तुम्हारे बोल झुलसा ही तो गए मन आँगन |
रोने वालों को मिल जाते हैं कंधे तभी रोते हैं |
मन के छाले रिसते रहे यूं ही नासूर हुये |
आँखों की सुर्खी झरते रहे आँसू खुश्क हुयी मैं |
धुआँ है उठा सुलगता है मन राख़ हुयी मैं |
इंतज़ार क्यों ? तोड़ा है विश्वास हतप्रभ मैं |
तुम्हारी राहें अलग थलग थीं सो ,मैं भटकी |
दुश्मनी कहाँ ? दोस्ती की नींव पर गहरा घाव |
दुश्मनी कहाँ ?
ReplyDeleteदोस्ती की नींव पर
गहरा घाव
वाह ... जबरदस्त हाइकु .. सभी एक से बढ़कर एक ... आभार
ek se badh kar ek........haiku.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर हाईकू
ReplyDeleteसभी बेहतरीन ....
:-)
भावों को ही परिलक्षित करते सटीक चित्र संलग्न किये हैं...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
बेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDeleteकुँवर जी,
रोने वालों को
ReplyDeleteमिल जाते हैं कंधे
तभी रोते हैं
सचमुच
धुआँ है उठा
सुलगता है मन
राख़ हुयी मैं
दबी हुई, जो कभी शोला भी हो सकती है
बहुत सुंदर
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति
प्यारे हायेकु दी,,,,
ReplyDeleteथोड़े से शब्द और ढेर सारी भावनाएँ....
और सुन्दर फोटो भी.........
सादर.
लाज़वाब हाइकु -- हाइगा बन गए .
ReplyDeleteलेकिन आपके स्वभव के प्रतिकूल !
गज़ब के सटीक भाव हैं ..आपके हाइकू मुझे हमेशा अचंभित करते हैं.
ReplyDeleteदूसरा और सातवाँ हाइकू खास पसंद आया.
और फोटो के साथ तो कहर ढा रहे हैं.
रोने वालों को
ReplyDeleteमिल जाते हैं कंधे
तभी रोते हैं..........वाह:वाह..... क्या बात है..एक से बढ़ कर एक मोती हाईकुके रुप में....
रोने वालों को
ReplyDeleteमिल जाते हैं कंधे
तभी रोते हैं... सच है
गहन भावनायें समेटे ...बहुत सुंदर ...हाइकू ...!!
ReplyDeleteदुश्मनी कहाँ ?
ReplyDeleteदोस्ती की नींव पर
गहरा घाव !
प्रभावशाली और चुटीली ३ पंक्तियाँ ...
आभार आपका !
जबरजस्त..अत्यन्त प्रभावी..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी हाइकु....
ReplyDeleteआपकी हाइकु रचनाएं जबर्दस्त होती हैं। छोटी किंतु सशक्त।
ReplyDeleteचित्रों ने इनके इफ़ेक्ट को और भी बढ़ा दिया है।
अब दोस्ती के मायने बदल गये हैं..बहुत सुंदर हाइकू ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर हाइकू ... भाव के अनुरूप चित्र बहुत अच्छे लग रहे हैं
ReplyDeleteगागर में सागर ,
ReplyDeleteचित्रों से हो उठे और उजागर !
धुआँ है उठा
ReplyDeleteसुलगता है मन
राख़ हुयी मैं
सभी एक से बढ़ कर एक हाइकू हैं संगीता जी ! क्या कहने ! बहुत ही सुन्दर !
सुंदर सटीक भाव लिये लाजबाब हाइकू,,,बधाई
ReplyDeleteRECENT POST ,,,,फुहार....: न जाने क्यों,
गागर में सागर, हमेशा की तरह.
ReplyDeleteमन के छाले
ReplyDeleteरिसते रहे यूं ही
नासूर हुये
मन का दर्द लिए हाइकु .....
जापानी सुमो से ज्यादा प्रभावशाली है उनकी हायकू . और आप एकदम सिद्धहस्त इसके प्रयोग में .
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खूबसूरत हाईकू
सूचनार्थ
सैलानी की कलम से
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ब्लॉ.ललित शर्मा
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दुश्मनी कहाँ , मन के छालों का रिसना मारक है ...
ReplyDeleteदुश्मनी कहाँ ?
ReplyDeleteदोस्ती की नींव पर
गहरा घाव .....वाह ! रिश्ते हुए धावो को एक हलकी सी मोहक मरहम ....
आँखों की सुर्खी
ReplyDeleteझरते रहे आँसू
खुश्क हुयी मैं
लाजवाब हाइकू………बहुत दर्द भरा है। आप तो हाइकू स्पैशलिस्ट हो गयी हैं।
दुश्मनी कहाँ दोस्ती की नीव पर घरा घाव ...क्या कहने बहुत ही बढ़िया सटीक बात को कहती बहुत ही दमदार ,लाजवाब भाव अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteकांधा नहीं तो रोने का सबब क्या?
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत हायकू सभी के सभी
sabhi haiku bahut acche hain
ReplyDeleteaaj-kal dosti par sach me bharosa nahi kiya jaa sakta.
रोने वालों को
ReplyDeleteमिल जाते हैं कंधे
तभी रोते हैं...
अर्थपूर्ण और सटीक सभी हाइकु बहुत अच्छे...
एक से बढ़कर एक हाइकू
ReplyDeleteधुआँ है उठा
ReplyDeleteसुलगता है मन
राख़ हुयी मैं
बहुत मर्मस्पर्शी हायकूज़.....
माय ममा ईज़ ग्रेट... ममा...जो भी लिखतीं हैं.. बहुत ही सुंदर भाव के होते हैं.. यह हायकूज़ तो बहुत ही ख़ूबसूरत हैं..
ReplyDeleteतुम्हारी राहें
ReplyDeleteअलग थलग थीं
सो ,मैं भटकी ....
अपने किसी प्रिय को समर्पित करने के लिए आपसे उधर लेता हूँ ये पंक्तियाँ....
तुम्हारी राहें
अलग थलग थीं
सो ,मैं भटका
मन के छाले
ReplyDeleteरिसते रहे यूं ही
नासूर हुये
मार्मिक प्रस्तुति. सारे के सारे हाईकू दिलको अंदर तक छू रहे है. बधाई संगीता जी इन नए प्रयोगों के लिये.
धुआँ है उठा
ReplyDeleteसुलगता है मन
राख़ हुयी मैं
बेहत खूबसूरत !
बहुत ही हृदयस्पर्षि रचनाएं, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
रोने वालों को
ReplyDeleteमिल जाते हैं कंधे
तभी रोते हैं....
मन को उद्विग्न और शांत करती हाइकु रचनाएं...
तुम्हारी राहें
ReplyDeleteअलग थलग थीं
सो ,मैं भटकी
रोने वालों को
मिल जाते हैं कंधे
तभी रोते हैं....
आदरणीया संगीता जी बहुत सुन्दर हाइकु ...एक से बढ़कर एक
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
लाजवाब हाइकू……
ReplyDeleteबधाई।
ReplyDeleteSabhi haiku man ko sparsh kar gaye..
ReplyDeleteSabhi hyku behtreen
ReplyDeleteइतना सहा
ReplyDeleteबिछड़े फिर भी ज्यों
मिले ही न थे
ek se badhkar ek hain..bahut hee shandaar
ReplyDeleteवाह ....हाइकू रचना तो कमाल की संगीता जी ....ओर सभी बहुत गहरे भाव से ओत प्रोत ....गैर हाजिरी का खामियाजा ये की इतनी महत्वपूर्ण रचनाओं से वंचित रही .....
ReplyDeleteइतने बढ़िया हाइकू ,कैसे छूटे हमसे
ReplyDeleteदुश्मनी कहाँ ?
ReplyDeleteदोस्ती की नींव पर
गहरा घाव
सही कहा । सभी हाइकू सुंदर ।
संगीता जी.....अति सुन्दर |
ReplyDeleteख्वाबों के आँचल ...जंगली बेल...की तरह....वाह | बहुत उम्दा...
एक से बढ़कर एक हायकू |
ReplyDeleteगागर में सागर की तरह...अर्थपूर्ण व् सटीक |
वाह.......बहुत सुन्दर...संगीता जी...
आज 14/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
ReplyDeleteजिंदगी पे आधारित ...खूबसूरत हाइकू
ReplyDeleteदुश्मनी कहाँ ?
ReplyDeleteदोस्ती की नींव पर
गहरा घाव ............
wah ! kya likha hai...bahut khoob
मन के छाले
ReplyDeleteरिसते रहे यूं ही
नासूर हुये ..............बहुत सुन्दर...
बहुत सुंदर और बेहतरीन
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