सच ठिठकी निगाहों का
>> Thursday, 21 February 2013

सफर के दौरान
खिड़की से सिर टिकाये
ठिठकी सी निगाहें
लगता है कि
देख रही हैं
फुटपाथ और झाड़ियाँ
पर निगाहें
होती हैं स्थिर
चलता रहता है
संवाद मन ही मन
उतर आता है
पानी खारा
खुद से बतियाते हुये
खिड़की से झाँकती आंखे
लगता है कि ठिठक गयी हैं ।