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मन समंदर

>> Thursday, 24 May 2012



लहरें तो आती जाती हैं 
दुख सुख का भी हाल यही 
फिर हम इतना क्यों सोचें  
बस मन समंदर करना है , 

मोती सीपों में मिल जाते 
पर गोता खुद लगाना है 
श्रम से फिर क्यों भागें हम 
बस तन अर्पण  करना है 

 पैसा तो आना जाना है 
 इसके पीछे हैं पागल लोग 
क्यों हम पागल हो जाएँ 
बस मन मंदिर करना है । 


59 comments:

vandana gupta Thu May 24, 12:22:00 pm  

मोती सीपों में मिल जाते
पर गोता खुद लगाना है

सच कहा……… खुद ही गोता लगाना होता है

दिगम्बर नासवा Thu May 24, 12:25:00 pm  

मोती सीपों में मिल जाते
पर गोता खुद लगाना है
श्रम से फिर क्यों भागें हम
बस तन अर्पण करना है ..

सच कहा है ... कर्म के इस महत्त्व कों हम आज भूलते जा रहे हैं ... बस तन के कष्ट कों देख रहे हैं .. सिर आनन्द की नहीं सोचते ...

Rajesh Kumari Thu May 24, 12:34:00 pm  

मोती सीपों में मिल जाते
पर गोता खुद लगाना है
बहुत श्रेष्ठ बात कही है ...बहुत सुन्दर रचना संदेशपरक

रश्मि प्रभा... Thu May 24, 12:36:00 pm  

दुःख के आते हम अव्यवस्थित हो जाते हैं , क्योंकि सुख आने पर हमें लगता है , अब जो बहार आई है वह जाएगी नहीं ... जबकि सबकुछ क्रमिक है , पर स्वीकार्य नहीं ...
और किनारे से सबकुछ पाना चाहते हैं

yashoda Agrawal Thu May 24, 12:50:00 pm  

साथी तो दोनों हैं ........
सुख भी और दुख भी
पर कोई माने तब न

डॉ टी एस दराल Thu May 24, 01:08:00 pm  

पैसा तो आना जाना है
इसके पीछे हैं पागल लोग
क्यों हम पागल हो जाएँ
बस मन मंदिर करना है ।

पूर्णतया सहमत । बस यही लोगों की समझ में नहीं आता ।
सुन्दर रचना ।

ब्लॉ.ललित शर्मा Thu May 24, 01:08:00 pm  

सुख-दु:ख, धन-धान्य आनी जानी चीज है। बस मनुष्य अपनी मनुष्यता पर कायम रहे, यह बड़ी बात है।

ऋता शेखर 'मधु' Thu May 24, 01:12:00 pm  

मोती सीपों में मिल जाते
पर गोता खुद लगाना है
श्रम से फिर क्यों भागें हम
बस तन अर्पण करना है

बिना श्रम किए सब कुछ पा लेने की ख्वाहिश ही
असंतुष्टि पैदा करती है...बेहतरीन रचना !!

अरुण चन्द्र रॉय Thu May 24, 01:16:00 pm  

प्रेरित करती रचना... बहुत सुन्दर...

अशोक सलूजा Thu May 24, 01:28:00 pm  

कर्म ही धर्म है .....
बिल्कुल ठीक !
शुभकामनाएँ !

Sadhana Vaid Thu May 24, 01:38:00 pm  

पैसा तो आना जाना है
इसके पीछे हैं पागल लोग
क्यों हम पागल हो जाएँ
बस मन मंदिर करना है ।

बहुत खरी बातें कही हैं आज संगीता जी ! बस ज़रा सा दृष्टिकोण ही तो बदलना है राहें खुद ब खुद आसान हो जायेंगी ! बहुत खूब !

shikha varshney Thu May 24, 01:55:00 pm  

बिलकुल किनारे बैठ कर मछली नहीं पकड़ी जा सकती.प्रयत्न तो स्वंम ही करने पड़ते हैं.
सुन्दर प्रेरणादायी रचना.

संध्या शर्मा Thu May 24, 02:31:00 pm  

सब कुछ आना जाना है, कर्म महत्वपूर्ण है. सुन्दर सन्देश देती रचना... आभार

संजय भास्‍कर Thu May 24, 02:46:00 pm  

मोती सीपों में मिल जाते
पर गोता खुद लगाना है
श्रम से फिर क्यों भागें हम
बस तन अर्पण करना है
......बहुत अच्छी लगीं यह पंक्तियाँ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" Thu May 24, 03:04:00 pm  

मोती सीपों में मिल जाते
पर गोता खुद लगाना है
श्रम से फिर क्यों भागें हम
बस तन अर्पण करना है
सार्थक सन्देश देते रचना , सीप तक पहुंचने कि लिए डुबकी तो लगानी ही पड़ेगी अगर मोती चाहिए !

रंजू भाटिया Thu May 24, 03:31:00 pm  

बहुत सही लिखा आपने सुन्दर ..

मनोज कुमार Thu May 24, 03:57:00 pm  

समय और समुद्र की लहरें किसी का इंतजार नहीं करतीं इसलिए कर्म में मन को रत रखना चाहिए। कविता के सार्थक भाव मन को आह्लादित करते हैं।

सदा Thu May 24, 04:05:00 pm  

मोती सीपों में मिल जाते
पर गोता खुद लगाना है
श्रम से फिर क्यों भागें हम
बस तन अर्पण करना है ..
प्रेरणात्‍मक विचारों का संगम ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति .. आभार ।

प्रवीण पाण्डेय Thu May 24, 04:27:00 pm  

प्रसन्नता बिखेरने के पहले प्रसन्न होना आवश्यक है।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने Thu May 24, 05:02:00 pm  

दीदी,
माटी के जीवन को कंचन बनाने का सूत्र आपकी इस कविता में सन्निहित है!! अत्यंत प्रेरक!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' Thu May 24, 05:06:00 pm  

बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति!

Maheshwari kaneri Thu May 24, 06:14:00 pm  

मोती सीपों में मिल जाते
पर गोता खुद लगाना है
श्रम से फिर क्यों भागें हम
बस तन अर्पण करना है ......वाह: संगीता जी बहुत सार्थकऔर सुन्दर रचना.....

Pallavi saxena Thu May 24, 06:50:00 pm  

पैसा तो आना जाना है
इसके पीछे हैं पागल लोग
क्यों हम पागल हो जाएँ
बस मन मंदिर करना है । बस इतना ही करलें सभी लोग इस एक जीवन के लिए वही बहुत है....बहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना....

मेरा मन पंछी सा Thu May 24, 07:18:00 pm  

बढ़िया सन्देश देती रचना...
बेहतरीन सार्थक प्रस्तुति...

M VERMA Thu May 24, 07:33:00 pm  

श्रम से फिर क्यों भागें हम
संदेश्युक्त और सार्थक रचना

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया Thu May 24, 07:36:00 pm  

पैसा तो आना जाना है
इसके पीछे हैं पागल लोग
क्यों हम पागल हो जाएँ
बस मन मंदिर करना है ।

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन पंक्तियाँ,,,,,,

MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

ashish Thu May 24, 08:06:00 pm  

सकल पदारथ येही जगमाही ,कर्म हीन नर पावत नहीं . बहुत कुछ सिखाती पंक्तियाँ . सुँदर .

ANULATA RAJ NAIR Thu May 24, 08:51:00 pm  

सच कहा आपने....
मगर-
मन मंदिर कर लिया है लोगों ने दी............
और इन्तेज़ार करते रहते हैं चढावे का!!!!

अनु

मुकेश पाण्डेय चन्दन Thu May 24, 09:38:00 pm  

पैसा तो आना जाना है
इसके पीछे हैं पागल लोग
क्यों हम पागल हो जाएँ
बस मन मंदिर करना है ।
jivan ko tatolti sundar kavita !

दर्शन कौर धनोय Thu May 24, 09:38:00 pm  

पैसा तो आना जाना है
इसके पीछे हैं पागल लोग
क्यों हम पागल हो जाएँ
बस मन मंदिर करना है ।

आजकल सब पैसों के लिए ही पागल हैं ? पर क्या करे हर चीज पैसे से ही आती हैं ..सिर्फ मन का चैन ही हैं जिसे कोई पैसो से नहीं खरीद सकता ....सुंदर मन को छू लेने वाली संवेदनाए हैं

प्रतिभा सक्सेना Thu May 24, 09:41:00 pm  

तन कर्म हेतु और मन मंदिर सा - आपने तो जीवन का रहस्य ही उद्घाटित कर दिया ,अब आगे कहने को बचा ही क्या !

राजेश उत्‍साही Thu May 24, 11:19:00 pm  

पैसा आएगा तभी तो जाएगा। इस आने जाने की कसरत ने ही पागल बना रखा है।

डॉ. मोनिका शर्मा Fri May 25, 12:00:00 am  

सुन्दर, सार्थक पंक्तियाँ .....

विभा रानी श्रीवास्तव Fri May 25, 06:51:00 am  

लहरें तो आती जाती हैं
दुख सुख का भी हाल यही
फिर हम इतना क्यों सोचें
बस मन समंदर करना है ,
बहुत ख़ूब दी.... :) उम्दा सोच की ,
उत्तम अभिव्यक्ति.... !! मन समंदर हो जाए .... !!

पूनम श्रीवास्तव Fri May 25, 07:20:00 am  

di
bahut hi prerak v sashkt prastuti
bahut bahut hi achhi lagi
sadar naman
poonam

वाणी गीत Fri May 25, 07:57:00 am  

बस मन ही मंदिर हो जाए तो सब कुछ गौण ही ! समंदर की सीप में मोती मिलना ही है!
श्रेष्ठ विचार !

***Punam*** Fri May 25, 12:47:00 pm  

मोती सीपों में मिल जाते
पर गोता खुद लगाना है .............

सत्य वचन......

Kunwar Kusumesh Sat May 26, 08:17:00 am  

बस मन मंदिर करना है ............

श्रेष्ठ विचार.

amrendra "amar" Sun May 27, 02:15:00 pm  

वाह!!! बहुत खूब लिखा है आपने....

virendra sharma Mon May 28, 07:53:00 pm  

बस मन समुन्दर हो जाए सब कुछ को छिपाए रहे समुन्दर की तरह कितना असंघर्ष आलोडन है वहां परस्पर जीवों का हर स्तर पर -
और यहाँ भी दखल देंवें -

सोमवार, 28 मई 2012
क्रोनिक फटीग सिंड्रोम का नतीजा है ये ब्रेन फोगीनेस

Amrita Tanmay Mon May 28, 08:18:00 pm  

मन तो मंदिर है ही पर हम माया नगरी में उलझ कर भूल जाते हैं .. कितनी सुन्दर बात कहा है आपने..

Anupama Tripathi Mon May 28, 09:44:00 pm  

निर्लिप्त मन से कर्म करें ...!!
सार्थक संदेश देती रचना ...!!

स्वाति Tue May 29, 09:08:00 am  

मन मंदिर हो जाये फिर क्या कहने...गहन अनुभूति लिए भावाव्यक्ति....बहुत सुन्दर...

Asha Joglekar Tue May 29, 10:18:00 pm  

मन समंदर करना है बहुत ही प्रेरक और अ्रथपूर्ण रचना ।

virendra sharma Wed May 30, 01:31:00 pm  

मन मंदिर हो जाए ,मानव समदर्शी हो जाए ,समुन्दर सा सब समो जाए ...अपने अन्दर बढ़िया प्रस्तुति है .
कृपया यहाँ भी पधारें -



ram ram bhai

बुधवार, 30 मई 2012
HIV-AIDS का इलाज़ नहीं शादी कर लो कमसिन से

http://veerubhai1947.blogspot.in/

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कब खिलेंगे फूल कैसे जान लेते हैं पादप ?

कविता रावत Wed May 30, 06:44:00 pm  

पैसा तो आना जाना है
इसके पीछे हैं पागल लोग
क्यों हम पागल हो जाएँ
बस मन मंदिर करना है ।
..bas yahi baat man mein thaan le to phir kitna achha hota ..
bahut sundar rachna!

शिवनाथ कुमार Sun Jun 03, 07:47:00 pm  

पैसा तो आना जाना है
इसके पीछे हैं पागल लोग
क्यों हम पागल हो जाएँ
बस मन मंदिर करना है ।

यदि सभी लोगों का मन मंदिर और समंदर की तरह विशाल हो जाए तो हर किसी की जिंदगी खुशनुमा हो जाए |
सुंदर रचना .... साभार !!

Kailash Sharma Tue Jun 05, 03:28:00 pm  

पैसा तो आना जाना है
इसके पीछे हैं पागल लोग
क्यों हम पागल हो जाएँ
बस मन मंदिर करना है ।

....बिलकुल सच कहा है....बहुत प्रेरक अभिव्यक्ति...

Dinesh pareek Wed Jun 06, 11:46:00 am  

आपका भी मेरे ब्लॉग मेरा मन आने के लिए बहुत आभार
आपकी बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना...
आपका मैं फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,......
मेरा एक ब्लॉग है

http://dineshpareek19.blogspot.in/

VIJAY KUMAR VERMA Sat Jun 09, 10:57:00 am  

लहरें तो आती जाती हैं
दुख सुख का भी हाल यही
फिर हम इतना क्यों सोचें
बस मन समंदर करना है
बहुत प्रेरक अभिव्यक्ति...

Coral Sun Jun 10, 10:46:00 am  

मोती सीपों में मिल जाते
पर गोता खुद लगाना है

बहुत सुन्दर श्रम किये किये बिना श्रम के मोल कहा ?

कुमार राधारमण Sun Jun 10, 11:21:00 pm  

हां,मन मंदिर हो जाए,तो तन की समस्या सुलझे और धन की चिंता भी न रहे!

Dr (Miss) Sharad Singh Tue Jun 12, 12:59:00 pm  

मोती सीपों में मिल जाते
पर गोता खुद लगाना है
श्रम से फिर क्यों भागें हम
बस तन अर्पण करना है ..

कर्तव्यों के प्रति सचेत करती पंक्तियाँ......बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक रचना....

कुमार राधारमण Wed Jun 13, 12:40:00 pm  

सारा खेल मन का ही है।

Dr.NISHA MAHARANA Tue Jun 19, 07:21:00 am  

पैसा तो आना जाना है
इसके पीछे हैं पागल लोग .......sach kaha aapne ...

Dr. Madhuri Lata Pandey (इला) Sun Jun 24, 12:01:00 pm  

par gota khud lagana hai...swakarm ki prerana:)

Anju Sat Jun 30, 11:23:00 pm  

सच ही तो है ....गोता खुद लगाना है ...तभी तो सीप में मोती मिल पाएंगे ....सुंदर रचना ...

रफ़्तार

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