भ्रष्ट आचार
>> Friday, 25 October 2013
स्वतंत्र भारत की नीव में
उस समय के नेताओं ने
अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के
रख दिये थे भ्रष्ट आचार
फिर देश से कैसे
खत्म हो भ्रष्टाचार ?
खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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52 comments:
बहुत सुंदर ढंग से ब्यक्त किया अपने विचार ------! जितनी प्रसंशा की जय कम है-----।
धन्यबाद
हमारा पहला कदम ही निश्चित करता है कि हमारा मार्ग किधर जाएगा। अच्छी रचना।
रोचक परिभाषा..
बढ़िया परिभाषा
सही है भ्रष्टाचार की नींव पर ईमारत भी उसी की बनेगी … सटीक
isi mahatkansha ne sab gadbad kar diya .....aajadi hasil ho gai par ...ramrajya ka sapna adhura rah gaya .....
विरासत में मिला भ्रष्टाचार .....
सही बात है ...तभी तो हो गई राजनीति मसालेदार :)
कम शब्दों में सटीक बात...... बहुत बढ़िया
विरासत को सुधारना हमारा कर्तव्य है ....
बहुत उम्दा सटीक अभिव्यक्ति ,,,!
RECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.
अब जो रखा है उसे ढोना है या धोना है
सही कहा दी......
भुगत रहे हैं सब अब तक...
सादर
अनु
महत्वाकांक्षा और भ्रष्टाचार का गठबंधन बहुत पुराना है ,,,,
सादर!
एकदम सही कहा संगीता जी……. जब नींव में ही खोट हो तो इमारत तो कमजोर होगी ही ……
Manju Mishra
कड़वी सच्चाई
बोया पेड़ बबूल का
आम कहाँ से होय !
गागर में सागर भर बहुत गहन बात कह दी संगीता जी ! जो कहा वह सौ फीसदी सच है ! बहुत खूब !
बहुत ही सुंदर रचना
बढ़िया अचार हुआ आचार का :)
हाँ! अब एक और स्वतंत्रता की लड़ाई होनी चाहिए अपने इन माननीय नेताओं के विरुद्ध ..तब शायद..
kam shabdon me bahut gahri bat kah di
कुछ ही पंक्तियाँ पर कितना स्पष्ट, सामयिक ओर सटीक ... सच है की अगर सन ४७ में देश को सही दिशा दी गई होती तो आज हालात कुछ ओर होए ...
जो फ़सल बोयी थी वही कट रही है.
रामराम.
Neenv ka patthar hi galat lag gaya to imaarat to aisi honi hi thi...
Bhut khoob!!
बहुत सटीक अभिव्यक्ति...
बहुत खूब सौ सुनार की एक लुहार की क्या मारा है सेकुलर तंत्र को निचोड़के कोड़ा मेडम जी ने। बधाई !
स्वतंत्र भारत की नीव में
उस समय के नेताओं ने
अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के
रख दिये थे भ्रष्ट आचार
फिर देश से कैसे
खत्म हो भ्रष्टाचार ?
दीपावली के पावन पर्व की बधाई ओर शुभकामनायें ...
कुछ नया लिखो कुछ नया करो। प्रतीक्षित आपकी रचनाएं हैं।
सच तो यही है...सटीक।
बहुत खूब कहा है।
कम शब्द ...गहरे भाव
☆★☆★☆
स्वतंत्र भारत की नीव में
उस समय के नेताओं ने
अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के
रख दिये थे भ्रष्ट आचार
फिर देश से कैसे
खत्म हो भ्रष्टाचार ?
बहुत सही कहा आपने...
आदरणीया संगीता जी !
...और उसके बाद भी निरंतर अवसरवादियों के कुशासन ने राष्ट्र के हित में नकारात्मक ही किया...
बहुत कुछ है इस लघुकविता में...
आभार !
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन: कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
एक कटु सत्य को उजागर कर दिया
ये आचार अब कभी न बदले :)
सच है महत्वकांक्षाओं के कारण नींव ही कमजोर पड़ी तो अब... बहुत बढ़िया.
बहुत बढ़िया..
बहुत बढ़िया प्रस्तुति...आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो
bahut sahi kaha aapne
rachana
आपकी बात मेँ दम हैँ।
आपना ब्लॉग , सफर आपका ब्लॉग ऍग्रीगेटर पर लगाकर अधिक लौगो ता पँहुचाऐ
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सटीक।
बहुत खूब। अच्छी रचना।
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नींव मजबूत नहीं तो ढहना है उसे एक दिन ..
जैसा बोया वैसे ही अनाज ..
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बढ़िया !
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बहुत सुन्दर लिखा है .
धन्यवाद
Gagar men saagar.
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apke satvichaaro ko shat shat naman
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