copyright. Powered by Blogger.

सच ठिठकी निगाहों का

>> Thursday, 21 February 2013


सफर के दौरान 
खिड़की से सिर टिकाये 
ठिठकी सी निगाहें 
लगता है कि 
देख रही हैं 
फुटपाथ और झाड़ियाँ 
पर निगाहें 
होती हैं स्थिर 
चलता रहता है  
संवाद मन ही मन 
उतर आता है 
पानी खारा 
खुद से बतियाते हुये 
खिड़की से झाँकती आंखे 
लगता है कि ठिठक गयी हैं । 

शगल ....

>> Friday, 1 February 2013




मेरे मन के समंदर में
तुमने उछाल दिये 
बस यूं ही 
कुछ शब्दों के पत्थर 
और देखते रहे 
उनसे बने घेरे 
जो भावनाओं की लहरों पर 
बन औ  बिगड़ रहे थे 
शायद  तुम्हारा तो मात्र 
यह शगल रहा था 
पर वो पत्थर 
समंदर में कहीं 
गहरा गड़ा  था ।


 

रफ़्तार

About This Blog

Labels

Lorem Ipsum

ब्लॉग प्रहरी

ब्लॉग परिवार

Blog parivaar

हमारी वाणी

www.hamarivani.com

लालित्य

  © Free Blogger Templates Wild Birds by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP