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तोहफा जन्मदिन का

>> Thursday 20 December 2012

प्रिय शिखा के जन्मदिन पर .... कुछ हाइकु रचनाएँ 


जन्मदिन का 
नन्हा सा  है  तोहफा 
मेरी ओर से 

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सालगिरह 
खुशियाँ ही खुशियाँ 
सहेजो तुम 


स्नेह से भरी 
रहे झोली तुम्हारी 
मिले आशीष । 

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कर्मयोगी सा 
बीते जीवन सारा 
यही कामना । 


हंसी चाँदनी 
चंचल चितवन 
देती सुकून । 

Shikha Varshney

तेरा नेह ही 
देता मुझे संबल 
मेरी प्रेरणा ।



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गमकती यादें ..../ हाइकु

>> Wednesday 12 December 2012





यादों की झड़ी 
खुशी - गम  का साया 
आँखों से झरी ।


 
      
सुकून मिला 
तेरी यादों का टेसू 
गमक गया । 


यादों के घेरे 
तुम जैसे सम्मुख 
बंद थीं आँखें । 


अमलतास  सा 
खिला तेरा चेहरा 
यादों में बसा ।


कब भूली मैं 
पल -पल बिताया 
साथ सँजोया । 

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दीप बन कर देखो .... / हाइकु

>> Monday 12 November 2012






मन का दीप 
रोशन कर देखो 
खुशी ही खुशी 



माटी का दिया 
एक रात की उम्र 
ज्योति से भरा ।


आम आदमी 
लगा रहा हिसाब 
कैसे हो पर्व ? 


लगाएँ बाज़ी 
परंपरा के नाम 
पत्तों का खेल । 


बम - पटाखे 
क्षण भर की खुशी 
धुआँ ही धुआँ ।


दीयों की बाती 
उजियारा  फैलाती 
स्वयं  जलती । 

दीपावली की  सभी को हार्दिक शुभकामनायें ।

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आस्था और चाँद / हाइकु

>> Friday 2 November 2012



चौथ का चाँद 
आँखों में  उतरता 
प्रेम दर्शाये । 





देखा जो चाँद 
धरती के चाँद ने 
मन हर्षाया । 





उठी निगाहें 
चाँद की प्रतीक्षा में 
करें अर्चना । 






नेह बंधन 
स्वीकारें  मन से 
चाँद है साक्षी । 





बिना प्रेम के 
परंपरा के लिए 
न करो व्रत । 




मन की आस्था 
चाँद  में निहारती 
उम्र पति की .






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माँ की भक्ति / हाइकु रचनाएँ

>> Tuesday 16 October 2012



कन्या पूजन?  
दोहरा मापदंड 
हत्या भ्रूण की ।
नवरात्रि  में 
किया माँ का आह्वान 
माँ को पूछा क्या ?


शैल पुत्री को 
शिला ही बना डाला 
पूजें पत्थर । 


माँ की अर्चना 
लाउडस्पीकर पे 
शोर ही शोर । 

कैसी है भक्ति 
नमन पाहन को 
माँ तरसती । 


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पतझर / हाइकु

>> Thursday 27 September 2012




झरते पत्ते 
देते यह संदेश 
जाना तो है ही । 






ये मेरा मन 
झर झर जाता है 
पीले पत्तों सा । 






ऋतु दबंग 
हर लेती है पत्ते 
सूनी  शाखाएँ । 





पत्रविहीन 
कर रहा प्रतीक्षा 
नए पत्तों की । 






उदास मन 
टूटता है नि:शब्द 
पतझर सा । 






बेखौफ पत्ते 
छोड़ गए शाखाएँ 
पल्लव  आयें 





सूखे जो पत्ते 
टपक ही तो गए 
शाख से नीचे । 






पतझर में 
पीली हुयी धरती 
ज़र्द पत्तों सी । 

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घर गुलज़ार .... बिटिया से ( हाइकु )

>> Friday 24 August 2012



नन्ही बिटिया 
महकता आँगन 
खुशी के पल । 


पलाश खिले 
घर गुलज़ार है 
बेटी जो आई ।


प्यारी सी धुन 
बिटिया की मुस्कान 
गूँजे संगीत .


बेटी का आना 
सावन की फुहार 
ज़िंदगी मिली .


बेटी  मुस्कायी 
खिल गयी बगिया
फूल ही फूल .


मेरी है छाया 
मन हुलसित है 
प्रभु की माया .


दिया जो तूने 
आँचल में  बेटी को 
गोद है भरी .


बिना बेटी के 
घर निष्प्राण लगे 
नैन तरसें .



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खुश्क आँखें

>> Tuesday 17 July 2012






अब नम नहीं होतीं 
मेरी आँखें 
ज़िंदगी की तपिश ने 
कर दिया है 
खुश्क उनको 
अब तो जब भी 
झपकती हूँ पलक 
तो होता है बस 
एक एहसास 
चुभन का । 


( आँखों में कुछ दिनों से जलन का एहसास हो रहा था  , आज डॉक्टर  को दिखाईं तो उन्होने बताया कि नमी सूख गयी है इसीलिए इरिटेशन होता है )


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ख्वाबों के आँचल

>> Thursday 5 July 2012





कुछ होते हैं
ख़्वाबों के आँचल 
ऐसे भी 
जिन्हें ना गुल 
और ना ही 
कांटे की 
दरकार होती है..
बस 
बढते हैं 
जंगली बेल की तरह 
इनसे भी 
जिंदगी खुशगवार 
होती है  . 









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दोस्ती की नींव पर ....... हाइकु रचनाएँ

>> Thursday 21 June 2012

तुम्हारे बोल
झुलसा ही तो गए
मन आँगन 


रोने वालों को
मिल जाते हैं कंधे
तभी रोते हैं


मन के छाले
रिसते रहे यूं ही
नासूर हुये 


आँखों की सुर्खी
झरते रहे आँसू
खुश्क हुयी मैं 

धुआँ  है उठा
सुलगता है मन
राख़ हुयी मैं 
इंतज़ार क्यों ?
तोड़ा है विश्वास
हतप्रभ मैं 

तुम्हारी राहें
अलग थलग थीं
सो ,मैं भटकी 

दुश्मनी कहाँ ?
दोस्ती की नींव पर
गहरा घाव 



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