सच ठिठकी निगाहों का
>> Thursday, 21 February 2013
सफर के दौरान
खिड़की से सिर टिकाये
ठिठकी सी निगाहें
लगता है कि
देख रही हैं
फुटपाथ और झाड़ियाँ
पर निगाहें
होती हैं स्थिर
चलता रहता है
संवाद मन ही मन
उतर आता है
पानी खारा
खुद से बतियाते हुये
खिड़की से झाँकती आंखे
लगता है कि ठिठक गयी हैं ।
53 comments:
सही कहा दी...सफर जारी रहता है...पर मन स्थिर|
ठिठकी आँखों में मन सदा ही गतिमय रहता है, न जाने क्या क्या सोचता रहता है।
एकान्त मिलते ही अन्तर्मन के दृश्य प्रारम्भ हो जाते हैं।
बहुत ही सार्थक रचना.
मन के भीतर के भाव कब ठहरते हैं ....गहरी अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर रचना लिखी, आखिर मन को आराम कहां, भूत भविष्य को लेकर बस निरंतर गतिशील रहता है, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
जिन्दगी के तमाम सफ़र एक अलग नजरिये से बयां करते शब्द !
हर सफ़र के साथ मन का सफ़र भी शुरू हो जाता है कभी अतीत के जाने पहचाने स्टेशनों पर गाड़ी रुक जाती है तो कभी भविष्य के अनचीन्हे मुकाम मन को अस्थिर कर आशंकित कर जाते हैं ! निगाहें सब कुछ अपने में समेटती कल्पना और दृश्य की सेतु बनी रहती हैं ! सारगर्भित सुन्दर अभिव्यक्ति !
यही नियति है सफ़र ज़ारी रहता है फिर चाहे पा्नी खारा हो या निगाह ठिठकी
संवाद - निरंतर ....
कभी प्रश्न कभी उत्तर
कहीं ठिठका मन कहीं आँखें
आँखें खुली होने का मतलब यह नहीं कि उनसे देखा जा रहा हैं,वे ठिठकी रह जायेंगी जब तक असली देखनेवाला मन अंतर्यात्रा यात्रा में व्यस्त है!
मेरे साथ भी अक्सर ऐसा होता है.बहुत स्वाभाविक वर्णन किया है आपने, अक्सर ट्रेन या बस से बाहर झांकती आँखों में खारा पानी उतरा होता है.
चलता रहता है
संवाद मन ही मन
उतर आता है
पानी खारा
खुद से बतियाते हुये
खिड़की से झाँकती आंखे
लगता है कि ठिठक गयी हैं ।
अद्भुत...
बहुत ही मर्मस्पर्शी एवं यथार्थपरक रचना ....
पर निगाहें
होती हैं स्थिर
चलता रहता है
संवाद मन ही मन
बिल्कुल सच ... शब्दश:
सादर
खुद से बतियाते हुये
खिड़की से झाँकती आंखे
लगता है कि ठिठक गयी हैं ।
ठहर ही जाती हैं आंखें जब मन मेंकुच खलबली मचाने वाला उठता है ।
खुद से बतियाते हुये
खिड़की से झाँकती आंखे
लगता है कि ठिठक गयी हैं ।
ठहर ही जाती हैं आंखें जब मन मेंकुच खलबली मचाने वाला उठता है ।
संवाद...
खुद से..
खुद का...!
खूबसूरत...
हर पल नया दृश्य देखती आँखें....
पानी क्यूँ धुंधला देता है दृष्टि...
सुन्दर रचना..
सादर
अनु
फुरसत के पल खुद से बतियाने का अवसर देते हैं, ठिठकी आँखे लिए मन कितना शोर करता है...बहुत सुन्दर भाव... आभार
मन रे तू काहे न धीर धरे. सच कहा है.निगाहें बेशक ठिठकी रहें पर मन गतिशील रहता है और भर जाता है आँखों में खारा पानी.
ठिठकी आँखों में आगत-विगत कितने ही सपने चलते हैं..
बहुत सुंदर रचना
कभी कभी ही ऐसी रचनाएं पढने को मिलती हैं।
आभार.
आँखें कुछ और देखती हैं , मन कुछ और।
सुन्दर रचना।
अक्सर ऐसा होता है...
हम सफ़र में आगे बढ़ते जाते हैं... मगर मन कहीं और पहुँचकर आँखें भिगोता रहता है....
~सादर!!!
सार्थक रचना
सादर !
मन हमेशा चंचल होता है,हम देखते कुछ है मन सोचता कुछ और है,,,
Recent post: गरीबी रेखा की खोज
जाने क्या चलता रहता है दिमाग में , खिड़की से सर टिकाये !
यही की जीवन भी बस एक सफर ही है !
एक दर्द का अद्भुत बयान।
ek istri ki kashomokash darshari sunder abhivyakti.
man kee gati aur disha to hamesha hi adrishya hoti hai aur usase hi judi hoti hain aankhen aur chehre ke bhav.
badhiya...
badhiya...
सफर के अंदर भी एक सफर चलता रहता है.
सुंदर सशक्त प्रस्तुति.
होती हैं नज़रें कहीं ,और कहीं पर ध्यान
वह पल बस अपने लिये,होता है वरदान
होता है वरदान , जगत की आपाधापी
खुद से रखती दूर,बड़ी जुल्मी अति पापी
सागर बड़ा अथाह,एक दो चुन लो मोती
ठिठकी हुई निगाह ,बहुत सुखदायी होती ||
हाँ सही कहा सफ़र के दौरान ऐसा बहुत बार होता है
मन भुत,भविष्य, के ताने बाने बुनने में व्यस्त रहता है वर्तमान में कभी नहीं ठहरता मन को रोकने का ध्यान एक तरीका है जब ध्यान होता है तो मन नहीं होता है मन होता है तो ध्यान नहीं होता ....
मन में चलता संवाद और झाड़ियों पर स्थिर निगाहें ......मन में उठे बवंडर की सुंदर परिकल्पना ....वाह
मेरा ब्लॉग आपके स्वागत की प्रतीक्षा में
स्याही के बूटे
मन कभी ठहरता कहाँ है ....भीड़ में हो या अकेला ....संवाद रहता है बरकरार .....भावपूर्ण ...
फुटपाथ और झाड़ियाँ
पर निगाहें
होती हैं स्थिर
चलता रहता है
संवाद मन ही मन
उतर आता है
पानी खारा
हृदयस्पर्शी पंक्तियां......
बहुत खूब ...!!
मन कहाँ कभी स्थिर होता है... चाहे सफ़र हो या थारा जीवन. भाव पूर्ण रचना, बधाई.
संग्रहनीय
बिलकुल नैसर्गिक चित्रण ...शब्दों से बनाया गया अच्छा भाव चित्र
ये जो सवाल हैं अनसुलझे से
कभी थिर,अस्थिर कभी
हो तलाश पूरी,कोई
मन की आंखों से देखे तो सही
नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!!
लगता है कि
देख रही हैं
फुटपाथ और झाड़ियाँ
पर निगाहें
होती हैं स्थिर
चलता रहता है
संवाद मन ही मन
Sach kaha ... aksar aisa hota hai ... aankhon ke samne kuch aur hota hai ... lekin aankhen dekhti kuch aur hi hain ....
Manju
www.manukavya.wordpress.com
बहुत भावपूर्ण रचना...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति ..
उतर आता है
पानी खारा sacchi bat ....
ab to thithki si nigahon mei manzar aise tairte dikhte hai, jaise ashant sagar mei ufnati lahre...
उतर आता है
पानी खारा
खुद से बतियाते हुये
खिड़की से झाँकती आंखे
लगता है कि ठिठक गयी हैं । .. वाह , क्या सुन्दर चित्रण किया है इन्तेज़ार में खुद से ही बतियाती विह्वल आँखों का .. बहुत सुन्दर!
अति सत्य कथन !सुंदर चित्रण !====
चौदह वर्ष की अवस्था से [जब अकेले ही पहली रेल यात्रा की थी] आज [८४ वर्ष] की हवाई यात्राओं में इस आत्मा नें भी कुछ ऐसा ही अनुभव किया है !==
खिड़की से झाँकती आंखे
लगता है कि ठिठक गयी हैं । ..... bahut sundar !
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