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निजत्व से विश्वत्व की ओर

>> Friday, 13 April 2012


मानव 
मन के उच्छ्वास को
शब्दों में पिरो 
विचारों को साध कर 
अनुभव के हलाहल को पी 
अश्रु की स्याही से 
उकेर देता है 
अपनी भावनाओं को 
और हो जाता है 
सृजन कविता का 
फिर भावनाएं 
निजत्व से निकल 
विश्वत्व की ओर 
कर जाती हैं प्रस्थान .

60 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा Fri Apr 13, 06:47:00 am  

मानव जब विचारों इस तरह साधकर रचता है तो कविता विश्वत्व की और प्रस्थान कर जाती है ..गहन अभिव्यक्ति..

Nidhi Fri Apr 13, 07:28:00 am  

निजत्व से विश्वत्व की ओर जाना ....ही कविता के सृजन की कसौटी बन जाता है.सुन्दर बात!!

पी.एस .भाकुनी Fri Apr 13, 07:47:00 am  

निजत्व से विश्वत्व की ओर जाना ही सृजन की सार्थकता है..........गहन अभिव्यक्ति...........

प्रवीण पाण्डेय Fri Apr 13, 08:07:00 am  

व्यक्ति से विश्व तक।

विभूति" Fri Apr 13, 08:28:00 am  

सशक्त और प्रभावशाली रचना.....

Dr.NISHA MAHARANA Fri Apr 13, 08:50:00 am  

अनुभव के हलाहल को पी
अश्रु की स्याही से
उकेर देता है
अपनी भावनाओं को ..sahi nd satik abhiwaykti sangeeta jee....

Maheshwari kaneri Fri Apr 13, 09:37:00 am  

निजत्व से निकल
विश्वत्व की ओर
कर जाती हैं प्रस्थान........वाह: संगीता जी बहुत सुन्दर भाव उकेरा है....बहुत सुन्दर...

Nirantar Fri Apr 13, 10:06:00 am  

jo jitnaa chaahe aachman kar le uskaa

sundar bhaav

रश्मि प्रभा... Fri Apr 13, 10:32:00 am  

निजत्व से विश्वत्व की तरफ जाते बधुत्व का आधार मिलता है ...

Bharat Bhushan Fri Apr 13, 10:42:00 am  

व्यष्टि से समष्टि की ओर की यात्रा और सृजन की प्रक्रिया का सीधा चित्रण. सुंदर.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" Fri Apr 13, 10:46:00 am  

मन के उच्छ्वास को
शब्दों में पिरो
विचारों को साध कर
अनुभव के हलाहल को पी
अश्रु की स्याही से
उकेर देता है

सुन्दर भाव चित्रण !

vandana gupta Fri Apr 13, 11:12:00 am  

फिर भावनाएं
निजत्व से निकल
विश्वत्व की ओर
कर जाती हैं प्रस्थान .…………काश ये बात ये दुनिया समझ पाती ………कौन चाहता है सबका कल्याण आज सब अपने लिये ही सोचते या कहते हैं ये सिर्फ़ ढोंग है कि हम चंद शब्द पर वाह वाही कर देते हैं मगर समग्रता से स्वीकार कब कर पाते हैं जिस दिन सच मे निज से निकल समाज के लिये कुछ करेगा या कहेगा और स्वीकारेगा तभी बदलाव वास्तविक होगा

Rajesh Kumari Fri Apr 13, 11:23:00 am  

baat niklegi to door talak jaayegi
nijatv se vishvatv ki aur ...bahut umda bhaav ati sundar.

मनोज कुमार Fri Apr 13, 12:20:00 pm  

आज कविता और पाठक के बीच दूरी बढ़ गई है । संवादहीनता के इस माहौल में आपकी यह कविता इस दूरी को पाटने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
कविता का काम जुड़ना और जोड़ना है यानी निजत्व से विश्वत्व की ओर।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया Fri Apr 13, 12:51:00 pm  

फिर भावनाएं
निजत्व से निकल
विश्वत्व की ओर
कर जाती हैं प्रस्थान
अनुपम भाव लिए सार्थक सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट .
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

Dr (Miss) Sharad Singh Fri Apr 13, 01:03:00 pm  

और हो जाता है
सृजन कविता का
फिर भावनाएं
निजत्व से निकल
विश्वत्व की ओर
कर जाती हैं प्रस्थान .

व्यापक दृष्टिमय इस सुन्दर कविता के लिए हार्दिक शुभकामनायें एवं साधुवाद !

shikha varshney Fri Apr 13, 02:34:00 pm  

वाह वाह ..भावनाओं का निजता से सार्वजानिक होने तक..
क्या बात है.गहन अभिव्यक्ति .

ashish Fri Apr 13, 02:42:00 pm  

कविता तो भावनाओ का वैश्वीकरण ही है ..सुँदर प्रकटन . आभार .

Anupama Tripathi Fri Apr 13, 03:11:00 pm  

स्व से स्वजन होता चिंतन ....
या हम अर्थशास्त्र वाले कहेंगे ...From Micro to Macro ....छोटी सी कविता गहन बात कह रही है ....!!बहुत अच्छी लगी ये कविता ....!!
शुभकामनाएं...

अनामिका की सदायें ...... Fri Apr 13, 03:29:00 pm  

nijta se sarvjanikta tak aate aate kitne dard se guzarna padta hai yeh ek likhne wala hi jaan sakta hai.

sunder prastuti.

ऋता शेखर 'मधु' Fri Apr 13, 03:39:00 pm  

अनामिका जी की बातों से सहमत हूँ.

गहन भाव लिए सशक्त रचना.

kavita verma Fri Apr 13, 04:05:00 pm  

फिर भावनाएं
निजत्व से निकल
विश्वत्व की ओर
कर जाती हैं प्रस्थान .
sundar bat kahi...

वाणी गीत Fri Apr 13, 04:11:00 pm  

लेखक विश्वत्व की भावना रख कर ही सार्थक रचना कर सकता है , वरना सिर्फ आत्म मुग्धता की स्थिति ही बनी रहे !

सदा Fri Apr 13, 04:42:00 pm  

फिर भावनाएं
निजत्व से निकल
विश्वत्व की ओर
कर जाती हैं प्रस्थान .
बहुत ही बढिया।

लोकेन्द्र सिंह Fri Apr 13, 06:10:00 pm  

कविता का सर्जन वाकई ऐसे ही होता है.... रचना में अथाह गहराई है....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' Fri Apr 13, 06:16:00 pm  

सर्वप्रथम बैशाखी की शुभकामनाएँ और जलियाँवाला बाग के शहीदों को नमन!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
सूचनार्थ!

kshama Fri Apr 13, 06:48:00 pm  

Kya gazab likhtee hain aap!

Sadhana Vaid Fri Apr 13, 08:28:00 pm  

थोड़ी सी पंक्तियों में आपने कविता की सम्पूर्ण जीवन यात्रा की कहानी कह दी संगीता जी ! बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक रचना ! बहुत खूब !

चला बिहारी ब्लॉगर बनने Fri Apr 13, 09:10:00 pm  

संगीता दी,
कवि के मस्तिष्क की कोख से जन्मी, पाठक के ह्रदय तक की यात्रा का सहज वर्णन इस छोटी सी कविता में.. आप ही कर सकती हैं!!
प्रणाम!!

प्रतिभा सक्सेना Fri Apr 13, 10:23:00 pm  

सीमित आत्म से विश्वात्म तक की मनो-यात्रा -
सुन्दर !

रविकर Sat Apr 14, 07:30:00 am  

बहुत बढ़िया प्रस्तुति |
बधाईयाँ ||

M VERMA Sat Apr 14, 08:06:00 am  

फिर भावनाएं
निजत्व से निकल
विश्वत्व की ओर
कर जाती हैं प्रस्थान
शायद विश्वत्व ही तो कविता का लक्ष्य है

PRIYANKA RATHORE Sat Apr 14, 09:57:00 am  

फिर भावनाएं
निजत्व से निकल
विश्वत्व की ओर
कर जाती हैं प्रस्थान

bahut khoob .... aabhar

अजित गुप्ता का कोना Sat Apr 14, 12:45:00 pm  

व्‍यष्टि से समष्टि की ओर जाना ही सामाजिकता है।

कुमार राधारमण Sat Apr 14, 03:20:00 pm  

कविता की यही विडम्बना है कि उसे अश्रु की स्याही से लिखा जाता है। इसी के चलते,उसका वैश्विक स्वर खोया है।

sushila Sat Apr 14, 05:36:00 pm  

कागज़ पर उतरने के बाद न तो भावनाएँ अपनी रहती हैं न शब्द। वे सब के हो जाते हैं। बिल्कुल सही लेकिन जब भावनाएँ उमड़ती हैं तो हाथ स्वत: कागज़-कलम की ओर बढ जाते हैं।
सुंदर कविता

रेखा श्रीवास्तव Sat Apr 14, 06:10:00 pm  

एक कलमकार की कलम की सार्थकता इसी में होती है कि वह निजत्व को तज कर विश्वत्व में ही लगा रहे. वह एक समर्थ सन्देश वाहक और प्रभावशाली सन्देश समाज को देता है.

Rachana Sun Apr 15, 09:44:00 am  

और हो जाता है
सृजन कविता का
फिर भावनाएं
निजत्व से निकल
विश्वत्व की ओर
कर जाती हैं प्रस्थान
bahut khoob sunder bhavon se saji anubhutiyan
rachana

रचना दीक्षित Sun Apr 15, 10:55:00 am  

"फिर भावनाएं
निजत्व से निकल
विश्वत्व की ओर
कर जाती हैं प्रस्थान."

वाह संगीता दी कविता की सार्थकता का प्रमाण प्रस्तुत कर दिया.

बहुत सुंदर

Amrita Tanmay Sun Apr 15, 02:05:00 pm  

शाश्वत सत्य...व्यष्टि से समष्टि ..अति सुन्दर लिखा है आपने..

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार Mon Apr 16, 01:04:00 am  




हो जाता है
सृजन कविता का
फिर भावनाएं
निजत्व से निकल
विश्वत्व की ओर
कर जाती हैं प्रस्थान…



व्यष्टि से समष्टि ही तो है श्रेष्ठ पथ !
सुंदर रचना के लिए आभार !


मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार

Saras Mon Apr 16, 08:36:00 am  

फिर भावनाएं
निजत्व से निकल
विश्वत्व की ओर
कर जाती हैं प्रस्थान .
...कितने कम शब्दों में अपनी एक रचना के सर्जन से लेकर अमर होने तक की गाथा लिख दी ....सच कविता मुखरित होते ही कवि की अपनी धरोहर नहीं रह जाती ......!!!

Meeta Pant Mon Apr 16, 11:13:00 am  

निजत्व से विश्वत्व की ओर... रचना की सार्थकता भी इसी से है . गहरी अभ्व्यक्ति . आभार .

Pallavi saxena Mon Apr 16, 01:36:00 pm  

आपकी कविता की हर एक पंक्ति अपने आप में एक गहन भाव चौपाये होती है इसलिए किसी एक पंक्ति को चुनकर उस अपर कुछ पाना मेरे लिए तो संभव नहींअतः बस इतना ही कह सकती हूँ कि भूषण अंकल कि बात से पूर्णतः सहमत हूँ। :)प्रभावशाली गहन भावव्यक्ति....

अरुण चन्द्र रॉय Mon Apr 16, 08:50:00 pm  

व्यापक सन्देश देती कविता..

nanditta Tue Apr 17, 02:57:00 pm  

फिर भावनाएं
निजत्व से निकल
विश्वत्व की ओर
कर जाती हैं प्रस्थान .
ati sundar

दिगम्बर नासवा Tue Apr 17, 04:21:00 pm  

सच है निज से बाहर आ के ही तो विश्वत्व कों पाया जा सकता है ... गहरी अभुभूति ...

vijay Tue Apr 17, 09:53:00 pm  

फिर भावनाएं
निजत्व से निकल
विश्वत्व की ओर
कर जाती हैं प्रस्थान .
कृपया अवलोकन करे ,मेरी नई पोस्ट ''अरे तू भी बोल्ड हो गई,और मै भी'

Minoo Bhagia Wed Apr 18, 06:47:00 am  

sunder likha hai sangeeta ji

Dr (Miss) Sharad Singh Wed Apr 18, 01:36:00 pm  

बहुत बारीक-सी कहन...मन को छूने वाली...

Aruna Kapoor Wed Apr 18, 08:02:00 pm  

भावना रूपी नदी जब उफान पर होती है...तब कुछ कुछ ऐसा ही दृश्य निर्मित होता है!...बहुत सुन्दर कृति!...आभार!

Mamta Bajpai Thu Apr 19, 07:17:00 pm  

वाह ....बहुत खूब कितना सुन्दर शब्द समायोजन है

***Punam*** Sat Apr 21, 06:50:00 pm  

मंजिल सबकी एक ही है....
रास्ते अलग अलग हो सकते हैं...!
सुंदर अभिव्यक्ति...!!

मेरे भाव Mon Apr 23, 03:02:00 pm  

सुन्दर कविता... छोटी और सारगर्भित...

Kunwar Kusumesh Tue Apr 24, 02:07:00 pm  

गहरी अभुभूति .

meeta Tue May 01, 12:40:00 pm  

आपकी यह सुन्दर प्रस्तुति इस बार चिरंतन के सृजन/ Creation विशेषांक में ली गयी है . आभार .
url - sachswapna.blogspot.com

Anonymous Fri Jun 08, 02:44:00 am  

शब्दों में पिरो
विचारों को साध कर
अनुभव के हलाहल को पी
अश्रु की स्याही से
उकेर देता है
अपनी भावनाओं को
और हो जाता है
सृजन कविता का

कविता के सृजन की प्रक्रिया का बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुतीकरण...
सादर
मंजु

रफ़्तार

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