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विश्वास की ईंट

>> Thursday 30 September 2010




झूठ की एक 

नन्हीं सी फांस 

उखाड़ देती है 

विश्वास की 

जमी हुई नींव को 

फिर कितना ही 

सच का गारा 

लगाओ 

जम नहीं पाती 

एक भी ईंट 

विश्वास की ...

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राख बनती ख्वाहिशें

>> Tuesday 21 September 2010






कहा था यूँ 

कि 

अब जँचती हैं..

तुम्हारी..

कजरारी आँखें 

पर सच 

काली  नहीं हैं 

मेरी आँखें  ,

बस    

राख बन गयी हैं 

कुछ ख्वाहिशें ...





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दीपक तले अँधेरा ..

>> Monday 13 September 2010




ज़िंदगी के चाक पर 

भावनाओं की मिट्टी गूँथ 

छोटी छोटी ख्वाहिशों के 

दिए बना 

चढा दिया था 

यथार्थ के ताप पर 

जिम्मेदारियों के 

तेल में भिगो

अरमानो की बाती  

जला दी थी  

आज उजाला है चारों ओर 

बस है तो 

दीपक तले अँधेरा ....



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खामोशियाँ ..

>> Monday 6 September 2010





खामोशियाँ 

ठहर गयीं हैं 

आज 

आ कर 

मेरे लबों पर 

खानाबदोशी की 

ज़िंदगी शायद 

उन्हें 

रास नहीं आई 



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