सूखे फूल और बहार
>> Tuesday, 12 October 2010
यादों के सूखे फूल
आज भी
महका रहे हैं
मेरी ज़िंदगी की
किताब को
इस महक से
ज़िंदगी में
आज भी
बहार है |
Labels:
छोटी कविता
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खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
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