सुकूँ
>> Monday 24 May 2010
हर दर्द में
खुशी ढूंढो तो
फिर गम
क्या है
हर गम में
छुपी हंसी
दिल को
सुकूँ देती है .....
तल्ख़ जुबां की किरचें
>> Wednesday 19 May 2010
समेटते समेटते
चुभ गयीं हैं किरचें
कुछ तल्ख़
जुबां की ,
सहलाते हुए
शब्दों का
मरहम भी
अब बेअसर हो
मन को लहुलुहान
किये जाता है..
लिबास ख्वाब का
>> Sunday 16 May 2010
ख्यालों के
रेशमी धागों से
ख़्वाबों का
पैरहन बुनते हुए
एक फंदा
छूट गया
जुबान की तल्ख़
सलाइयों ने
लिबास ख्वाब का
तार - तार कर दिया.
भटकन ....
>> Wednesday 12 May 2010
ख्वाब -
ज्यों ओस की बूंद
हाथ लगाओ तो
पानी बन जाती है
हकीकत का ताप
देता है सुखा
और हम
ज़िन्दगी के
रेगिस्तान में
भटकते रह जाते हैं .
यूँ छिटकी चाँदनी
>> Friday 7 May 2010
तेरी ख्वाहिशों के
चाँद ने
मेरे मन के
सागर को
ज्यों ही छुआ
लहरों के
उद्दाम वेग से
साहिल पर
बिछी
तपती रेत पर
जैसे
चाँदनी
बरस गयी
एक चुप
>> Monday 3 May 2010
शोखियाँ
जो बोलीं
वो भी
बेबसी ही थी ,
उदासी भी थी
कुछ ज़मीं के
फासलों से ,
यूँ तो था नहीं
कोई दरम्याँ
हमारे,
बस एक चुप थी
जो मन को
बहुत सालती थी....
Subscribe to:
Posts (Atom)