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कुछ तो लोग कहेंगे .....

>> Sunday 30 May 2010





ओढ़ रखी थी 

जब तक 

खामोशी 

लोग तब 

पर्त- दर - पर्त 

कुरेदा करते थे ....


आज  जब 

खामोशी ने 

तोड़ दिए हैं 

मौन के घुँघरू 

लोग अब उसे 

वाचाल कहते हैं ..




.

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सुकूँ

>> Monday 24 May 2010


                                                                               


हर दर्द में


खुशी ढूंढो तो


फिर गम

क्या है


हर गम में 

छुपी हंसी


दिल को  

सुकूँ देती है .....




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तल्ख़ जुबां की किरचें

>> Wednesday 19 May 2010





खुद को 

समेटते समेटते

चुभ गयीं हैं किरचें

कुछ तल्ख़ 

जुबां की ,

सहलाते हुए 

शब्दों का 

मरहम भी 

अब बेअसर हो

मन को लहुलुहान

किये  जाता है.. 




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लिबास ख्वाब का

>> Sunday 16 May 2010





ख्यालों के 

रेशमी  धागों से 

ख़्वाबों का 

पैरहन  बुनते हुए 

एक फंदा 

छूट  गया 

जुबान की तल्ख़ 

सलाइयों ने 

लिबास ख्वाब का 

तार - तार कर दिया.









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भटकन ....

>> Wednesday 12 May 2010



ख्वाब -


ज्यों  ओस की बूंद 

हाथ लगाओ तो 

पानी बन जाती है 

हकीकत का ताप 

देता है सुखा 

और हम 

ज़िन्दगी के 

रेगिस्तान में 

भटकते रह जाते हैं .








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यूँ छिटकी चाँदनी

>> Friday 7 May 2010






तेरी ख्वाहिशों के 

चाँद ने 

मेरे मन के 

सागर को 

ज्यों ही छुआ 

लहरों के 

उद्दाम वेग से 

साहिल पर 

बिछी 

तपती रेत पर 

जैसे 

चाँदनी 

बरस गयी 








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एक चुप

>> Monday 3 May 2010





शोखियाँ  

जो बोलीं

वो भी 

बेबसी ही थी ,

उदासी भी थी

कुछ ज़मीं के 

फासलों  से ,

यूँ तो था नहीं 

कोई  दरम्याँ   

हमारे,

बस एक चुप थी 

जो मन को 

बहुत सालती थी....


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