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घुलते अलफ़ाज़

>> Monday 30 August 2010



खत पढ़ कर 

आँखों से 

आँसू बहते रहे 

और  

सारे अलफ़ाज़ 

जैसे  

अश्कों में 

घुलते रहे ....





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उदासी के जाले

>> Saturday 28 August 2010




वक्त के हाथों 
पड़ गए थे 
आँखों में 
उदासी के जाले
आज उन्हें 
धो - धो कर 
निकाला है 
चेहरे  की 
नमी को 
हकीकत की 
गर्मी से 
सुखाया है .

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सीला - सीला सा

>> Monday 23 August 2010

सहेज लिए 

मैंने 

तेरे आंसू 

सारे के सारे 

अपनी कमीज़ की

जेब में 

अब 

हर पल 

मेरा दिल 

सीला - सीला सा 

रहता है ...


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गम के घुंघरू

>> Thursday 19 August 2010




इश्क के पैरों में
ना जाने क्यों 
गम के घुंघरू 
बंध जाते हैं 
आँखों में 
हंसी भी हो 
तो भी रुखसार पर 
अश्क के मोती 
टपक जाते हैं 
  
  
  
 

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भीगी खामोशी

>> Tuesday 10 August 2010




खामोशियों  की 

पैरहन को 

आँखों की 

बारिश ने 

भिगो दिया है 

इतना कि

चिपक कर 

रह गयी है 

जेहन से 

इसे उतारने की

कोशिश भी 

नाकाम हो चली है ..









.

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ख़्वाबों से मिट्ठी ......

>> Thursday 5 August 2010


ख़्वाबों से 

मिट्ठी  करके

फिर सजा लिया है

मैंने  उनको 

अपनी पलकों पर ,

ख्वाब ना हों तो

आँखें पथरा सी

जाती हैं.......



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सूखे फूल

>> Sunday 1 August 2010






ख्वाब यूँ ही 

दफ़न हो जाते हैं 

ज़िम्मेदारी की 

किताबों में 


परत दर परत..

पन्ने पलटो 

तो झर जाते हैं 

सूखे फूल की तरह...





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