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सिर्फ एक गुज़ारिश .....

>> Wednesday 24 November 2010




तेरी बातों की

रुखाई ने 
ला दी थी नमी 
मेरी आँखों में 
और तुमने 
बो दिए थे बीज 
कुछ उदासी के ,
अब  अंकुरित हो 
सज गए हैं वो 
खामोशी के पत्तों से .

आज जब 
बन गया है वो 
विशाल  वृक्ष 
और आ गया है 
दोनों की 
राह के बीच ,
तो चाहते हो कि
काट डाला जाये इसे .

बस एक 
गुज़ारिश है तुमसे 
कम से कम 
अब तो पर्यावरण का 
लिहाज करो ..



.

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लबों की गाँठ ....

>> Thursday 18 November 2010

मेज़ पर 
बिखरी पड़ी 
हमारी बातो को 
सहेज कर 
रख दिया  था 
तुमने 
और चाहा था कि 
मैं   कर दूँ 
सारे लफ़्ज़ों को 
फिर से बेतरतीब
गिरह खोल कर .
अपने लबों की,
पर  
बांच ली हैं 

मैंने 
सारी तहरीरें 
तेरी आँखों में ही .  
लफ़्ज़ों  को 
बेतरतीब 
करने के लिए
लबों की गाँठ 
खोलना ज़रूरी नहीं  


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बरस ही गए बादल

>> Thursday 11 November 2010





बादल....और आसमां    से  आगे की कड़ी .....





सबने कहा था कि-
बादल बरस ही जायेंगे 
देर - सबेर, 

कल हुयी थी 
बारिश  मूसलाधार, 

आज हल्की सी 
धूप निखर आई है, 

बस ज़रा आँखों में 
सुर्खी उतर आई है ...


.

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बादल ....और ..आसमां

>> Wednesday 10 November 2010





उदासी के बादल 
छा गए हैं 
मेरे ज़िंदगी के 
फ़लक पर 
अब कुछ 
बरसें 
तो उजला 
आसमां  हो ...


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रफ़्तार

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