कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
बस एक बार ये उदासियाँ दूर से भी मन को को झाँक ले तो मन का हर बंसत मुरझा जाता है... गलती मन की है उसने सर आँखों जो बिठा दिया इन उदासियों को...। बहुत ही लाजवाब।
21 comments:
कहा मैंने
मस्तम - मस्त
बसन्त छाया है ।
सुनते ही इतना
जमा लिया कब्ज़ा
उन्होंने मेरे ऊपर
और -
बसन्त मुरझा ..
मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।
आभार मीना जी ।
खूब।
बहुत सुन्दर और सारगर्भित रचना।
इन उदासियों को मूंह लगाना ही नहीं चाहिए। झिटक दो जहाँ मिलें।
ये उदासी किसी न किसी बहाने दस्तक दे ही देती है..बड़ी बेशर्म है..सुन्दर कृति के लिए हार्दिक शुभकामनाएं..
लाजवाब, बहुत ही सुंदर रचना संगीता जी, बधाई हो
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना आज शनिवार 27 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
आभार ।
शास्त्री जी शुक्रिया
बस जी छिटक दीं, तुम कहो और न माने ये तो हो नहीं सकता न
सच्ची , बड़ी बेशर्म हैं । सोच कर हँसी आ रही है । शुक्रिया जिज्ञासा । उदासी में भी हँसाने का ।
शुक्रिया ,ज्योति ।
आभार , श्वेता ।
वाह!मन को छूती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
सादर
शुक्रिया अनिता
उफ ! ... उदासियों से मुलाक़ात की कितनी निराली बयानगी !
साधुवाद आदरणीया 🙏
शुक्रिया वर्षा जी । आप महसूस कर सकीं ।
सारगर्भित, विचारणीय, जिंदगी के रंग में खुशियों के साथ उदासियां भी हैं ही, आइए खुशियों बरसाएं और पाएं जय हो
बहुत ही सुंदर रचना संगीता जी
बस एक बार ये उदासियाँ दूर से भी मन को को झाँक ले तो मन का हर बंसत मुरझा जाता है...
गलती मन की है उसने सर आँखों जो बिठा दिया इन उदासियों को...।
बहुत ही लाजवाब।
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