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लबों की गाँठ ....

>> Thursday 18 November 2010

मेज़ पर 
बिखरी पड़ी 
हमारी बातो को 
सहेज कर 
रख दिया  था 
तुमने 
और चाहा था कि 
मैं   कर दूँ 
सारे लफ़्ज़ों को 
फिर से बेतरतीब
गिरह खोल कर .
अपने लबों की,
पर  
बांच ली हैं 

मैंने 
सारी तहरीरें 
तेरी आँखों में ही .  
लफ़्ज़ों  को 
बेतरतीब 
करने के लिए
लबों की गाँठ 
खोलना ज़रूरी नहीं  


71 comments:

अरुण चन्द्र रॉय Thu Nov 18, 05:40:00 pm  

"
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं "... बहुत सुन्दर सारगर्भित और गंभीर कविता !

Sagar Thu Nov 18, 05:47:00 pm  

बहुत ही अच्छी प्रस्तुति है॥
एक नजर इधर भी :-
एक अनाथ बच्चे और उसे मिली एक नयी माँ की कहानी जो पूरी होने के लिए आपके कमेन्ट कि प्रतीक्षा में है कृपया पोस्ट पर आकर उस कहानी को पूरा करने में मदद करने हेतु सभी मम्मियो और पापाओ से विनती है ॥
http://svatantravichar.blogspot.com/2010/11/blog-post_18.html

M VERMA Thu Nov 18, 06:00:00 pm  

अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
वाह .. बहुत सुन्दर

रेखा श्रीवास्तव Thu Nov 18, 06:12:00 pm  

अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं

बहुत सुंदर बात कही और अपने में छिपाए हुए भावों को खूबसूरत ढंग से उकेरा है.

रचना दीक्षित Thu Nov 18, 06:16:00 pm  

अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
ये बात तो जबरदस्त लगी !!!!!

vandana gupta Thu Nov 18, 06:18:00 pm  

अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं

जो बात बिना कहे कही जाती है वही ज्यादा असरदार होती है……………बेहद उम्दा , दिल को छूती प्रस्तुति।

Deepak Saini Thu Nov 18, 06:30:00 pm  

सुन्दर कविता

लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
वाह वाह

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' Thu Nov 18, 06:31:00 pm  

लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
--
बहुत सही लिखा है आपने!
--
आजकल इण्टरनेट और कम्प्यूटर का युग है,
सब कुछ तो लिखकर चैट में पूरा हो ही जाता है!

shikha varshney Thu Nov 18, 06:32:00 pm  

हम्म बात ठीक कही है दी !.काश ये समझ पाते सब .बहुत ही सटीक और सुन्दर अभिव्यक्ति हमेशा की तरह.

मनोज कुमार Thu Nov 18, 06:35:00 pm  

ये हुई ना बात! ऐसी कविताएं दिल खुश कर देती हैं। इस कविता में शब्दों का अद्भुत्‌ चित्रण,के साथ-साथ मनोभावों का सूक्ष्म विश्लेषण है। कथ्य, बिम्ब योजना, शिल्प-शौष्ठव, चित्रात्मकता की दृष्टि से आपकी यह कविता मुझे श्रेष्ठ लगी।

राजेश उत्‍साही Thu Nov 18, 06:38:00 pm  

जब आंखों से ही सब बयान हो जाए तो लबों का क्‍या काम।

गौरव शर्मा "भारतीय" Thu Nov 18, 06:41:00 pm  

अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
वाकई इन पंक्तियों ने मन मोह लिया ......
सार्थक एवं प्रभावी लेखन के लिए बधाई एवं शुभकामनायें .......

Sunil Kumar Thu Nov 18, 07:21:00 pm  

अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
सुंदर अतिसुन्दर

प्रवीण पाण्डेय Thu Nov 18, 07:22:00 pm  

मुग्ध करती पंक्तियाँ।

deepti sharma Thu Nov 18, 08:06:00 pm  

bahut hi khubsusat tareke se likhi gye gambhir rachna

दिपाली "आब" Thu Nov 18, 08:12:00 pm  

wow.. Great thoutht masi... Alfaazon ko kaid karne ka aur azaad karne ka ye andaaz bahut khoob raha

ZEAL Thu Nov 18, 08:25:00 pm  

बांच ली हैं
मैंने
सारी तहरीरें
तेरी आँखों में ही .
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं ..

-----

Excellent !

.

ashish Thu Nov 18, 08:49:00 pm  

अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं

सुन्दर रचना कहूं तो शायद ये लबो पर गांठ लगाना होगा . इसलिए उत्कृष्ट बोलते हुए सारे गांठ खोलने का उपक्रम कर रहा हूँ ,

www.navincchaturvedi.blogspot.com Thu Nov 18, 09:22:00 pm  

सारी तहरीरें
तेरी आँखों में ही .

सच कहा संगीता स्वरूप जी, आँखें सब कुछ ही तो बोल डालती हैं| सुंदर कविता, बेहतर प्रस्तुति| बधाई स्वीकार करें|

सम्वेदना के स्वर Thu Nov 18, 09:50:00 pm  

वाचाल लबों और बहुत बोलने वाली आँखों में यही फ़र्क है शायद. जहाँ आँखें समेट कर रखती हैं सबकुछ, लब बिखेर देते हैं... संगीता दी, इसी बात से एक और बात दिमाग़ में आई है.. लब पुरुष हैं शायद इसीलिए बिखराव उनका स्वभाव है और आँखें स्त्री, जिन्होंने समेट रखा है सबकुछ ..अल्फाज़ से घर बार तक!!
बहुत सुंदर!!

Sadhana Vaid Thu Nov 18, 09:56:00 pm  

बेहतरीन रचना संगीताजी ! आपकी हर रचना दिल को छूती है लेकिन यह बहुत गहराई तक मन में उतर गयी है ! बहुत सुन्दर ! अनेकानेक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं !

कडुवासच Thu Nov 18, 10:43:00 pm  

... bahut sundar ... behatreen bhaavpoorn rachanaa !!!

Dr Xitija Singh Thu Nov 18, 11:03:00 pm  

अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं ...

वाह !! बहुत खूबसूरत नज़्म संगीता जी ... उम्दा प्रस्तुति ...

डॉ. मोनिका शर्मा Thu Nov 18, 11:55:00 pm  

खूबसूरत .... उत्कृष्ट और गंभीर कविता

लोकेन्द्र सिंह Fri Nov 19, 12:44:00 am  

बहुत अच्छा लगा पढकर...

रानीविशाल Fri Nov 19, 12:52:00 am  

बांच ली हैं
मैंने
सारी तहरीरें
तेरी आँखों में ही .
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
वाह ! बहुत उम्दा ...

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) Fri Nov 19, 01:21:00 am  

hamesha ki tarah ek gehri baat badi khoobsurati se kahi! saadar

प्रतिभा सक्सेना Fri Nov 19, 02:07:00 am  

वाह,सुन्दर अभिव्यक्ति .

Kunwar Kusumesh Fri Nov 19, 08:21:00 am  

"बांच ली हैं
मैंने
सारी तहरीरें
तेरी आँखों में ही .
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं"

कविता में भाव भी है,प्रभाव भी है.
सुन्दर और सार्थक

स्वप्निल तिवारी Fri Nov 19, 09:26:00 am  

bahut zordaar nazm hai mumma....pahli hi line se .. man jud jata hai is nazm se...han "alfaaz" "lafz" ka bahuvachan hai....

राम त्यागी Fri Nov 19, 09:38:00 am  

बहुत ही बेहतर संगीता जी !!

अजित गुप्ता का कोना Fri Nov 19, 09:56:00 am  

उफ। दर्द भरी दास्‍तानों के लिए अब वो नाजुक सा दिल नहीं रहा। अब तो बेशर्म कठोर हो चला है। हा हा हाहा। लेकिन आप लिखती रहें।

Anonymous Fri Nov 19, 10:41:00 am  

awwwesome.....maza aa gaya dadi....aap textbook chodkar hamari duniya mein tehelne aa gayi...ye nazm apni si lagi....too good

POOJA... Fri Nov 19, 11:59:00 am  

सही है... गांठ कोई भी हो जितनी जल्दी खुल जाए उतना अच्छा...

mridula pradhan Fri Nov 19, 12:43:00 pm  

kitna sundre likhi hain aap.wah.

RAJWANT RAJ Fri Nov 19, 03:35:00 pm  

aankhe hi to mn ka aaina hoti hai jo bina bole sare bhed ,sari ganthe khol deti hai .shj prvah me bhti hui bhut bhut umda rchna .thanks

हरकीरत ' हीर' Fri Nov 19, 03:48:00 pm  

लाजवाब ......!!

आपकी नज्मों में पहले से बहुत निखार आ गया है संगीता जी ....
बधाई ....!!

उपेन्द्र नाथ Fri Nov 19, 03:54:00 pm  

लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं

bahoot sahi kaha aapne.. sunder ehasas.

सदा Fri Nov 19, 04:16:00 pm  

बांच ली हैं
मैंने
सारी तहरीरें
तेरी आँखों में ही .

बहुत ही सुन्‍दर पंक्तियां ।

अनुपमा पाठक Fri Nov 19, 04:35:00 pm  

labon ki gaanth bina khole bahut kuch kahti hui sundar rachna!

रंजना Fri Nov 19, 04:42:00 pm  

वाह...क्या बात कही...लाजवाब बेहतरीन !!!

बहुत ही सुन्दर रचना..

Shah Nawaz Fri Nov 19, 04:47:00 pm  

मेज़ पर
बिखरी पड़ी
हमारी बातो को
सहेज कर
रख दिया था
तुमने

बेहतरीन लिखा है.....

प्रेमरस.कॉम

Dr. Zakir Ali Rajnish Fri Nov 19, 05:10:00 pm  

संगीता जी, बहुत प्‍यारी है यह गांठ। क्‍यों न इसे गांठ ही रहने दिया जाए, हो सकता है कि इसी बहाने एक और सुंदर कविता पढने को मिल जाए।

---------
वह खूबसूरत चुड़ैल।
क्‍या आप सच्‍चे देशभक्‍त हैं?

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" Fri Nov 19, 07:44:00 pm  

बेहतरीन ! प्रशंसा के लिए शब्द नहीं है ...

अनामिका की सदायें ...... Fri Nov 19, 08:36:00 pm  

आँखों की भाषा समझ आ जाये तो फिर क्या जरुरत है लबों को खोलने की.

सुंदर अभिव्यक्ति.

सु-मन (Suman Kapoor) Fri Nov 19, 08:53:00 pm  

बहुत सुन्दर......गहरी अभिव्यक्ति..........

विनोद कुमार पांडेय Sat Nov 20, 12:09:00 am  

लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं

वाह..बहुत खूब कही आपने..सुंदर कविता..बधाई

केवल राम Sat Nov 20, 08:36:00 am  

तेरी आँखों में ही .
लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं

बहुत सही ...लबों कि गांठ ..अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता ..उन्मुक्त भावों कि उड़ान ..शुभकामनायें

रश्मि प्रभा... Sat Nov 20, 09:36:00 am  

लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
waah .....

Avinash Chandra Sat Nov 20, 12:40:00 pm  

हैं!!!!!!
जादू है ये... वाह!
कितना प्यारा...कितना अच्छा सा!
छूट कैसे गई ये मुझसे? :(

दिगम्बर नासवा Sat Nov 20, 03:08:00 pm  

लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं ..

बहुत खूब ... गज़ब की अभिव्यक्ति है ... कुछ कहने के लिए शब्दों की जरोरत वैसे भी नहीं होती ...

अंजना Sun Nov 21, 03:02:00 pm  

nice....

Shri Guru Nanak Dev ji de guru purab di lakh lakh vadhaian hoven ji

alok dixit Sun Nov 21, 04:33:00 pm  

आप की कविता पढ़ कर आनंद मिला

दखलंदाजी ब्लाग पर विजिट करके अपना कीमती समय देने के लिए मै आप का आभारी हूँ
धन्यवाद

राजकुमार सोनी Sun Nov 21, 05:02:00 pm  

बहुत ही प्यारी रचना
आपको बधाई

Manav Mehta 'मन' Sun Nov 21, 10:46:00 pm  

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ........

देवेन्द्र पाण्डेय Mon Nov 22, 07:22:00 am  

लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
..बहुत खूब. अच्छी लगीं ये पंक्तियाँ।
..चर्चा मंच नहीं खुल रहा है।

देवेन्द्र पाण्डेय Mon Nov 22, 07:22:00 am  

लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
..बहुत खूब. अच्छी लगीं ये पंक्तियाँ।
..चर्चा मंच नहीं खुल रहा है।

देवेन्द्र पाण्डेय Mon Nov 22, 07:22:00 am  

लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
..बहुत खूब. अच्छी लगीं ये पंक्तियाँ।
..चर्चा मंच नहीं खुल रहा है।

Khare A Mon Nov 22, 08:01:00 am  

me najar se pi raha hun, ye sama badal na jaye
mera jam chhune wale tere hoth jal na jaye,

jo bat najar seki jati he, wo juban se nhi ki ja sakti

sundar abhivyakti

ज्ञानचंद मर्मज्ञ Mon Nov 22, 04:49:00 pm  

ठीक ही कहा है `ये आँखें बोलती हैं `! हृदय की भावनाओं की अभिव्यक्ति सच कहें तो आँखों से ही होती है !
बहुत ही भावपूर्ण कविता !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

Dorothy Mon Nov 22, 11:21:00 pm  

लफ़्ज़ों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं

गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.

हरीश प्रकाश गुप्त Tue Nov 23, 09:16:00 am  

भाव प्रधान कविता के लिए आभार।

Anonymous Tue Nov 23, 01:57:00 pm  

मेज़ पर
बिखरी पड़ी
हमारी बातो को
सहेज कर
रख दिया था
तुमने

बहुत प्यारी रचना! एकदम अलग तरह का प्रयोग, बेहद सादे ढंग से कही गयी बात को इतना ख़ूबसूरत बना दिया कहने के अंदाज ने . इसको पढ़ कर गुलजार जी का एक गीत "मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है" याद आ गया. बहुत प्यारी रचना! एकदम अलग तरह का प्रयोग, बेहद सादे ढंग से कही गयी बात को इतना ख़ूबसूरत बना दिया कहने के अंदाज ने . इसको पढ़ कर गुलजार जी का एक गीत "मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है" याद आ गया. यह गुलजार जी का विशिष्ट अंदाज ही था जिसने इस गीत को खास बना दिया

मंजु

उस्ताद जी Tue Nov 23, 04:09:00 pm  

7/10

उत्कृष्ट रचना / पठनीय
अच्छी कविता मन को तृप्त कर जाती है.
मनोभावों की गहन अभिव्यक्ति जादुई प्रभाव छोडती है. प्रशंसा करने को बाध्य हूँ कि एक बहुत सुन्दर कविता सामने आई है

Urmi Wed Nov 24, 06:41:00 am  

वाह! शानदार रचना! आपकी लेखनी को सलाम!

मंजुला Wed Nov 24, 04:34:00 pm  

bahuit hi sundar ...sach may.....

#vpsinghrajput Sun Nov 28, 01:53:00 pm  

बहुत ही अच्छी प्रस्तुति है॥
************************
चची जी, अगर हमसे कोई गलती हुई हो तो माफ़ करना लेकिन अपना असिर्वाद बनाये रखिये आप के असिर्वाद की मुझे बहोत जरुरत हैं. थोडा परीछा के कारण ब्लोग्स पे समय नहीं दे पा रहाँ हूँ . मैं भी अपने ब्लोग्स को आप की तरह सजाना चाहता हु आप हेल्प करे मुझे सरे कोड सेंड करे
आप का विजय प्रताप सिंह राजपूत

Amrita Tanmay Wed Dec 01, 03:50:00 pm  

बेहतरीन रचना ......सच कहा .. गांठ खोलना जरुरी तो नहीं है . पर इस कदर आपका गांठ खोलना बहुत पसंद आया .

पूनम श्रीवास्तव Sun Dec 05, 08:55:00 pm  

sangeeta di
bahut hi sargarbhit avam behatreen prastuti--
रानीविशाल said...
बांच ली हैं
मैंने
सारी तहरीरें
तेरी आँखों में ही .
अल्फाजों को
बेतरतीब
करने के लिए
लबों की गाँठ
खोलना ज़रूरी नहीं
वाह ! बहुत उम्दा
poonam .

***Punam*** Wed Dec 08, 01:52:00 am  

vakai main betarteeb lafzo per hi gaanth lagai jati hai fir hum unhen khol her bikhrayen kyon? bhalai isi main hai ki ganth hi lagi rahne di jaye...shukriya !!

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) Fri Dec 10, 01:34:00 am  

संगीता जी बहुत सुन्दर आपने लिखा है. मन के भावों को कितनी खूबसूरती से पिरोया है.

रफ़्तार

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