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मन पलाश

>> Saturday 20 February 2021

 


बदला तो नहीं
कुछ भी ऐसा 
फिर - 
क्यों हो रहा 
भला ये बसन्त ? 
बस मैंने
भरे घट से 
उलीच दिए थे
दो अंजुर भर 
कसैले शब्द ,
और मन 
पलाश  हो गया ।




42 comments:

उषा किरण Sat Feb 20, 11:20:00 am  

...और मन पलाश हो गया ...बहुत सुन्दर रचना👌👌

रश्मि प्रभा... Sat Feb 20, 11:34:00 am  

और अब तक दहक रहा - प्रेम,इंतज़ार,ख्वाबों के संग

संगीता स्वरुप ( गीत ) Sat Feb 20, 12:23:00 pm  

आपके शब्द और रंग भर देते । आभार ।

shikha varshney Sat Feb 20, 03:01:00 pm  

सस्ते में मिल गया पलाश। भर लो अंजुरी। गहरी क्षणिका

संगीता स्वरुप ( गीत ) Sat Feb 20, 03:04:00 pm  

यहाँ तो अंजुरी भर निकालने में लगे न जाने क्या क्या 😆😆 ।यहाँ तक आने का शुक्रिया ।

Dr (Miss) Sharad Singh Sat Feb 20, 05:19:00 pm  

सुंदर रचना 🌹🙏🌹

Dr (Miss) Sharad Singh Sat Feb 20, 05:20:00 pm  

आदरणीय/ प्रिय,
कृपया निम्नलिखित लिंक का अवलोकन करने का कष्ट करें। मेरे आलेख में आपका संदर्भ भी शामिल है-
मेरी पुस्तक ‘‘औरत तीन तस्वीरें’’ में मेरे ब्लाॅगर साथी | डाॅ शरद सिंह
सादर,
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

Unknown Sat Feb 20, 07:00:00 pm  

और मन पलाश हो गया ।
वाह !! सुन्दर अभिव्यक्ति ।
👌👌👌👌👌👌👌

संगीता स्वरुप ( गीत ) Sat Feb 20, 07:37:00 pm  

बहुत बहुत शुक्रिया पसंद करने के लिए ।

संध्या शर्मा Sat Feb 20, 09:18:00 pm  

मन पलाश होने के लिए बस यही तो करना होता है फिर हर मन का हर मौसम वासंती - वासंती ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) Sat Feb 20, 10:01:00 pm  

शुक्रिया संध्या , मन वासंती करने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़ते ।

girish pankaj Sat Feb 20, 10:24:00 pm  

वाह। सुन्दरम।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Sat Feb 20, 10:26:00 pm  

गिरीश जी आपका मेरे ब्लॉग तक आना पुरस्कार से कम नहीं ।आभार ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' Sun Feb 21, 08:23:00 am  

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-02-2021) को "शीतल झरना झरे प्रीत का"   (चर्चा अंक- 3985)    पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
 आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
--

डॉ. मोनिका शर्मा Sun Feb 21, 08:36:00 am  

सीखने की बात है ..कसैलापन गया और वसन्त आया , बहुत सुंदर

संगीता स्वरुप ( गीत ) Sun Feb 21, 08:41:00 am  

ऐसा करना भी कभी कभी ज़रूरी हो जाता है । बहुत शुक्रिया मोनिका ।

ज्योति सिंह Sun Feb 21, 07:27:00 pm  

अति उत्तम , लाजवाब रचना, इसके भाव शब्द मन को छू रहे है, नमन संगीता जी बधाई हो

संगीता स्वरुप ( गीत ) Mon Feb 22, 10:05:00 am  

शुक्रिया शास्त्री जी ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Mon Feb 22, 10:05:00 am  

ज्योति , तहेदिल से शुक्रिया ।

Anita Mon Feb 22, 10:44:00 am  

वाह ! हृदय को खोल देने भर से ही तो प्रेम छलक जाता है

संगीता स्वरुप ( गीत ) Mon Feb 22, 11:52:00 am  

कितने ,अच्छे से आपने बात कह दी । आभार अनिता जी ।

Dr Varsha Singh Mon Feb 22, 01:06:00 pm  

बहुत सुंदर हृदयग्राही कविता

Amrita Tanmay Mon Feb 22, 02:23:00 pm  

यही तो प्रत्यक्ष चमत्कार है । अति सुन्दर भाव ।

Anuradha chauhan Mon Feb 22, 02:45:00 pm  

बहुत सुंदर रचना

सदा Mon Feb 22, 05:23:00 pm  

बस मैंने
भरे घट से
उलीच दिए थे
दो अंजुर भर
कसैले शब्द ,
और मन
पलाश हो गया ।
मन का पलाश हो जाना ... अहा अप्रतिम ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) Mon Feb 22, 07:36:00 pm  

आपकी प्रतिक्रिया से हौसलाफजाई हुई ।आभार ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) Mon Feb 22, 07:37:00 pm  

शुक्रिया अनुराधा जी

संगीता स्वरुप ( गीत ) Mon Feb 22, 07:38:00 pm  

सीमा , तुम्हारी ये अहा बहुत कुछ कह गयी । शुक्रिया ।

जिज्ञासा सिंह Tue Feb 23, 11:09:00 am  

भटकते हुए भावों को इन्हीं शब्दों की तलाश थी ..और आपकी अनुपम कृति से मेरा मन भी पलाश हो गया..

संगीता स्वरुप ( गीत ) Tue Feb 23, 12:48:00 pm  

भावों को ठौर मिले, इससे बढ़िया क्या बात । शुक्रिया जिज्ञासा ।

आलोक सिन्हा Tue Feb 23, 03:42:00 pm  

बहुत बहुत सुन्दर

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