अंधेरे
>> Thursday 16 October 2008
अंधेरे मेरी ज़िन्दगी में जो इतने हैं,
कि अब किसी रोशनी से दिल घबराता है,
मुझे मेरे साये से लिपटे रहने दो,
किसी के होने के अहसास से दिल घबराता है।
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
अंधेरे मेरी ज़िन्दगी में जो इतने हैं,
कि अब किसी रोशनी से दिल घबराता है,
मुझे मेरे साये से लिपटे रहने दो,
किसी के होने के अहसास से दिल घबराता है।
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1 comments:
अंधेरे मेरी ज़िन्दगी में जो इतने हैं,
कि अब किसी रोशनी से दिल घबराता है,
मुझे मेरे साये से लिपटे रहने दो,
किसी के होने के अहसास से दिल घबराता है।
in adhero me zindgi mat dhundo..
ki roshni hi kaam aayegi..
saaya bhi saath chhod jayega..
tb logo ki bheed kaam aayegi..
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