सिर्फ एक गुज़ारिश .....
>> Wednesday 24 November 2010
तेरी बातों की
रुखाई ने
ला दी थी नमी
मेरी आँखों में
और तुमने
बो दिए थे बीज
कुछ उदासी के ,
अब अंकुरित हो
सज गए हैं वो
खामोशी के पत्तों से .
आज जब
बन गया है वो
विशाल वृक्ष
और आ गया है
दोनों की
राह के बीच ,
तो चाहते हो कि
काट डाला जाये इसे .
बस एक
गुज़ारिश है तुमसे
कम से कम
अब तो पर्यावरण का
लिहाज करो ..
.
101 comments:
बडी गहरी बात कह दी…………काश ! ये उदासी का बीज वटवृक्ष बनने से पहले ही काट दिया गया होता तो आज पर्यावरण संवर गया होता……………बेहद उम्दा प्रस्तुति।
आज जब
बन गया है वो
वट वृक्ष
और आ गया है
दोनों की
राह के बीच ,
तो चाहते हो कि
काट डाला जाये इसे
दी ! कभी कभी न मैं अचंभित रह जाती हूँ ,कि कैसे मन के इतने सूक्ष्म से भाव को आप इतने सटीक शब्द और अभिव्यक्ति दे देती हो ,पढकर लगता है " हाँ यही तो ..."क्या कहूँ..सब कुछ तो आपने इन पंक्तियों में कह दिया .
बस एक
गुज़ारिश है तुमसे
कम से कम
अब तो पर्यावरण का
लिहाज करो ..
सरल शव्दों में बहुत कुछ कह दिया आपने ....कवता नए बिम्बों के साथ अर्थ सम्प्रेषण में सक्षम है ..शुक्रिया
मन के सूक्ष्म भावो का बहुत सुनार चित्रण ....
... bahut sundar ... behatreen rachanaa !!!
मन के सूक्ष्म भावो का बहुत सुन्दर चित्रण ..
तेरी बातों की
रुखाई ने
ला दी थी नमी
मेरी आँखों में
और तुमने
बो दिए थे बीज
कुछ उदासी के ,
अब अंकुरित हो
सज गए हैं वो
खामोशी के पत्तों से .
are baap re ... ye patte khamosh hoker kitna kuch kah gaye
"न रुखाई होती ना नयन भीग पाते, कर गए वो उदास जाते जाते " . भावो से लबालब , सुन्दर बिम्ब से लदी फदी कविता .
मन का आवरण पर्यावरण क्यों छिपाया जाये।
उदासी के बीज का अंकुरण....
और उसका वटवृक्ष बन जाना..!
हृदयस्पर्शी विम्ब!
सादर!
bahut shaandar masi..
Ek baar udasi ke beej ankurit ho gaye to unka vaise b koi ilaaj nahi hai..
Love u
बस एक
गुज़ारिश है तुमसे
कम से कम
अब तो पर्यावरण का
लिहाज करो..
क्या बात है , बहुत सुन्दर और गूढ़ बात कह दी आपने संगीता जी !
जीवन की अभिव्यक्ति को इस तरह पर्यावरण से जोड़ देना बस आप के ही बस की बात है !
आपकी इस भावपूर्ण रचना ने मन को छू लिया !
बधाई हो !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
मन के कोमल भाव को पर्यावरण के बिम्ब से प्रस्तुति
बहुत सुन्दर लगी, सरल शब्दो मे बहुत गहरी बात कह
दी, भावभिनी रचना के लिए बधाई ।
बस एक
गुज़ारिश है तुमसे
कम से कम
अब तो पर्यावरण का
लिहाज करो ..
-शानदार!!
anusarniy gujarish .
bahut sundar bhavo ki gujarish
abhar
हमेशा की तरह आपने जनहित को सबसे पहले महत्व दिया। काफी गहरी बात है।
बहुत ही शानदार भावोँ को संजोया है आपने कविता मेँ। बहुत - बहुत आभार दी!
तेरी बातों की
रुखाई ने
ला दी थी नमी
मेरी आँखों में
और तुमने
बो दिए थे बीज
कुछ उदासी के ,
अब अंकुरित हो
सज गए हैं वो
खामोशी के पत्तों से
मन को छू लेने वाली रचना...
Aaj bhi gar ham apni kuchh oorja paryawaran ke liye arpan karen to thodi bahut uski raksha ho sakti hai!
अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया. मन के भावों का इतना ख़ूबसूरत चित्रण!
sabdo m gahrayi
bahut sunder
उदासी का बरगद और प्रेम का पर्यावरण... मुझे नहीं लगता कि पहले किसी ने ऐसी सोच बयान की होगी!! संगीता दी! आज बस मज़ा आ गया!!!
आज जब
बन गया है वो
वट वृक्ष
और आ गया है
दोनों की
राह के बीच ,
तो चाहते हो कि
काट डाला जाये इसे ....
गहरी बात कही है आपने ... बहुत खूब .... बहुत खूबसूरत नज़्म संगीता जी ...
बस एक
गुज़ारिश है तुमसे
कम से कम
अब तो पर्यावरण का
लिहाज करो ..
वाह संगीता जी सच मे ही रिश्तों का पर्यावरण दिन व दिन दूशित होता जा रहा है। बहुत सुन्दर ,दिल को छूने वाली अभिव्यक्ति है। शुभकामनायें।
ख़ामोशी के पत्तों सजना और वट वृक्ष बन जाना आधुनिक जीवन की अक्सर घटित होनेवाली घटना है . सबसे ज्यादा आश्चर्य हुवा नारी के दो रूपों को देखकर जब ख़ामोशी के पत्ते सज रहे थे तब वह भी खामोश थी शायद किसी उम्मीद में किन्तु वट वृक्ष बन जाने के बाद कितनी दृढ़ता से अपनी बात रख रही है, नकार रही है, अस्वीकृत कर रही है. नारी का सशक्त चित्रण है .
आज जब
बन गया है वो
वट वृक्ष
और आ गया है
दोनों की
राह के बीच ,
तो चाहते हो कि
काट डाला जाये इसे
गहन अर्थों और आयामों को समेटे बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.
बहुत ही खुबसूरत कविता संगीता जी....
आपका लेखन हमेशा से ही प्रभावी रहा है ....
बहुत ही सुंदर और लाजवाब भाव. प्रणाम.
रामराम.
काश वो उदासी के बीजों से अंकुरित छायादार वटवृक्ष ही होता....
सीख देती रचना.
bhut sunder rachna....
dil to chahta hai teri god sitaron se bharun- mere daman men to gurbat ke siwa kuch bhi nahi
हमेशा की तरह बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना ! एक नाज़ुक सा ख्याल लेकिन बहुत सशक्त एवं प्रभावी अभिव्यक्ति ! संगीताजी आपको इतनी बढ़िया प्रस्तुति के लिये ढेर सारी बधाइयां और शुभकामनाएं !
बहुत उम्दा.
ye gujaarish kabile gaur hai!
प्रेम पर्यावरण का अदभुद समन्वय . सुन्दर कविता..
कितनी आसानी से इतनी बड़ी बड़ी बातें कह देती है आप अपनी अभिव्यक्तियों में ....भाव प्रधान रचनाओं की धनी तो है ही , शब्द भी चुन चुन कर संजोती है ....आभार
bahut hi sunder likhti hain aap... bahut sunder chitran rishton ki haquikat ka..!
क्या बात है संगीता जी.
बस एक
गुज़ारिश है तुमसे
कम से कम
अब तो पर्यावरण का
लिहाज करो ...सुन्दर अभिव्यक्ति..
खामोशियों में पनपे पर्यावरण में बाते करना कितना असहज सा हो जाता है.. जब मौन एक आदत बन जाये... इस भावना को बहुत सुन्दर अलफ़ाज़ में बयाँ किया संगीता जी ने.. बहुत खूब..
kya khoob nazm hai dadi....what an image...aur aakhir ka twist...killer!! tooooo good dadi...amazing :)
कम से कम
अब तो पर्यावरण का
लिहाज करो ..
ye ab kab hoga di.....:(
aapke chhote chhote kshhando me sab kuchh kaise sama jata hai..!!
Di aap bahut dino se mere blog pe nahi aa rahe ho..........ye meri sikayat hai aapse:D
bahut achchi lagi.
बस एक
गुज़ारिश है तुमसे
कम से कम
अब तो पर्यावरण का
लिहाज करो --
----
behatreen abhivyakti .
.
संगीता जी, कविता नि:संदेह बहुत अच्छी है। बस एक बात खटकती है उसे बताना आवश्यक समझ रही हूँ इसलिए बता रही हूँ, कृपया अन्यथा ना लें। वटवृक्ष भारतीय राष्ट्रीय वृक्ष है, इसलिए इसे काटने पर पाबन्दी है। यह पेड़ हमारे पारिवारिक जीवन और संस्कृति का परिचायक भी है इसलिए कभी भी किसी की राह का रोडा नहीं बनता। आप यदि वटवृक्ष के स्थान पर झाड़ शब्द का प्रयोग करेंगी तो आपत्ति रहित हो जाएगा।
सभी पाठकों का हृदय से आभार ...
@@ अजीत जी ,
बहुत बहुत शुक्रिया ..इस बात पर ध्यान दिलाने का ..वैसे मुझे लगा था कि शायद पीपल का ही पेड़ लोंग नहीं काटते ...मैंने शब्द बदल दिया है ..आभार
अब तो पर्यावरण का
लिहाज करो ..
उदासी के बीज को इतना बड़ा होने ही क्यूँ दिया ...
अनूठी सी कल्पना ...!
बस एक
गुज़ारिश है तुमसे
कम से कम
अब तो पर्यावरण का
लिहाज करो ..
bahut badhhiya gujaarish hai yeh!..paryaavaran ko banaae rakhane ke liye!
आज जब
बन गया है वो
विशाल वृक्ष
बहुत ही गहरी बात ....भावमय करती प्रस्तुति ।
गीत अत्यन्त भावपूर्ण है। बधाई।
देरी का दंड तो यही है कि कम शब्दों में अपनी बात रखी जाए। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार::आज महिला हिंसा विरोधी दिवस है
हमेशा कि तरह लाजवाब रचना के लिए मैडम जी का आत्मीय धन्यवाद.
बस एक
गुज़ारिश है तुमसे
कम से कम
अब तो पर्यावरण का
लिहाज करो
अच्छा विषय चुना है
are mummaa..kamal hai ye to ....bahut badhiya nazm hai ... aapne kai paryavarnon kee bat kar di ..admee ke bheetar kee bhi ..admi ke bahar ki bhi ...:) shaandar nazm hai
wowwwwwwwww...ending to kamaal hai....:):)
achhi poem Mumma........shuru wala para bahut achha hai....khamoshi k patton wala..:)
उदासी और बेरुखी के
विशाल वृक्ष का बीच राह में आ खडा होना
उस पर पर्यावरण की चिंता
मननीय है ....
भावपूर्ण कृति के लिए अभिवादन
और शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया .
इन्हीं भावों को ओशो सिद्धार्थ इन शब्दों में व्यक्त करते हैं-
"है कलह उत्स पर क्षीण धार
तुम रूप नदी का देते हो
फिर बाढ़ कभी जो आ जाती
तुम गंवा सभी कुछ रोते हो"
गहरी सोच... प्यारी रचना...
बस एक
गुज़ारिश है तुमसे
कम से कम
अब तो पर्यावरण का
लिहाज करो --
...sach mein ab nahi sambhle to phir sabhalne ka mauka nikal jaayega.. parayawan jaagrati bahut aawasyak ban gaya hai... is disha mein saarthak prasuti ke liye aabhar
बस एक
गुज़ारिश है तुमसे
कम से कम
अब तो पर्यावरण का
लिहाज करो --
बेहद उम्दा प्रस्तुति।
बस एक
गुज़ारिश है तुमसे
कम से कम
अब तो पर्यावरण का
लिहाज करो ..
वाह इन पंक्तियों ने तो जैसे सब कुछ कह दिया.....
बेहतरीन और शानदार रचना के लिए बधाई स्वीकार करें |
तेरी बातों की
रुखाई ने
ला दी थी नमी
मेरी आँखों में
....wah!...kitne sundar shabd!
कम से कम, अब तो पर्यावरण का ,लिहाज करो ..सचमुच बहुत अच्छी पंक्तियां हैं। बधाई!
बहुत ही सुन्दर पंक्तिया लिखी है आपने ...
शुभकामनाएं
उम्दा रचना.....
waah
adabhut baat
नेटकास्टिंग:प्रयोग
लाईव-नेटकास्टिंग
Editorials
प्रेम और पर्यावरण को बहुत खूबसूरती से जोडा है आपने
आपकी रचनाओं की सूक्ष्मता और उसके बारीक भाव अत्यंत मुग्ध करने वाले होते हैं.
वृक्ष कटना यूँ तो पर्यावरणीय क्षति हैं पर गर उदासी के हैं तो कट ही जायें तो अच्छा.
sangita ji apki har rachna mere dil ke bhitar tak chhu jati hai.kam shabdo me bahut kuch kahana apki rachnavonki visheshta mujhe bahut achhi lagi..........
बेहद उम्दा प्रस्तुति !
बहुत सुंदर मार्मिक रचना...दिल को छू जाने वाली
भावपूर्ण अभिव्यक्ति.............
खुबसूरत रचना -- दिल की गहराइयों को छूती हुई - सस्नेह
आपकी रचनाओं में एक सुन्दर भाव प्रलक्षित होता है -- यूँ लगता है जैसे कोई सांध्य प्रदीप तुलसी तले स्निग्ध रूप से प्रज्वलित है- अभिनन्दन सह /
बहुत खूब .....शुभकामनायें आपको !
तेरी बातों की
रुखाई ने
ला दी थी नमी
मेरी आँखों में
और तुमने
बो दिए थे बीज
कुछ उदासी के ,
अब अंकुरित हो
सज गए हैं वो
खामोशी के पत्तों से .
behatreen panktiyan !
बहुत - बहुत आभार संगीता जी , आपने इस काबिल समझा ..यकीन नहीं हो रहा है, अभी तो कल ही तो मैंने चर्चा मंच पर अपने ब्लॉग को रजिस्टर किया था ..आपके इस स्नेह से मैं अभिभूत हूँ ..बहुत- बहुत धन्यवाद
बहुत ही सुन्दर रचना.
संगीता जी,
देर से आने की माफ़ी चाहता हूँ मुझे नहीं पता था की आप अपना ब्लॉग लिखती हैं मैंने सोचा शायद चर्चामंच ही....
बहुत सुन्दर लगी कविता....और अंत बहुत खूब किया आपने ....कुछ तो पर्यावरण का लिहाज़ करो.....वाह बहुत सुन्दर|
बहुत सुंदर, आपके भावों का सागर ऐसे ठाठें मारता है कि पता नहीं कैसे कैसे मोti किनारे पर लाकर छोड़ जाता है और हम उनको निहारा करते हैं और सराहा करे हैं.
आपका, बेहद खूबसूरती के साथ ...नरमी से जज्बातों को रखना दिल को छू जाता है . बहुत सुन्दर ...
उदासी के वृक्ष को तो जब मौका मिले तब काट देना चाहिए। इससे पर्यावरण की रक्षा होगी। जैसे जहरीले वृक्षों को काटने से होती है।
संगीता माँ,
नमन है आपको!
पहले शिकायत के उदासी का वृक्ष बीज दिया, और अब पर्यावरण की दुहाई जब पेड़ काटने की बारी आयी!
मानना पड़ेगा....
आशीष
--
नौकरी इज़ नौकरी!
तेरी बातों की
रुखाई ने
ला दी थी नमी
मेरी आँखों में
और तुमने
बो दिए थे बीज
कुछ उदासी के ,
अब अंकुरित हो
सज गए हैं वो
खामोशी के पत्तों से .
.....
ख़ामोशी की दास्ताँ गहरे अर्थ लिए हैं. शुभकामना .
बहुत सुंदर ,......इतना दर्द समेटे है यह रचना कि पर्यावरण एक अवरोध सा लगता है !
कम से कम पर्यावरण का तो लिहाज़ करो।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
sundar bahut sundar,
बस एक
गुज़ारिश है तुमसे
कम से कम
अब तो पर्यावरण का
लिहाज करो ..
...Bahut sarthak sandesh...Nice one !!
आज जब
बन गया है वो
विशाल वृक्ष
और आ गया है
दोनों की
राह के बीच ,
तो चाहते हो कि
काट डाला जाये इसे .
wah............sangeetaji.......dil ko choo gaee ye lines
कितनी खूबसूरती से आपने संदेश दिया
आपकी गुजारिश का हमेशा ख्याल रखूंगी
Beautiful really ! i am following u. pl follow me.
उम्दा प्रस्तुति............
बहुत सुंदर मार्मिक रचना...प्रेम के माध्यम से बहुत खूबसूरत संदेश
आज जब
बन गया है वो
विशाल वृक्ष
और आ गया है
दोनों की
राह के बीच ,
तो चाहते हो कि
काट डाला जाये इसे
उपर्युक्त पंक्तियों का कोई जवाब नही...एक बेहतरीन भाव समेटे हुए सुंदर रचना...बधाई स्वीकारें संगीता जी
ankhon main nami lane wale ko ye ehsaas nahi hota ki vo udasi ke beez bo raha hai,lekin jab vriksh bada ho jata hai tab vo hi kaat dalna bhi chahta hai...per tab tak us vriksh ki na jane kitni shakhayen nikal chuki hoti hain...yatharth ke bahut hi nazdeek apki kavita hai..shukriya !!
Nice post .
औरत की बदहाली और उसके तमाम कारणों को बयान करने के लिए एक टिप्पणी तो क्या, पूरा एक लेख भी नाकाफ़ी है। उसमें केवल सूक्ष्म संकेत ही आ पाते हैं। ये दोनों टिप्पणियां भी समस्या के दो अलग कोण पाठक के सामने रखती हैं।
मैं बहन रेखा जी की टिप्पणी से सहमत हूं और मुझे उम्मीद है वे भी मेरे लेख की भावना और सुझाव से सहमत होंगी और उनके जैसी मेरी दूसरी बहनें भी।
औरत सरापा मुहब्बत है। वह सबको मुहब्बत देती है और बदले में भी फ़क़त वही चाहती है जो कि वह देती है। क्या मर्द औरत को वह तक भी लौटाने में असमर्थ है जो कि वह औरत से हमेशा पाता आया है और भरपूर पाता आया है ?
अब तो पर्यावरण का
लिहाज करो ..वाह मोहतरमा अनूठा ख्याल है
संगीता जी, आपकी सुंदर कविता के लिये यह सौवीं टिप्पणी है , सो पहले तो बधाई स्वीकारें, आप सचमुच ब्लॉग जगत में एक प्रेरणा स्रोत बन गयी हैं !
bahut badiya nazm...
Post a Comment