ऐतबार
>> Friday, 8 January 2010
ख्वाहिशे सुलगती हैं
दिल बेचैन है
नजारों पर नज़रें
टिकती नहीं हैं
ऐतबार भी नहीं
अब तो
किसी पैगाम पर
रात के बाद
सुबह होती नहीं है Read more...
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
बिना काजल के हैं कजरारी आँखें
पैनी धार सी हैं ये कटारी आँखें
वार तो नहीं किया तूने मुझ पर
क़त्ल कर गयीं ये तेरी प्यारी आँखें
Read more...खामोश रह कर भी तुझसे बात करते हैं
आवाज़ नहीं आती पर लब हिलते हैं
ज़रा ध्यान से सुन कान लगा कर ज़रा
चुप रह कर भी हम बहुत कुछ कहते हैं.
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