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दोस्ती की नींव पर ....... हाइकु रचनाएँ

>> Thursday 21 June 2012

तुम्हारे बोल
झुलसा ही तो गए
मन आँगन 


रोने वालों को
मिल जाते हैं कंधे
तभी रोते हैं


मन के छाले
रिसते रहे यूं ही
नासूर हुये 


आँखों की सुर्खी
झरते रहे आँसू
खुश्क हुयी मैं 

धुआँ  है उठा
सुलगता है मन
राख़ हुयी मैं 
इंतज़ार क्यों ?
तोड़ा है विश्वास
हतप्रभ मैं 

तुम्हारी राहें
अलग थलग थीं
सो ,मैं भटकी 

दुश्मनी कहाँ ?
दोस्ती की नींव पर
गहरा घाव 



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इंतज़ार रंगों का

>> Thursday 14 June 2012



चाँद ने आज कोई 
साजिश की है 
चाँदनी भी आज 
कहीं दिखती नहीं है 
मन की झील पर 
जो अक्स बना था
उसकी रंगत भी 
अब खिलती नहीं है ,
कर रही हूँ इंतज़ार 
नन्ही सी किरण का 
ये भोर भला अब 
क्यों होती नहीं है 
आसमां की रंगत कुछ 
धूमिल सी है 
बादलों की स्याही 
कुछ कहती नहीं है 
कहाँ से लाऊं  मैं 
वो इंद्र्धनुष 
रंगों की सुर्खी भी 
मन रंगती नहीं है ॥ 



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