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.ना बोले तुम ना मैंने कुछ कहा.. ( तांका )

>> Monday 7 May 2012





घना सन्नाटा 
मौन की चादर  में 
दोनों लिपटे 
न तुम कुछ  बोले 
न ही मैं कुछ  बोली 

लब खुलते 
गिरह ढीली होती 
मन मिलते 
कुछ मोती झरते 
कुछ दंश हरते ।

गहन घन 
छंट जाते पल में 
उजली रेखा 
भर देती  मन में 
अनुपम उल्लास ।

 

तांका  में  पाँच पंक्तियाँ होती हैं ..... जिनमें वर्णो  की संख्या ..... 5-7-5-7-7  होती है । 

50 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया Wed May 09, 12:16:00 pm  

गहन घन
छंट जाते पल में
उजली रेखा
भर देती मन में
अनुपम उल्लास ।

भाव पुर्ण सुंदर प्रस्तुति,..

my recent post....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

ANULATA RAJ NAIR Wed May 09, 12:17:00 pm  

बहुत सुंदर दी..............
मात्राओं की बंदिशों के बावजूद भावों को इतनी सुंदरता से व्यक्त करना ..लाजवाब.....

सादर.

ऋता शेखर 'मधु' Wed May 09, 12:17:00 pm  

बहुत सुंदर लिखा है...ये विधा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है...बधाई !!!

vandana gupta Wed May 09, 12:19:00 pm  

वाह बहुत खूबसूरत तांका हैं भावो को खूब पिरोया है

yashoda Agrawal Wed May 09, 12:22:00 pm  

दी.......
बहुत सुन्दर रचना.....
सब मौन में ही कह डाला
प्रस्तुत है सोनल चौधरी की चार लाईने....
'सुने गौर से कोई कभी तो
औरत की खामोशी को
वो कितना कुछ है कह जाती
बिन कुछ कहे भी'
सादर
यशोदा

रश्मि प्रभा... Wed May 09, 12:22:00 pm  

टीचर जी :) ... आपके कमाल में और क्या क्या है ? बहुत बढ़िया यह भी ...

Aruna Kapoor Wed May 09, 12:27:00 pm  

नपे तुले...लेकिन सुन्दर शब्दों में...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!...बधाई!

shikha varshney Wed May 09, 12:31:00 pm  

कम से कम शब्दों में सब कुछ कह देना आपकी खासियत है.
इस रचना में भी भाव पूरी तरह परिलक्षित हो रहे हैं.
सुन्दर .

मुकेश कुमार सिन्हा Wed May 09, 12:33:00 pm  

didi aapse jana kya hota hai tanka
par jo bhi hota hai... badhiya hai:)

Expression ne sach kaha, bandison ke baad bhi bhaw pyare ubhar ke aaye:)

Unknown Wed May 09, 12:38:00 pm  

as always... very nice....


www.rahulpoems.blogspot.com

or

http://www.youtube.com/watch?v=z4wd0WzzC_k

सहज साहित्य Wed May 09, 12:42:00 pm  

आपके सभी ताँका भावपूर्ण हैं संगीता जी । मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Sadhana Vaid Wed May 09, 12:43:00 pm  

बहुत सुन्दर ताँका हैं संगीता जी ! गहन भावाभिव्यक्ति है इन चंद पंक्तियों में ! अति उत्तम !

डॉ टी एस दराल Wed May 09, 01:16:00 pm  

बिना बोले ही , मौन सब कुछ कह देता है .
सुन्दर भाव .

मनोज कुमार Wed May 09, 01:17:00 pm  

कविता मुझे अच्छी लगी। अच्छी इसलिए भी लगी कि इसमें समस्या है और समाधान भी।
संवाद बना रहे तो हर समस्या हल हो सकती है, वरना तो गांठ के ऊपर गांठ पड़ने की नौबत आ जाती है।

Pallavi saxena Wed May 09, 01:26:00 pm  

मौन की भी अपनी एक खासियत और खूबसूरती हुआ करती है गहन भाव आभिव्यक्ति

प्रतुल वशिष्ठ Wed May 09, 03:14:00 pm  

मेरा भी अन्य काव्य-प्रेमियों की तरह मन प्रफुल्लित हुआ.
मेरे लिये यह खाँचा नवीन है. भाव को ढालने में इसका प्रयोग आनंद देगा.
आप तो अभ्यस्त हैं इसके.... नौसिखुओं के लिये अभी तो बस 'खिलौना' है.

ऐसे प्रयोग होते रहे तो हम इस ब्लॉग के इर्द-गिर्द मंडराते रहेंगे. :)


एक प्रश्न है :

इन पंक्तियों में तुक तो कहीं नहीं भीड़ रही, फिर इसे 'तांका' क्यों कहते हैं? :)
क्या कवि इस स्टाइल में कहकर कोई 'टांका' तो नहीं भिड़ाता? :)


सोचता हूँ शायद, भावों की सिलाई करते हुए एक समान दूरी पर [५-७, ५-७,७] अल्पविरामों को टांकने के कारण ही इसका नाम 'तांका' पड़ा है.

कुछ भी हो सकता है... मैं तो केवल अनुमान लगा-लगाकर खुश हो रहा हूँ... यही तो है नौसिखुओं का खेल. :)

Dr.NISHA MAHARANA Wed May 09, 03:14:00 pm  

bahut hi gahan abhiwayakti....

संगीता स्वरुप ( गीत ) Wed May 09, 03:53:00 pm  

प्रतुल जी ,

अब ये टांका भिड़ रहा है या नहीं मुझे नहीं पता ...इस विधा में यह मेरा प्रथम प्रयास ही है ....अब अब जापानी विधा को अपनाएँगे तो कुछ तो भिड़ाएंगे ही न .... कम से कम इसी बहाने से आप ब्लॉग पर आए तो .... शुक्रिया

प्रवीण पाण्डेय Wed May 09, 05:06:00 pm  

छन्द व्यक्त शब्दों का रंग..

ashish Wed May 09, 05:54:00 pm  

ये तांका -झाँका तो बहुत अच्छा लगा . हमने तो पहली बार सुना तांका के बारे में . ये जापानी लोग की कविता हमेशा छुटकी सी क्यू होती है उनकी कद की तरह . वैसे भाव तो उत्तम है .

विभूति" Wed May 09, 07:20:00 pm  

घना सन्नाटा
मौन की चादर में
दोनों लिपटे
न तुम कुछ बोले
न ही मैं कुछ बोली..... सब कुछ कह गयी ये पंक्तिया....... बहुत ही खूबसूरती स वयक्त किया है मन के भावो को.......

mridula pradhan Wed May 09, 07:57:00 pm  

लब खुलते
गिरह ढीली होती
मन मिलते
कुछ मोती झरते
कुछ दंश हरते bahut sunder kavita.....

kshama Wed May 09, 08:30:00 pm  

गहन घन
छंट जाते पल में
उजली रेखा
भर देती मन में
अनुपम उल्लास ।
Kitni sukhdayak baat kahee hai aapne!

Anupama Tripathi Wed May 09, 08:46:00 pm  

उजली रेखा
भर देती मन में
अनुपम उल्लास ।
अनुपम अनुभूति ...अनुपम कृति ....
बहुत सफल है आपका प्रयास .....
शुभकामनायें .....!

डॉ. मोनिका शर्मा Wed May 09, 10:13:00 pm  

अति सुंदर ....बेहद भावपूर्ण पंक्तियाँ

Taru Wed May 09, 10:39:00 pm  

शब्द और मौन दोनों ही कितनी बार व्यक्ति को विषम से विषम परिस्थतियों से सफलतापूर्वक बाहर खींच लाते हैं, यदि विवेकपूर्ण unse kaam liya जाए तो ।
मम्मा, is nayi विधा से परिचय कराने के लिए ढेर सारा स्नेह :):)
charan sparsh !! :)

प्रतिभा सक्सेना Wed May 09, 10:51:00 pm  

बंदिशों में रह कर लिखना आसान नहीं होता - पर आपने फिर भीबहुत अच्छा लिखा !

वाणी गीत Thu May 10, 07:03:00 am  

तांका के साथ ताका झांकी में भावों ने बाजी मारी ...
मौन में प्रेम झरता है मगर कभी बहुत अखरता है:)

Gyan Darpan Thu May 10, 07:08:00 am  
This comment has been removed by the author.
Nidhi Thu May 10, 07:18:00 am  

नयी विधा से परिचय कराने के लिए शुक्रिया!!कह देने से कई मुश्किलें हल हो जाती हैं

पी.सी.गोदियाल "परचेत" Thu May 10, 09:35:00 am  

गहन घन
छंट जाते पल में
उजली रेखा
भर देती मन में
अनुपम उल्लास ।
सुन्दर भाव, मानो कुछ देर पहले गुल हुई बिजली अचानक लौट आई हो !

Unknown Thu May 10, 10:11:00 am  

सुन्दर शब्दों में बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! बढ़िया प्रस्तुति !

क्या आप भी कुछ मुफ्त में लेना चाहेगे ? तो मेरे नए ब्लॉग पर आप कुछ भी ले सकते है, वो भी बिलकुल ही मुफ्त (फ्री) में
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sangita Thu May 10, 12:02:00 pm  

भाव पुर्ण सुंदर प्रस्तुति,..

Rajesh Kumari Thu May 10, 07:27:00 pm  

आपसे अपेक्षा के अनुसार बहुत सधे हुए गेयता में उत्तम अपनी बात पूर्णतः कहने में सक्षम ताँके बहुत बधाई संगीता जी

virendra sharma Thu May 10, 08:44:00 pm  

गहन घन
छंट जाते पल में
उजली रेखा
भर देती मन में
अनुपम उल्लास ।
.............
भाव -पूर्ण विचलित करती प्रस्तुति गहरी संवेदना से संसिक्त .
लेकिन न कुछ तुम बोले ,

मैं ...शानदार तांका...नया अनुभव ,पढने का ,महसूस करने का 'तांका '
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/f/f9/Sati_ceremony.jpg
.कृपया यहाँ भी पधारें -
बुधवार, 9 मई 2012
शरीर की कैद में छटपटाता मनो -भौतिक शरीर
जीवन में बड़ा मकसद रखना दिमाग में होने वाले कुछ ऐसे नुकसान दायक बदलावों को मुल्तवी रख सकता है जिनका अल्जाइमर्स से सम्बन्ध है .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
बुधवार, 9 मई 2012
http://veerubhai1947.blogspot.in/
बुधवार, 9 मई 2012
.
http://veerubhai1947.blogspot.in/

virendra sharma Thu May 10, 08:48:00 pm  

भाव -पूर्ण विचलित करती प्रस्तुति गहरी संवेदना से संसिक्त .
लेकिन न कुछ तुम बोले ,

मैं ...शानदार तांका...नया अनुभव ,पढने का ,महसूस करने का 'तांका '
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/f/f9/Sati_ceremony.jpg
.कृपया यहाँ भी पधारें -
बुधवार, 9 मई 2012
शरीर की कैद में छटपटाता मनो -भौतिक शरीर
जीवन में बड़ा मकसद रखना दिमाग में होने वाले कुछ ऐसे नुकसान दायक बदलावों को मुल्तवी रख सकता है जिनका अल्जाइमर्स से सम्बन्ध है .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
बुधवार, 9 मई 2012
http://veerubhai1947.blogspot.in/
बुधवार, 9 मई 2012
.
http://veerubhai1947.blogspot.in/

Vaanbhatt Thu May 10, 10:54:00 pm  

तांका...प्रयोग पसंद आया...बातों को कहने की नयी-नयी विधाएं...इजाद हो रहीं हैं...और इसे सबके समक्ष लाने के लिए...शुक्रिया...

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) Fri May 11, 08:38:00 am  

नई विधा ताँका में प्रथम प्रयास सार्थक.बधाई.
दोनों इस कश्मकश में,पहले बोले कौन
सन्नाटा बढ़ता गया, दोनों प्राणी मौन
दोनों प्राणी मौन,अगर लब खुलते थोड़े
ढीली होती गाँठ , झरते मोती निगोड़े
छँटते बादल गहन,विचरते नील गगन में
मन अनुपम उल्लास समा जाता जीवन में

Amrita Tanmay Fri May 11, 09:05:00 am  

तांका में झाँका ही नहीं ..ठहर भी लिए...

M VERMA Fri May 11, 12:23:00 pm  

न तुम कुछ बोले
न ही मैं कुछ बोली

अनबोले फिर भी गुंजायमान रहे होगे

अनामिका की सदायें ...... Fri May 11, 08:22:00 pm  

Maafi chaahti hun aap ki post tak pahunchne me deri ho gayi...aajkal garmi aur power-cut ne behal kar rakha hai.

pratham prayas hi bahut khoobsurat hai aur bhavo ko kahne me saksham.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया Sat May 12, 05:36:00 pm  

गहन घन
छंट जाते पल में
उजली रेखा
भर देती मन में
अनुपम उल्लास ।

नई विधा ताँका में सार्थक प्रयास .बधाई.

MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...

Kailash Sharma Sun May 13, 02:19:00 pm  

बहुत ग़हन और कोमल अहसास...बहुत सुन्दर प्रस्तुती...

स्वाति Sun May 13, 06:30:00 pm  

gahan arth samete hue paktiyan...bahut hi khub....

संध्या शर्मा Sun May 13, 10:10:00 pm  

कम शब्दों में बहुत कुछ कहने की क्षमता रखती हैं आपकी रचनाएँ...बहुत सुन्दर और सफल प्रयास रहा ...हमें भी आपसे सीखने मिला...शुभकामनायें ....

Surendra shukla" Bhramar"5 Mon May 14, 09:15:00 am  

लब खुलते
गिरह ढीली होती
मन मिलते
कुछ मोती झरते
कुछ दंश हरते ।
आदरणीया संगीता जी ..काश ये लव सही समय पर खुल जाएँ सब कुछ स्पष्ट जैसे कारी बदरी के जाने पर ..सुन्दर ..जय श्री राधे
भ्रमर ५

सदा Mon May 14, 01:18:00 pm  

वाह ...बहुत बढिया।

Anonymous Fri Jun 08, 12:17:00 am  

बहुत सुंदर तांका हैं संगीता जी... हाइकू और तांका तो आपके बस अद्भुत ही होते हैं...
सादर
मंजु

Anju Sat Jun 30, 11:27:00 pm  

अरे वाह एक और विधा ....आप तो परफेक्ट ....लब खुलते
गिरह ढीली होती
मन मिलते
कुछ मोती झरते
कुछ दंश हरते ।
तीनों तांके ....अनुपम ....

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