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जिद्दी ख्वाब

>> Tuesday 22 June 2010



ख्वाब हैं कि

जिद्दी  बच्चे ,

जितना मना करो

उतने ही आ जाते हैं

इन्हें नींद की भी

दरकार नहीं

खुली आँखों में ही

समा जाते हैं.




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अनजाने अक्स

>> Tuesday 15 June 2010










कभी कभी 
तन्हाई में 
टिक जाती है 
नज़र
कहीं शून्य में
उतरने लगते हैं 
अक्स 
जान - पहचान
और
अनजान लोगों के...
और मैं घबरा कर
बंद कर लेती हूँ पलकें

धीरे धीरे 
धुंधले से 
होने लगते हैं
सारे अक्स  
और 
रह जाती है 
मात्र एक 
सपाट दीवार .





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मौन का ताला

>> Tuesday 8 June 2010


जब  भी  

चाहा तुमने 

दस्तक देना ,

मेरे  ख्यालों  का 

दरवाज़ा  हमेशा तुमको 

खुला  मिला  था 

आज  मैंने चाहा कि 

ज़रा  खटखटा  दूँ 

पर वहाँ एक 

मौन का 

ताला  जड़ा  था ....   


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ऐसा तेरा आना .............

>> Wednesday 2 June 2010



ख़्वाबों में 


तेरा आना 


और 

बिना दस्तक  दिए 

चले जाना 

सालता  है मुझे 

जागी आँखों से

गुमसुम सी  

कदमों के निशाँ 

गिना करती हूँ  



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