कड़वी यादें
चीर देती हैं सीना
मैं हुयी मौन ।
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पीड़ित यादें
झटक ही तो दीं थीं
पीले पत्ते सी ।
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विष से बुझा
याद है व्यंग्य बाण
मरा मेरा 'मैं' ।
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तल्ख स्मृतियाँ
जेहन में घूमतीं
चैन न आए ।
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खुद से जंग
जंगरहित यादें
निज़ात नहीं ....
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स्मृतियों पर सुन्दर हाइकु।
ReplyDelete...सभी हाइकू सुन्दर और अर्थपूर्ण!
ReplyDeletesabhi acche hain .....arthpurn ....
ReplyDeleteसार्थक सृजन संगीता जी ! सभी एक से बढ़ कर एक ! बहुत सुंदर !
ReplyDeleteविष से बुझा
ReplyDeleteयाद है व्यंग्य बाण
मरा मेरा 'मैं' ।
सुपर्ब ..
ये तल्ख़ यादें चैन कहाँ लेने देती हैं.कचोटती रहती हैं हर दम.
बहुत अर्थपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी हाइकू .
ReplyDeletebahut sundar :)
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन सार्थक सृजन,आभार.
ReplyDeleteव्याकुल हाइकु
ReplyDeleteदिल को छूती
सादर
तल्ख स्मृतियाँ
ReplyDeleteजेहन में घूमतीं
चैन न आए ।
बहुत सटीक और मन को छूने वाले हाइकु
खुद से जंग
ReplyDeleteजंगरहित यादें
निज़ात नहीं .... कभी नहीं मिलती निजात -
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (15-05-2013) के "आपके् लिंक आपके शब्द..." (चर्चा मंच-1245) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर!!!
ReplyDeleteचंद शब्दों में हाले दिल बयां हुआ....
सादर
अनु
मन की व्यथा को बहुत ही सटीकता से प्रकट करते हाइकू.
ReplyDeleteरामराम.
स्मृतियों का सुन्दर जंजाल....
ReplyDeleteखुद से जंग ..जंग रहित यादें ...
ReplyDeleteमुमकिन नहीं !
बहुत खूब सारी की सारी !
ReplyDeleteबढ़िया हाइकू प्रस्तुति !
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यह हाइकु की कला आपसे सीखनी पड़ेगी। मेरे पास भी एक आर्डर आया है लेकिन उसे मैं पूरा नहीं कर पा रही हूं।
ReplyDeleteउफ़ एक से बढकर एक हाइकू गागर मे सागर भरते
ReplyDeleteतल्ख़ स्मृतियों को शमित करना आवश्यक है वर्ना अशांति के सिवा कुछ नहीं. भावपूर्ण हायकू निहित संदेश देने में सक्षम.
ReplyDeleteदीदी प्रणाम। आज आप के ब्लौग्स का आनंद लिया। मन प्रसन्न हुआ। इस विलक्षण हाइकु के लिए आप को सादर प्रणाम
ReplyDeleteखुद से जंग
जंगरहित यादें
निज़ात नहीं ....
बहुत सुन्दर...सभी हाइकु दिल को छू जाते हैं...
ReplyDeleteबिखरे मोती
ReplyDeleteमन की गगरिया
कौन समेटे.
"मैं" मृतप्राय
अनंत अंतरिक्ष
नन्हा सा नीड़.
हीरे की कनी
जगमग स्मृतियाँ
रक्त-रंजित.
एक प्रयास
सफल - असफल
कौन विचारे.
तल्ख स्मृतियाँ
ReplyDeleteजेहन में घूमतीं
चैन न आए ।
स्मृतियाँ तल्ख हों तो चैन नहीं आता ... सच
मन को छूते भाव
सादर
संगीता दी मेरा कमेन्ट गायब हो चूका है लगता.
ReplyDeleteसच है ऐसी ही तो होती है हर जीवन की कुछ कड़वी स्मृतियाँ...
ReplyDeleteबहुत गहन, अर्थपूर्ण, भावपूर्ण हाइकु दीदी!
ReplyDelete~सादर!!!
सुन्दर हाइकु।
ReplyDeletevery nice..
ReplyDeleteविष से बुझा
ReplyDeleteयाद है व्यंग्य बाण
मरा मेरा 'मैं' ...
बहुत गहरी ...
कर हाइकू स्मृति के कुछ नए दृष्टिकोण को ले के लिखा है ... लाजवाब ...
bahut acchi...sabhi haiku dil ko chuti hui.
ReplyDeleteसभी हाइकू सुन्दर ....
ReplyDeleteउफ़।।।
ReplyDeleteपर सुन्दर।।
सुन्दर हाइकू
ReplyDeleteबेहतरीन हाइकु, बधाई.
ReplyDeleteप्यारे प्यारे हाइकू
ReplyDeleteबिखरे मोती से
चमकते सितारे ।
हर हाईकू तल्ख़ स्मृतियाँ लिए हुए
ReplyDeleteसादर !
गहन अनुभूति
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
बहुत अर्थपूर्ण हाइकू
ReplyDeleteस्मृतियों के केंद्र में सुंदर हाइकू
ReplyDeleteसुंदर अनुभूति
बेहतरीन प्रस्तुति
सादर
तल्ख स्मृतियाँ
ReplyDeleteजेहन में घूमतीं
चैन न आए ।
hmmmmm..........haan di...sch..smritoun se pichaa shudaana bilkul vaisa he jaise hwaaa kokhud se alag krna...hum chahe na chahe...wo hmeshaa ird girf ghumti rehati hain.......aur jab unka zor bdhtaa he...jhtkaa jaati hain hume...............sabhii haiku...pdeh..mzaa aa gya..bahut achee hain sab