अनुरुप रचना के लिए आभार !

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  20. चाँद की साजिश या फिर मन की ही कोई साजिश है..सुन्दर रचना..

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  21. मनोदशा और एहसास विरक्त क्यूं

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  22. बहुत सुन्दर भावप्रणव अभिव्यक्ति।

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  23. Laga jaise aapne mere man kee baat kahee hai!

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  24. जब सुबह होगी, लाल रंग स्वागत करेगा..

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  25. bhaavo ki sunder abhivyakti.

    insaan chaahe to sab kuchh badal sakta hai.....jahan chaah...vahaan...raah.

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  26. कहाँ से लाऊं मैं
    वो इंद्र्धनुष
    रंगों की सुर्खी भी
    मन रंगती नहीं है ॥....bhawon ka utkarsh hai ye....

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  27. कहाँ से लाऊं मैं

    वो इंद्र्धनुष

    रंगों की सुर्खी भी

    मन रंगती नहीं है ॥

    क्या हुआ .... ?? अवसाद में रँगी अभिव्यक्ति क्यों .... ??

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  28. भावपूर्ण रचना.... अपुन तो नि:शब्द

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  29. जीवन में अक्सर ऐसा भी समय आता है लेकिन इसका दूसरा हिस्सा भी नजदीक ही है, बहुत खूबसूरत अल्फ़ाज से सजी रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  30. प्रणाम जीजी
    क्यों दीदी क्या हुआ
    कुछ तो बात है
    जो ये दर्द उभरा है...
    वो इंद्र्धनुष
    रंगों की सुर्खी भी
    मन रंगती नहीं है ॥

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  31. कहाँ से लाऊं मैं
    वो इंद्र्धनुष
    रंगों की सुर्खी भी
    मन रंगती नहीं है ॥

    ....बहुत मर्मस्पर्शी सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  32. बेहतरीन रचना,शुभकामनाएं


    मिलिए सुतनुका देवदासी और देवदीन रुपदक्ष से रामगढ में

    जहाँ रचा कालिदास ने महाकाव्य मेघदूत।

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  33. रंग तो मन के समंदर में ही छुपे हैं ...
    बस लगाओ डुबकी और भर लो दोनों मुठ्ठियाँ
    .......फिर उछाल दो हवाओं में ताकि सराबोर हो जाए फिजा इन रंगों से ...............

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  34. गहरे भाव , संवेदनशील अभिव्यक्ति

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  35. जीवन का एक रंग यह भी सही ...वह नहीं रहा तो यह भी हमेशा नहीं रहेगा !

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  36. चाँद ने आज कोई
    साजिश की है
    चाँदनी भी आज
    कहीं दिखती नहीं है
    मन की झील पर
    जो अक्स बना था
    उसकी रंगत भी
    अब खिलती नहीं है ,...
    जीवन की परिवर्तन शीलता के साथ मन के भावों को अभिव्यक्त करती अत्यंत भाव पूर्ण रचना !!!

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  37. साजिशें कभी कामयाब होती लगती पर अंततः नहीं. जीवन के ऐसे क्षणों में मन के भावों पर नियंत्रण महत्वपूर्ण हो जाता है...

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  38. मन न लगे तो आसमान,चांद,बादल,रंग- सब फीके!

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  39. आसमां की रंगत कुछ
    धूमिल सी है
    बादलों की स्याही
    कुछ कहती नहीं है sunder prayog bhavon me bahne se lage ham
    badhai
    rachana

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  40. कहाँ से लाऊं मैं
    वो इंद्र्धनुष
    रंगों की सुर्खी भी
    मन रंगती नहीं है....sahi bat jivan ke vividh rangon ko darshati lekhani.....

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  41. कहाँ से लाऊं मैं
    वो इंद्र्धनुष
    रंगों की सुर्खी भी
    मन रंगती नहीं है..

    मन कोई और रंग चाहका है न !...गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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  42. चाँद ने आज कोई
    साजिश की है
    चाँदनी भी आज
    कहीं दिखती नहीं है

    क्या कहने
    सुंदर भाव

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  43. यहां तो ब्‍लागिंग के बिना भी इन्‍द्रधनुष नहीं थे।

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  44. बहुत ही सुन्दर रचना..
    :-)

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  45. बहुत ही सुन्दर रचना.

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  46. कहाँ से लाऊं मैं
    वो इंद्र्धनुष
    रंगों की सुर्खी भी
    मन रंगती नहीं है ...bahut hee acchi rachna..indradhanush ke rang..prkrti ke sath chedchad se lupt ho gaye hain..sadar pranaam ke sath

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  47. बादलों की स्याही
    कुछ कहती नहीं है ....अह्ह्ह !!!!इंतज़ार का ये रंग ....ओर मायूसी ...दर्द सनी रचना .....

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  48. Jeevan Toh Man Ka Pravah Hai, Kabhi Is Karvat Toh Kabhi Is Karvat.

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