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आईना

>> Saturday 27 February 2010

रख दिया है



फिर से एक


नया आईना


मैंने ख़्वाबों के सामने


और


क्षत -विक्षत से ख्वाब


लगें हैं सजने


फिर आईने में

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गुजारिश

>> Sunday 21 February 2010





टुकड़ा ए दिल



सहेज लिया है मैंने


तू बस


फिरा दे ज़ख्म पर


अपनी अंगुली .

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ख्वाब

>> Saturday 13 February 2010





ख्वाब बुन दिया है मैंने



रेत पर उँगलियों से


कि रात भर तेरी


खुशबू से महकती रही


सहर होते ही देखा मैंने


कि मेरी झोली तूने


पारिजात से भर दी थी ...
 
 
 

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नया ख्वाब

>> Sunday 7 February 2010



मन की अल्हड़ता से



फूट पड़ते हैं सोते भी


रेगिस्तान में,


साहिल पर बैठ


रेत में उंगली फिरा


एक  ख्वाब नया बुन



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मोती

>> Friday 5 February 2010



इश्क के पैरों में



ना जाने क्यों


गम के घुंघरू


बंध जाते हैं


आँखों में


हंसी भी हो


तो भी रुखसार पर


अश्क के मोती


टपक जाते हैं
 
 
 
 

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उम्मीद

>> Tuesday 2 February 2010


उम्मीद के रोशनदान पर



लगा दिए हैं पहरे


बंद कर पलकों को


कान खोल लिए हैं


हर आहट पर


लगता है कि


उम्मीद पूरी हो गयी
 
 
 
 

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रफ़्तार

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